UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में राबर्ट्सगंज संसदीय सीट, नब्बे के दशक से यहां बीजेपी हुई मजबूत

By  Rahul Rana May 29th 2024 08:02 PM

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे राबर्ट्सगंज संसदीय सीट की। राबर्टसगंज सोनभद्र का जिला मुख्यालय है। यूपी के दक्षिण पूर्वी कोने पर स्थित है,विंध्य और कैमूर की पहाड़ियों के बीच छोटा नागपुर पठार पर स्थित है।  4 मार्च 1989 को मिर्जापुर जनपद के दक्षिणी हिस्से को अलग करके सोनभद्र जिला बनाया गया था। पर्वतीय व वनों से आच्छादित होने वाला ये क्षेत्र खनिजों से समृद्ध है इसे सोनांचल के साथ ही यूपी का पावर हब, ऊर्जा राजधानी और मिनी मुंबई भी कहते हैं

कुदरत ने सोनांचल पर की हुई है मेहरबानी

प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर ये यूपी का इकलौता ऐसा जिला है जिसकी सीमाएं 4 राज्यों  बिहार के अलावा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और झारखंड से सटी हुई हैं। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के पठार से निकली रिहंद नदी यहीं आकर सोन नदी में मिल जाती है। रिहन्द नदी पर बना गोविंद बल्लभ पंत सागर आंशिक रूप से सोनभद्र जिले में तथा आंशिक रूप से मध्य प्रदेश में आता है। सोनभद्र में सोन, कर्मनाशा, चंद्रप्रभा, रिहंद, रेणु, घग्गर इत्यादि नदियां बहती हैं। इस क्षेत्र में गुफाओं के भित्ति-चित्र और चट्टानों पर की गई चित्रकारी से प्रागैतिहासिक काल से ही मानवीय गतिविधियों का केंद्र होने की पुष्टि होती है।  

सोनांचल का ऐतिहासिक सफर

यहां के कंडाकोट नामक स्थान पर ऋषि कण्व की तपोस्थली रही थी। महाभारत युद्ध के दौरान जरासंध द्वारा यहां कई शासकों को बंदी बनाकर रखा गया था। ये क्षेत्र कोशल, मगध, नागवंश और गुर्जर प्रतिहारों के अधीन भी रहा। यहां के विजयगढ़ किले पर कोल शासकों का कब्जा था। 13वीं शताब्दी के दौरान इसे दूसरी काशी के तौर पर जाना जाता था। बाद में यहां मुगल शासन कायम हो गया। अगोरी किला मदन शाह के नियंत्रण में था। बाद में यहां बनारस शासकों का आधिपत्य स्थापित हो गया। 1775 में इस क्षेत्र का नियंत्रण अंग्रेजों के कब्जे में चला गया। ब्रिटिश दौर में मिर्जापुर में ही सोनभद्र जिला और रॉबर्ट्सगंज तहसील शामिल थी। इस शहर का नामकरण ब्रिटिश-राज में अंग्रेजी सेना के फील्ड मार्शल फ्रेडरिक रॉबर्ट के नाम पर हुआ था।

संसदीय क्षेत्र के प्रमुख आस्था स्थल  व  पर्यटन केंद्र

यहां का विजयगढ़ किला देवकीनंदन खत्री के सुप्रसिद्ध उपन्यास चंद्रकांता की कथा से जुड़ा हुआ है। यहां सोढरी गढ़ का किला, वीर लोरिक का पत्थर, नगवा बांध, लखनिया दरी प्रपात, रिहंद बांध, अगोरी दुर्ग, रेनुकूट का रेडूकेश्वर मंदिर प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। 'सलखन फॉसिल पार्क' दुनिया का सबसे पुराना जीवाश्म पार्क है। जो सैलानियों और वैज्ञानिकों का पसंदीदा स्थल है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस जिले को "भारत का स्विटजर लैण्ड" बनाने का सपना देखा था पर इसे अमल में नहीं लाया जा सका।

उद्योग धंधे और विकास से जुड़े पहलू

सोनभद्र जिला एक औद्योगिक क्षेत्र है। यहां बॉक्साइट, चूना पत्थर, कोयला, सोना आदि अमूल्य खनिज मौजूद हैं, इसलिए इसे सोनांचल भी कहते हैं। यहां एल्यूमीनियम इकाई, देश की सबसे बड़ी डाला सीमेंट फैक्ट्री, अनपरा व रिहंद (थर्मल व हाइड्रो) विद्युत इकाई है। स्टोन क्रशर इकाई, आदित्य बिड़ला केमिकल्स,  एन.टी.पी.सी. की मौजूदगी इसे भारत का पॉवर हब बनाते हैं। इसीलिए इसे 'मिनी मुम्बई' भी कहा जाता है। इसके अलावा सोनभद्र के डिज़ाइनदार कालीन बहुत ही लोकप्रिय हैं।

निवेश के जरिए यहां विकास को रफ्तार मिलने की आस

इन्वेस्टर्स समिट के बाद यहां 79 हजार करोड़ की 43 निवेश परियोजनाएं जमीन पर उतरने की तैयारी में हैं। इनमें 35 हजार करोड़ के दो बड़े प्रोजेक्ट शामिल हैं। जिनमें ओबरा में 2 x 1600 मेगावाट सुपर थर्मल पावर प्लांट और सिंगरौली में तापीय विद्युत संयंत्र का विस्तार शामिल है। साथ ही 3660 मेगावाट की ऑफ स्ट्रीम क्लोज लूप पंप स्टोरज परियोजना भी सोनभद्र के लिए किसी से वरदान से कम नहीं होगी।

चुनावी इतिहास के आईने में राबर्ट्सगंज संसदीय सीट

रॉबर्ट्सगंज सीट दो जिलों चंदौली और सोनभद्र की विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाई गई है। साल वर्ष 1952 में कांग्रेस के रामस्वरूप पहले सांसद चुने गए। 1967 और 1971 में भी इन्हें  ही विजय प्राप्त हुई। 1977 में जनता पार्टी से शिव संपत राम चुनाव जीत गए। तो 1980 और 1984 में लगातार दो बार कांग्रेस के राम प्यारे पनिका जीते।

नब्बे के दशक से यहां बीजेपी हुई मजबूत

साल 1989 में यहां बीजेपी का खाता खुला उसके सूबेदार प्रसाद चुनाव जीते। 1991 में यह सीट जनता दल के राम निहोर राय ने जीत ली। इसके बाद 1996, 1998 और 1999 में इस सीट पर बीजेपी के राम शकल ने जीत की हैट्रिक लगाई। 2004 में यहां बीएसपी का खाता खोला लालचंद कोल ने। 2009 में यहां से सपा के पकौड़ी लाल कोल विजेता हुए।

बीते दो आम चुनावों में बीजेपी और सहयोगी अपना दल को मिली बढ़त

2014 की मोदी लहर में बीजेपी के छोटेलाल  अपना परचम लहराया। उन्होने बीएसपी के शारदा प्रसाद को 1,90,486 वोटों के मार्जिन से मात दे दी। सपा के पकौड़ी लाल कोल तीसरे पायदान पर जा पहुंचे। 2019 मे पकौड़ी लाल कोल विजेता हुए पर इस  बार वह पाला बदलकर अपना दल सोनेलाल के प्रत्याशी के तौर पर एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े। इन्होंने 447,914 वोट पाकर सपा-बीएसपी गठबंधन से चुनाव लड़े भाईलाल को 54,336 वोटों के मार्जिन से परास्त कर दिया। कांग्रेस प्रत्याशी भगवती प्रसाद चौधरी 35,269 वोट पाकर तीसरे पायदान पर जा पहुंचे।

रॉबर्ट्सगंज सीट से जीते सांसदों के नामों का रोचक संयोग

इस सीट पर अब तक 18 बार लोकसभा के चुनाव हुए हैं। जिनमें 12 बार राम, शिव और नारायण नाम वाले उम्मीदवारों को जीत मिली है। इसमें भी अकेले नौ बार सिर्फ राम नाम वाले सांसद रहे। वर्ष 2004 से लाल नाम वालों को जीत मिली। 2004 में  लालचंद कोल जीते तो मध्यावधि चुनाव में भाईलाल कोल को कामयाबी मिली।2009 में पकौड़ी लाल, 2014 में छोटेलाल खरवार चुनाव जीते। अपना दल- एस से पकौड़ी लाल यहां से मौजूदा सांसद हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में यहां बीजेपी का परचम फहराया

राबर्ट्सगंज संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। इनमें से चंदौली की चकिया सुरक्षित सीट और सोनभद्र की घोरावल, राबर्टसगंज, ओबरा और दुद्धी सीटें शामिल हैं। ओबरा और दुद्धी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटें हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से सभी सीटें बीजेपी के खाते में दर्ज हुई थीं। चकिया से कैलाश खरवार, घोरावल से अनिल कुमार मौर्य, राबर्ट्सगंज से भूपेश चौबे, ओबरा से संजीव गोंड और दुद्धी से रामदुलार गौर विधायक हैं।

वोटरों की तादाद और सामाजिक समीकरण

इस सीट पर  17 ,77,108 वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक 2.5 लाख दलित बिरादरी के वोटर हैं। सवा-सवा लाख ब्राह्मण, यादव और कुशवाहा वोटर हैं। 1.20 लाख गोंड हैं। 1.10 लाख खरवार हैं। एक -एक लाख मुस्लिम, कुर्मी और वैश्य वोटर हैं। जबकि 80 हजार कोल और 60  हजार क्षत्रिय वोटर हैं। चुनावों में दलित और अनुसूचित जनजाति के वोटर यहां निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर योद्धा संघर्षरत

मौजूदा चुनावी जंग के लिए ये सीट बीजेपी की सहयोगी दल अपना दल (सोनेलाल) के कोटे में आई  है। यहां से रिंकी कोल चुनावी मैदान में हैं..सपा से छोटेलाल खरवार और बीएसपी से धनेश्वर गौतम हैं। छानबे सीट से विधायक रहे राहुल कोल के निधन के बाद हुए उपचुनाव जीतकर अपना दल की विधायक बन हैं रिंकी कोल। यहां के सिटिंग सांसद पकौड़ी लाल कोल की बहू हैं।

एनडीए प्रत्याशी के लिए ससुर के बयान दिक्कत का सबब

निर्वतमान सांसद पकौड़ी लाल कोल अपने विवादित बयानों के लिए चर्चित रहे हैं। सवर्णों के खिलाफ दिए गए इनके वायरल बयान एनडीए खेमे के लिए गले की फांस सरीखे हैं। वहीं, चंदौली के नौगढ निवासी छोटेलाल खरवार साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट से बीजेपी सांसद रह चुके हैं। पर ये सीट  अपना दल के खाते में जाने से इनका टिकट कट गया इसके बाद ये पाला बदलकर सपा में शामिल हो गए और टिकट पा गए। बीएसपी के धनेश्वर गौतम लालगंज के निवासी हैं। पेशे से अधिवक्ता गौतम दुद्धी विधानसभा प्रभारी  रहे हैं। 2017 व 2022 में छानबे विधानसभा सीट से बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ चुके हैं। बहरहाल, राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पर मुकाबला दिलचस्प बना हुआ है। सोनांचल में मुख्य मुकाबला एनडीए की रिंको कोल और सपा के छोटेलाल के दरमियान नजर आ रहा है।

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