'ड्रैगन फ्रूट' की खेती कर प्रदेशभर में नाम कमा रहा ये किसान, सीएम योगी को भी फल कर चुका है भेंट
सुल्तानपुर: जिले में अब पारम्परिक खेती से हटकर ड्रैगन फ्रूट की खेती भी खूब नाम कमा रही है और किसान पारम्परिक खेती से हटकर ड्रैगन फ्रूट की खेती की ओर भी बढ़ रहे हैं. वहीं इसका श्रेय जाता है किसान प्रसाद को.
जिले में ड्रैगन फ्रूट की खेती कर प्रसाद ऊर्फ मुरारी ने एक मिसाल पेश की है. दरअसल, ड्रैगन फ्रूट की खेती मुख्य रूप से दक्षिणी अमेरिका, थाईलैंड, वियतनाम और इजरायल में होती है. ये इन जगहों का लोकप्रिय फल है. वहीं किसान मुरारी सिंह का कहना है कि पारम्परिक खेती की तुलना में नए तरीके से खेती करके अधिक लाभ कमाया जा सकता है. उन्होंने बताया कि इस खेती में एक बार निवेश कर के 25 सालों तक लाभ उठाया जा सकता है.
मुख्यमंत्री को भी अपने खेत का ड्रैगन फूट भेंट कर चुके हैं मुरारी सिंह
मुरारी सिंह ने बताया कि वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर उन्हें भी ड्रैगन फूट भेंट कर चुके हैं. उन्होंने बताया कि सीएम ने बड़े ही उत्साह से फल के बारे में पूरी जानकारी ली और ट्विटर पर ट्वीट भी किया. यही नहीं सीएम ने खेती की चर्चा विधानसभा में भी की.
मुरारी सिंह से लोग हो रहे प्रभावित
मुरारी सिंह ने बताया कि गुलाबी रंग का स्वादिष्ट फल ड्रैगन फ्रूट सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है. ये फल बाजार में करीब 200-250 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता है. मुरारी सिंह फिलहाल अभी सौ पिलर पर ड्रैगन फ्रूट की खेती प्रयोग के तौर पर कर रहे हैं. आगे अभी पांच सौ पिलर पर खेती करने की तैयारी है.
जानकारी देते हुए मुरारी सिंह ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट का एक पौधा करीब पचास रुपये का मिलता है. एक पौधे से करीब पचीस से तीस साल तक फल मिल सकता है. मुरारी सिंह ने ये पौधे कलकत्ता से मंगवाए हैं और इन पौधों में काफी उम्दा किस्म के फल तैयार हो रहे हैं. इन पौधों की पैदावार लगभग साल भर में होने लगती है और इन पौधों में फल लगभग 400 ग्राम तक का लगता है और इनकी मांग शहरों में काफी ज्यादा मात्रा में है.
'इस मौसम में मर जाता है पौधा'
ड्रैगन फ्रूट सामान्य: 40 डिग्री तापमान में अनुकूल रूप से बढ़ती है, बहुत ज्यादा ठंड में ये पौधे जीवित नहीं रह पाते. हर दिन लगभग ये पौधे 1 इंच से 2 इंच तक बढ़ते हैं, लेकिन ठंड के समय में नवंबर से लेकर फरवरी तक पौधों का विकास रुक जाता है. क्योंकि ये पौधा सामान्य तापमान वाले क्षेत्र में होता है जहां का तापमान 30 से 40 डिग्री तक होता है इसलिए ज्यादा करके कोस्टल क्षेत्र में पाया जाता है.