ब्यूरो: यूपी विधानसभा की नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव (UP ByPolls) सदन में संख्या बल के लिहाज से भले ही कोई मायने न रखते हों लेकिन इनके नतीजों से निकलने वाले संदेश के नजरिए से ये चुनाव बेहद अहमियत भरे हैं। सियासी दलों द्वारा चुनावी अखाड़े में प्रत्याशियों के नाम तय करने की प्रक्रिया अपने अंतिम दौर में पहुंच चुकी है। बीजेपी (BJP) और समाजवादी पार्टी (SP) के लिए साख का सवाल बन चुके ये उपचुनाव सहयोगी दलों के साथ इनके तालमेल और रिश्तों की कसौटी भी बन गए हैं।
प्रत्याशी चयन की मुहिम के साथ ही सहयोगियों के संग समीकरण भी दुरुस्त करने की कवायद तेज
यूपी में नौ विधानसभा सीटों पर नामांकन की प्रक्रिया अपने अंतिम दौर की तरफ बढ़ रही है। मैनपुरी की करहल, कानपुर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, अयोध्या की मिल्कीपुर, अम्बेडकर नगर की कटेहरी,मिर्जापुर की मझवां, मुजफ्फरनगर की मीरापुर, अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद सीटों पर चुनावी मुकाबले के लिए सियासी दल कमर कसे हुए हैं। समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी ने सात प्रत्याशियों के नाम तय कर दिए हैं, बीजेपी खेमा अपने प्रत्याशियों के नाम की फेहरिस्त जारी करने की तैयारी में है। बीजेपी सपा के पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक वाले पीडीए फार्मूले की काट के लिहाज से नाम तय करने की रणनीति पर अमल करने जा रही है। 25 अक्टूबर नामांकन की आखिरी तारीख है। सारे सियासी खेमे अपनी तैयारियों के साथ ही अपने सहयोगियों के साथ ही कील कांटे दुरुस्त कर लेना चाहते है।
एनडीए की सहयोगी निषाद पार्टी दो सीटों पर दावा ठोंक चुकी है
बीते दिनों दिल्ली में हुई बीजेपी की हाईलेवल मीटिंग में तय हुआ था कि महज मीरापुर सीट ही सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल की दी जाएगी जबकि बाकी नौ सीटों पर बीजेपी ही चुनाव लड़ेगी। पर एनडीए की सहयोगी निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद को ये फैसला नहीं भाया। उन्होंने बयान दिया कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं की मंशा है कि निषाद पार्टी अपने सिंबल पर चुनाव लड़े, भले ही प्रत्याशी बीजेपी का हो। कटेहरी और मंझवा सीट पर दावा ठोंकते हुए संजय निषाद कहते हैं कि ये सीटें पिछली दफे भी बीजेपी ने उनकी पार्टी को दी थीं, जिनमें से एक सीट उन्होंने जीत भी ली थी।पिछली दफे सिंबल न मिलने की वजह से कई सीटों पर उनकी पार्टी पिछड़ गई थी। वैसे बीजेपी को अभिभावक करार देते हुए संजय निषाद अपनी पार्टी को विश्वसनीय सहयोगी बता चुके हैं। अब सीटों में हिस्सेदारी हासिल करने की अपनी मंशा को अमली जामा पहनाने के लिए निषाद पार्टी के मुखिया दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं।
हालांकि इन सहयोगी दलों के रुख ने बीजेपी खेमे को दी है राहत
बीजेपी ने एनडीए की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल को मीरापुर की सीट गठबंधन के तहत दी है। पार्टी की दिल्ली में हुई उच्चस्तरीय बैठक में तय हुआ था कि सहयोगी दलों का साथ लेकर उपचुनाव की सभी सीटों पर मजबूती के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाएगा। एनडीए की पुरानी सहयोगी अपना दल (एस) की मुखिया और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने जब कहा कि यूपी की जनता इस उपचुनाव में एनडीए गठबंधन के प्रत्याशियों को अपना आशीर्वाद देगी और अपना दल का एक-एक कार्यकर्ता एनडीए प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करेगा। तब बीजेपी रणनीतिकारों को इस सहयोगी दल के रुख से राहत हासिल हुई थी। वहीं, बीजेपी के एक अन्य सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानी सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने भी बीजेपी खेमे को ये कहकर आश्वस्त कर दिया था कि दस सीटों पर होने वाले उपचुनाव मे उन्हें सीटें नहीं चाहिए।
गठबंधन के तहत मिली दो सीटों पर चुनाव लड़ने को नहीं तैयार है कांग्रेसी खेमा
उपचुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी की ओर से शुरुआत में ही पांच सीटों की मांग रखी गई थी। पार्टी फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवां और मीरापुर पर प्रत्याशी उतारना चाहती थी। पर एमपी-हरियाणा-जम्मू कश्मीर और महाराष्ट्र में सीटें साझा करने में कांग्रेस द्वारा की गई आनाकानी से आहत सपाई खेमा यूपी को लेकर सधी रणनीति पर अमल कर रहा है। यहां सपा तल्खी का अहसास कराने के साथ ही गठबंधन धर्म निभाते भी दिखना चाहती है। इसलिए अखिलेश यादव ने सात सीटों के लिए प्रत्याशियों के नाम कांग्रेस के संग किसी बातचीत के पहले ही घोषित कर दिए। इससे कांग्रेसी खेमे मे मायूसी हुई, हालांकि बाद में गाजियाबाद और खैर सीटों को कांग्रेस को देने की बात कहकर समाजवादी पार्टी की ओर से गठबंधन धर्म निभाने की बात दोहरा दी गई। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय कह चुके हैं कि गठबंधन समझौते के तहत हमने सपा से पांच सीटें मांगी थीं और हम अब भी उस पर कायम हैं, अंतिम फैसला आलाकमान लेगा। वैसे जानकार मानते हैं कि बीजेपी के मजबूत गढ़ों में शुमार गाजियाबाद और खैर सीटों से कांग्रेस को परहेज है। इसके पीछे सियासी समीकरण अहम वजह हैं । दरअसल, 2027 के विधानसभा चुनाव पर फोकस बनाने वाली कांग्रेस उपचुनाव में हार पाकर किसी नकारात्मक नैरेटिव से बचना चाहती है। लिहाजा पार्टी का एक धड़ा मनमाफिक सीटें न मिलने के पर उपचुनाव में हिस्सेदारी न करने का पैरोकार है।
इंडिया गठबंधन का एक और सहयोगी दल उपचुनाव के लिए ताल ठोकने पर आमादा
लोकदल इंडिया गठबंधन का घटक दल है। इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी सुनील सिंह ने सोमवार को खैर विधानसभा सीट पर अपने प्रत्याशी को उतारने की मंशा जता दी। बकौल सुनील सिंह उन्होंने सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव और शिवपाल सिंह यादव के साथ फोन पर बातचीत की और उनसे हरी झंडी मिलने के बाद अब जाट बाहुल्य इस सीट पर अपनी चुनावी तैयारी के लिए जुटने जा रहे हैं। हालांकि घटक दल के इस दावे के बाबत समाजवादी पार्टी की ओर से जब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आती तब तक लोकदल के इस दावे को वन साइडेड ऐलान ही माना जाएगा।
सियासी संभावनाओं के मकसद से दबाव बनाने की रणनीति सियासी दस्तूर है
जाहिर है कि एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों के ही सहयोगी दल उपचुनाव में अपनी हिस्सेदारी तय करने को आतुर हैं। दरअसल, इन सहयोगियों को पता है कि मांग को नकार दिया जाए या मुहर लगा दी जाए पर सियासत में अपनी बात हरहाल में रखनी जरूरी है। क्योंकि साझेदारी का मौका मिल जाता है तो इससे बेहतर विकल्प भला क्या होगा। पर अगर मांग रखने के बावजूद ठुकरा दी जाए तब भी भविष्य के तोलमोल के लिहाज से पलड़ा भारी हो जाता है। अपनी आने वाले दिनों की सियासी संभावनाओं को मजबूती देने के मकसद से ही सहयोगी दल उपचुनाव में दबाव बनाने में कोताही नहीं बरत रहे हैं हर मुमकिन दांवपेंच पर अमल कर रहे हैं।