Aligarh Muslim University: AMU का अल्पसंख्यक दर्जा फिलहाल रहेगा बरकरार, SC की दूसरी बेंच करेगी आगे सुनवाई
ब्यूरो: Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुना दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली संविधान पीठ ने इस अहम मामले पर अपना फैसला सुनाया है। इनमें सीजीआई समेत 4 जज एक मत हैं वहीं बाकि तीन जज का फैसला अलग है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि एक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए खत्म नहीं किया जा सकता कि उसकी स्थापना राज्य ने की है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बैठी सात जजों की संवैधानिक पीठ ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा है कि कोर्ट को यह जरूर देखना पड़ेगा कि असल में यूनिवर्सिटी की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका दिमाग रहा। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने 7 जजों की बेंच का नेतृत्व करते हुए कहा कि इस मामले में चार फ़ैसले हैं। चार जजों ने बहुमत का फ़ैसला दिया, जबकि तीन जजों ने असहमति का फ़ैसला सुनाया। इस पीठ में सीजेआई के अलावा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जे.बी. पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और एससी शर्मा शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले सुनाते हुए कहा कि एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा। लेकिन इसका निर्धारण फिर से होगा, जिसे 3 जजों की नई बेंच तय करेगी। यह बेंच अल्पसंख्यक दर्जों के मापदंड फिर से तय करेगी।
AMU अल्पसंख्यक दर्जा मामला
- फिलहाल अबतक जो स्थिति थी वो बरकरार रहेगी
-सुप्रीम कोर्ट बहुमत से यह फैसला देने से इंकार किया कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं
- लेकिन अल्पसंख्यक दर्ज के लिए मानदंड तय किए
- मामले को नियमित बेंच के पास भेजा गया
- हालांकि अजीज बाशा मामले में 1967 के फैसले को खारिज किया
- इसमें कहा गया था कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है
- क्योंकि इसकी स्थापना मुसलमानों ने नहीं की है
- अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ संस्थान की स्थापना ही नहीं बल्कि प्रशासन कौन कर रहा है यह भी निर्णायक कारक है
- इसी आधार पर नियमित बेंच करेगी सुनवाई