Lucknow: देशभर में "रेडी टू ईट" उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसी वजह से कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण उद्योग में अपार संभावनाएं उभर रही हैं। केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकारें मिलकर इस क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में कार्य कर रही हैं। इससे कृषि प्रधान राज्य उत्तर प्रदेश को विशेष लाभ मिल रहा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-20 में भारत का कृषि निर्यात 35 अरब डॉलर था, जो 2024-25 तक बढ़कर 51 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इस निर्यात में सबसे बड़ा योगदान फलों और सब्जियों का है। केंद्र सरकार ने इस वृद्धि को और गति देने के लिए दो दर्जन प्रमुख कृषि उत्पादों और उनके बाजारों को चिन्हित कर एक ठोस रणनीति बनाई है। निर्यात लागत घटाने के लिए समुद्री मार्गों के उपयोग की भी योजना है।
उत्तर प्रदेश को क्यों मिलेगा सबसे अधिक लाभ:
उत्तर प्रदेश कई प्रमुख फसलों जैसे आलू, गन्ना, गेहूं, आम और अन्य सब्जियों के उत्पादन में देश में अग्रणी है। यहां की अधिकांश कृषि भूमि सिंचित है और राज्य की 56% जनसंख्या युवा है, जिससे उत्पादन और श्रम शक्ति दोनों ही दृष्टियों से संभावनाएं विशाल हैं। प्रदेश की विविध जलवायु परिस्थितियां यहां हर तरह की फसल को पनपने का अवसर देती हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अक्सर कहते हैं कि "प्रकृति और परमात्मा की विशेष कृपा उत्तर प्रदेश पर है।" राज्य के पास भारत का ‘फूड बास्केट’ बनने की पूर्ण क्षमता है, जो परंपरागत खेती को आधुनिक तकनीकों से जोड़कर हासिल की जा सकती है। 2017 में योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद किसानों के लिए चलाई गई योजनाओं से कृषि क्षेत्र में निरंतर प्रगति हो रही है।
नीति आयोग की सराहना:
हाल ही में नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश "विकसित भारत का ग्रोथ इंजन" बन सकता है। उन्होंने ओडीओपी (ODOP) कार्यक्रम को और प्रभावशाली बनाने की सलाह दी, जिसमें स्थानीय उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयार कर उन्हें वैश्विक बाजारों तक पहुंचाना शामिल है।
योगी सरकार की पहलें:
प्रदेश सरकार पहले से ही इन लक्ष्यों पर काम कर रही है। कई स्थानीय उत्पाद जैसे काला नमक धान, केला, गुड़, आंवला, आम, और अमरूद को ओडीओपी में शामिल किया गया है। इनकी गुणवत्ता सुधारने के लिए कॉमन फैसिलिटी सेंटर्स (CFCs) की स्थापना की जा रही है। डिस्ट्रिक्ट एक्शन प्लान बन चुके हैं और फलों-सब्जियों की पैदावार को बढ़ाने के लिए हर जिले में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाए जा रहे हैं। इजराइल और डेनमार्क जैसे देशों के सहयोग से विशेष बागवानी फसलों के लिए भी केंद्र विकसित हो रहे हैं। इसके अलावा एक विशेष हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी की भी योजना है।
कृषि प्रसंस्करण इकाइयों का विस्तार:
इन प्रयासों से प्रदेश में खाद्यान्न के साथ-साथ प्रसंस्करण इकाइयों की संख्या भी बढ़ी है। सरकार का फोकस क्षेत्रीय जलवायु के अनुरूप समूह आधारित उत्पादन पर है। जैसे – बुंदेलखंड में मूंगफली और दलहन, लखनऊ के आसपास आम, प्रतापगढ़ में आंवला, आगरा में आलू और प्रयागराज में अमरूद पर विशेष बल दिया जा रहा है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक 1188 प्रसंस्करण इकाइयों के लिए आवेदन आए हैं, जिनमें से 328 को मंजूरी और लेटर ऑफ कंफर्ट जारी किया जा चुका है। इस क्षेत्र में अब तक 50,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है, जिससे लगभग 60,000 लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार मिला है।
बेहतर कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे के चलते रेडी टू ईट खाद्य पदार्थों की मांग और निर्यात की संभावनाएं दोनों ही बढ़ रही हैं। इसका सीधा लाभ प्रदेश के लगभग 2.5 करोड़ किसान परिवारों को मिलेगा। इसके साथ ही युवा स्थानीय स्तर पर उद्यम स्थापित कर रोजगार प्राप्त करने के साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार दे सकेंगे। यही योगी सरकार की नीति है—युवाओं को "रोजगार सीकर" नहीं, बल्कि "रोजगार क्रिएटर" बनाना।