मऊ सीट: विपक्ष से पहले NDA में सियासी तकरार, जानिए किसके हिस्से जाएगी बाजी?

By  Mangala Tiwari June 3rd 2025 02:36 PM -- Updated: June 3rd 2025 02:37 PM

Lucknow: यूपी में चुनावी दस्तक हो और सुर्खियां न बनें ऐसा मुमकिन ही नहीं। हाल ही में पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट को लेकर चर्चा तेज हुई तो अब मऊ विधानसभा सीट को लेकर चर्चा का माहौल सरगर्म है। इस सीट के सिटिंग विधायक अब्बास अंसारी को हेट स्पीच में दो साल की सजा हुई तो ये सीट रिक्त घोषित हो गई। अब यहां उपचुनाव होने हैं जिसे लेकर सियासी दलों की सक्रियता बढ़ने लगी है। पर जिस तरह से इस सीट पर एनडीए के सहयोगी सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने अपना दावा ठोंका है उसके बाद से ये सीट सूबे की सियासत की हॉट सीटों में शुमार हो गई है।

 

गौरतलब है कि साल 2022 के विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी सुभासपा और समाजवादी पार्टी का गठबंधन था। कई सीटें ऐसी थीं जहां से सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपने पसंदीदा चेहरों को सहयोगी दलों के सिंबल से चुनाव लड़ाया था। मऊ सीट भी उसी फेहरिस्त में शुमार थी। तब चुनाव जीतने के बाद खुद अब्बास अंसारी ने कहा था कि उन्हें सपा के कोटे से टिकट मिला था। सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने भी कहा था कि चुनाव आयोग के पास जो आंकड़ा है उसके हिसाब से अब्बास हमारी पार्टी में हैं लेकिन, उन्होंने अब्बास अंसारी को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के कहने पर ही अपनी पार्टी का चुनाव चिन्ह दिया था। पर चुनावी नतीजों के आने के ऐन पहले अब्बास अंसारी ने हेट स्पीच दे डाली। नतीजतन उन पर मुकदमा दर्ज हुआ और दो साल की सजा भी हो गई। ये सीट रिक्त हुई तो अब इस पर उपचुनाव की दस्तक होने लगी है।

 

मऊ सीट अपने कोटे में रखने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं सुभासपा मुखिया:

सुभासपा हर हाल में अपनी सिटिंग सीट मऊ को अपने ही पास रखना चाहती है। पार्टी के प्रमुख व योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर दो टूक कह चुके हैं, “मऊ सीट हमारी है, 2022 में सुभासपा ने इस पर जीत हासिल की थी। अगर चुनाव लड़ने की संभावना बनती है तो सुभासपा एनडीए के शीर्ष नेताओं से बात करके अपने चुनाव चिन्ह पर उम्मीदवार उतारेगी”। उनकी दलील है कि साल 2017 के चुनाव में उनकी पार्टी का बीजेपी के साथ गठबंधन था। तब भी ये सीट उन्हीं के कोटे में आई थी और उनकी पार्टी से यहां से सेकंड रनर रही थी। साल 2022 में सुभासपा ने इस पर 38, 116 वोटों के मार्जिन से जीत दर्ज की थी। तब सुभासपा उम्मीदवार अब्बास अंसारी को 1,24,691 वोट हासिल हुए थे जबकि बीजेपी के अशोक कुमार सिंह 86,575 वोट ही पा सके थे। तब बीएसपी के उम्मीदवार भीम 44,516 वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे थे। हालांकि चुनाव के बाद ओमप्रकाश राजभर ने सपा से नाता झटक कर बीजेपी का दामन थाम लिया था।


लोकसभा चुनाव में लचर प्रदर्शन की वजह से सुभासपा के दावे में अधिक मजबूती नहीं:

भले ही मऊ सीट पर ओमप्रकाश राजभर अपना दावा ठोंक रहे हों लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान इसी मऊ सदर सीट पर सुभासपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था। तब घोसी लोकसभा सीट से ओमप्रकाश राजभर के पुत्र अरविंद राजभर चुनाव लड़े थे। वह सपा के राजीव राय से एक लाख 60 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे। लेकिन घोसी संसदीय सीट के तहत आने वाली मऊ सदर विधानसभा सीट पर सुभासपा को मुंह की खानी पड़ी थी। क्योंकि यहां सपा के राजीव राय को 1,35,665 वोट मिले थे जबकि अरविंद राजभर 71,988 वोट ही पा सके थे। बीएसपी के बालकिशुन चौहान 38,453 वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे थे।


अंसारी परिवार का गढ़ मानी जाने वाली मऊ सीट पर सीएम योगी की निगाहें रही हैं:

माफिया मुख्तार अंसारी के साम्राज्य को नेस्तनाबूद कर चुके सीएम योगी आदित्यनाथ की निगाहें अब इस डॉन के परिवार के सियासी किलों की ओर भी हैं। मऊ सीट भी अंसारी परिवार का गढ़ मानी जाती है। यहां साल 1996 से 2017 तक लगातार पांच बार मुख्तार अंसारी को जीत मिली। इसके बाद उसके बेटे के खाते में ये सीट दर्ज हो गई। जाहिर है बीजेपी खेमा मऊ सीट पर काबिज होने का खासा ख्वाहिशमंद है। यही वजह है कि 31 मई शनिवार को ज्यों अब्बास अंसारी की सजा हुई तो सीट रिक्त करने के लिए सोमवार तक का इंतजार नहीं किया गया। रविवार को विधानसभा सचिवालय खुलवाया गया और मऊ सीट रिक्त होने के बाबत विधिक कार्यवाही को अंजाम दे दिया गया।

 

एनडीए की सहयोगी निषाद पार्टी के मुखिया राजभर को नसीहत दे रहे हैं:

मऊ सीट पर चुनाव लड़ने को अड़े ओमप्रकाश राजभर को लेकर एनडीए की सहयोगी निषाद पार्टी की प्रतिक्रिया भी सामने आई है। निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ संजय निषाद ने सुभासपा मुखिया को नसीहत देते हुए कहा कि वह एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं और बीजेपी बड़े भाई की तरह है, गठबंधन के साथी छोटे भाई हैं। बीजेपी जो फैसला लेगी हम उसके साथ रहेंगे। जीत प्राथमिकता है सीट बाद की बात है। वह यह भी जोड़ते हैं कि हमें बीजेपी से पूरी उम्मीद है, बीजेपी हमें सीट भी देगी और हमारी समस्याओं का समाधान भी करेगी। डॉ संजय निषाद दावा करते हैं कि मऊ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में एनडीए गठबंधन जीत दर्ज करेगा। सुभासपा के मऊ सीट पर दावे पर डॉ निषाद की दलील है कि पहले मंझवा और कटेहरी सीट भी उनकी पार्टी के पास थी लेकिन बीजेपी ने उस सीट पर उपचुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। उस जीत में . निषाद पार्टी की भी भूमिका थी इसलिए ओमप्रकाश राजभर को भी उपचुनाव में सीट को लेकर जिद नहीं करनी चाहिए, बीजेपी की बात मान लेनी चाहिए।


मुख्तार अंसारी और उनके परिवार के प्रति सुभासपा मुखिया की सहानुभूति जगजाहिर है:

माफिया मुख्तार अंसारी के जीवित रहने के दौरान भी सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर के प्रगाढ़ रिश्ते थे। बीते साल जहां सीएम योगी इस माफिया डॉन पर शिकंजा कसने की मुहिम में जुटे हुए थे वहीं, उन्हीं की कैबिनेट के सदस्य ओमप्रकाश राजभर मुख्तार को गरीबों का मसीहा बताने में संकोच नहीं कर रहे थे। तब सुभासपा मुखिया ने बयान दिया था कि जब भी किसी गरीब पर ज्यादती होगी और उसके साथ जो खड़ा दिखाई देगा तो उसे गरीबों का मसीहा ही कहा जाएगा। मुख्तार को लेकर कई लोगों के बयान आए हैं कि उन्होंने हमारी जान बचाई, हमारी मदद की, जब उन्होंने गरीबों की मदद की है तो वो गरीबों के मसीहा ही होंगे। राजभर ने ये भी बात सार्वजनिक तौर से स्वीकार की थी कि उन्होंने मुख्तार अंसारी को पहले क्रांतिकारी कहा था और वो आज भी अपने उस बयान पर कायम हैं। राजभर की सहानुभूति अभी भी अंसारी परिवार के प्रति बनी हुई है। वह बयान दे चुके हैं, “अब्बास अंसारी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का विधायक रहा है। अगर अब्बास कोर्ट जाते हैं तो भी वो पार्टी के विधायक है और अगर न्यायालय स्टे देता है तो भी पार्टी के ही विधायक रहेंगे, इसलिए हम उनके साथ हैं”। 

        बहरहाल, पिछले साल हुए उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर चुकी एनडीए मऊ सीट के उपचुनाव पर भी परचम फहराने के लिए उतरेगी। पर इस सीट पर विपक्षी खेमे से भिड़ने से पहले बीजेपी के लिए बड़ी और कड़ी चुनौती है अपने ही खेमे के सहयोगी से निपटने की। जानकार मानते हैं कि जिस तरह एनडीए में रार छिड़ती नजर आ रही है उससे तय है कि मऊ सीट पर चुनाव लड़ने के बाबत निर्णायक फैसला बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ही तय करेगा।

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