रमज़ान की आमद से बाज़ारों में बढ़ी रौनक़
दिल्ली/लखनऊ: आज से भारत में रमज़ान के मुक़द्दस महीने का आग़ाज हो रहा है। जामा मस्जिदों के आस-पास मौजूद बाज़ारों में रौनक़ बढ़ गई है। दुकानें सजाई जा चुकी हैं। कुल-मिलाकर दुनियाभर के मुसलमानों में इस महीने को लेकर ख़ास उत्साह होता है।
रमजान इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है, जिसे बहुत ही पाक महीना माना जाता है। मान्यता है कि, रमज़ान के महीने में ही पैगंबर मोहम्मद साहब पर क़ुरान नाज़िल हुआ था यानी क़ुरान मक़म्मल हुआ था। इस पूरे महीने लोग संजीदगी से इबादत करते हैं। यानी मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए रमज़ान का महीना बेहद पवित्र माना जाता है।
क्या है इस्लाम में चांद का महत्व ?
हिंदू पंचांग में जिस तरह से सूर्योदय या उदयातिथि के हिसाब से व्रत-त्योहार तय किए जाते हैं। ठीक इसी तरह इस्लामिक कैलेंडर में भी चांद का ख़ास महत्व होता है और इसी के आधार पर त्योहार तय होते हैं। रमज़ान के साथ ही कई त्योहार मनाने से पहले चांद देखा जाता है। अगर किसी वजह से चांद दिखाई नहीं देता, तो उस महीने की तारीख़-ए-कमरी के आधार पर त्योहार मनाया जाता है।
आपको बता दें कि पारंपरिक रूप से रमज़ान की आमद चांद दिखाई देने के बाद होती है। रमज़ान का चांद देखने के लिए लोगों की नज़रें आसमान की ओर रहती हैं। आंखें चांद का दीदार करने के लिए इंतज़ार करती हैं। चांद दिखाई देने के बाद रमज़ान के रोज़े की शुरुआत हो जाती है और लोग एक दूसरे को ‘चांद मुबारक’ या ‘रमज़ान मुबारक’ कहते हुए बधाई देते हैं।
किसको है रोज़ा ना रखने की छूट ?
रोजा रखना हर मुसलमान के लिए फर्ज़ यानी जरूरी माना जाता है, बशर्ते की वो बीमार ना हो। रमजान के महीने का मक़सद आध्यात्मिक भक्ति को बढ़ाना और अल्लाह से जुड़ना होता है। इस्लामिक मान्यता है कि रमजान के दिनों में रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करने का सवाब यानी पुन्य बाक़ी दिनों के मुकाबले 70 गुणा ज़्यादा मिलता है, लेकिन गर्भवती महिलाएं, बुज़ुर्ग, बीमार लोग और बहुत छोटे बच्चों को रोज़ा न रखने की छूट होती है।
क्या होता है सहरी और इफ़्तार का मतलब ?
रमज़ान में सहरी और इफ्तार की बेहद अहमियत होती है। रोज़ेदार को मुक़र्रर वक़्त पर सहरी और इफ़्तार करनी होती है। सूर्योदय से पहले किए गए भोजन को सेहरी कहते हैं और सूर्योदय के बाद रोज़ा खोलते समय किए गए भोजन को इफ़्तार कहा जाता है। सेहरी करने के बाद पूरे दिन कुछ भी खाना-पीना वर्जित होता है। इस बीच पांच वक़्त की नमाज़ का पाबंदी के साथ एहतमाम करने और क़ुरान शरीफ को समझकर पढ़ने पर भी ख़ासा ज़ोर रहता है।
दरअसल रमजान में रोजा रखने का उद्देश्य लोगों को अल्लाह की इबादत के करीब लाना है। रमज़ान में रोजे के दौरान ऐसे नियम होते हैं, जिससे कि लोग ज़्यादा से ज़्यादा समय अल्लाह की इबादत कर सकें।
क्या होती है नमाज़-ए-तरावीह ?
रमज़ान के पूरे महीने में तरावीह की नमाज़ अदा की जाती है। तरावीह वो नमाज़ है, जिसे रमज़ान के दौरान ही पढ़ा जाता है। चांद रात यानी चांद दिखने के दिन से ही इसकी शुरुआत हो जाती है और आख़िरी रमजान तक इसे पढ़ा जाता है। रमजान में तरावीह न पढ़ना गुनाह माना जाता है।
आपको बता दें कि इस महीन में अक़ीदतमंदों का इस बात पर ख़ासा ज़ोर रहता है कि वो ज़्यादा से ज़्यादा इंसानियत के कामों को कर सकें, जितना हो सके दूसरों की मदद कर सकें। रमज़ान के महीने में ग़रीब और ज़रूरतमंदों में सहरी और इफ़्तार के लिए फल, भोजन, खज़ूर या जूस आदि का दान बदस्तूर किया जाता है। रमज़ान में इफ़्तार और सहरी मेहनत और ईमानदारी से कमाए गए पैसों से किए जाने की हिमायत की जाती रही है। किसी भी तरह के ग़लत काम या बेईमानी से कमाए गए पैसों से सहरी और इफ़्तार करने वाले पर ख़ुदा की बरकतें नाज़िल नहीं होती हैं।
रमज़ान में पूरे महीने रोज़े के लिए 30 दिन को 3 अशरों यानी भागों में बांटा गया है। पहले 10 दिन का रोज़े रहमत, दूसरे 10 दिन का रोज़े बरकत और आख़िरी 10 दिन के रोज़े मग़फिरत वाले कहलाते हैं।
30 दिन पूरे होने पर रमज़ान का महीना ख़त्म हो जाता है, 30 रोज़े मुक़म्मल हो जाने के बाद अगले दिन ईद होती है, जिसे ईद उल फित्र कहा जाता है।
-PTC NEWS