UP Lok Sabha Election 2024: यहां जानें इटावा का प्राचीन काल से आधुनिक युग का सफर, मुलायम सिंह यादव की जन्मभूमि है ये जिला

By  Rahul Rana May 3rd 2024 07:55 AM

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:   यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे मध्य यूपी में स्थिति इटावा संसदीय सीट की। यमुना नदी के किनारे बसा इटावा पौराणिक व ऐतिहासिक धरोहरों और मान्यताओं को समेटे हुए है। इटावा आगरा के दक्षिण-पूर्व में यमुना नदी के तट पर स्थित है। इस शहर में कपास और रेशम बुनाई के उद्योग और तिलहन मिलें हैं। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की जन्मभूमि रहा है इटावा जिला।

इटावा का प्राचीन काल से आधुनिक युग का सफर

चंबल और यमुना के दोआब में स्थित इस जिले को वैदिक युग इष्टिकापुरी के नाम से जाना जाता था। ये धरा ऋषियों-मुनियों की तपोस्थली रही थी। यहां के बकेवर में भगवान श्रीकृष्ण ने बकासुर का वध किया था। महाभारत काल में यहां के चकरनगर में पांडवों के अज्ञातवास में कीचक के वध की कथा जुड़ी हुई है। यहां निवास करने वालों को पांचाल कहा जाता था। कांस्य युग के कई प्रमाण यहां के उत्खनन से प्राप्त हुए हैं। कालांतर में यहां ईंट निर्माण की अधिकता के कारण इटावा नाम मिल गया। पुरबिया टोला पंजावा में ईंट आवा यानि ईंट का भट्टा था माना जाता है कि इसी की वजह से इसे इटावा कहा जाने लगा। अंग्रेजी हुकूमत के दौर में जब 1857 के दौरान जंगे आजादी का आगाज हुआ था तब इटावा के कलेक्टर हुआ करते थे एलन ऑक्टेवियन ह्यूम यानि एओ ह्यूम जिन्होंने बाद में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना की थी।

साहित्यिक परंपरा के महान वाहकों की सरजमीं रहा इटावा

अवधी, बुंदेली और ब्रजभाषा के मिले जुले   प्रभाव के कारण इटावा को बोलियों का जंक्शन माना जाता है। राष्ट्रीय गीत के रचयिता बंकिमचंद्र चटर्जी ने यहां के जल के महत्व को बताया। इस धरती ने कई नामी गिरामी साहित्यकार दिए। भक्तिकाल के कवि गंग, रीतिकालीन महाकवि देव का जन्म यहीं हुआ तो आधुनिक काल के प्रसिद्ध गीतकार गोपालदास नीरज, साहित्यकार बाबू गुलाब राय, उदयशंकर भट्ट, श्री नारायण चतुर्वेदी यहीं के थे।

प्रसिद्ध पर्यटन स्थल व धार्मिक केन्द्र

यहां का इटावा सफारी पार्क पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केन्द्र है। विक्टोरिया पार्क, राजा सुमेर का किला, नौगांव का किला, काली बांह मंदिर में बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। बाबरपुर, बकेवर, चकरनगर, जसौहारन, प्रताप नगर और सरसई नावर यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। इटावा की जामा मस्जिद भी काफी प्रसिद्ध है। यहां के लखना के कालिका मंदिर में दो सौ वर्षों से दलित पुजारी नियुक्त किए जाने की गौरवशाली परंपरा है। इटावा-फर्रुखाबाद मार्ग पर दतावली के पास स्थित चुगलखोर की मजार भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहती है। यहां से गुजरने वाले मुसाफिर और चुनावी जीत की मन्नत मानने वाले सियासतदां इस मजार पर पांच जूते जरूर लगाते हैं। इटावा के अहेरीपुर के जूते खासे मशहूर रहे तो यहां की घी की मंडी ने इटावा को देश-दुनिया में पहचान दी।

चुनावी इतिहास के झरोखे से इटावा संसदीय सीट

साल 1957 के चुनाव में दो सांसद चुने गए थे,  सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर अर्जुन सिंह भदौरिया चुनाव जीते थे। रोहनलाल चतुर्वेदी कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए थे। 1962 में कांग्रेस के  जीएन दीक्षित यहां से सांसद बने। 1967 में अर्जुन सिंह भदौरिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट से जीतकर वापसी की। 1971 में कांग्रेस के श्रीशंकर तिवारी जीते तो इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर अर्जुन सिंह भदौरिया चुने गए, तीसरी बार यहां के सांसद बने। 1980 में जनता पार्टी के टिकट पर राम सिंह शाक्य को मौका मिला। 1984 में कांग्रेस के चौधरी रघुराज सिंह जीते। 1989 में जनता दल के टिकट से राम सिंह शाक्य को कामयाबी मिली।

नब्बे के  दशक से बीएसपी-सपा और बीजेपी का प्रभुत्व हुआ कायम

1991 के चुनाव में बीएसपी संस्थापक दिग्गज नेता कांशीराम ने यहां से जीत हासिल की।पांच साल बाद  1996 में सपा के राम सिंह शाक्य फिर से चुनाव जीतकर सांसद बने। 1998 में इस सीट से बीजेपी का खाता खुला, पार्टी से सुखदा मिश्रा सांसद बनीं। इसके बाद लगातार तीन चुनाव  में सपा को जीत हासिल हुई। 1999 और 2004 में सपा के रघुराज सिंह शाक्य जीते तो 2009 में सपा से प्रेमदास कठेरिया सांसद बने।

मोदी लहर में इस सीट पर बीजेपी का परचम फहराया

साल  2014 की मोदी लहर में ये सीट बीजेपी के खाते में आ गई। तब बीजेपी के अशोक कुमार दोहरे को 4,39,646 वोट मिले जबकि सपा के प्रेमदास कठेरिया को 2,66,700 वोट मिले। बीएसपी के अजय पाल सिंह जाटव को 1,92,804 वोट हासिल हुए थे। अशोक कुमार दोहरे ने सपा के प्रेमदास कठेरिया को एक लाख 72 हजार 946 वोटों से हरा दिया।  

बीते आम चुनाव में भी जीत की बाजी बीजेपी के हाथ लगी

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अशोक कुमार दोहरे के बजाए राम शंकर कठेरिया पर दांव लगाया। तो अशोक कुमार नाराज होकर कांग्रेस के टिकट से चुनाव मैदान में उतर गए पर तीसरे पायदान पर खिसक गए। कठेरिया को चुनाव में 522,119 वोट मिले तो सपा के प्रत्याशी कमलेश कुमार  457,682 वोट पाए। त्रिकोणीय मुकाबले में राम शंकर कठेरिया ने 64,437 वोटों से जीत हासिल कर ली।

मुलायम सिंह यादव की जन्मभूमि है ये जिला

सैफई गांव इटावा जिले का हिस्सा है। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव यहां पैदा हुए। उन्होंने अपनी सियासी पारी की सक्रियता की शुरुआत यहां की। मुलायम सिंह यादव सात बार जसवंतनगर विधानसभा सीट से विधायक चुने गये। उनके भाई शिवपाल सिंह यादव चार बार इस सीट से विधायक बने। सैफई परिवार के सियासी रसूख का ही नतीजा रहा है कि इटावा समाजवादी पार्टी के गढ़ों में शुमार रहा।

आबादी और जातीय समीकरण का ताना बाना

इस संसदीय सीट पर 18,27, 782 वोटर हैं। सबसे अधिक आबादी  दलित वोटरों की है। जिनकी संख्या 4.75  लाख से अधिक है। जिनमें जाटव वोटर 1.90 लाख जबकि धानुक व कठेरिया 1.10 लाख हैं। इस सीट पर दूसरी बड़ी आबादी के तौर पर तीन लाख ब्राह्मण वोटर हैं। सवा दो लाख यादव, 1.35 लाख क्षत्रिय हैं। सवा लाख शाक्य हैं, इतने ही मुस्लिम वोटर हैं। 1.20 लाख लोधी वोटर हैं। 1 लाख के करीब पाल व बघेल हैं। नब्बे हजार वैश्य वोटर हैं।

साल 2022 में तीन सीटें बीजेपी को और दो सपा के हिस्से में गईं

इटावा संसदीय सीट  में इटावा की इटावा सदरस भरथना सुरक्षित औरैया की दिबियापुर और औरेया सुरक्षित  और कानपुर देहात की सिकंदरा सीट शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में दो सीटें सपा और तीन बीजेपी के पास गईं। इटावा से बीजेपी की सरिता भदौरिया, भरथना से सपा के राघवेंद्र गौतम, दिबियापुर से सपा के प्रदीप कुमार यादव, औरैया से बीजेपी की गुड़िया कठेरिया, सिकंदरा से बीजेपी के अजीत सिंह पाल  विधायक हैं।

मौजूदा चुनाव की बिसात पर सियासी योद्धा हैं मुस्तैद

साल 2024 के चुनाव के लिए बीजेपी ने सिटिंग सांसद रामशंकर कठेरिया पर ही भरोसा जताया है। सपा-कांग्रेस गठबंधन के तहत सपा की ओर से जितेंद्र दोहरे चुनाव लड़ रहे हैं। बीएसपी से सारिका सिंह चुनाव मैदान में हैं। दो बार सांसद रह चुके रामशंकर कठेरिया आगरा के डॉ भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर हैं। छात्र जीवन से ही आरएसएस से जुड़ गए थे। दलित उपजाति धानुक से ताल्लुक रखने वाले कठेरिया 2014 में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव रहे। मोदी 1.0 सरकार में एचआरडी मंत्रालय में राज्यमंत्री के पद पर रहे। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के भी अध्यक्ष रहे हैं। इटावा के बकेवर के सुनवर्षा के निवासी जितेन्द्र दोहरे ने अपनी सियासत बीएसपी के साथ शुरू की। पार्टी की जिला इकाई में पदाधिकारी रहे बाद में सपा में शामिल हो गए। सारिका सिंह हाथरस से सांसद रह चुकी हैं, इटावा इनका मायका है।

धारदार त्रिकोणीय संघर्ष  दिलचस्प मोड़ पर है

इस सीट पर तब सब हैरान रह गए थे जब बीजेपी प्रत्याशी रामशंकर कठेरिया की पत्नी मृदुला कठेरिया ने भी इस सीट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी पर्चा भर दिया था हालांकि बाद में उन्होने  अपना नामांकन वापस ले लिया। पौराणिक-धार्मिक-ऐतिहासिक सरजमीं इटावा में जनता किसे चुनकर भेजेगी संसद इसे लेकर हर खेमे के अपने अपने दावे हैं। 

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