उत्तर प्रदेश में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के आमने-सामने आने की वजह ये है !
प्रयागराज: न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को लोकतंत्र के मज़बूत स्तंभ माना जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश में न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिक एक बार फिर से एक-दूसरे को करेक्ट करने की जद्दोजहद करते हुए दिखाई दे रहे हैं। दरअसल बिना किसी ठोस आधार के अपराध से बरी करने के फैसलों के ख़िलाफ़ सरकार के अपील दाखिल करने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है।
इस बाबत इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दलील देते हुए इसे अदालत के समय की बर्बादी क़रार दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेलागलपेट कहा है कि यह सरकार पर अनावश्यक बोझ है। कोर्ट ने कहा है कि अधिकारी जवाबदेही से बचने के लिए ग़ैर ज़रूरी मामलों में भी रूटीन तरीके से काफ़ी देरी से अपील दाखिल करते हैं, जबकि सरकार के लिए ज़रूरी नहीं है कि हर केस में अभियुक्त के बरी होने के फैसले के ख़िलाफ़ अपील दाखिल ही करें।
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कोर्ट ने इसे निंदनीय मानते हुए सरकार को इसपर विचार करने को कहा है। अदालत ने गंभीरता दिखाते हुए विधि सचिव से इस बाबत व्यक्तिगत हलफनामा मांग लिया है। अदालत ने पूछा है कि किस परिस्थिति में अभियुक्त के सत्र अदालत से बरी होने के फैसले को अपील में चुनौती देने का निर्णय लिया गया। यही नहीं, कोर्ट ने ये सवाल भी उठाया है कि वाद नीति के आलोक में क्या तंत्र विकसित किया गया है ?
इलाहाबद हाई कोर्ट ने सचिव को फैसले के ख़िलाफ़ अपील दाखिल करने की मूल पत्रावली भी पेश करने निर्देश दे दिया है। अदालत ने निर्देश देते हुए कहा है कि अपील दाखिल करने में 213 दिन की देरी की जिस तरह से सफाई दी गई है, इस तरह तो अपील खारिज कर दी जाती है। कोर्ट ने कहा है कि इस पेचीदा मुद्दे पर राज्य सरकार की सफ़ाई ज़रूरी है। इस मामले को लेकर 10 अप्रैल को होगी अगली सुनवाई। कोर्ट ने राज्य सरकार की आपराधिक अपील की सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया है।
गौरतलब है कि नाबालिग के अपहरण व दुष्कर्म के आरोपी थाना जखराना, फिरोज़ाबाद के सोनू को कोर्ट ने बरी कर दिया था। पीड़िता के उसके पक्ष में बयान देने व दोनों के साथ जीवन बिताने के तथ्य को देखते हुए कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था। कोर्ट के इसी फैसले के मद्देनज़ राज्य सरकार ने 7 मई 2022 के फैसले के ख़िलाफ़ अपील दाखिल करने में 213 दिन की देरी होने का कारण बताया।
कोर्ट ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि डीजीसी व डीएम के मार्फत सरकार को 4 अगस्त 2022 को पत्रावली मिली। नतीजतनत हाईकोर्ट से गठित कमेटी ने इस पर सिलसिलेवार तरीक़े से विचार किया। जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र और जस्टिस विनोद दिवाकर की खंडपीठ में इस केस को लेकर सुनवाई।