UP Lok Sabha Election 2024: फैजाबाद लोकसभा सीट का इतिहास, जानिए किसका रहा दबदबा

By  Deepak Kumar May 18th 2024 05:10 PM -- Updated: May 18th 2024 05:32 PM

ब्यूरोः यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे फैजाबाद संसदीय सीट की। सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है पूर्ववर्ती फैजाबाद और वर्तमान का अयोध्या शहर। ये बाराबंकी, गोंडा, बस्ती, अंबेडकरनगर एवं सुल्तानपुर जिलों से घिरा हुआ है। इसका पुराना नाम साकेत हुआ करता था। अयोध्या पहले फैजाबाद जिले का हिस्सा था, योगी आदित्यनाथ की सरकार ने 6 नवंबर 2018 को इस जिले का नाम बदलकर फैजाबाद से अयोध्या कर दिया कि हालांकि संसदीय सीट का नाम फैजाबाद यथावत बना हुआ है।

प्राचीन काल से विशिष्ट स्थान रहा है इस क्षेत्र का

ये क्षेत्र प्राचीन कोशल महाजनपद का हिस्सा हुआ करता था। जिसकी राजधानी साकेत (अयोध्या) थी। अयोध्या की स्थापना प्राचीन भारतीय ग्रंथों के आधार पर ई.पू. 2200 के आसपास माना जाता है। इसका उल्लेख कई हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। वेदों मे अयोध्या को ईश्वर का नगर  बताया गया है। संस्कृत में वर्णन है, “अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या”। इसके ऐश्वर्य संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई। अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के तौर पर इसका वर्णन किया गया है। अयोध्या नाम का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस में अनेकानेक बार मिलता है। भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रियों का शासन हुआ करता था। यहां के भरतकुंड स्थल पर ही भरत प्रभु राम की खड़ाऊ लेकर चौदह वर्षों तक रहे। वहीं, बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 सालों तक निवास किया था। रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र अयोध्या ही था। जैन धर्म के पांच तीर्थंकरों का जन्म यहीं हुआ। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था। उसके अनुसार यहाँ 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे।

आधुनिक फैजाबाद की नींव पड़ी 18वीं शताब्दी में

जिस फैजाबाद को हम आज जानते हैं उसकी स्थापना 18 वीं शताब्दी में अवध के नवाब सआदत अली खान ने की। उसके उत्तराधिकारी मंसूर खान ने अयोध्या को अपना सैन्य मुख्यालय बनाया। मंसूर के बेटे शुजा-उद-दौला ने फैजाबाद को एक प्रमुख शहर के रूप में विकसित किया। अयोध्या को अवध की राजधानी बनाया। इस दौर में ये शहर अपनी बुलंदियों पर था। फैजाबाद को समृद्धि की वजह से एक  जमाने में छोटा कलकत्ता या बंगाल भी कहा जाता था। अवध के चौथे नवाब आसफ-उद-दौला ने 1775 में राजधानी को लखनऊ स्थानांतरित कर दिया था। तब से सत्ता का केन्द्र लखनऊ बन गया।चर्चित हस्तियां और प्रमुख पर्यटन स्थल

नब्बे के दशक के उत्तरार्ध से ही ये जिला कई महत्वपूर्ण आंदोलनों और घटनाक्रमों का गवाह बना। राममंदिर आंदोलन से जुड़े घटनाक्रमों की लंबी श्रृंखला का साक्षी बना फैजाबाद। भगवान राम की ये नगरी राम मनोहर लोहिया, कुंवर नारायण, राम प्रकाश द्विवेदी सरीखी हस्तियों की भी जन्मभूमि है। कलकत्ता क़िला, नागेश्वर मंदिर, राम जन्मभूमि, सीता की रसोई, अयोध्या तीर्थ, गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड और गुप्तार घाट, गुलाब बाड़ी, अनादि पंचमुखी महादेव मंदिर,  बहू बेगम का मकबरा यहां के प्रमुख एवं प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से हैं।

उद्योग धंधे और विकास का आयाम

बात उद्योग धँधो की करें तो यह जनपद गुड़ और इससे जुड़े अन्य उत्पाद यथा गज़क, लड्डू , चिक्की , गुड़ के लड्डू इत्यादि तैयार करने में अग्रणी है। अयोध्या में पीढ़ियों से पारंपरिक रूप से गुड़ बनाने की प्रक्रिया चली आ रही है। यहां की कुल कृषि योग्य भूमि के 20 फीसदी हिस्से पर गन्ने की खेती होती है। गन्ना शोधन तथा तिलहनों से तेल निकालने के कई संयंत्र लगे हैं। यह अनाज, तिलहन, कपास एवं तंबाकू के लिए एक बड़ा बाज़ार है।

चुनावी इतिहास के आईने में फैजाबाद संसदीय सीट

साल 1952 में कांग्रेस के पन्ना लाल यहां से पहले सांसद चुने गए....1957 में कांग्रेस के बृजवासी सांसद बने। 1967 और 1971 में कांग्रेस से आर.के सिन्हा यहां से चुनाव जीते। 1971 में सुचेता कृपलानी यहां से चुनाव हार गई थीं... 1977 में भारतीय लोकदल के अनंत राम यहां से सांसद चुने गए।1980 में कांग्रेस के जयराम वर्मा जीते। 1984 में कांग्रेस के निर्मल खत्री यहां से सांसद बने। 1989 के चुनाव में सीपीआई के मित्रसेन यादव चुनाव जीते।

नब्बे के दशक की शुरुआत बीजेपी की दस्तक से हुई

राममंदिर आंदोलन के जोर पकड़ने वाले दौर में हुए 1991 के चुनाव में जीतकर विनय कटियार ने यहां बीजेपी का खाता खोला। 1996 में भी विनय कटियार यहां से सांसद चुने गए। लेकिन 1998 के चुनावों में सपा से चुनाव लड़े मित्रसेन यादव ने विनय कटियार को हरा दिया। 1999 में विनय कटियार इस सीट से तीसरी बार सांसद चुने गए। 2004 में मित्रसेन यादव फिर चुनाव जीत गए लेकिन तब वह बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे। 2009 में कांग्रेस से निर्मल खत्री ने पच्चीस वर्ष बाद फिर चुनाव जीता और सांसद बने।

बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का वर्चस्व रहा कायम

साल 2014 की मोदी लहर में बीजेपी के लल्लू सिंह ने 2 लाख 82 हजार 775 वोटों के मार्जिन से इस सीट पर सपा के आनंद सेन यादव को मात दे दी। कांग्रेस के निर्मल खत्री तीसरे पायदान पर जा पहुंचे। 2019 में बीजेपी के प्रत्याशी लल्लू सिंह ने फिर जीत दर्ज की। सपा प्रत्याशी आनंद सेन यादव को 65,477 वोटों से पराजित कर दिया। इस चुनाव में लल्लू सिंह ने 5,29021 वोट हासिल किए जबकि सपा के आनंद सेन यादव को 4,63,544 वोट मिले, 53,386 वोट पाकर कांग्रेस के निर्मल खत्री तीसरे पायदान पर रहे।

वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना

इस संसदीय सीट पर 19.20 लाख  वोटर हैं। जिनमें से सर्वाधिक 7.20 लाख ओबीसी वोटर हैं। जिनमें यादव कुर्मी पाल सहित कई बिरादरियां  शामिल हैं। एससी बिरादरी के 4.70 लाख वोटर हैं। सवर्ण 5.65 लाख हैं। 1.50 लाख मुस्लिम हैं।

बीते आम चुनाव में 4 सीटें बीजेपी को तो 1 सपा को मिली

इस संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं शामिल हैं। बाराबंकी की दरियाबाद और अयोध्या की रुधौली, मिल्कीपुर, बीकापुर और अयोध्या सीट। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में  दरियाबाद से बीजेपी के सतीश शर्मा, अयोध्या से बीजेपी के वेद प्रकाश गुप्ता, बीकापुर से बीजेपी के अमित सिंह चौहान और रुदौली से बीजेपी के रामचंद्र यादव जीते जबकि मिल्कीपुर सीट से सपा के अवधेश प्रसाद विधायक हैं।

मौजूदा चुनावी बिसात पर योद्धा संघर्षरत

साल 2024 की चुनावी जंग में फैजाबाद लोकसभा सीट पर 13 प्रत्याशी मैदान में हैं। बीजेपी ने सिटिंग सांसद लल्लू सिंह पर ही दांव आजमाया है। सपा से अवधेश प्रसाद और बीएसपी से सच्चिदानंद पांडेय चुनावी रण में हैं। अवधेश प्रसाद सपा के दिग्गज नेता रहे हैं। 1977 में जनता पार्टी से सोहावल सीट से पहली बार विधायक बने। 1985 में लोकदल और 1989 में जनता दल के टिकट पर जीते। 1993, 1996, 2002 और 2007 में सपा से चार बार सोहावल सीट से जीते। 2012 में मिल्कीपुर से विधायक बने अखिलेश सरकार मे  कैबिनेट मंत्री भी बने। 2022 में नवीं बार विधायक बने। अब लल्लू सिंह की जीत की हैट्रिक को रोकने के लिए संघर्षरत हैं। वहीं बीएसपी के सच्चिदानंद पांडेय कारोबारी हैं। पूर्व में बीजेपी में हुआ करते थे हाल ही में बीएसपी के हाथी पर सवार हुए थे और टिकट पा गए। इस सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से अरविंद सेन भी चुनाव लड़ रहे हैं। मित्रसेन यादव के पुत्र हैं और पूर्व आईपीएस अफसर रहे हैं। आस्था नगरी से जुड़ी इस संसदीय सीट पर चुनावी संग्राम बेहद जटिल और त्रिकोणीय नजर आ रहा है। 

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