UP Lok Sabha Election 2024: प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र से जुड़ी चर्चित हस्तियां, बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

By  Rahul Rana May 24th 2024 02:09 PM

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान मे आज चर्चा करेंगे प्रतापगढ़ संसदीय सीट की। गंगा और सई नदी के किनारे बसा हुआ है प्रतापगढ़ जिला। उत्तर मे सुल्तानपुर, दक्षिण मे प्रयागराज, पूर्व में जौनपुर और पश्चिम में अमेठी जिले से घिरा हुआ है। प्रयागराज मंडल का प्रशासनिक हिस्सा है यूपी का ये 72 वां जिला, प्रतापगढ़ में ही जिला मुख्यालय भी है। अंग्रेजी शासनकाल में सन् 1858 में इस क्षेत्र का पुनर्गठन कर जिला मुख्यालय बेल्हा (प्रतापगढ़) बनाया गया।

पौराणिक मान्यताएं और ऐतिहासिक गाथाएं

इस जिले को बेला, बेल्हा, परतापगढ़, या प्रताबगढ़ भी कहा जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि इसे बेल्हा पासी नामक राजा ने बसाया था। यह शहर आध्यात्मिक संत स्वामी करपात्री महाराज  की जन्म स्थली और महात्मा बुद्ध की तपोस्थली के रूप में जाना जाता है। भगवान राम की वनवास यात्रा में यूपी के जिन पांच अहम नदियों का वर्णन रामचरितमानस में किया गया है। उनमें से एक प्रतापगढ़ की सई नदी भी है।

प्रतापगढ़ संसदीय क्षेत्र से जुड़ी चर्चित हस्तियां

1628-1682 ईस्वी के दरमियान प्रतापगढ़ के राजा प्रताप सिंह ने अरोर के पुराने शहर के पास गढ़ (किला) बनवाया। जिसके बाद इसके आसपास का क्षेत्र प्रतापगढ़ के नाम से जाना गया। यहां की पट्टी विधानसभा से ही प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी।  रीतिकाल के महान कवि आचार्य भिखारी दास और हिंदी के प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन की जन्मस्थली के तौर पर भी ये विख्यात है।

इस क्षेत्र के आस्था के प्रमुख केन्द्र

यहां बेलादेवी का मंदिर, गौरीशंकर धाम, भक्ति धाम, घूमेश्वर नाथ धाम, शनिदेव मंदिर अति प्रसिद्ध हैं। भटारक सीमा पर स्थित श्रीमंधारस्वामी मंदिर, चंद्रिका मंदिर और केशवराज जी मंदिर में बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। निर्भय पट्टी का स्वामीनारायण मंदिर, सई नदी के तट पर स्थित बेलखरनाथ शिव मंदिर में हर साल भव्य आयोजन होते हैं। प्रतापगढ़ जिले में पट्टी तहसील के सरायमहेश गांव में एक अनूठा किसान देवता मंदिर भी है। जिसकी खासियत है कि यह किसी एक धर्म या संप्रदाय का मंदिर नहीं बल्कि किसानों को समर्पित है।

उद्योग धंधे और विकास से जुड़े आयाम

प्रतापगढ़ आंवले की खेती के लिए अति प्रसिद्ध है। यहां आंवले से मुरब्बा, अचार, जैली, लड्डू, आंवला पाउडर व जूस बड़े पैमाने पर तैयार किया जाता है। इन उत्पादों को यूपी के विभिन्न हिस्सों के साथ ही दूसरे राज्यों में भी भेजा जाता है। कई देशों में भी इसका निर्यात किया जाता है। इस जिले में वर्तमान में कुल 6510 रजिस्टर्ड औद्योगिक इकाइयां हैं। यूपी में हुए इन्वेस्टर्स समिट के बाद यहां 452.58 करोड़ की लागत से 63 नई औद्योगिक इकाइयां लगाए जाने की योजना पर अमल किया जा रहा है। जिससे यहां तरक्की की नई राहें खुल सकेंगी।

चुनावी इतिहास के आईने में प्रतापगढ़ संसदीय सीट

अब तक हुए यहां के 17 चुनावों में दस बार कांग्रेस फतेह हासिल कर चुकी है। साल  1952 में यहां से पहले सांसद के तौर पर चुने गए कांग्रेस के मुनीश्वर दत्त उपाध्याय। 1957 में भी वही चुनाव जीते। 1962 में इस सीट पर जनसंघ के अजीत प्रताप सिंह को जीत हासिल हुई। पर 1967 में कांग्रेस की फिर से वापसी हुई और आरडी सिंह चुनाव जीते। 1971 में कांग्रेस के राजा दिनेश सिंह सांसद बने। इमरजेंसी के बाद हुए 1977 के चुनाव में यहां जनता पार्टी के रुपनाथ सिंह यादव ने जीत दर्ज की। 1980 में कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर अजीत प्रताप सिंह विजयी हुए। 1984 और 1989 में यहां से राजा दिनेश सिंह लगातार दो बार चुनाव जीते। 1991 में जनता दल  के अभय प्रताप सिंह को कामयाबी मिली। तो

कालाकांकर राजघराने की राजकुमारी रत्ना सिंह तीन बार सांसद बनीं

साल 1996  में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर राजकुमारी रत्ना सिंह सांसद यहां से पहली महिला सांसद चुनी गईं। 1998 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी का खाता खोला रामविलास वेदांती ने। हालांकि 1999 में कांग्रेस की राजकुमारी रत्ना सिंह दूसरी बार सांसद बनने में कामयाब हो गईं। साल  2004 में यहां से अक्षय प्रताप सिंह ने चुनाव जीतकर समाजवादी पार्टी का  खाता खोला। वे कुंडा राजघराने के रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया के चचेरे भाई हैं।  2009 में राजकुमारी रत्ना सिंह की जीत के साथ ही ये सीट फिर से कांग्रेस के पास  आ गई।

बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

साल  2014 की मोदी लहर में ये सीट बीजेपी ने अपने सहयोगी अपना दल को दे दी। यहां से अपना दल के कुंवर हरिवंश सिंह ने बीएसपी के नसीमुद्दीन को करारी मात दे दी। तीन बार की सांसद रहीं राजकुमारी रत्ना सिंह तीसरे स्थान पर रहीं। साल 2019 में यहां से बीजेपी की ओर से संगम लाल गुप्ता चुनाव जीते। उन्होंने 436,291 वोट पाकर सपा-बीएसपी गठबंधन से चुनाव लड़े बीएसपी के अशोक  त्रिपाठी को 117,752 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व सांसद राजकुमारी रत्ना सिंह को महज 77,096 वोट ही मिल सके।

वोटरों की तादाद और  सामाजिक ताना बाना

इस संसदीय सीट पर  18, 33, 312 वोटर हैं। जिनमें से सर्वाधिक 17.35 फीसदी दलित हैं। इसके बाद बड़ी आबादी ब्राह्मण वोटरों की है जो कि 16 फीसदी है। मुस्लिम 15 फीसदी, पटेल 13 फीसदी और यादव वोटर 11 फीसदी हैं। जबकि  क्षत्रिय और वैश्य बिरादरियां 8-8 फीसदी के करीब हैं। कुर्मी वोटर इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र की सीटों के नतीजे

प्रतापगढ़ संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें हैं--विश्वनाथगंज, रामपुर खास, प्रतापगढ़, पट्टी और रानीगंज। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में एक सीट कांग्रेस को मिली तो 2 सीट सपा और 2 सीट बीजेपी गठबंधन के हिस्से में आईं। रामपुर खास से कांग्रेस की आराधना मिश्रा मोना चुनाव जीतीं। विश्वनाथगंज से अपना दल के जीत लाल पटेल, प्रतापगढ़ से बीजेपी के राजेंद्र मौर्य, पट्टी से सपा के रामसिंह पटेल और रानीगंज से सपा के राकेश कुमार वर्मा विधायक हैं।

जिले की सियासत पर राजघरानों का वर्चस्व

इस संसदीय सीट पर राजघरानो का खासा वर्चस्व रहा है। यहां हुए सत्रह चुनावों में से दस बार राजघरानों के सदस्य ही चुनाव जीते। यहां सोमवंशी राजपूत राजा प्रताप बहादुर सिंह का घराना है तो कालाकांकर में राजा दिनेश सिंह का घराना है जहां की राजकुमारी रत्ना सिंह क्षेत्र की दिग्गज शख्सियत हैं। तो एक और महत्वपूर्ण राजघराना है, विश्वसेन राजपूत राय बजरंग बहादुर सिंह का। जिनके वंशज भदरी राजघराने के रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया कुंडा सीट से विधायक हैं। इस बार राजघरानों का कोई सदस्य चुनाव भले न लड़ रहा हो पर चुनावी जंग में इनका जिक्र जरूर हो रहा है। बीजेपी के सिटिंग सांसद संगमलाल गुप्ता बीते दिनों पट्टी विधानसभा में आयोजित एक रैली में अनुप्रिया पटेल की मौजूदगी में मंच से रोते हुए कहते दिखे कि "क्या राजाओं के गढ़ में केवल क्षत्रिय ही सांसद बन सकते हैं. क्या एक बनिया एक तेली यहां से सांसद नहीं बन सकता?" वहीं, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कुंडा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, ‘अब राजा किसी रानी के पेट से पैदा नहीं होता हैं बल्कि ईवीएम से पैदा होता है।” माना जा रहा है कि इन चुनावी बयानों--आरोपों प्रत्यारोपों  का असर यहां के चुनावी समीकरणों पर भी पड़ रहा है। किसी का नफा होगा तो किसका नुकसान ये जनता की अदालत में तय होगा।

मौजूदा चुनावी बिसात पर संघर्षरत हैं योद्धा

इस बार के चुनाव में बीजेपी ने सिटिंग सांसद संगम लाल गुप्ता पर ही दांव लगाया है तो समाजवादी पार्टी से डॉ एसपी सिंह  पटेल चुनाव मैदान में हैं जबकि बीएसपी ने ब्राह्मण कार्ड चलते हुए प्रथमेश मिश्रा को प्रत्याशी बनाया है। प्रथमेश मिश्रा के पिता शिव प्रकाश मिश्रा उर्फ सेनानी बीजेपी के नेता है. वे कौशांबी लोकसभा सीट के प्रभारी भी हैं। शिव प्रकाश और उनकी पत्नी सिंधुजा मिश्रा राजा भैया के खिलाफ विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। प्रथमेश सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हैं। इस सीट पर ब्राह्मण दलित समीकरणों के जरिए अपना पलड़ा मजबूत करने की कोशिश करते नजर आए हैं। डॉ पटेल स्वाजतीय कुर्मी वोटरों के साथ ही मुस्लिम और यादव वोटरों का समर्थन हासिल करके बड़ी टक्कर देने की कोशिश करते दिखे। फिलहाल यहां मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।

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