UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में मिर्जापुर संसदीय सीट, 1996 में फूलन देवी चुनी गईं थी सांसद
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में चर्चा करेंगे मीरजापुर संसदीय सीट की। ये यूपी के दक्षिणी हिस्से का जिला है जो मिर्जापुर मंडल का हिस्सा है। यूपी का ये दूसरा सबसे बड़ा जिला है। मिर्जापुर ही इसका जिला मुख्यालय भी है। यह जिला उत्तर में संत रविदास नगर व वाराणसी जिले से, पूर्व में चंदौली जिले से, दक्षिण में सोनभद्र जिले से तथा उत्तर-पूर्व में इलाहाबाद जिले से घिरा हुआ है। भारत का अंतर्राष्ट्रीय मानक समय मिर्जापुर जिले के अमरावती चौराहा स्थान से लिया गया है। 4 मार्च 1989 को यहां के कुछ हिस्से अलग करके सोनभद्र जिले की स्थापना की गई थी।
प्राचीन काल में महत्वपूर्ण स्थल था विंध्य क्षेत्र
लोक कथाओं के अनुसार विंध्याचल, अरावली व नीलगिरी से घिरे क्षेत्र को विंध्य क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। कालांतर में विंध्य क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों का अलग अलग नामकरण हुआ। मांडा के नजदीक का क्षेत्र पम्पापुर। वर्तमान का अमरावती क्षेत्र गिरिजापुर के नाम से तथा आसपास का क्षेत्र सप्त सागर के नाम से विख्यात हुआ। प्राचीन काल में इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रभाव था। यह भग गणतंत्र का हिस्सा हुआ करता था। मिर्ज़ापुर गुलाबी पत्थरों (पिंक स्टोन) के लिये बहुत विख्यात रहा है, प्राचीन समय में इसी पत्थर का प्रयोग मौर्य वंश के राजा सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध स्तूप एवं अशोक स्तम्भ बनाने में किया गया था। पहले इसी क्षेत्र को गिरजापुर के नाम से भी जाना जाता था। ये नाम देवी पार्वती के नाम पर रखा गया था।
मिर्जापुर जिले की स्थापना की अंग्रेजों ने
कोलकाता से लेकर दिल्ली तक अपनी सत्ता कायम करने में जुटी ईस्ट इंडिया कंपनी को मध्य भारत में किसी महत्वपूर्ण स्थल की तलाश थी। ऐसे में विंध्याचल एवं गंगा के बीच का विंध्य क्षेत्र अंग्रेज अफसरों को पसंद आ गया। 1735 ईसवी में लार्ड मर्क्यूरियस वेलेस्ले नाम के एक अँगरेज़ अफसर ने इस क्षेत्र की स्थापना मिर्ज़ापुर नाम से की।
जिले के नाम से जुड़े कुछ रोचक पहलू
मिर्जापुर जिले में प्रयुक्त मिर्जा शब्द का का अर्थ है "राजाओ का क्षेत्र"। इस शब्द की व्युत्पत्ति पर्शियन शब्दों अमीर एवं ज़ाद को मिलाकर बनाए अमीरजादा शब्द से हुयी। इस जिले के नाम को लेकर कुछ ऊहापोह की स्थिति रही है। यूपी सरकार जहां मीरजापुर लिखती है, वहीं पर केंद्र सरकार मिर्जापुर के तौर पर इसे संबोधित करती है। वैसे इस शहर के नाम पर 'मिर्जापुर' नाम से एक वेब सीरीज भी बन चुकी है। जो खासी हिट रही थी।
मिर्जापुर के प्रमुख आस्था केंद्र व पर्यटन स्थल
मां विंध्याचल देवी का पौराणिक धाम अति प्रसिद्ध है....इसके साथ ही सीता कुण्ड, लाल भैरव मंदिर, तारकेश्वर महादेव, महा त्रिकोण मंदिर, सीता कुंड, लालभैरव मंदिर, गुरुद्वारा गुरु दा बाघ, देवरहा बाबा आश्रम, अड़गड़ानंद आश्रम, ख्वाजा इस्माइल चिश्ती का मकबरा आस्था के प्रमुख केन्द्र हैं। इसके साथ ही कुशियारा, सिरसी बांध, विंढम फाल, सिद्धनाथ की दरी जलप्रपात, खड़ंजा फाल जैसे प्रमुख जलप्रपात है। जहां बड़ी तादाद में सैलानी आते हैं। मोती तालाब और चुनार का किला अति प्रसिद्ध है। देवकीनंदन खत्री के उपन्यास चंद्रकांता में इसी चुनारगढ़ किले से जुड़ी कथाएं हैं।
विकास से जुड़े आयाम और उद्योग धंधे
मिर्ज़ापुर के हस्तनिर्मित कलात्मक कालीन व दरियों को देश-दुनिया में विशिष्ट स्थान प्राप्त है, जिनका बड़े पैमाने पर निर्यात किया जाता है। यहाँ निर्मित कालीनों में अनोखी ज्योमेट्रिकल डिजाइनों का उपयोग होता है। ये काम यहां के ओडीओपी (वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट) योजना के तहत शामिल है। मिर्जापुर पीतल उद्योग के लिए भी पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां बनने वाले पीतल के बर्तन की बड़ी मांग रहती है। इस जिले में चीनी मिट्टी से बने बर्तन भी काफी मशहूर है। हालिया हुए इन्वेस्टर्स समिट में यहां 90 उद्यमियों के द्वारा 5500 करोड़ के निवेश की रूपरेखा तय हुई है। सौर ऊर्जा, मेडिकल सेक्टर, पशुपालन और पर्यटन के क्षेत्र में निवेश हो रहा है। यहां डालमिया, जिंदल व आरएलजे सरीखी बड़ी कंपनियां भी निवेश कर रही हैं।
चुनावी इतिहास के आईने में मिर्जापुर संसदीय सीट
साल 1952 और 1957 में इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जॉन एन विल्सन ने जीत दर्ज की। 1962 में कांग्रेस के श्यामधर मिश्रा सांसद चुने गए। 1967 में भारतीय जनसंघ के वी नारायण सांसद बने। 1971 में कांग्रेस के अजीम इमाम जीते तो 1977 में भारतीय लोकदल के फाकिर अली यहां से सांसद बने। 1980 में कांग्रेस के अजीम इमाम फिर यहां से सांसद बने। 1984 में कांग्रेस के उमाकांत मिश्रा जीते। तो 1989 में युसुफ बेग जनता दल के टिकट से जीते। 1991 के चुनाव में वीरेन्द्र सिंह ने यहां से चुनाव जीतकर बीजेपी का खाता खोला।
1996 में दस्यु सुंदरी रही फूलन देवी सांसद चुनी गईं
चंबल के बीहड़ों में खौफ का पर्याय बन चुकी फूलन देवी को जेल से रिहा कराकर मुलायम सिंह यादव ने सपा का टिकट दिया और पहली बार चुनाव जीतकर फूलन देवी सांसद बनीं। साल 1998 में फूलन देवी बीजेपी के वीरेन्द्र सिंह से चुनाव हार गईं लेकिन 1999 का चुनाव सपा प्रत्याशी के तौर पर जीतकर फिर से इस सीट पर वापसी की। 25 जुलाई, 2001 को फूलन देवी की हत्या के बाद ये सीट रिक्त हो गई 2002 में यहां हुए उपचुनाव में सपा के रामरति बिंद चुनाव जीते।
बीएसपी के बाद यहां सपा को मिली जीत
साल 2004 में इस सीट पर जीत हासिल करके नरेन्द्र कुशवाहा ने बीएसपी का खाता खोल दिया। हालांकि जीत के अगले ही साल 2005 में पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप मे जिन 11 सांसदों की सदस्यता रद्द हुई उनमें नरेन्द्र कुशवाहा भी शामिल थे। इनके हटने के बाद इस सीट पर साल 2007 में हुए उपचुनाव में बीएसपी के टिकट से रमेश दुबे चुनाव जीते। हालांकि साल 2009 में फिर से ये सीट सपा के खाते में दर्ज हो गई। तब दस्यु सरगना ददुआ के भाई बालकुमार पटेल यहां से सांसद चुने गए।
मोदी लहर मे इस सीट पर एनडीए का परचम फहराया
साल 2014 की मोदी लहर के बाद इस सीट पर एनडीए का कब्जा हो गया। साल 2014 में बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) की मुखिया अनुप्रिया पटेल 4,36,536 वोट पाकर 2,19,079 वोटों के अंतर से चुनाव जीतीं। तब बीएसपी की समुद्रा देवी को 2,17,457 वोट पाकर दूसरे पायदान पर रहे और कांग्रेस के ललितेशपति त्रिपाठी 1,52,666 वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे थे। सपा के सुरेंद्र पटेल को 1,08,859 वोट मिले थे।
बीते आम चुनाव में भी अनुप्रिया पटेल चुनाव जीतीं
साल 2019 में भी ये सीट बीजेपी और अपना दल गठबंधन कोटे से अपना दल को मिली थी। एक बार फिर यहां से अनुप्रिया पटेल ने जीत दर्ज की। 591,564 वोट हासिल करके अनुप्रिया ने सपा-बीएसपी गठबंधन से चुनाव लड़े सपा के रामचरित्र निषाद को 2,32008 वोटों के मार्जिन से मात दे दी। राम चरित्र निषाद को 3,59,556 वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस से चुनाव लड़े ललितेश पति त्रिपाठी को महज 91,501 वोट मिल पाए थे।
वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण
इस संसदीय सीट पर 18 ,97,805 वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक 4.80 लाख दलित हैं। दूसरी बड़ी आबादी के तौर पर 3.50 लाख कुर्मी वोटर हैं। 1.60 लाख ब्राह्मण, 1.50 लाख वैश्य, 1.45 लाख बिंद और 1.20 लाख मौर्य बिरादरी के वोटर हैं। तो इस सीट पर 90 हजार क्षत्रिय, 85 हजार यादव, 50 हजार पाल और 30 हजार सोनकर वोटर हैं। इनके साथ ही प्रजापति, नाई, विश्वकर्मा, मुस्लिम वोटरों की आबादी दो लाख के करीब है। यहां कुर्मी वोटर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते आए हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में एनडीए ने सभी सीटें जीतीं
मिर्जापुर संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इन सभी सीटों पर एनडीए को ही कामयाबी मिली। एक-एक सीट अपना दल और निषाद पार्टी के पास है जबकि तीन सीटों पर बीजेपी काबिज है। इनमें छानबे सुरक्षित सीट से अपना दल (सोनेलाल) से रिंकी कोल और मझवां से निषाद पार्टी के विनोद कुमार बिंद विधायक हैं। जबकि मिर्जापुर सदर से बीजेपी के रत्नाकर मिश्रा, चुनार से बीजेपी के अनुराग सिंह और मड़िहान से बीजेपी के ही रमाशंकर पटेल विधायक हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर जबरदस्त संघर्ष
मौजूदा चुनावी जंग में ये सीट फिर से बीजेपी की सहयोगी अपना दल के खाते में हैं। यहां से अपना दल की मुखिया अनुप्रिया पटेल तीसरी बार खुद अपनी पार्टी की प्रत्याशी हैं। सपा से रमेश बिंद और बीएसपी से मनीष त्रिपाठी चुनावी मैदान में मौजूद हैं। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मशक्कत कर रही हैं। वहीं, सपा के डॉ रमेश चंद्र बिंद 2019 के लोकसभा चुनाव में भदोही से बीजेपी सांसद बने थे पर टिकट कटने पर दलबदल कर सपा में आ गए। अब मिर्जापुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, खेती-किसानी से जुड़े मनीष त्रिपाठी साल 2005 में बीएसपी से जुड़े थे। साल 2009 में बीएसपी के मिर्जापुर के कोषाध्यक्ष बनाए गए थे। साल 2010 में ब्राह्मण भाईचारा कमेटी के मंडल प्रभारी बनाए गए थे। अब दलित-ब्राह्मण समीकरण के जरिए चुनावी चुनौती पेश कर रहे हैं।
चुनाव में जातीय गोलबंदी की कवायद के बीच राजा भैया फैक्टर
इस सीट पर चुनावी मुकाबले का एक रोचक पहलू राजा भैया फैक्टर भी है। दरअसल,प्रतापगढ़ में एनडीए प्रत्याशी के समर्थन में भाषण देते हुए अनुप्रिया पटेल राजा भैया पर निशाना साधा था। अब राजा भैया की जनसत्ता लोकतांत्रिक पार्टी उस बदले का हिसाब किताब करने के लिए मिर्जापुर में सपा के पक्ष मे सक्रिय नजर आ रही है, क्षत्रिय वोटरों को खिलाफ जाने से रोकना अनुप्रिया पटेल खेमे के लिए बड़ी चुनौती है। फिलहाल, मिर्जापुर में चुनावी मुकाबला बेहद रोचक और त्रिकोणीय बना हुआ है।