UP Lok Sabha Election 2024: पौराणिक मान्यताओं से आच्छादित है हरदोई, बीते दो चुनावों में बीजेपी ने फहराया परचम

By  Rahul Rana May 5th 2024 12:03 PM -- Updated: May 5th 2024 12:10 PM

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा का केंद्र बिंदु है हरदोई सुरक्षित संसदीय सीट। यूपी के अवध क्षेत्र का अहम हिस्सा है हरदोई जिला। इस जिले के तहत 2 लोकसभा सीटें सम्मिलित हैं, हरदोई और मिश्रिख लोकसभा सीट। दोनों ही सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इस जिले के उत्तर में शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी हैं, दक्षिण में लखनऊ व उन्नाव है, पश्चिम में फर्रुखाबाद और पूर्व में सीतापुर जिला है। उद्योग धंधों के मामले में पिछड़ा जिला है। यहां जरदोजी का भी काम होता है तो मल्लावां क्षेत्र बुनकरों का गढ़ है।

पौराणिक मान्यताओं से आच्छादित है हरदोई

ये जिला भक्त प्रहलाद की नगरी के तौर पर प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली की परंपरा यहीं से शुरू हुई। कहा जाता है कि पहले इस क्षेत्र का नाम हरिद्रोही यानि ईश्वर का विरोधी हुआ करता था। बाद में यही शब्द हरदोई कहा जाने लगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां हिरण्यकश्यप का शासन हुआ करता था, जो स्वयं को भगवान मानता था जबकि उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का भक्त था। इसी क्षेत्र में नरसिंह अवतार लेकर भगवान ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। किवदंतियों के अनुसार होली के पर्व की नींव भी हरदोई से ही पड़ी थी। श्रीहरि के भक्त प्रह्लाद ने होलिका की राख से पहली होली खेली थी। तभी से होलिका पूजन और राख का तिलक लगाने के बाद रंग-गुलाल खेलने की परंपरा जारी है। .मान्यता ये भी है कि इसी क्षेत्र में राजा बलि से दान में तीन पग जमीन मांगने वाले वामन-अवतार भी यहीं हुआ था। यहां के हत्याहरण तीर्थ स्थल पर रावण का वध करने बाद ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने भी स्नान व पूजा अर्चना की थी।

जिले के प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल

हरदोई के मल्लावां, बिलग्राम, पिहानी,शाहाबाद, संडीला और रुईया जैसे स्थल ऐतिहासिक महत्व के माने जाते हैं। विक्टोरिया भवन जनपद हरदोई का हस्ताक्षर शिल्प भवन है। सन 1990 में स्थापित साण्डी पक्षी अभयारण्य पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र रहता है। यहां का धोबिया आश्रम, बूढ़े बाबा का मंदिर, नर्मदा ताल, बेला ताली तालाब, शाहाबाद संकटा देवी मंदिर, श्रवण देवी मंदिर, सकहा शंकर मंदिर, बिलग्राम का कछुआ तालाब, सर्वोदय आश्रम टडियांवा प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

चुनावी इतिहास के आईने से हरदोई सीट

साल  1952 के चुनाव में कांग्रेस के बुलाकी राम वर्मा यहां से चुनाव जीतकर पहले सांसद बने। 1957 में यहां दो सीटें हुआ करती थीं। आरक्षित सीट से जनसंघ के शिवदीन और अनारक्षित सीट से कांग्रेस के छेदालाल गुप्ता विजयी हुए। इसके बाद 1962, 1967 और 1971 में कांग्रेस के किंदरलाल ने जीत की हेट्रिक लगाई। 1977 में इमरजेंसी की नाराजगी का खामियाजा भुगतते हुए कांग्रेस हारी और जनता दल के परमाई लाल सांसद चुने गए। 1980 में कांग्रेस ने वापसी की मनीलाल चुनाव जीते। 1984 में कांग्रेस के किंदर लाल फिर सांसद बने।1989 में जनता दल के परमाई लाल को मौका मिला।

हरियाणा के नेता को भी मिली जीत, तो बीजेपी सपा का हुआ कब्जा

साल 1990 हरियाणा से आए चौधरी चांदराम जनता दल के टिकट से इस सीट से चुनाव लड़े और भारी बहुमत से जीत गए। नब्बे के दशक की शुरुआत में बीजेपी का खाता खुला। 1991 और 1996 में बीजेपी के जयप्रकाश रावत चुनाव जीते। 1998 में सपा की उषा वर्मा यहां की पहली महिला सांसद चुनी गईं। 1999 में जयप्रकाश रावत ने फिर जीत हासिल की पर इस बार वह लोकतांत्रिक कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े थे। इसके बाद 2004 और 2009 में जीत की बाजी सपा की उषा वर्मा के हाथ लगी।

बीते दो चुनावों में बीजेपी का परचम फहराया

मोदी लहर में 2014 के चुनाव में बीजेपी के अंशुल वर्मा जीत गए। उन्हें 3,60,501 वोट मिले जबकि बीएसपी के शिवप्रसाद वर्मा को 2,79,158 वोट ही मिल सके। इस तरह से बीजेपी ने ये सीट 81,343 वोटों के मार्जिन से हासिल कर ली। साल 2019 में बीजेपी ने अंशुल वर्मा की जगह जयप्रकाश रावत को मौका दिया। उन्हें 568,143 वोट मिले जबकि उनके मुकाबले चुनाव लड़ रही सपा की उषा वर्मा को 435,669 वोट ही मिले। जय प्रकाश ने 1,32,474 वोटों के अंतर से चुनाव जीत लिया।

दशकों से जिले की सियासत पर दिग्गज नेता नरेश अग्रवाल का है वर्चस्व

हरदोई जिले की सियासत में जिस एक शख्स का दशकों से वर्चस्व कायम है उसका नाम नरेश अग्रवाल है। जिनके परिवार का यहां की सदर सीट पर दशकों से कब्जा रहा है। एक बार इनके पिता श्रीशचंद अग्रवाल, सात बार नरेश अग्रवाल और चार बार उनके पुत्र नितिन अग्रवाल चुनाव जीते। नितिन अग्रवाल योगी सरकार में आबकारी महकमे के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार हैं। नरेश अग्रवाल सपा-बीएसपी में भी रहे। लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई जिसके टिकट से जयप्रकाश रावत को चुनाव जीताकर संसद पहंचा दिया। इनके बारे में मशहूर है कि ये सत्ता के साथ ही रहते हैं।

आबादी और जातीय समीकरणों का हिसाब किताब

इस संसदीय सीट पर 19 लाख 14 हजार 356 वोटर हैं। जिनमें 31 फीसदी अनुसूचित जाति के वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक आबादी पासी बिरादरी की है। इसीलिए ज्यादातर  दल इसी बिरादरी के प्रत्याशियों पर ही दांव लगाते रहे हैं। यहां 13 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। तीन लाख कुर्मी वोटर हैं, ढाई लाख ब्राह्मण और क्षत्रिय वोटर हैं। एक लाख वैश्य बिरादरी के वोटर हैं। वहीं, गड़रिया, काछी, कहार, कश्यप और यादव वोटर भी प्रभावशाली तादाद में हैं।

संसदीय क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों पर बीजेपी का क्लीन स्वीप

हरदोई लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभाएं शामिल हैं, सवायजपुर, शाहाबाद, हरदोई सदर, गोपामऊ सुरक्षित और सांडी सुरक्षित सीट। साल 2022 में इन सभी सीटों पर  बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था। सवायजपुर से माधवेन्द्र प्रताप सिंह, शाहाबाद से रजनी तिवारी, हरदोई से नितिन अग्रवाल, गोपामऊ से श्याम प्रकाश और सांडी सीट से प्रभाष कुमार चुनाव जीतकर विधायक बने।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर डटे हैं योद्धा

इस बार के आम चुनाव में बीजेपी ने जयप्रकाश वर्मा फिर से दांव लगाया है। जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन से समाजवादी पार्टी की उषा वर्मा चुनावी मैदान में हैं। वहीं, मजबूत स्थानीय चेहरा न मिलने पर बीएसपी ने एमएलसी भीमराव अंबेडकर को अपना प्रत्याशी बनाया है। जयप्रकाश रावत चार बार सांसद रह चुके हैं अब पांचवी बार फिर संसद पहुंचने की जंग  लड़ रहे हैं तो उषा वर्मा तीन बार सांसद और मंत्री रह चुकी हैं।

प्रत्याशियों के बारे में जानकारियां

सपा और बीएसपी के पाले में भी रह चुके बीजेपी के जयप्रकाश रावत चार साल पहले तब चर्चा में आए थे जब कोविड के दौरान अफसरों के रवैये से नाखुश होकर फेसबुक पर मन की व्यथा लिखा कि जब ऊपर से आदेश हो गया है कि अधिकारी अपने विवेक से काम करें तो हमको कौन सुनेगा, हमने तो तीस वर्ष के कार्यकाल में ऐसी बेबसी  कभी महसूस नहीं की। उषा वर्मा 1995 में ब्लाक प्रमुख बनीं, 1998 में अपने ससुर की विरासत संभालते हुए पहली बार सपा के टिकट पर हरदोई से लोकसभा चुनाव जीतीं। 2002 में वे विधायक चुनी गईं और मुलायम सिंह की सरकार में बाल विकास पुष्टाहार मंत्री बनीं। वहीं, बीएसपी के भीमराव अंबेडकर इटावा के रहने वाले हैं। साल 2007 में लखना विधानसभा सीट से विधायक बने लेकिन बाद में परिसीमन में ये सीट खत्म करके भरथना विधानसभा क्षेत्र में शामिल कर दी गई। साल 2012 में ये चुनाव हार गए। 2018 में राज्यसभा के लिए बीएसपी से चुनाव लड़े लेकिन सपा के समर्थन के बावजूद हार गए। अभी यूपी विधान परिषद के एकमात्र बीएसपी सदस्य हैं इनका कार्यकाल 5 मई को समाप्त हो रहा है।

बहरहाल, हरदोई सीट पर जीत का रिकार्ड बनाने के लिए सारे प्रत्याशी संघर्षरत हैं। जनता के बीच जाकर समर्थन मांगने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।

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