UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में महाराजगंज संसदीय सीट, बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का वर्चस्व हुआ कायम

By  Rahul Rana May 27th 2024 03:01 PM -- Updated: May 27th 2024 06:27 PM

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे महाराजगंज संसदीय सीट की। भारत-नेपाल सीमा से सटा हुआ ये जिला प्रशासनिक तौर से गोरखपुर मंडल का हिस्सा है। इसके उत्तर में नेपाल राष्ट्र है तो दक्षिण में गोरखपुर, पूर्व में कुशीनगर तथा बिहार का पश्चिम चंपारण जिला और पश्चिम में सिद्धार्थनगर जिला स्थित है। इस जिले में नारायणी (बड़ी गंडक),  छोटी गंडक, रोहिन, राप्ती, घोंघी और डंडा सरीखी नदियां प्रवाहित होती हैं। यहां बघेला नाला, सोनिया नाला, खनुआ नाला और महवा नाला भी बहते हैं। यहां के प्रसिद्ध आस्था स्थलों में शामिल हैं, इटहिया शिव मंदिर, महेशियन का विष्णु मंदिर, बोकरा देवी मंदिर, सोना देवी मंदिर, अदरौना देवी का मंदिर, बनर सिंहागढ़ और सोनाड़ी देवी। यहां का सोहागी बरवा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केंद्र है।

पौराणिक मान्यताएं और ऐतिहासिक सफर

इस क्षेत्र का वर्णन पौराणिक गाथाओं में भी हुआ है। यहां के अरदौना देवी मंदिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान स्वयं अर्जुन ने की थी। जनश्रुति के अनुसार देवी ने पूजा से प्रसन्न होकर अर्जुन को अमोघ शक्तियां प्रदान की थी। मनोहारी वनों, वनस्पतियों और धान की खेती के लिए विख्यात इस क्षेत्र में कई सिद्ध साधु-संतों की समाधियाँ हैं। जिनमें बाबा वंशीधर अति प्रसिद्ध योगी माने जाते हैं। प्राचीन काल में इस क्षेत्र को करपथ  कहा जाता था। जो कोशल राज्य का एक अंग हुआ करता था। यहां साकेत यानि अयोध्या के इक्ष्वाकु सम्राटों का आधिपत्य हुआ करता था। कालांतर में 18वीं शताब्दी से ये क्षेत्र अवध के नवाबी शासन के तहत गोरखपुर सरकार के अधीन आ गया। 

अंग्रेजी हुकूमत से यहां के  सेनानियों ने जबरदस्त संघर्ष किया

10 नवम्बर 1801 को अवध के नवाब ने ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्ज से मुक्ति पाने के लिए गोरखपुर सहित इस क्षेत्र को भी अंग्रेजों को सौंप दिया। बाद में यहां गोरखों ने गोरिल्ला शैली में धावा बोलना शुरू कर दिया। फिर सन 1815 में अंग्रेजों व गोरखों में सुगौली संधि हुई। जिसके बाद नेपाल तराई क्षेत्र पर अपना अधिकार छोड़ने को विवश हुआ। 1857 की जंगे आजादी में यहां के निचलौल के राजा रण्डुल सेन ने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलनकारियों का नेतृत्व किया। हालांकि उनका आंदोलन बुरी तरह से कुचल दिया गया। यहां पर पहुंच कर महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू ने स्वाधीनता संग्राम के लिए लोगों को प्रेरित किया। गांधी से प्रभावित होकर यहां प्रवक्ता की नौकरी छोड़कर संघर्ष की अलख जगाई शिब्बन लाल सक्सेना ने। जिन्होंने गोलियां झेली जेल गए पर आजादी पाने की लड़ाई जारी रखी। आजाद भारत में 2 अक्टूबर 1989 को गोरखपुर जिले से विभाजित कर महाराजगंज को एक अलग जिले के तौर पर स्थापित किया गया। 

उद्योग धंधे-विकास का आयाम

इस जिले का कोना कोना पिछड़ेपन से ढका हुआ है। महराजगंज जिले में चार में से दो चीनी मिलें बंद हैं, घुघली चीनी मिल फरेंदा चीनी मिल बंद होने से लगभग हजारों गन्ना किसान तबाह हो गए। यहां फरेन्दा व निचलौल मिनी स्टेडियम की मांग अभी भी लंबित है। जिला मुख्यालय को सर्वे के बाद भी रेल मार्ग से जोड़ा नहीं जा सका है। वैसे, वन से घिरे होने के कारण ये इलाका फर्नीचर उत्पाद के लिए उपयुक्त है। साल के पेड़ से बने कुर्सी, दरवाज़ा, बिस्तर, सोफा, मेज़ आदि को यहां बड़े पैमाने पर कुशल कारीगरों द्वारा तैयार किया जाता है। ये काम यहां के ओडीओपी का हिस्सा है। इन्वेस्टर्स समिट के दौरान महाराजगंज जिले में 112 निवेशकों ने 2300 करोड़ के निवेश का अनुबंध किया है, झुलनीपुर में बन रहे औद्योगिक अस्थान में जल्द ही उद्योग रफ्तार पकड़ेंगे। इनमें फोर्टिफाइड चावल, प्लास्टिक कुर्सी, एल्युमिनियम रिंग समेत कई उद्योग विकसित किए जाने की संभावना बढ़ी है।

चुनावी इतिहास के आईने में महाराजगंज संसदीय सीट

साल 1989 तक महाराजगंज गोरखपुर जिले का ही अंग था। साल 1952 और 1957 में इस संसदीय सीट से प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद शिब्बन लाल सक्सेना सरीखी हस्ती ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता। ये संविधान सभा के भी सदस्य थे। 1962 और 1967  महादेव प्रसाद कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर सांसद चुने गए। 1971 का चुनाव फिर शिब्बन लाल सक्सेना ही बतौर निर्दलीय जीते। साल 1977 में वह जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर जीते। 1980 में कांग्रेस के अशफाक अहमद। 1984 कांग्रेस के जितेंद्र सिंह सांसद बने। साल 1989 में जनता के हर्षवर्धन ने यहां से चुनाव जीता।

नब्बे के दशक से इस सीट पर बीजेपी की पकड़ मजबूत होती गई

1991, 1996, 1998 में लगातार तीन चुनाव जीतकर बीजेपी के पंकज चौधरी ने  जीत की हैट्रिक रच दी। 1999 में सपा के अखिलेश सिंह ने चुनाव जीता लेकिन साल 2004 में बीजेपी के पंकज चौधरी ने फिर वापसी की। 2009 में यहां जीत की बाजी कांग्रेस के हर्षवर्धन के हाथ लगी। पर फिर पंकज चौधरी ने वापसी की।

बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का वर्चस्व हुआ कायम

साल 2014 में पंकज चौधरी के मुकाबले में बीएसपी के काशी नाथ शुक्ला, सपा के अखिलेश सिंह और कांग्रेस के हर्षवर्धन थे। पंकज चौधरी ने 4,71,542 वोट हासिल करके विजेता बने। बीएसपी के काशीनाथ शुक्ला को 2,40,458 वोटों से हरा दिया। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने पंकज चौधरी को मैदान में उतारा था। 726,349 वोट पाकर पंकज चौधरी ने सपा के अखिलेश सिंह को 3,40,424 वोटों के रिकॉर्ड मार्जिन से पराजित कर दिया। उस चुनाव में कांग्रेस से सुप्रिया श्रीनेत भी चुनाव लड़ी थीं पर उन्हें मात्र 72,516 वोट ही मिल सके थे।

वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण

इस सीट पर 19, 94,793 वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक 3.20 लाख ब्राह्मण हैं,  3 लाख दलित और 2.50 लाख कुर्मी हैं। 2.25  लाख निषाद व कश्यप। 2.15 लाख वैश्य, 2.05 लाख यादव हैं। इस सी पर 1.94 लाख मुस्लिम हैं। वहीं, 95 हजार पाल व गोंड, 95 हजार कायस्थ और 70 हजार क्षत्रिय वोटर हैं। कुर्मी वोटर इस सीट पर अहम किरदार निभाते आए हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

महाराजगंज संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभाएं शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां की तीन सीटों पर बीजेपी एक पर उसकी सहयोगी निषाद पार्टी जीती थी जबकि एक सीट कांग्रेस के खाते में दर्ज हुई थी। फरेंदा से कांग्रेस के वीरेन्द्र चौधरी, नौतनवा से निषाद पार्टी के ऋषि त्रिपाठी, सिसवा से बीजेपी के प्रेम सागर पटेल, महाराजगंज सुरक्षित सीट से बीजेपी के जयमंगल कनौजिया और पनियारा से बीजेपी के ज्ञानेंद्र सिंह विधायक हैं।

साल 2024 की सियासी बिसात पर तगड़े दांव

मौजूदा चुनावी जंग में बीजेपी ने फिर से सिटिंग सांसद पंकज चौधरी को मैदान में उतारा है। सपा-कांग्रेस गठबंधन से कांग्रेस के वीरेन्द्र चौधरी है जबकि बीएसपी से मौसमे आलम हैं। इस सीट से छह बार सांसद रह चुके पंकज चौधरी ने अपनी राजनीतिक  पारी का आगाज गोरखपुर नगर निगम से किया था, डिप्टी मेयर बने थे। साल 1991 के बाद से छह बार सांसद बन चुके हैं, दो बार हारे भी हैं। मौजूदा वक्त में केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री हैं।  वीरेन्द्र चौधरी कांग्रेस के उन चेहरों में से हैं जो यूपी के मौजूदा विधायक हैं। वीरेन्द्र चौधरी फरेन्दा से कांग्रेस विधायक हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में महज 1097 वोटों से बीजेपी के बजरंग बहादुर सिंह को हराया था। वहीं, बीएसपी के मौसमे आलम कारोबारी हैं। 2022 में पनियारा से निर्दलीय के तौर पर लड़ना चाहते थे पर नामांकन ही खारिज हो गया। फिलहाल, इस संसदीय सीट पर दो चौधरियों के दरमियान कड़ी टक्कर नजर आ रही है। सियासी दलों के समीकरणों के केंद्र में जाति  ही है।

Related Post