ब्यूरो: UP News: किसी भी आयाम में दुनिया में सबसे बड़ा होने पर सबसे अधिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। कम से कम बीजेपी के लिए तो ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं। क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी सियासी पार्टी के लिए देश के सबसे बड़े सूबे में दिक्कत और चुनौतियां भी सबसे अधिक हैं। बीजेपी के सांगठनिक चुनाव इसे तस्दीक करते हैं। यूपी के सांगठनिक जिलों के मुखिया के पद के लिए नाम तय करना बीजेपी पदाधिकारियों के लिए लोहे के चने चबाने सरीखा कठिन काम बन गया। तमाम उहापोह, असमंजस, खींचतान के बाद आखिरकार रविवार को पार्टी की ओर से नामों का ऐलान तो कर दिया गया लेकिन ये फेहरिस्त अभी भी अधूरी है क्योंकि दो दर्जन से अधिक जिलों के जिलाध्यक्ष अभी भी तय नहीं किए जा सके हैं।
लंबे इंतजार के बाद 70 जिलों के जिलाध्यक्षों के नाम घोषित हुए
बीजेपी में संगठन की चुनावी प्रक्रिया को संगठन पर्व की संज्ञा दी गई है। यूपी के 162459 बूथ में से 142000 से अधिक बूथ पर चुनाव हुआ है। 1548 मंडल के चुनाव हो चुके हैं, वहीं, 63 मंडल में चुनाव प्रक्रिया अभी जारी है। 11 जिलों में उपचुनाव हो रहे थे लिहाजा वहां चुनाव प्रक्रिया स्थगित रही थी। संगठन पर्व की इसी कड़ी में जिलाध्यक्ष के पद पर नामों का ऐलान किया गया। पार्टी की 98 जिला सांगठनिक इकाइयों में से 70 के जिलाध्यक्ष तय कर दिए गए हैं। इनमें से सामान्य वर्ग से 39 जिलाध्यक्ष हैं, ओबीसी वर्ग से 25 व अनुसूचित जाति से 6 चेहरे हैं। इनमें पांच महिलाएं भी शामिल हैं। 26 जिलाध्यक्ष दोबारा इसी पद पर चुने गए हैं, बाकी सभी नए चेहरे हैं।
पार्टी में जिलाध्यक्ष पद पर नाम तय करने की निर्धारित प्रक्रिया है
बीजेपी की जिला और महानगर इकाई को जोड़ कर 98 सांगठनिक जिले हैं। जिनके मुख्य पदाधिकारी को जिलाध्यक्ष कहते हैं। इस पद पर नाम फाइनल करने से पहले जो प्रक्रिया अपनाई गई उससे आपको परिचित करवाते हैं। दरअसल, पहले संबंधित जिले के बीजेपी पदाधिकारियों, विधायकों और सांसदों से संभावित नामों को लेकर चर्चा की गई। इसके बाद जिलाध्यक्ष पद के लिए सुझाए गए नामों का पैनल बनाया गया। फिर यूपी बीजेपी कोर कमेटी के सामने ये पैनल रखा गया। इस कोर कमेटी में सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह हैं। यहां मंथन होने के बाद आरएसएस के क्षेत्र और प्रांत प्रचारकों से विचार विमर्श किया गया, उनके सुझाव लिए गए।
बीते साल शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया में कई वजहों से देरी होती चली गई
बीजेपी में सांगठनिक चुनाव की प्रक्रिया पिछले वर्ष अक्टूबर में शुरू हो गई थी। तब पार्टी नेतृत्व ने संकेत दिए थे कि नए साल की शुरूआत में यानी 2025 के जनवरी महीने में ही पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिल जाएगा। लेकिन हालात ऐसे हो गए कि सांगठनिक जिलों के जिलाध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया ही मुकम्मल न हो सकी। पहले तो मंडल अध्यक्ष चुनाव में ही काफी वक्त जाया हो गया। इन नामों को पिछले साल नवंबर तक ही तय कर लिया जाना था पर मंडल अध्यक्षों के नामों का ऐलान इस साल जनवरी में किया जा सका। निचले स्तर पर हुई लेटलतीफी का असर ऊपर तक होता चला गया। शुरूआती दौर में पार्टी पदाधिकारियों को लगा था कि जैसे पूर्व में होता रहा था वैसे ही इस बार भी संगठन का चुनाव आराम से निपट जाएगा। पर इस बात का आकलन सही से नहीं हो सका कि पहले और अब की परिस्थितियों में आमूलचूल बदलाव हो चुका है। लगातार सत्ता में काबिज होने के नाते बीजेपी में पद पाने की लालसा और प्रतिस्पर्धा चरम पर जा पहुंची है।
अपने चहेते की ताजपोशी तय करने के लिए इलाकाई दिग्गजों में हुआ घमासान
दरअसल, बीजेपी के प्रभावशाली नेता अपने संबंधित जिले में शीर्ष पदाधिकारी के पद पर पसंदीदा चेहरे को बिठाने के लिए जोर लगाए हुए थे। जिससे जिले में उनकी भागीदारी और प्रभाव में इजाफा हो सके। इसके चलते कई जगहों पर विवाद पनप गया। कहीं क्षेत्रीय विधायकों में आपसी होड़ नजर आई तो कई जिलों में संबंधित सांसद और प्रभारी मंत्री खींचतान करते दिखे। कुछ जिलों में संघ के पदाधिकारी तय किए जा रहे चेहरे से सहमत नहीं थे। पर्यवेक्षकों और पदाधिकारियों की कड़ी निगरानी के बावजूद गड़बड़ियों की शिकायतें भी आईं। कुछ मामलों में तो पैसे के लेनदेन के गंभीर आरोप भी उभरे। तल्खी इतनी बढ़ी कि दिल्ली दरबार तक शिकायत दर्ज कराई गई। खींचतान और रार जब ज्यादा जरूरत से ज्यादा बढ़ने लगी तब केंद्रीय नेतृत्व को दखल देना पड़ा। प्रदेश द्वारा तय की जा रही लिस्ट को दिल्ली तलब कर लिया गया।
जिला स्तर पर छिड़े संग्राम को भांप कर अलर्ट मोड पर आया बीजेपी आलाकमान
इस बार जिस तरह से जिलावार पार्टी पदाधिकारियों, सांसदों-विधायकों में रस्साकशी नजर आई उस वजह से शीर्ष नेतृत्व की चिंताएं बढ़ी हुई थीं। अभी तक पार्टी में परंपरा थी कि जिलाध्यक्षों से संबंधित लिस्ट लखनऊ मुख्यालय से जारी कर दी जाती थी लेकिन इस बार विवाद-बखेड़ा की आशंका थी तो पार्टी रणनीतिकारों ने एहतियात बरतते हुए नई परंपरा की नींव रख दी। प्रदेश चुनाव अधिकारी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने 16 मार्च दिन रविवार को अलग-अलग सभी जिलों में जिलाध्यक्षों के नामों के ऐलान का कार्यक्रम तय किया। सभी जिला चुनाव अधिकारी व चुनाव पर्यवेक्षक 15 मार्च की रात में ही निर्धारित जिले की ओर रवाना कर दिए गए थे। इनके साथ ही वरिष्ठ पदाधिकारियों व मंत्रियों को भी भेजे गए। प्रदेश स्तर पर मॉनिटरिंग के लिए प्रदेश मुख्यालय पर टास्क सेंटर बनाया गया था। सभी जिला कार्यालयों में कैमरे लगाकर ऑनलाइन स्ट्रीमिंग लखनऊ स्थित मुख्यालय से की गई थी। खुद प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी, प्रदेश चुनाव प्रभारी डॉ महेन्द्र नाथ पाण्डेय, महामंत्री संगठन धर्मपाल ऑनलाइन मॉनिटरिंग कर रहे थे।
भरपूर कवायद के बावजूद कई अहम जिलों के अध्यक्ष तय नहीं किए जा सके
यूं तो लंबे इंतजार के बाद होली के दो दिन बाद जिलाध्यक्षों के नामों का ऐलान कर तो दिया या लेकिन फाइनल किए गए नामों की फेहरिस्त से दो दर्जन से अधिक जिलों के नाम नदारद रहे। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी, प्रदेश चुनाव प्रभारी महेंद्र नाथ पांडेय के संसदीय क्षेत्र चंदौली और डिप्टी सीएम केशव मौर्य के गृह जिले कौशांबी में जिलाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी। पार्टी सूत्र बताते हैं कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व और संघ के स्तर से दलित और महिलाओं की भागीदारी पर ज्यादा जोर दिया गया था। कई जिलों में तो विवाद को सुलझाकर सहमति बन गई पर आपसी खींचतान तल्ख होने, खेमेबाजी जटिल होने और जातीय समीकरणों के सेट न हो सकने की वजह से 28 जिलाध्यक्षों के नाम फाइनल नहीं किए जा सके। जिसके लिए अभी और मंथन व मशक्कत की दरकार होगी।