विपक्ष का जातीय दांव: संघ खोजेगा काट!

By  Mohd. Zuber Khan April 7th 2025 03:42 PM

लखनऊ/दिल्ली: यूपी में दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के बाबत चुनावी बिसात सजने लगी है। सियासी खेमे अपने अपने कील कांटे दुरुस्त करने और समीकरण साधने में जुट गए हैं। इसी कड़ी में यूपी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सरगर्मी में भी इजाफा हुआ है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की अलख जगाने की कवायद में सक्रिय संघ अब सामाजिक समरसता की अपनी मुहिम में जुटने जा रहा है। संघ की ये कोशिशें भगवा दल के लिए सुखद बयार सरीखी हैं, क्योंकि इससे बीजेपी को विपक्ष के जातीय कार्ड की चुनौती से निपटने में खासी मदद मिलने की आस है।  

 सियासी घटनाक्रम व चुनावी नतीजे तस्दीक करते हैं कि संघ बीजेपी के लिए अपरिहार्य है

आज से 21 वर्ष पूर्व तत्कालीन बीजेपी दिग्गज प्रमोद महाजन ने कहा था कि "जो संघ तय करेगा, वही पार्टी में महत्वपूर्ण होगा।" ये वह दौर था जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। जिन्ना के कसीदे पढ़ने की वजह से लालकृष्ण आडवाणी को संघ ने हाशिए पर कर दिया था। यहीं से गुजरात के तबके मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के उभरने का मार्ग प्रशस्त हुआ था। जाहिर है कि भले ही संघ खुद को राष्ट्रवादी सांस्कृतिक संगठन करार देता हो लेकिन ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि संघ का फैलाव और प्रभाव ही बीजेपी को संजीवनी देता रहा है। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और संघ के रिश्ते तल्ख हुए। संघ की अब हमें जरूरत नहीं सरीखा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान ने रिश्तों की खाईं को और चौड़ा किया। जिसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा। यूपी में बीजेपी महज 33 सीटें ही पा सकी। पार्टी को मिले इस करारे झटके ने बीजेपी नेतृत्व के सामने  संघ की अहमियत को फिर से जाहिर कर दिया।

पीएम मोदी के नागपुर दौरे को संघ के साथ रिश्ते सुधारने की कवायद माना गया

चैत्र नवरात्र के साथ भारतीय नव वर्ष विक्रमी संवत 2082 की शुरुआत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर के दौरे पर पहुंचे। इस दौरान पीएम ने कहा, "मैं एक स्वयंसेवक हूं और संघ के सामने झुकता हूं।" भागवत के साथ उनकी 20 मिनट की निजी बैठक के बाद दोनों हेडगेवार स्मृति मंदिर में नजर आए। मोदी ने आरएसएस को 'अक्षयवट वृक्ष' करार देते हुए इसे राष्ट्रीय संस्कृति का आधार बताया। गौरतलब है कि मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत ने 2013 में मोदी को बीजेपी के पीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश करने में अहम किरदार निभाया था। जानकार मानते हैं कि पच्चीस वर्ष पूर्व साल 2000 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की नागपुर यात्रा के दौरान तत्कालीन संघ प्रमुख के. सुदर्शन का रवैया रुखा दिखा था। सुदर्शन ने वाजपेयी और आडवाणी से युवाओं के लिए रास्ता छोड़ने की सार्वजनिक मांग करके सबको चौंका दिया था। जबकि इस दौर में मोदी-भागवत की मुलाकात में सौहार्द-विश्वास नजर आया। इसे बीजेपी की ओर से सुलह का संकेत भी माना गया। ये संदेश भी निकला कि सफलता के लिए बीजेपी को संघ की जरूरत अब भी है।

बीते हफ्ते गाजियाबाद में संघ और बीजेपी की समन्वय बैठक में सीएम योगी भी शामिल हुए

पिछले हफ्ते 2 अप्रैल को गाजियाबाद में संघ पदाधिकारियों व बीजेपी की समन्वय बैठक आयोजित की गई। नेहरूनगर में सरस्वती विद्या मंदिर की इस  बैठक में आरएसएस के पश्चिम व बृज क्षेत्र के संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी शामिल हुए। चार घंटे तक चली बैठक में सीएम योगी ने अयोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, प्रयागराज के महाकुंभ के भव्य आयोजन और प्रदेश में कानून के राज पर अपनी बात रखी। सीएम ने कहा कि महाकुंभ के आयोजन को सफल बनाने में संघ का विशेष योगदान रहा। साथ ही उन्होंने संघ के कार्यों को अभूतपूर्व बताते हुए जमकर तारीफ़ की।

सूत्रों के मुताबिक बैठक का मुख्य एजेंडा यही था कि संघ और सरकार के बीच तालमेल बेहतर कैसे हो सके, कैसे विपक्षी प्रपंचों का मुकाबला किया जा सके, कैसे बीजेपी की सियासी जमीन पुख्ता की जा सके।  

विपक्षी खेमे के जातीय नैरेटिव की काट के लिए संघ सक्रिय हुआ

लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने यूपी में संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का नैरेटिव चलाया। सपा ने पीडीए यानी पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक कार्ड चला। संघ के साथ न होने की वजह से इन दांव की काट बीजेपी नहीं खोज सकी और यूपी में महज 33 सीटें ही पा सकी। अब सामाजिक समरसता बढ़ाने और जातीय भेदभाव मिटाने के लिए संघ ने कमर कस ली है। पहल खुद सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुरू की है। जिसके तहत काशी के पांच दिवसीय प्रवास पर पहुंचे मोहन भागवत ने संघ के स्वयंसेवकों को सनातनी संस्कृति को मजबूत करने और एकजुट होने का मंत्र दिया। उन्होंने बयान दिया कि जाति का बंधन तोड़ना होगा। ना कोई ब्राह्मण, ना कोई क्षत्रिय, ना कोई व वैश्य ना शूद्र, सभी को एक कुएं पर पानी पीना होगा, तभी जाकर सनातन मजबूत होगा। हम सिर्फ हिंदू हैं और हिंदुओं को एकजुट होना अनिवार्य है। काशी से लखनऊ फिर कानपुर होते हुए संघ प्रमुख अलीगढ़ के प्रवास पर पहुंच रहे हैं। इस दौरान वह पूर्वांचल से लेकर अवध और पश्चिमांचल के तमाम समीकरणों को समझ रहे हैं और जरूरत के लिहाज से आगामी रोडमैप तैयार कर रहे हैं।

 सनातनियों को एकजुट करके जातीय भेदभाव का खात्मा बना संघ का मुख्य लक्ष्य  

अपने शताब्दी वर्ष के आयोजनों में संघ ने सनातनी मतावलंबियों को एकता के सूत्र में पिरोने के के लिए सामाजिक समरसता के कार्यक्रम व्यापक स्तर पर चलाए जाएंगे। जिले और प्रांत के नागरिकों से घर-घर जाकर संपर्क करने की तैयारी है। संवाद-सम्मेलन के आयोजनों में महिलाएं और युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। बुद्धिजीवी वर्ग की वैचारिक गोष्ठी होगी, ब्लाक स्तर पर सामाजिक सद्भाव की बैठक होगी। अगले साल दस दिन तक सभी पदाधिकारी हर इलाके में शाखा लगाएंगे। बस्तियों-घरों में संपर्क होगा-पत्रक पहुंचाए जाएंगे। हर मोहल्ले-हर गली-हर घर-हर व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी। खासतौर से ग्रामीण इलाकों पर अधिक फोकस रखा जाएगा। दलित बाहुल्य इलाकों को खास तरजीह दी जाएगी। सभी मंडलों और बस्तियों में हिन्दू सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे, जिसमें बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एकता और सद्भाव, राष्ट्र के विकास में योगदान का संदेश दिया जाएगा। राष्ट्रीय विषयों पर गलत विमर्श दूर करके सही विमर्श स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा

 विपक्षी खेमों की जातीय गोलबंदी के दांव की जिनकी काट के लिए बीजेपी का संघ सहारा है

 सियासी विश्लेषक मानते हैं कि लोकसभा चुनाव की शिकस्त से मिले सबक के बाद बीजेपी नेतृत्व ने डैमेज कंट्रोल किया। संघ की नाराजगी दूर की, रिश्ते सुधरे तो बीजेपी ने यूपी विधानसभा उपचुनाव में झंडे गाड़े। दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र के चुनावों में भी बीजेपी के जीत के रथ का सारथी संघ बना। अब जब साल 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए विपक्षी दल जातीय दांवपेच चलने लगे हैं। जातीय जनगणना के मुद्दे को राहुल गांधी और अखिलेश यादव जोरशोर से उठा रहे हैं। राणा सांगा और औरंगजेब को लेकर हालिया उभरे विवाद को  भी जातीय एंगल देने की कोशिशें हुई हैं। ऐसे में बीजेपी की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। इन चुनावी अस्त्रों से निपटने के लिए अब बीजेपी को संघ के समर्थन के कवच-कुंडल की पहले से भी अधिक जरूरत है। संघ भी वाकिफ है कि बीजेपी का सत्ता में बने रहना उसके प्रचार-प्रसार के लिए अनुकूल वातावरण मुहैया करता है। एक दूसरे की मजबूती ही एक दूसरे के अस्तित्व को पुख्ता करने की गारंटी है। इसी भाव से संघ बीजेपी को साथ व सहयोग देने को तत्पर है। जिसने बीजेपी खेमे में भी जीत की हैट्रिक लगाने की उम्मीद जगा दी है।

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