समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जहां चैत्र नवरात्र और रामनवमी के दौरान धार्मिक आयोजनों के लिए राज्य भर के जिला अधिकारियों को 1 लाख रुपये आवंटित करने के सरकार के प्रस्ताव की खबरों का स्वागत किया है, वहीं पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस विवाद को हवा देते हुए कहा कि यह संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन के रूप में निर्णय लिया गया।
मौर्य ने कहा कि सरकार द्वारा इस तरह के आयोजनों का वित्तपोषण संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है और इसका उद्देश्य महिलाओं, दलितों और पिछड़े वर्गों का अपमान करना है। इस रिपोर्ट के बाद ताजा विवाद शुरू हो गया कि राज्य सरकार ने चैत्र नवरात्र और रामनवमी के लिए मंदिरों में धार्मिक आयोजनों के लिए प्रत्येक डीएम को 1 लाख रुपये का आवंटन प्रस्तावित किया है।
मौर्य ने हाल ही में रामचरितमानस से विवादास्पद छंदों को महिलाओं, दलितों और पिछड़े वर्गों के प्रति असम्मानजनक बताते हुए हटाने की मांग की थी। उन्होंने सरकार के नवीनतम कदम पर फिर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि यह महिलाओं, दलितों और पिछड़ों का अपमान और अपमान करने का एक प्रयास है।
उन्होंने कहा कि चूंकि देश भर में लोगों ने रामचरितमानस का पाठ करना बंद कर दिया है, इसलिए सरकार अपने खर्च पर ऐसा करने को मजबूर है। जो लोग इस कदम के पीछे हैं, वे महिलाओं, दलितों और पिछड़े वर्गों की गरिमा सुनिश्चित करने के पक्ष में नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि किसी विशेष धर्म का समर्थन करने वाली कोई भी धर्मनिरपेक्ष, गैर-सांप्रदायिक लोकतांत्रिक सरकार भारत के संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है। हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। एक ही धर्म को बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है? सरकार सबकी है। अगर सरकार धार्मिक आयोजनों को बढ़ावा देना चाहती है तो यह सभी धर्मों के लिए होना चाहिए।
इस बीच, ट्विटर पर इस कदम का स्वागत करते हुए अखिलेश ने कहा कि राम नवमी मनाने के लिए यूपी के जिलााधिकारियों को एक लाख रुपये दिए जाने के प्रस्ताव का स्वागत है। पर इतनी कम रक़म से होगा क्या? कम से कम 10 करोद देने चाहिए जिस से सभी धर्मों के त्योहारों को मनाया जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार को त्योहारों पर भी मुफ्त सिलेंडर देना चाहिए और इसकी शुरुआत रामनवमी से ही होनी चाहिए।