मायावती की पार्टी: दिल्ली दूर है या नहीं!

By  Md Saif January 28th 2025 04:11 PM -- Updated: January 28th 2025 05:16 PM

ब्यूरो: Delhi Vidhan Sabha Election: इस पार्टी की मुखिया का जन्म दिल्ली में हुआ था, यहीं पढ़ाई करते हुए उन्होंने सार्वजनिक जीवन की राह अपनाई, सियासत में कदम रखा। पर सियासी कामयाबी हासिल की उत्तर प्रदेश में। बात हो रही बहुजन समाज पार्टी की, जिसकी मुखिया मायावती अब तमाम उम्मीदो के साथ दिल्ली के चुनावी दंगल में दांव आजमा रही हैं। हालांकि यहां की चुनावी राह उनके लिए आसान कतई नहीं है। 5 फरवरी को होने वाली वोटिंग से तय हो जाएगा कि बीएसपी के लिए ‘दिल्ली अभी कितना दूर कितना पास’ है।  



दलित-मुस्लिम फार्मूले के सहारे चुनावी जीत की ख्वाहिशमंद है बीएसपी

दिल्ली में 17 फीसदी दलित और 12 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। दलित और मुस्लिम समीकरण के लिहाज से ये आंकड़ा 29 फीसदी के करीब है। माना जाता है कि तीस विधानसभा सीटों पर वोटरों का ये कंबिनेशन निर्णायक असर डालता है। कभी कांग्रेस इस फार्मूले को अमल में लाकर दिल्ली पर राज किया करती थी बाद में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने उसी फार्मूले को अपना लिया,  और दलित व मुस्लिम वोटरो की लामबंदी के सहारे एक दशक से ज्यादा वक्त से दिल्ली पर अपना कब्जा जमाए हुए है। इसी समीकरण को अपने हक में  आजमाने के लिए बहुजन समाज पार्टी भी कोशिश कर रही है।  एक दर्जन आरक्षित सीटों के साथ ही मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर भी फोकस किए हुए है बीएसपी।

 

मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर गैर मुस्लिम चेहरों पर दांव  लगाया है बीएसपी ने

मायावती की पार्टी की ओर से 69 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे हैं। बीते कुछ वर्षों से दलित-मुस्लिम समीकरण को आजमा रही मायावती ने दिल्ली के चुनाव में इस फार्मूले का इस्तेमाल कूटनीतिक तरीके से किया है। उन्होंने यहां की किसी भी मुस्लिम बहुल विधानसभा सीट पर मुस्लिम बिरादरी के उम्मीदवार को टिकट देने से परहेज किया है। दिल्ली की आदर्श नगर, संगम विहार, लक्ष्मी नगर, रिठाला और तुगलकाबाद सीटों पर मुस्लिम आबादी 15 फीसदी से  भी कम है। पर इन पांच सीटों पर बीएसपी की ओर से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे गए हैं। चांदनी चौक, ओखला, मुस्तफाबाद, सीलमपुर, बल्लीमारान, मटिया महल, करावल नगर, किराड़ी सीट और बाबरपुर सीटों पर मुस्लिम बिरादरी की आबादी  सर्वाधिक है, यहां मायावती की पार्टी की ओर से गैर मुस्लिम चेहरों पर दांव लगाया गया है।


मिशनरी भाव रखने वाले कार्यकर्ताओं को टिकट देकर बड़ा संदेश दिया है बीएसपी सुप्रीमो ने

ज्यादातर सीटों पर बीएसपी ने जिन कार्यकर्ताओ  को चुनावी मैदान में उतारा है उनमें बड़ी संख्या में उम्मीदवार दलित और अति पिछड़ी जातियों से ताल्लुक रखते हैं। माना जा रहा है कि पार्टी के लिए समर्पित मिशनरी चेहरों को चुनाव में टिकट देकर मायावती ने यूपी में अपने समर्थक वोटरों को बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। चूंकि बीएसपी में पैसों के बदले टिकट देने के आरोप लग चुके हैं। ऐसे में सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि वाले पार्टी समर्थक कैडरों को टिकट देकर मायावती ने ये बताने की कोशिश की है उनकी पार्टी अभी भी मिशनरी मोड में है। और पार्टी के सिद्धांतों को अपनाने वाले वफादार कार्यकर्ताओं को तरजीह दिया जाता है।

  

साल 2008 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन किया

यूं तो बीएसपी के संस्थापक कांशीराम पूर्वी दिल्ली से 1989 और 1991 में लोकसभा चुनाव लड़े थे पर लंबे अरसे तक दिल्ली में बीएसपी कोई खास असर नहीं डाल सकी। लेकिन साल 2007 में यूपी में बहुमत की सरकार बनाने के एक साल बाद हुए दिल्ली चुनाव में बीएसपी ने अपना सबसे शानदार प्रदर्शन करके सबको चौंका दिया। तब उसके बदरपुर और गोकलपुर के उम्मीदवार चुनाव जीते थे। बदरपुर में राम सिंह नेताजी को 47.30 फीसदी वोट मिले थे, जबकि गोकलपुर में सुरेंद्र कुमार 28.89 फीसदी वोट पाकर चुनाव जीते थे। इस चुनाव में बीएसपी का वोटशेयर 14.05 फीसदी था। आधा दर्जन सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे पायदान पर रहे थे। कई सीटों को पार्टी भले न जीत पाई हो पर उसे मिले वोटों ने बीजेपी और कांग्रेस के होश उड़ा दिए थे। पर अच्छे प्रदर्शन का बीएसपी का सिलसिला आगे कायम न रह सका।

   

चुनाव दर चुनाव बीएसपी का वोट शेयर सिकुड़ता चला गया, खाता तक खुलना हुआ नामुमकिन

साल 2013 में बीएसपी ने 69 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। पार्टी को 5.35 फीसदी वोट शेयर मिला पर एक भी सीट न मिल सकी, 63 सीटों पर उतरे उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। इसके दो साल बाद 2015 में हुए चुनाव में बीएसपी ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे पर पार्टी का खाता नहीं खुल सका, 69 सीटों पर उसके उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा सके। पार्टी का वोट शेयर घटकर 1.30 फीसदी हो गया। साल 2020 में 68 सीटों पर बीएसपी चुनाव लड़ी  और सभी सीटों पर उसके उम्मीदवार जमानत गंवा बैठे। पार्टी का वोट शेयर इकाई से भी नीचे सरककर 0.74 फीसदी जा पहुंचा। नई दिल्ली, ग्रेटर कैलाश, मालवीय नगर, जंगपुरा, राजौरी गार्डन, चांदनी चौक, शकूर बस्ती, रोहिणी सरीखी सीटों पर तो पार्टी उम्मीदवार 500 वोट का आंकड़ा तक नहीं छू सके।

  

आम आदमी पार्टी से मुकाबले के लिए बीएसपी अपने कैडर वोटरों पर ही कर रही है फोकस

बीएसपी का साल 2007 के यूपी के दलित-ब्राह्मण फार्मूले से मोहभंग हो चुका है। इसकी झलक बीएसपी के दिल्ली में चुनाव के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में भी झलकती है। 40 स्टार प्रचारकों में अव्वल पायदान पर तो बीएसपी सुप्रीमो ही हैं। पर दूसरे नंबर के स्टार प्रचारक के तौर पर उनके भतीजे और बीएसपी के राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर आकाश आनंद हैं। तीसरे नंबर पर दिल्ली बसपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह शामिल हैं। पर बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव और सीनियर नेता सतीश चंद्र मिश्रा का नाम इस लिस्ट से नदारद है।

           गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी के उदय के साथ ही दिल्ली में जहां बीजेपी और कांग्रेस के लिए चुनौतियां बढ़ गईं वहीं, बीएसपी तो पूरी तरह से असरहीन होती चली गई। इसी वजह से अब मायावती अपनी पार्टी के लिए नए सिरे से व्यूह रचना कर रही हैं। एक ओर जहां वह बीजेपी की बी-टीम होने के तमगे से निजात पाने की कोशिश कर रही हैं वहीं अपनी पार्टी को दलित व वंचितों का हितैषी होने का स्पष्ट संदेश देना चाहती हैं। अब मायावती की तमाम कोशिशों और चुनावी दांव से दिल्ली विधानसभा चुनाव में बसपाई हाथी की चाल कितनी तेज हो पाती है इस ओर सबकी निगाहें लगी हैं।

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