UP Lok Sabha Election 2024: यहां जानें बरेली सीट का समीकरण, 1857 की जंगे आजादी का अहम केन्द्र बना था बरेली

By  Rahul Rana April 23rd 2024 01:33 PM

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज की चर्चा का केन्द्र है बरेली संसदीय सीट। बरेली उत्तराखंड राज्य से सटा जिला है। इसकी बहेड़ी तहसील उत्तराखंड के उधमसिंह नगर की सीमा से जुड़ी हुई है। रामगंगा नदी के तट पर बसा यह शहर प्राचीनकाल से ही महत्वपूर्ण स्थल रहा है। ये शहर यूपी का आठवां और देश का 50वां सबसे बड़ा शहर है।

प्राचीन भारत का महत्वपूर्ण क्षेत्र रहा बरेली

महाभारत काल में बरेली जिले की तहसील आंवला का हिस्सा पांचाल क्षेत्र हुआ करता था। यहां के अहिच्छत्र में महात्मा बुद्ध भी पधारे थे। जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को अहिच्छत्र में ही कैवल्य की प्राप्ति हुई थी। आठवीं शताब्दी में कन्नौज यशोवर्मन के शासनाधीन आया। 9वीं शताब्दी में यहां गुर्जर प्रतिहार का शासन हो गया।

मध्यकालीन दौर में  बरेली का इतिहास

1500 ईस्वी में यहां के शासन की बागडोर राजा जगत सिंह कठेरिया के हाथों में आ गई। उनके पुत्रों, बांस देव तथा बरल देव ने जगतपुर के नजदीक  एक दुर्ग का निर्माण करवाया। जिसका नाम उन दोनों के नाम पर बांस-बरेली हो गया। बाद में यहां मुगल शासकों का राज हो गया। अकबर ने यहां मिर्जई मस्जिद तथा मिर्जई बाग़ का निर्माण कराया। तब बरेली बदायूं सूबे का हिस्सा हुआ करता था। 1596 में बरेली को स्थानीय परगने का मुख्यालय बनाया गया।

रुहेल अफगानों का आधिपत्य स्थापित हुआ बरेली में

विद्रोही कठेरिया राजपूतों को नियंत्रित करने के लिए मुगलों ने बरेली क्षेत्र में वफादार अफगानों की बस्तियों को बसाना शुरू किया।  इन अफगानों को रुहेला अफ़गानों के नाम से जाना जाता था, और इस कारण क्षेत्र का नाम रूहेलखंड पड़ गया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद रुहेलखण्ड मुगल शासन से स्वतंत्र राज्य बनकर उभरा, और बरेली रुहेलखण्ड की राजधानी बनी।

ईस्ट इंडिया कंपनी के आधीन आ गया बरेली

1774 से 1800 ईस्वी तक रुहेलखंड क्षेत्र अवध के नवाबों के कब्जे में आ गया। तब सआदत अली को बरेली का गवर्नर बनाया गया। कर्ज चुकाने के लिए, नवाब सआदत अली खान ने 10 नवंबर, 1801 को रुहेलखंड को ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया। 1805 में एक पिंडारी, आमिर खान ने रुहेलखण्ड पर आक्रमण किया, हालांकि उसे परास्त कर दिया गया लेकिन इसके बाद इस क्षेत्र को दो हिस्सों में बांट दिया गया-मुरादाबाद और बरेली।

1857 की जंगे आजादी का अहम केन्द्र बना बरेली

मेरठ से शुरू हुए सैनिक विद्रोह की खबर 14 मई, 1857 को बरेली तक पहुंची। इसके बाद यहां भी भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। यहां की नकटिया नदी के किनारे खान बहादुर खान और अंग्रेज सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। जिसमें कमजोर पड़ने पर खान बहादुर खान वहां से निकल कर नेपाल चले गए। पर बाद में उन्हें गिरफ्तार करके फांसी दे दी गई।

बीसवीं शताब्दी की शुरूआत से ही आंदोलनों का केंद्रबिंदु रहा बरेली

कांग्रेस के खिलाफत आंदोलन में बरेली का बड़ा योगदान रहा। महात्मा गांधी ने 2 बार यहां की यात्रा की।  सविनय अवज्ञा आंदोलन का बरेली में खासा असर हुआ।  आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में यहां पर कई सभाएं आयोजित की गई।  पंडित जवाहर लाल नेहरू, रफी अहमद किदवई और महावीर त्यागी आजादी की जंग के दौरान बरेली की जेल में कैद रहे थे।

फिल्मी गीतों से मशहूर बरेली में उद्योग-धंधे

बरेली के झुमके के जिक्र को लेकर बने बॉलीवुड के गाने के बाद से बरेली को झुमका शहर भी कहा जाने लगा। हालांकि दिलचस्प बात है कि यहां कोई खास तरह का झुमका नहीं तैयार किया जाता। ‘सुरमा बरेली वाला’ फिल्मी गीत भी खासा लोकप्रिय रहा। बरेली का हाशमी परिवार कई पीढ़ियों से सुरमे का कारोबार करता है। है। बरेली का मांझा, पतंग, जरी-जरदोजी, फर्नीचर के कारोबार बड़े पैमाने पर होता है। इस शहर में चीनी, कपास ओटने और गांठ बनाने, दियासलाई,  तारपीन तेल निकालने से जुड़े कई उद्योग हैं। यहां सूती कपड़े व कागज मिलें हैं।

धार्मिक आस्था के प्रमुख स्थल हैं बरेली में

नाथ सम्प्रदाय के प्राचीन मंदिरों की अधिकता होने के कारण बरेली को नाथ नगरी भी कहा जाता है। यहां की दरगाह आला हजरत सुन्नी बरेलवी मुसलमानों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां की दरगाह शाह सकलैन मियाँ खानकाहे सकलैनिया शराफतिया भी मशहूर है। राधेश्याम रामायण के प्रसिद्ध रचयिता पंडित राधेश्याम शर्मा कथावाचक इसी शहर के थे। बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और दिशा पाटनी इसी शहर से ताल्लुक रखती हैं। धोपेश्वर नाथ, पशुपति नाथ, तपेश्वर नाथ यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।यहां के इज्जतनगर में  भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान और भारतीय पक्षी अनुसंधान संस्थान  हैं।

चुनावी इतिहास के आईने में बरेली

वर्ष 1957 तक जिले में सिर्फ बरेली संसदीय सीट हुआ करती थी। लेकिन वर्ष 1962 के चुनाव से पहले हुए परिसीमन मे नई आंवला लोकसभा क्षेत्र का गठन हुआ। बरेली की बिथरी, आंवला व फरीदपुर इस नई सीट मे शामिल कर दी गईँ। 1952  और 1957 के  चुनाव में यहां से कांग्रेस के सतीश चंद्रा विजयी रहे। वे नेहरू कैबिनेट में मंत्री भी बने। 1962 और 1967 के चुनाव में ये सीट जनसंघ ने जीत ली। सतीश चन्द्रा 1971 मेंफिर से यहां से चुनाव जीते। 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में जनता दल प्रत्याशी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राममूर्ति सांसद बने।  1980 में भी यहां से जनता पार्टी जीती। 1981 में हुए उपचुनाव में पूर्व राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद की पत्नी बेगम आबिदा अहमद कांग्रेस के टिकट से चुनाव जीतीं। 1984 के चुनाव में भी वह सांसद बनने में कामयाब हुईँ।

नब्बे के दशक से बरेली सीट पर बीजेपी का प्रभुत्व कायम हो गया

राममंदिर आंदोलन की शुरुआत होने के बाद 1989 के चुनाव बरेली सीट से  बीजेपी के  संतोष कुमार गंगवार सांसद बने। इसके बाद 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 में लगातार जीतकर संतोष गंगवार ने जीत का रिकॉर्ड कायम कर दिया। हालांकि 2009 के चुनाव में संतोष गंगवार को कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन के हाथों करीब नौ हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा।

बीते दो चुनावों में बरेली सीट पर बीजेपी का परचम फहराया

2014 के चुनाव में संतोष गंगवार ने समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी आयशा इस्लाम को 2,40,685 वोटों के मार्जिन से मात दे दी। कांग्रेस के उम्मीदवार और तब के सिटिंग सांसद प्रवीण सिंह ऐरन चौथे पायदान पर रहे। साल 2019 में बीजेपी के संतोष गंगवार ने सपा-बसपा के साझा उम्मीदवार भगवत सरन गंगवार को 1,67,282 वोटों के अंतर से चुनाव हराकर आठवीं जीत का रिकार्ड बना दिया।

बरेली सीट पर जातीय समीकरणों का हिसाब किताब

इस संसदीय सीट पर वोटरों की संख्या तकरीबन 19,16, 986 है। अनुमानित तौर पर इनमें से साढ़े पांच लाख मुस्लिम वोटर हैं। इसके बाद सर्वाधिक साढ़े चार लाख की तादाद कुर्मी वोटरों की है। दलित वोटर सवा दो लाख, डेढ़-डेढ़ लाख कश्यप व मौर्य बिरादरी और पौने दो लाख वैश्य हैं। ब्राह्मण व कायस्थ सवा-सवा लाख, अस्सी हजार यादव हैं। सिख व पंजाबी मतदाता करीब एक लाख हैं।

18 लाख 97 हजार है। इनमें से सबसे अधिक साढ़े पांच लाख मुस्लिम वोटर हैं। दूसरी सबसे बड़ी बिरादरी के तौर पर साढ़े तीन लाख कुर्मी  वोटर हैं। दलित सवा दो लाख। डेढ़-डेढ़ लाख कश्यप व मौर्य बिरादरी। पौने दो लाख वैश्य हैं। ब्राह्मण व कायस्थ सवा-सवा लाख, अस्सी हजार यादव हैं। सिख व पंजाबी मतदाता करीब एक लाख हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर बीजेपी छाई

इस संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं शामिल हैं, बरेली शहर, कैंट, मीरगंज, नवाबगंज और भोजीपुरा। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से मीरगंज से डीसी वर्मा, नवाबगंज से एमपी आर्य, बरेली से अरुण कुमार सक्सेना, बरेली कैंट से संजीव अग्रवाल चुनाव जीते जबकि भोजीपुरा  से सपा के शहजिल इस्लाम अंसारी को कामयाबी मिली।

आगामी चुनाव की बिसात पर सियासी योद्धा डट चुके हैं

इस बार बरेली में बड़ा कदम उठाते हुए बीजेपी ने वयोवृद्ध नेता संतोष गंगवार की जग छत्रपाल गंगवार पर दांव लगाया है।  सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर से सपा के प्रवीण सिंह ऐरन चुनावी मैदान में हैं। बीएसपी ने मास्टर छोटेलाल गंगवार को टिकट दिया था.......हाल ही में कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीएसपी में शामिल छोटेलाल गंगवार को टिकट तो मिल  गया लेकिन तकनीकी खामी के चलते उनका नामांकन खारिज कर दिया गया....अब चुनावी मैदान में मुकाबला बीजेपी के छत्रपाल गंगवार और सपा के प्रवीण ऐरन के बीच सिमटा नजर आ रहा है......ऐरन 1989 में जनता दल के टिकट से कैंट से विधायक बने, 1995 में स्वास्थ्य मंत्री बने तो 2009 में कांग्रेस से सांसद बने। 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़कर सपा के साथ आ गए। इनकी पत्नी सुप्रिया ऐरन बरेली की मेयर रही हैं। दनखौड़ा गांव के संघ बैकग्राउंड के छत्रपाल गंगवार 2007 में विधायक बने। 2017 विधानसभा चुनाव में उन्होंने सपा के अताउर्रहमान को साठ हजार वोटों से हराया था। संतोष गंगवार के टिकट कटने से उपजी नाराजगी से निपटना  भी इनके लिए बड़ी चुनौती है। अब तक हुए 17 चुनावों में आठ बार फतह हासिल कर चुकी बीजेपी के जीत के रथ को रोकने के लिए प्रवीण ऐरन एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं...  चुनावी मुकाबला दिलचस्प बना हुआ है। फिर द्विध्रुवीय टक्कर नजर आ रही है इस सीट पर।

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