हरियाणा में मिली हार के उभरे साइड इफेक्ट्स

By  Rahul Rana October 10th 2024 04:24 PM

Reported by: (Gyanendra Shukla) 

ब्यूरो: जीत का अनुमान, तो हो गया गुमान, सहयोगियों का किया तिरस्कार, नतीजों में मिली करारी हार, अब पिछड़ने का है रंज, सहयोगी कस रहे हैं तंज, आलोचक अब कर रहे हैं तीखा वार, अपनों का बदल गया है व्यवहार, उम्मीदों के दांव का पलट गया पासा, अब इनके खेमे में है भारी हताशा….ये तुकबंदी इन दिनों कांग्रेसी खेमे की शिकस्त और उसके सहयोगियों के तल्ख अंदाज पर सटीक बैठ रही है। दरअसल, किसी भी क्षेत्र में हार से कई साइड इफेक्ट्स जुड़े होते हैं। चुनावी हार तो कई बार सियासी सुनामी तक ले आती है। हरियाणा चुनाव में जीती बाजी हारना कांग्रेस के लिए करारा झटका है। इससे उबरने का तरीका अभी पार्टी सोच पाती कि उसके सहयोगी दलों ने अपनी भड़ास निकालनी शुरू कर दी है। सहयोगी दलों के नेताओं के तंज भरे बयानों और क्षुब्ध रवैये ने कांग्रेसी खेमे का सर दर्द और बढ़ा दिया है। 

महाराष्ट्र की सहयोगी शिवसेना यूबीटी ने तल्खी जताई

नतीजों के बाद सबसे पहले प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना यूबीटी सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा-बीजेपी से सीधे चुनावी मुकाबले में कांग्रेस कमजोर पड़ती है,  कांग्रेस को अपने अंदर विचार करने की जरूरत है। इसके बाद उद्धव ठाकरे की पार्टी के मुखपत्र सामना ने संपादकीय में आम आदमी पार्टी सरीखे सहयोगियों को समायोजित न करने के लिए हरियाणा कांग्रेस के नेताओं की आलोचना की, शिवसेना यूबीटी के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने भी कांग्रेस को आड़े हाथों लिया, कहा कि विपक्षी गठबंधन हरियाणा में नहीं जीत पाया क्योंकि कांग्रेस को लगा कि वह अपने दम पर जीत सकते हैं, उन्हें सत्ता में किसी सहयोगी की जरूरत नहीं है। इस आलोचना से तल्ख होकर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने बयान दिया कि ऐसी बातें सार्वजनिक रूप से नहीं कही जाती हैं। बैठक में सब तय होता है। राजनीति में कोई छोटा भाई - बड़ा भाई नहीं होता है। हरियाणा चुनावों का असर महाराष्ट्र में नहीं पड़ेगा।

 आम आदमी पार्टी ने भी इंडी गठबंधन की सहयोगी कांग्रेस पर तंज कसा

 आप की मुख्य प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने मीडिया से बात करते हुए कांग्रेस के खराब प्रदर्शन के लिए उसके 'अति आत्मविश्वास' को जिम्मेदार ठहराया। आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि लोकसभा चुनाव के दौरान हरियाणा में इंडिया गठबंधन को 47 फीसदी वोट मिले थे, हमने विधानसभा में गठबंधन चाहा था, लेकिन नहीं किया गया। गठबंधन होता तो हरियाणा में ये हालात न होते, कांग्रेस हमें कुछ नहीं समझती। चुनावी नतीजे से कांग्रेस को सबक सीखने की जरूरत है। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने पार्टी पार्षदों की सभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस पर परोक्ष तौर से निशाना साधते हुए कहा कि एक बात तो साफ है, सबसे बड़ा सबक यह है कि चुनाव में कभी भी अति आत्मविश्वासी नहीं होना चाहिए।

वामपंथी सहयोगी ने भी कांग्रेस को आईना दिखाया

कांग्रेस पार्टी के मौजूदा दौर में करीबी दोस्तों में शुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव डी. राजा ने भी हरियाणा के चुनावी नतीजों के बहाने नसीहतों की बौछार कर दी। उन्होंने कहा कि हरियाणा नतीजों के बाद कांग्रेस को महाराष्ट्र तथा झारखंड में आगामी विधानसभा चुनावों में आईएनडीआईए के सहयोगियों को साथ लेकर चलना चाहिए। गठबंधन के दलों को एक-दूसरे पर आपसी विश्वास के साथ काम करते हुए सीट बंटवारे में सामंजस्य बनाना चाहिए, हरियाणा में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने दो टूक कहा कि सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना कांग्रेस की जिम्मेदारी है और सीटों के बंटवारे में उसे उदारता दिखानी चाहिए।

सहयोगी टीएमसी भी सहयोगी कांग्रेस पर निशाना साधने से नहीं चूकी

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद साकेत गोखले ने सीट-बंटवारे को लेकर कांग्रेस के रवैये को आड़े हाथों लिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि यह रवैया चुनावी नुकसान की ओर ले जाता है। अगर हमें लगता है कि हम जीत रहे हैं, तो हम क्षेत्रीय पार्टी को समायोजित नहीं करते। लेकिन, जिन राज्यों में हम पिछड़ रहे हैं, वहां तो क्षेत्रीय पार्टियों को हमें समायोजित करना होगा। परोक्ष तौर से कांग्रेस पर तंज कसते हुए गोखले ने लिखा कि अहंकार और क्षेत्रीय दलों को नीची निगाह देखना आपदा का कारण बनता है।

 दिल्ली और यूपी में सहयोगी दलों की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही कांग्रेस

 लोकसभा चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने तीन सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी थीं पर इस गठजोड़ को नाकामी मिली और सभी सात सीटें बीजेपी ने फतह कर लीं। दिल्ली में अब अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव में होने हैं। हरियाणा में कांग्रेस की करारी हार और  जम्मू कश्मीर में लचर प्रदर्शन के बाद अब दिल्ली के आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की bargaining power  यानी मोलभाव गुंजाइश घटा दी। आम आदमी पार्टी अब कांग्रेस के साथ सीटें न साझा करने का संकेत दे चुकी है। कमोबेश यही हालात यूपी में भी हैं। यहां सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ी कांग्रेस को छह संसदीय सीटे मिल गई थीं लेकिन जब बात दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की आई तब सपा की ओर से सीटें देने में अनमना रवैया दिखाया गया। सपाई खेमा एमपी, हरियाणा और जम्मू कश्मीर में सीट शेयरिंग न किए जाने से आक्रोशित है।

सहयोगियों के दबाव-तल्खी के बीच अपनी सियासी मंजिल तय करना है कांग्रेस की चुनौती

हरियाणा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद जहां कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का मनोबल पस्त हुआ है वहीं सहयोगी दलों का तीखा रवैया भी पार्टी की मुश्किलों में इजाफा कर रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन का रुख ही अब तक कांग्रेस को लेकर सकारात्मक दिखा है वरना सपा, भाकपा, शिवसेना-यूबीटी और आम आदमी पार्टी सरीखे सहयोगी दलों ने तो बकायदा हल्ला बोल ही दिया है। इन सहयोगियों की नाराजगी से उपजे  दबाव से निपटना, विपक्षी एकता की धुरी बने रहना अब कांग्रेस के लिए बड़ी और कड़ी चुनौती बन चुकी है। चुनावी हार के इस साइड इफेक्ट का मुकाबला कांग्रेस आलाकमान कैसे करता है सबकी निगाहें इस ओर लगी हुई हैं।

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