धधकती चिताओं के बीच श्मशान में नगरवधुओं का नृत्य, नरकीय जीवन से मांगी मुक्ति
वाराणसी: जलती चिताओं के बीच नगरवधुओं ने बाबा मसन्नाथ को पूजन और नृत्य कर ख़ुश किया। दरअसल वाराणसी का महाशमशान मणिकर्णिका घाट पर नगरवधुओ ने जलती चिताओं के बीच नृत्य कर काशी विश्वनाथ के रूप में बाबा मसन्नाथ के दरबार में नगरवधुओं ने हाज़िरी लगाई और बाबा से वरदान मांगा की अगले जन्म में हमें नगर वधु न बनना पड़े।
काशी में देवताओं के सामने में, मंदिरों में संगीत पेश करने की सैकड़ों साल पुरानी परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि क़रीब चार सौ साल पहले राजा मान सिंह ने बाबा मसन्नाथ के दरबार में काशी के कलाकारों को बुलाया था, तब श्मशान होने के कारण कलाकारों ने आने से इंकार कर दिया, जिसके बाद उस ज़माने के समाज के सबसे निचले तबके की इन नगरवधुओं ने आगे बढ़कर, इस पंरपा का निर्वहन किया और आज तक इसे निभया जा रहा है।
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ऐसी भी मान्यता है कि धार्मिक नगरी काशी का मोक्ष तीर्थ महाश्मशान मणिकर्णिका घाट है, यहां पर वैदिक रीती से अंतिम संस्कार किया जाता है कहते हैं कि यहां अंतिम संस्कार होने पर जीव को स्वयं भगवान् शिव तारक मंत्र देते हैं, लेकिन आज यहां काशी की बदनाम गलियों के अंधेरे से निकली नगरवधु यानि सेक्स वर्कर्स नृत्य कर रही हैं।
लेकिन आख़िर ऐसा क्यों किया जा रहा है? ये जानने के लिए हमें चलना होगा इस दुनिया की सबसे पुरानी नगरी काशी के इतिहास की ओर ! दरअसल सत्रहवी शताब्दी में काशी के राजा मानसिंह ने इस पौराणिक घाट पर भूत भावन भगवान् शिव, जो मसान नाथ के नाम से श्मशान के स्वामी हैं के मंदिर का निर्माण कराया और साथ ही यहां संगीत का एक कार्यक्रम करना चाहते थे। धार्मिक लोगों का ऐसा विश्वास है कि वो संगीत कार्यक्रम ऐसे स्थान पर करना चाहते थे, जहां चिताएं जलती हों।
ऐसे में संगीत की सुरों को छेड़े भी तो कौन ? ज़ाहिर है कोई कलाकार यहां नहीं आया, आई तो सिर्फ़ तवायफ़ें और अब वही इस परंपरा का निर्वाहन कर रही हैं। हालांकि सिर्फ़ ऐसा ही नहीं है कि इस आयोजान की यही सिर्फ़ एक वज़ह हो। असल में, धीरे धीरे ये धारणा भी आम हो गई कि बाबा भूत भावन की आराधना नृत्य के माध्यम से करने से अगले जन्म में ऐसे त्रिरस्कृत जीवन से मुक्ति मिलती है।