ब्यूरो: UP By-Election 2024: ढाई दशकों से सीसामऊ विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी का एकछत्र राज रहा है। यहां से जीते हुए विधायक को आपराधिक केस में सजा मिलने के बाद ये सीट रिक्त हुई। यहां हो रहे उपचुनाव को लेकर बीते दिनों शंकाएं मंडराने लगी थीं। हालांकि हाईकोर्ट के फैसले के बाद तमाम सवालों का समाधान हो गया। वर्चस्व के अपने सिलसिले को कायम रखने के लिए पार्टी भरपूर मशक्कत करती दिखी जबकि बीजेपी अट्ठाईस वर्षों बाद फिर से यहां जीत पाने को बेकरार नजर आई।
हजार साल से भी ज्यादा वक्त पुरानी है सीसामऊ की बसावट
कानपुर का सबसे पुराना इलाका है सीसामऊ। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक नौ सौ वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में शीशम का जंगल हुआ करता था। शीशम का अपभ्रंश ससई होते हुए इसका नाम सीसामऊ हो गया। ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक साल 1120 में कन्नौज के शासक जयचंद के पितामह ने एक ब्राह्मण को ये क्षेत्र दान में दिया था। ब्रिटिश हुकूमत के दौर में भी जाजमऊ परगना का सीसामऊ राजस्व ग्राम था, आज भी राजस्व अभिलेखों में सीसामऊ ही दर्ज है। कानपुर इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट तथा डेवलपमेंट बोर्ड ने बाद में आसपास के गांवों को इसके दायरे मे शामिल करके शहर को विस्तार दे दिया। साल 1974 में अस्तित्व में आई ये विधानसभा सीट साल 2007 तक अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हुआ करती थी। पर साल 2012 के परिसीमन के बाद ये सामान्य सीट घोषित हो गई। आर्यनगर विधानसभा में शामिल रहे कौशलपुरी, दर्शनपुरवा, सूटरगंज, चुन्नीगंज, कर्नलगंज, रायपुरवा, सीसामऊ, गांधीनगर, नसीमाबाद और बानापुरवा क्षेत्र इसके अंतर्गत शामिल हो गए।
हिंदू-मुस्लिम मिलीजुली आबादी वाला ये क्षेत्र विकास के पैमाने पर पिछड़ा है
इस क्षेत्र में घड़ी वाली मस्जिद, गरीब नवाज मस्जिद, बिल्किस मस्जिद और ईदगाह प्रसिद्ध हैं। यहां का चंद्रिका देवी मंदिर रायपुरवा, हनुमान मंदिर कौशलपुरी, जग्गू बाबा मंदिर धाम भी आस्था के बड़ा केंद्र है। बीते दिनों यहां सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी द्वारा वनखंडेश्वर मंदिर में पूजा की तस्वीरें वायरल हुईं तो विवाद खड़ा हो गया। इसे सियासी कवायद बताते हुए मुस्लिम धर्मगुरु मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने इसके खिलाफ फतवा तक जारी कर दिया। कानपुर शहर का हिस्सा होने के बावजूद यहां कई मूलभूत सुविधाओं की कमी है। साफ सफाई, अतिक्रमण और ट्रैफिक जाम यहां के लिहाज से बड़े मुद्दे रहे हैं। यहां के निवासियों की शिकायत रही है कि ये क्षेत्र विकास के पहलू से बहुत पिछड़ा हुआ है।
चुनावी इतिहास के आईने में सीसामऊ सीट का ब्यौरा
साल 1974 में सीसामऊ विधानसभा सीट पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के शिवलाल विधायक चुने गए। इमरजेंसी के बाद साल 1977 में जनता की नाराजगी का खामियाजा कांग्रेस ने भुगता और ये सीट जनता पार्टी के खाते में दर्ज हो गई यहां से मोतीराम चुनाव जीते। हालांकि साल 1980 और 1985 दोनों ही बार कांग्रेस को यहां से जीत हासिल हुई। तब कमला दरियाबादी को यहां से जीत मिली। 1989 में जनता दल के शिवकुमार बेरिया को यहां जीतने का मौका मिला। पर राममंदिर आंदोलन की लहर के चलते साल 1991 में यहां से राकेश सोनकर ने चुनाव जीतकर बीजेपी का खाता खोल दिया। इसके बाद उन्होंने 1993 और फिर 1996 का चुनाव फतेह करके जीत की हैट्रिक लगा दी।
बीजेपी ने सिटिंग विधायक का टिकट काटा तो फिर दोबारा जीत पाने को तरस गई
साल 2002 में बीजेपी ने राकेश सोनकर का टिकट काटकर केसी सोनकर पर दांव लगाया गया पर वह हार गए और ये सीट बीजेपी के पास से छिन गई। यहां कांग्रेस काबिज हो गई। 2002 और 2007 में यहां से संजीव दरियाबादी विधायक बने। हालांकि साल 2012 में सामान्य सीट घोषित होने के बाद इस सीट पर सपा का वर्चस्व स्थापित हो गया। साल 2012, 2017 और 2022 के चुनावों में ये सीट सपा के इरफान सोलंकी के नाम रही। साल 2022 में इस सीट पर कांटे की टक्कर में सपा महज 2266 वोटों के मार्जिन से चुनाव जीत पाई थी। तब सपा प्रत्याशी इरफान सोलंकी को 69,163 वोट मिले थे तो बीजेपी के सलिल विश्नोई 66,897 वोट पाए थे। कांग्रेस के सुहेल अहमद महज 5,616 वोटों पर ही सिमट गए थे।
सपा विधायक को सजा मिलने से रिक्त हुई सीट पर अदालती फैसले से उपचुनाव की अड़चन हुई दूर
जाजमऊ की नजीर फातिमा के प्लाट को कब्जा करने की कोशिश और घर जलाने के मुकदमे में कानपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने इसी साल 7 जुलाई को इरफान सोलंकी सहित पांच लोगों को सात साल की सजा सुना दी। विधिक प्रावधानों के चलते इरफान सोलंकी की विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई। जिसकी वजह से रिक्त हुई इस सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। सोलंकी ने अपनी सजा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की थी। इसके बाद इस बात के कयास लगने लगे कि अगर हाईकोर्ट से उनकी सजा पर रोक लग जाती है तब यहां हो रहे उपचुनाव टालने पड़ सकते हैं। यहां चुनाव लड़ रहे सियासी दलों के प्रत्याशी भी ऊहापोह की स्थित से गुजर रहे थे। हालांकि 14 नवंबर को हाईकोर्ट ने आगजनी के मामले में सोलंकी की जमानत तो मंजूर कर ली लेकिन उन्हें दोषी करार दिए जाने और 7 साल की सजा के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इसके बाद ये तय हो गया कि अब सोलंकी की विधानसभा की सदस्यता बहाल नहीं हो सकेगी। इसके बाद यहां के उपचुनाव के होने या न होने को लेकर छाए आशंकाओं के बादल छंट सके।
आबादी के आंकड़े और जातीय समीकरणों के नजरिए से सीसामऊ सीट
इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,71,042 वोटर हैं। जिनमें 45 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की है। तीस फीसदी अनुसूचित जाति और ओबीसी वोटर हैं तो 25 फीसदी सामान्य वर्ग की आबादी है। यहां ब्राह्मण बिरादरी की तादाद 55 हजार के करीब है। अनुसूचित जाति के वोटर 35 हजार हैं। यादव वोटर 16 हजार हैं, 15 हजार वैश्य हैं। सिंधी व पंजाबी वोटरों की तादाद पांच हजार के करीब है। यहां मुस्लिम वोटर ही निर्णायक साबित होते रहे हैं। इस समुदाय के समर्थन की वजह से ही इस सीट के सामान्य होने के बाद से यहां समाजवादी पार्टी का एकछत्र राज रहा।
चुनावी चौसर पर सियासी योद्धा समीकरणों के साथ मुस्तैद हैं
इस सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए सपा ने निर्वतमान विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को मैदान मे उतारा है। तो बीजेपी ने सुरेश अवस्थी पर दांव लगाया है। बीएसपी ने यहां ब्राह्मण कार्ड चलते हुए वीरेंद्र शुक्ला को टिकट दिया है। सुरेश अवस्थी डीएवी कॉलेज के छात्रसंघ चुनाव में धाक जमाकर बीजेपी में शामिल हुए थे। इस क्षेत्र में बीजेपी महामंत्री का भी जिम्मा संभाला है। साल 2017 में सीसामऊ सीट पर चुनाव लड़े पर इरफान सोलंकी से 5,826 वोटों से हार गए। साल 2022 में आर्यनगर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े पर सपा के अमिताभ बाजपेई से 7,924 वोटों से हार गए। बीते दो चुनावों में उन्होंने जिस तरह विपक्षियों को कांटे की टक्कर दी उसे देखते हुए ही बीजेपी रणनीतिकारों ने उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया। बीएसपी के वीरेन्द्र शुक्ला रिटायर्ड अंग्रेजी टीचर रहे हैं। शिक्षक संघ की राजनीति से होते हुए बीएसपी में शामिल हुए। बीएसपी ने इन्हें कानपुर देहात के संदलपुर से जिला पंचायत सदस्य का प्रत्याशी बनाया था लेकिन बाद वह सीट रिजर्व हो गई थी।
सियासी दलों ने अपने अपने प्रत्याशी के पक्ष में समर्थन जुटाने की भरपूर कवायद की
नसीम सोलंकी अपने पति को सजा होने और उनके जेल में होने को मुद्दा बनाकर सहानुभूति के लहर पर सवार हैं। प्रचार के दौरान उनकी आंखों की नमी वोटरों का ध्यान खींचती रही। अखिलेश यादव ने भी यहां जनसभाओं के जरिए अपने गढ़ को बरकरार रखने की भरपूर कोशिश की। पार्टी के विधायक और मंत्रियों ने यहां बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जमकर पसीना बहाया। बीजेपी के पक्ष में वोटरों को लामबंद करने के लिए सीएम योगी ने यहां रोड शो भी किया। यूं तो इस क्षेत्र में बीजेपी और सपा के दरमियान ही सीधी टक्कर नजर आई है। पर बीएसपी ने अगर ब्राह्मण वोटों में सेंध लगा ली तो बीजेपी की चुनौतियों में इजाफा हो जाएगा।