Uttar Pradesh Upchunav Result 2024: चूक से लिया सबक तो खिला उम्मीदों का कमल
ब्यूरो: Uttar Pradesh Upchunav Result 2024: लोकसभा चुनाव में पस्त पड़ चुकी बीजेपी को निराशा से उबरने के लिए जिस बूस्टर डोज की जरूरत थी वह उपचुनाव के नतीजों की शक्ल में उसे हासिल हो गया। दरअसल, सीएम योगी की अगुवाई में बीजेपी ने उपचुनाव की परीक्षा यूं ही अव्वल नंबरों से पास नहीं की। इसके पीछे पार्टी की मेहनत और रणनीति तो वजह रही ही पर पिछली चूक से सबक लेकर नए सिरे से व्यूह रचना करना गेम चेंजर साबित हुआ। सुविचारित-मेहनत युक्त-सटीक रणनीति से जीत की पटकथा रचने से जुड़े अहम फैक्टर्स को समझते हैं।
आम चुनाव में बीजेपी को मिली करारी शिकस्त तो हुआ मंथन
इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को जबरदस्त नुकसान हुआ। 2019 में 49.98 फीसदी वोट के साथ 62 सीटें पाने वाली बीजेपी 33 सीटों पर सिमट गई तो वोटशेयर खिसककर 41.37 फीसदी पर जा पहुंचा। इसके बाद पार्टी में हुए मंथन में पता चला कि टिकट बंटवारे में हुई मनमानी और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भारी पड़ी। संगठन में पसरी गुटबाजी और संघ की निष्क्रियता ने बीजेपी की उम्मीदें मुरझा दीं। संविधान बदलने और आरक्षण खत्म होने के विपक्षी नैरेटिव के साथ सपा के पीडीए फार्मूले ने बीजेपी के जातीय समीकरणों की धार कुंद कर दी। रही सही कसर पूरी कर दी पेपर लीक और रोजगार के मुद्दे ने। हार की वजहों से निपटने के लिए बीजेपी ने युद्ध स्तर पर प्रयास किए।
टिकट वितरण में जातीय समीकरण साधने के संग ही कार्यकर्ताओं को मिली तरजीह
उपचुनाव वाली सीटों के उम्मीदवारों के बाबत जब बीजेपी की लिस्ट जारी हुई तभी दिख गया था कि इस बार पार्टी ने कार्यकर्ताओं को मौका दिया है। चेहरे तय करते वक्त पार्टी के प्रति वफादारी, काडर के पुराने राजनीतिक परिवारों को तवज्जो दी गई। सभी जातियों को सम्मान देने और साथ लेकर चलने का संदेश देने की भी कोशिश की गई। जातीय समीकरणों को साधने के लिए बीजेपी ने अपने कोटे की आठ सीटों में चार पर ओबीसी, एक पर दलित को मौका दिया तो दो सीटों पर ब्राह्मण और एक सीट पर क्षत्रिय चेहरे को उतारा। जिसके जरिए सवर्णों को भी भागीदारी का भरोसा दिया। गाजियाबाद, खैर, मझंवा, सीसामऊ और कुंदरकी सीट पर पार्टी काडर ही टिकट पाए। कटेहरी और फूलपुर से बीएसपी और करहल से मुलायम परिवार से बीजेपी में आए चेहरे पर दांव लगाया। इनमें से छह प्रत्याशी जीत गए।
विपक्षी नैरेटिव की काट के लिए इस बार जमीनी स्तर पर मुहिम छेड़ी
लोकसभा चुनाव के दौरान संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के विपक्षी नैरेटिव की काट बीजेपी नहीं खोज सकी थी। पर इस बार किसी भी झूठ और भ्रम की काट के लिए बूथ स्तर तक योजना बनाई गई थी।विधानसभा क्षेत्रवार, संचालन टोली, मंडल अध्यक्षों, प्रभारियों और बूथ अध्यक्षों और पन्ना प्रमुखों के साथ छोटी-छोटी बैठकें की गईं। जिनमें इंडिया गठबंधन की जाति की राजनीति और झूठ फरेब का करारा जवाब देने की रणनीति बनाई। सपा के पीडीए को "परिवार डेवलपमेंट अथॉरिटी" करार दिया। बीजेपी का संगठन वोटरों को ये समझाने में सफल रहा कि विपक्ष झूठे प्रचार का सहारा लेता है। शोषितों-वंचितों के लिए मोदी-योगी सरकार के कामों को भी वोटरों तक पहुंचाया गया। आम चुनाव में वोटरों के न निकलने से भी बीजेपी को चोट पहुंची लिहाजा इस बार बूथ अध्यक्ष और पन्ना प्रमुखों ने पूरी मशक्कत करके वोटरों को बूथ तक पहुंचाया। पार्टी कार्यकर्ता वोटरों से पांच-छह बार संपर्क करने के लिए घर-घर पहुंचे। नतीजतन बीजेपी उपचुनाव में 52 फीसदी वोट पाने में सफल रही।
सरकार-संगठन में तालमेल और गुटबाजी को दूर करने पर खास फोकस रखा
लोकसभा चुनाव में संगठन और सरकार के बीच तालमेल की कमी का मुद्दा सामने आया था। पर इस बार चुनाव के ऐलान से बहुत पहले ही तैयारी शुरू हो चुकी थीं। सरकार और संगठन मे समन्वय के लिए मंत्रियों की सुपर-30 टीम को जिम्मा दिया गया था। दोनों डिप्टी सीएम भी जुटे रहे। तो पार्टी पदाधिकारियों की जिम्मेदारी भी विधानसभावार तय कर दी गई थी। बीजेपी के प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल और प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने हर विधान सभा में जाकर बैठकें करके स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय को मजबूती देने का काम किया। बीजेपी के लखनऊ स्थित मुख्यालय पर बनाए गए वॉर रूम में उपचुनाव की बारीक डीटेल पर नजर रखी जा रही थी। सरकार-संगठन का समन्वय रंग लाया। लाभार्थी वर्ग, किसान, युवा, महिला, दलित और पिछड़े वर्ग के वोटरों तक पैठ बनाने में पार्टी कामयाब रही।
संघ के संग रिश्ते सहज करने और बेहतर समन्वय कराने पर भरपूर मेहनत की गई
लोकसभा चुनाव में संघ की उदासीनता बीजेपी की शिकस्त की बड़ी वजह के तौर पर उभरी। दरअसल, तब बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बयान दे दिया था कि बीजेपी अब बड़ी पार्टी बन गई उसे संघ की जरूरत नहीं। माना जाता है कि उसी के बाद संघ के पदाधिकारी और कार्यकर्ता नाराज होकर घर बैठ गए। पर बीजेपी ने न सिर्फ उपचुनाव बल्कि महाराष्ट्र चुनाव में भी इस गलती को सुधारा। योगी सरकार और बीजेपी संगठन ने संघ परिवार के साथ तालमेल बिठाया। बीते महीने लखनऊ के मोहनलालगंज स्थित प्रकृति भारती में हुई संघ की अहम बैठक हुई। जिसमें संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार के साथ बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह चौधरी और प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह, अवध क्षेत्र के प्रांत प्रचारक कौशल कुमार सरीखे दिग्गज मौजूद थे। उपचुनाव का फीडबैक लिया गया और संघ कार्यकर्ताओं की सक्रियता का भरोसा दिलाया गया। इसके बाद संघ के कार्यकर्ता टोली प्लान के तहत लोगों से मुखातिब हुए। वोटरों को बीजेपी के पक्ष मे लामबंद करने की मुहिम छेड़ दी। जिसका फायदा जमीन पर नजर आया। कटेहरी में 33 साल और कुंदरकी में 31 साल बाद कमल खिला।
सपा की पीडीए की काट के साथ ही बीजेपी सहयोगी दलों को जोड़े रखने में भी कामयाब रही
सपा के पीडीए यानी पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक फार्मूले की काट के लिए बीजेपी ने तैयार किया पिछड़ा-दलित-अगड़ा का पीडीए। चूंकि सपा ने सवर्ण वर्ग से पूरी तरह दूरी बनाकर ओबीसी और दलितों के साथ मुस्लिम वर्ग को ही तवज्जो दिया पर बीजेपी ने पिछड़े वर्गों और दलितों के साथ ही अगड़ी जातियों को भी साथ जोड़ने की कामयाब कोशिश को अंजाम दिया। सपा जहां अपनी सहयोगी कांग्रेस को साथ नहीं जोड़ सकी वहीं बीजेपी ने एनडीए के सहयोगी दलों को पूरी तरह से एकजुट रखा। अपना दल (एस), सुभासपा और निषाद पार्टी को भी साथ जोड़े रखा। पार्टी के खाते में कोई सीट न आने के बावजूद निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद खुद बीजेपी के प्रचार में जुटे नजर आए। सहयोगी रालोद को तो मीरापुर सीट ही दे दी जिस पर चुनाव लड़ी मिथलेश पाल ने जीत भी दर्ज कर ली।
पेपर लीक और रोजगार के मुद्दे पर हुई गलतियों को भी सुधारा गया
यूपी बीजेपी की लोकसभा चुनाव में मिली हार संबंधी रिपोर्ट में पेपर लीक मुद्दे को भी हार की वजहों में शामिल किया गया। इस रिपोर्ट में कहा गया कि बीते तीन वर्षों में हुए 15 पेपर लीक मामलों से विपक्ष को घेरने का मौका मिला है। रिपोर्ट के मुताबिक ये भ्रामक प्रचार मजबूत हुआ है कि बीजेपी आरक्षण को रोककर सरकारी नौकरियों को अनुबंधित कर्मचारियों द्वारा भरना चाहती है। राहुल गांधी ने तो हर चुनावी सभा में इस मुद्दे को तूल दिया था। जिससे युवाओं के बड़े वर्ग का बीजेपी से मोहभंग हुआ। पर इस बार योगी सरकार ने बेहद सतर्कता के साथ कदम बढ़ाए। तकनीक और मैनपावर की फुलप्रूफ योजना को अमल में लाने की वजह से 32 लाख अभ्यर्थियों वाली सिपाही भर्ती परीक्षा में कोई सेंधमारी नहीं हो सकी। प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक के मामले को लेकर भी योगी सरकार ने सख्ती बरती। साल्वर गैंगों के खिलाफ सख्त एक्शन लिया तो पेपर लीक रोकने से संबंधित कानून में संशोधन के लिए विधेयक पारित किया। हाल ही में यूपीपीएससी परीक्षाओं में नॉर्मलाइजेशन और तीन शिफ्टों में परीक्षाओं का विरोध हुआ तो युवाओं की मांग मान ली सरकार ने। इससे युवाओं में बीजेपी के प्रति सकारात्मक भाव उपजाने में मदद मिली।
सीएम योगी की रणनीति कारगर रही और अथक मेहनत रंग लाई
उपचुनाव में बीजेपी की जीत की तमाम वजहों में सर्वाधिक अहम वजह रही सीएम योगी की कार्ययोजना और उसे जमीन पर उतारने के लिए की गई मशक्कत। सीएम योगी और उनकी टीम ने बीजेपी और रालोद प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए दिन-रात एक कर दिए। मंत्रियों-विधायकों की फौज जमीन पर उतार दी गई। चुनाव के पांच दिन पहले उपचुनाव वाली सीटों पर सीएम योगी ने पांच दिन में 15 सभाएं और रोड शो किए। फूलपुर, मझवां, खैर कटेहरी मे दो-दो रैलियां कीं। गाजियाबाद में एक रैली और एक रोड शो किया। कुंदरकी व मीरापुर में रैली की। हर विधानसभा सीट पर पहुंचकर रैलियों के साथ ही कार्यकर्ताओं से संवाद किया। लगातार समीक्षा बैठक करके फीडबैक लेकर जरूरी सुधार करते रहे। 'कटोगे तो बंटोगे' नारे के जरिए सीएम योगी ने हिंदुत्व फार्मूले को धार दिया। सीएम योगी की ये कोशिश बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने में निर्णायक साबित हुई।
जानकार मानते हैं कि लोकसभा चुनाव के निराशाजनक प्रदर्शन से हताश कार्यकर्ताओं में उपचुनाव के नतीजों ने नया जोश भर दिया है। साल 2027 के विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल माने जाने वाले उपचुनाव में फतेह पाकर बनाकर बीजेपी ने मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली है। जातीय समीकरणों को साधने के साथ ही विकास-सुशासन का जिक्र करके और हिंदुत्व मुद्दे को धार देकर बीजेपी ने संघ का साथ और आशीर्वाद हासिल किया। नतीजा ये रहा कि कुंदरकी और कटेहरी सरीखी मुश्किल सीटों पर परचम फहराते हुए उपचुनाव में जीत की इबारत लिख दी।