UP Lok Sabha Election 2024: जंगे आजादी में 81 दिनों तक आजाद रहा आजमगढ़, शुरुआत से ही इस सीट पर कांग्रेस हुई कमजोर

By  Rahul Rana May 24th 2024 03:40 PM

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे आजमगढ़ संसदीय सीट की। तमसा या टोंस नदी के तट पर बसा है ये जिला। ये जिला पूर्व में मऊ, उत्तर में गोरखपुर, दक्षिण-पूर्व में गाजीपुर, दक्षिण-पश्चिम में जौनपुर, पश्चिम में सुल्तानपुर और उत्तर पश्चिमें अंबेडकरनगर से घिरा हुआ है। आजमगढ़ जिला मुख्यालय के साथ ही मण्डल का मुख्यालय भी है। इस मंडल के तहत शामिल तीन जिले हैं। आजमगढ़, मऊ और बलिया। इस जिले में दो लोकसभा क्षेत्र हैं--एक आजमगढ़ और दूसरा लालगंज।

इस क्षेत्र से जुड़ी पौराणिक व धार्मिक मान्यताएं

प्राचीन काल में आजमगढ़ कौशल साम्राज्य का हिस्सा था, बाद में यह मल्ल शासकों के आधीन आ गया। इस क्षेत्र को ऋषि दुर्वासा की तपोभूमि के रूप में भी जाना जाता है। यहां तमसा और कुंवर नदी के संगम पर दत्तात्रेय का आश्रम है।  चंद्रमा ऋषि,दत्तात्रेय और दुर्वासा ऋषि यह तीनों लोग सती अनुसूया के पुत्र माने जाते हैं। मुहम्मदपुर स्थित अविन्कापुरी के बारे में मान्यता है कि यहां राजा जनमेजय ने यहीं सर्प यज्ञ किया था। यहां के निजामाबाद का चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा पौराणिक के साथ-साथ पुरातात्विक महत्व का भी है। गुरुनानक देव ने वाराणसी यात्रा के दौरान यहीं पर विश्राम किया और शिष्यों को दीक्षा दी।

मध्यकाल से आधुनिक काल का सफर

मौजूदा आजमगढ़ शहर की स्थापना शाहजहां के काल में 1665 में विक्रमाजीत के बेटे आजम ने की थी। गौमत राजपूत के वंशज विक्रमाजीत की एक मुस्लिम पत्नी थी, जिससे उसके दो बेटे आज़म और अज़मत हुए। आजम ने इस शहर का नामकरण अपने नाम पर आजमगढ़ किया। उस दौरान नदी किनारे एक किला भी बनवाया गया। पर बाद में आजम ने विद्रोह कर दिया जिसके बाद मुगल सेना से बचकर भागने के दौरान वह सरयू नदी में डूब गया। बाद में इस क्षेत्र पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया।

जंगे आजादी में 81 दिनों तक आजाद रहा आजमगढ़

इस ऐतिहासिक शहर के क्रांतिवीरों ने जंगे आजादी के दौरान जबरदस्त शौर्य का  परिचय दिया। 3 तीन जून 1857 को आजमगढ़ को अंग्रेजों से मुक्त कराया गया ये जिल  25 जून 1857 तक आजाद रहा।  इसके बाद फिर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया। आजादी के लड़ाकों ने 18 जुलाई 1857 से 26 अगस्त 1857 तक दूसरी बार आजमगढ़ को आजाद करा लिया।  इसके बाद अंग्रेज फि‍र कब्जा करने में सफल हो गए। तीसरी बार 25 मार्च 1858 से 15 अप्रैल 1858 तक इसे अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाई गई। इस तरह से एक साल की  अवधि में आजमगढ़ जिला तीन अलग अलग बार में कुल 81 दिनों तक अंग्रेजी हुकूमत से आजाद रहा। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अतरौलिया के रामचरित्र सिंह व उनके नाबालिग बेटे सत्य चरण सिंह ने मिलकर अंग्रेजों से संघर्ष किया।

इस क्षेत्र के मुख्य आस्था स्थल और चर्चित हस्तियां

यहां का भंवरनाथ मंदिर और पूर्वी माता मंदिर अति प्रसिद्ध हैं। पल्हना का  पाल्हमेश्वरी धाम पूर्वांचल का महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है। राजा हरिबन द्वारा निर्मित कराया गया मेहनगर का किला दर्शनीय स्थल है। किले में मदिलाह सरोवर और एक स्मारक भी है। इस जिले की प्रमुख हस्तियों का जिक्र करें तो इस फेहरिस्त में अल्लामा शिबली नोमानी,  महापंडित राहुल सांकृत्यायन, प्रसिद्ध हिंदी कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध और मशहूर शायर कैफी आजमी अव्वल पायदान पर शामिल हैं। एक अन्य नकारात्मक वजह से भी ये क्षेत्र सुर्खियों में रह चुका है। अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम यहीं के सलेमपुर इलाके का निवासी था।

उद्योग धंधे और विकास का आयाम

आजमगढ़ जिला वस्त्र उद्योग से बहुत पुराने समय से जुड़ा हुआ है।  रेशमी साड़ी निर्माण बड़े पैमाने पर होता है। मुबारकपुर में बनीं बनारसी साड़ियों का निर्यात दुनिया के तमाम मुल्कों में होता है। निजामाबाद में दुनिया भर मे मशहूर ब्लैक पॉटरी यानि काली मिट्टी से बने बर्तनो व गुलदस्तों का निर्माण किया जाता है। सजावट व दैनिक उपयोग के लिए इन उत्पादों की जबरदस्त मांग रहती है। इन्वेस्टर्स समिट के दौरान इस जिले में 88 उद्यमियों ने 950 करोड़ रूपए का निवेश किया है। उम्मीद है कि इससे यहां के विकास की रफ्तार को पंख मिलेंगे।

चुनावी इतिहास के आईने में आजमगढ़ सीट

साल 1952 में यहां से कांग्रेस के अलगु राय शास्त्री पहले सांसद चुने गए। 1957 में कांग्रेस के कालिका सिंह सांसद बने। 1962 में जनता ने कांग्रेस के रामहरख यादव को समर्थन देकर जिताया। तो 1967 और 1971 में चन्द्रजीत यादव यहां से जीते। साल  1977 में जनता पार्टी के रामनरेश यादव यहां से सांसद चुने गए। पर उन्हें यूपी का मुख्यमंत्री बना दिया गया जिसके बाद 1978 में हुए उपचुनाव में आजमगढ़ से कांग्रेस की मोहसिना किदवई चुनाव जीत गईं। 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) से चंद्रजीत यादव को जनता ने मौका दिया। 1984 में कांग्रेस से संतोष सिंह जीते।

नब्बे के दशक की शुरुआत से ही इस सीट पर कांग्रेस हुई कमजोर

साल 1989 में रामकृष्ण यादव ने याहां से बीएसपी का खाता खोला। 1991 में जनता दल से चंद्रजीत यादव चुनाव जीते और चौथी बार सांसद बने। 1996 में सपा से बाहुबली रमाकांत यादव सांसद चुने गए। 1998 में बीएसपी से अकबर अहमद डंपी को जीतने का मौका मिला। 1999 में रमाकांत ने फिर से इस सीट पर सपा प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की। 2004 में भी रमाकांत यादव चुनाव जीते पर इस बार वो सपा की साइकिल से उतरकर बीएसपी के हाथी पर सवार होकर चुनाव लड़े थे, पर फिर सपा के साथ चले गए। दलबदल करने पर उनकी  संसद सदस्यता खत्म कर दी गई। जिसके बाद यहां 2008 में हुए उपचुनाव में बीएसपी से  अकबर अहमद डंपी को जीतने का मौका मिल गया।

बीजेपी का खाता तो खुला पर सपा की गढ़ ही बनी रही  सीट

साल 2009 में रमाकांत यादव फिर चुनाव जीते पर इस बार फिर पाला बदलकर बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे। 2014 में इस सीट पर सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव सांसद चुने गए। उन्होंने बीजेपी के रमाकांत यादव को पटखनी दी थी। 2019 में अखिलेश यादव ने 6,21,578 वोट हासिल करके भोजपुरी स्टार और बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को 2,59,874 वोटों के मार्जिन से शिकस्त दे दी। पर साल 2022 के विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद अखिलेश यादव ने संसदीय सीट से इस्तीफा दे दिया। यहां हुए उपचुनाव में दिनेश लाल यादव निरहुआ ने अखिलेश यादव के चचेरे भाई और सपा उम्मीदवार धर्मेन्द्र यादव को कड़े संघर्ष के बाद 8,679 वोटों से हरा दिया। तब बीएसपी के गुड्डू जमाली को 2,66,210 वोट मिले थे। धर्मेन्द्र यादव की हार की बड़ी वजह गुड्डू जमाली ही थे। फिलहाल जमाली समाजवादी पार्टी में शामिल होकर एमएलसी बन चुके हैं।

वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना

इस संसदीय सीट पर 18, 68,165 वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक 24.6 फीसदी यादव हैं। दलित 20.4 फीसदी और मुस्लिम 12.4 फीसदी हैं।  राजपूत 10.6 फीसदी, कुर्मी 6.6 फीसदी, ब्राह्मण 6 फीसदी हैं। भूमिहार 5.4 फीसदी, राजभर-नोनिया 3.8 फीसदी और मल्लाह-निषाद 3.4 फीसदी हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में सपा का क्लीन स्वीप

आजमगढ़ संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं, साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी ने क्लीन स्वीप किया था। बीजेपी का खाता तक नहीं खुल सका। गोपालपुर से नफीस अहमद, सगड़ी से हृदय नारायण पटेल, मुबारकपुर से अखिलेश यादव, आजमगढ़ सदर से दुर्गा प्रसाद यादव और मेहनगर सुरक्षित सीट से पूजा सरोज विधायक हैं।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर डटे योद्धा

मौजूदा चुनावी जंग के लिए बीजेपी ने फिर से दिनेश लाल यादव निरहुआ पर ही दांव लगाया है। सपा गठबंधन से धर्मेन्द्र यादव मुकाबले में हैं जबकि बीएसपी से मशहूद अहमद मौजूद हैं। बीएसपी ने पहले यहां से भीम राजभर को उतारा था पर बाद में उन्हें सलेमपुर सीट पर भेज दिया यहां से सबीहा अंसारी के नाम का ऐलान किया पर  बाद में बदलकर सबीहा के पति मशहूद को टिकट दे दिया। मशहूद कांग्रेस से जुड़े रहे थे। बहरहाल,इस सीट पर निरहुआ स्टारडम के ग्लैमर और मोदी-योगी के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं तो धर्मेन्द्र यादव पुरानी हार की टीस से उबरने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। बीएसपी प्रत्याशी दलित-मुस्लिम समीकरणों के जरिए चुनावी बढ़त हासिल करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। आजमगढ़ को अपना गढ़ बनाने के लिए मुकाबला कड़ा है और त्रिकोणीय बन गया है। 

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