श्रीनगर में सहस्र चण्डी महायज्ञ क्यों?

By  Md Saif March 2nd 2025 11:39 AM -- Updated: March 2nd 2025 11:40 AM

ब्यूरो: कश्मीर भारत माता के मस्तक का मुकुट मणि, महर्षि कश्यप की पावन तपोभूमि। जहां स्वाहा और स्वधा के स्तर सबसे पहले गुंजित हुए। कश्मीर जहां ज्ञान विज्ञान का अनूठा केन्द्र शारदा पीठ नाम का विश्वविद्यालय था। काशी की ज्ञान परंपरा जिसको नमन करती थी। आज भी काशी में जब किसी स्नातक का दीक्षांत समारोह होता है तो कहा जाता है कि पांच पग कश्मीर की ओर चलिए। शारदा पीठ में ही शारदा लिपि विकसित हुई।   कश्मीर का श्रीनगर जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने श्री यन्त्र के ऊपर की थी। आज भी आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित सनातन संस्कृति का प्रथम शंकराचार्य मठ जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।  

  

कुछ असामान्य राजनीतिक भूलों के कारण, कश्मीर घाटी लगभग सनातन संस्कृति से शून्य हो गई। ज्ञान विज्ञान के केन्द्र नष्ट कर दिए गए। शारदा लिपि नष्ट कर दी गई। अनेक ऋषि-मुनियों की तपोस्थली जहां भगवती श्रुति की पावन ऋचाएं गूंजती थीं, उजाड़ दी गई। कल्हण की राजतरंगिणी और कथा सरित्सागर, सुमेरु पर्वत तक, जिनका साम्राज्य फैला था उन महान सम्राट ललितादित्य का कोई नामलेवा वहां नहीं बचा।  

  

2019 में हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के सत्संकल्प से अराजकता और हिंसा का नंगा नाच समाप्त हुआ। देश के कोने-कोने से आए हमारे हजारों सैनिक बंधुओं और अनेकानेक सामान्य जनों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर, राष्ट्र को एक और विखंडन से बचा लिया।  

न्याय और विधि का स्थापन सरकार का कार्य है परंतु धर्म, संस्कृति और ज्ञान विज्ञान के अवरुद्ध प्रवाह को साफ कर प्रवाहवान बनाना साधु संतों और समाज के मनीषियों का दायित्व है। सनातन संस्कृति का प्रवाह अवरुद्ध ही तब होता है जब साधु संत और मनीषी अपने को निष्क्रिय कर लेते हैं।  

  

कश्मीर में श्री मनोज सिन्हा के उपराज्यपाल बनने के बाद, कश्मीर घाटी में आशातीत परिवर्तन आ रहा है। शंकराचार्य मठ, ज्येष्ठा देवी मंदिर परिसर, क्षीर भवानी मंदिर जैसे अनेक सनातन श्रद्धा केन्द्रों का संरक्षण और जीर्णोद्धार उनके नेतृत्व में सरकार ने किया है।  अब साधु संतों का दायित्व है कि संस्कृति के अवरुद्ध प्रवाह के कचरे को साफ कर पुनः गति मान करने में अपनी भूमिका का निर्वाह करें।  

इसी परिप्रेक्ष्य में एक शताब्दी से भी अधिक अंतराल के पश्चात श्रीनगर के ज्येष्ठा देवी मंदिर परिसर में विराट सहस्र चण्डी महायज्ञ का आयोजन वासंतिक नवरात्रि के पावन अवसर पर 30 मार्च 2025 से 6 अप्रैल 2025 तक किया जाना है। आयोजन के लिए आवश्यक राजकीय स्वीकृति, उपराज्यपाल महोदय ने प्रदान कर दी है। महायज्ञ में देशभर के अनेक भागों के विद्वान, ब्राह्मण, चण्डी पाठ और नित्य आहुतियां देकर पराम्बा भगवती को प्रसन्न करेंगे। मंदिर परिसर में 5000 वर्ष प्राचीन शिवलिंग, जो आदि शंकराचार्य द्वारा पूजित है। महायज्ञ पर्यंत भगवान आषुतोष की प्रसन्नता के लिए भगवान शिव की रात्रिकालीन चार प्रहल की पूजा, वैदिक ब्राह्मणों द्वारा पूर्ण वैदिक विधि विधान से सम्पन्न होगी। यह महायज्ञ उन असंख्य सैन्य बंधुओं और सामान्य जनों के प्रति है जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान देकर राष्ट्र को एक और विखंडन से बचाया है, हमारी ओर से एक विनम्र श्रद्धांजलि है। संस्कृति के अवरुद्ध प्रवाह को साफ करने के लिए हम पहला पग उठा रहे हैं।

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