Saturday 9th of November 2024

चुनावी दौर: गूंज रहा है नए-नए नारों का शोर

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  October 29th 2024 03:42 PM  |  Updated: October 29th 2024 04:19 PM

चुनावी दौर: गूंज रहा है नए-नए नारों का शोर

ब्यूरो: चुनावी दौर और नारों का शोर...पुराना चलन रहा है। यूपी के सियासी गलियारों से लेकर दिल्ली के सत्ता प्रतिष्ठानों तक नारों की गूंज सुनाई देती रही है। सियासत मे अपना रसूख कायम करने और विरोधियों को चित्त करने में नारों ने निर्णायक किरदार निभाया है। फिलहाल यूपी में सियासी दिग्गजों के बयानों से उपजे और उनके समर्थकों के पोस्टरों पर दर्ज किए गए नारे सुर्खियों मे छाए हैं। इनकी वजह से न सिर्फ यूपी के उपचुनाव में माहौल गरमाया है बल्कि दूसरे सूबों में हो रहे विधानसभा चुनावों की सरगर्मी में भी इजाफा हो गया है।

  

सीएम योगी के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे की गूंज ने बीजेपी के पक्ष में माहौल बना दिया

इसी साल 26 अगस्त को आगरा में दुर्गादास राठौर की प्रतिमा के अनावरण के मौके पर यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन के बीच अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हुए अत्याचार का जिक्र करते हुए कहा था, “वहां क्या हो रहा है, वो गलतियां यहां नहीं दोहराई जानी चाहिए.... ‘बंटेगे  तो कटेंगे, एक रहेंगे तो नेक रहेंगे”। इसके बाद हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार में सीएम योगी ने इसी नारे को दोहराया। इसका व्यापक असर भी हुआ, एंटी इंकम्बेंसी की चुनौती से जूझ रही बीजेपी के पक्ष में वोटर लामबंद हुए, तीसरी बार हरियाणा की सत्ता में वापसी हो गई। फिर तो ये नारा जबरदस्त हिट हो गया। हरियाणा-यूपी से होते हुए इस नारे ने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव में सियासत गरमा दी। 

  

 इस नारे के पक्ष और विपक्ष में जबरदस्त लामबंदी नजर आई

सनातनी धर्मगुरुओं से लेकर  आरएसएस तक ने योगी के ‘बंटेगे  तो कटेंगे' नारे का जमकर समर्थन किया। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने तो तो इसे जीवन मंत्र करार देते हुए कहा कि अगर अगड़ा और पिछड़ा, जाति-भाषा में भेद करेंगे तो हम कटेंगे. इतिहास भी यही कहता है, इसलिए हिंदुओं का एक होना जरूरी है। वहीं, एनडीए की सहयोगी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) नेता केसी त्यागी ने योगी के बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वह इसका समर्थन नहीं करते हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे लैब मे तैयार नारा बताते हुए कहा कि उनका पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक वाला पीडीए परिवार भी नहीं बंटेगा। वहीं, सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव ने करहल सीट पर सपा प्रत्याशी तेज प्रताप यादव के समर्थन में आयोजित सभा में “बंटेगें तो कटेंगे” नारे पर तंज कसते हुए कहा कि उनकी पार्टी का पीडीए न तो बंटेगा न ही कटेगा और जो ऐसी बातें करेगा वह बाद में पिटेगा।

 

सपा मुखिया के जन्मदिवस पर लगे पोस्टर में दर्ज नारा भी चर्चित हुआ

पिछले हफ्ते सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को जन्मदिन की बधाई देते हुए उनकी पार्टी के एक नेता के पोस्टर ने खूब सुर्खियां बटोरीं। दरअसल,  इस पोस्टर की इबारत थी...24 में बरसा जनता का आशीष, दीवारों पर लिखा है , कौन होगा सत्ताईस का सत्ताधीश। ये पोस्टर मीडिया में खूब वायरल हुआ। पोस्टर लगाने वाले सपा नेता जयराम पाण्डेय ने बयान दिया कि जैसे सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की है, वैसे ही 2027 में पार्टी राज्य में जीत दर्ज करेगी और अखिलेश यादव फिर से प्रदेश का नेतृत्व करेंगे। गोरखपुर से सांसद और अभिनेता रवि किशन ने सपा प्रमुख को जन्मदिन की बधाई देते हुए टिप्पणी की कि लोकतंत्र में सभी को पोस्टर लगाने का हक है। पर उपचुनाव हम लोग जीत रहे हैं, 27 में फिर से योगी सरकार आ रही है। सपा को सरकार में आने के लिए अभी और 27 साल इंतजार करना होगा।  

  

सपाई नारे की तर्ज पर ही निषाद पार्टी के समर्थकों ने नया नारा गढ़ दिया

समाजवादी पार्टी के '27 के सत्ताधीश अखिलेश' वाले नारे पर पलटवार के अंदाज में पोस्टर लगाकर निषाद पार्टी के मुखिया और कैबिनेट मंत्री डॉ संजय निषाद को '27 का खेवनहार' बता दिया गया। ऐसे पोस्टर लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास लेकर बीजेपी मुख्यालय के पास लगाए गए। उपचुनाव में कोई सीट न मिलने के बीजेपी के फैसले के बाद सामने आए इस नारे ने सबका ध्यान आकर्षित किया। इसे लेकर कई कयास लगने लगे तो निषाद पार्टी के प्रवक्ता व सचिव अजय सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ही यूपी में एनडीए की खेवनहार बनेगी।

  

बीते दो दशकों में गूंजे चुनावी नारों ने कभी माहौल बनाया तो कभी फ्लॉप भी साबित हुए

कभी अटल बिहारी के दौर में 'इंडिया शाइनिंग' का नारा यूपी में हर कहीं पोस्टरों में दिखाई देता था। काशी में चुनाव लड़ने पहुंचे नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्हें तो गंगा मैया ने बुलाया है तो ये वहां पोस्टरों में खूब दर्ज किया गया। फिर ‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी’  की गूंज सुनाई दी। इसके बाद ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ की गूंज उठी। तो ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ और ‘अबकी बार, मोदी सरकार’ सरीखे नारे बच्चों की जुबान पर भी रट गए। कांग्रेस के ‘चौकीदार चोर है’ के नारे के जवाब में ‘मैं भी हूं चौकीदार’ का नारा बुलंद हुआ। इस बार के आम चुनाव में कांग्रेस के साथ 'हाथ बदलेगा हालात'  और बीजेपी के 'अबकी बार, चार सौ पार' नारे की खूब चर्चा हुई। तो चुनावी फतह के बाद ‘सबके श्री अखिलेश अयोध्या के अवधेश’ नारे से लेकर अखिलेश को भावी पीएम तक बनाने वाले नारे पोस्टरों में दर्ज हो चुके हैं।  

   

यूपी में ये नारे भी सियासी तौर से बेहद चर्चित हुए हुए

साल 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी ने नारा दिया था "चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर।" इस नारे ने तत्कालीन सपा शासन में बिगड़ी कानून व्यवस्था के मुद्दे को तूल दिया, जिसका बीएसपी को चुनावी फायदा हुआ। कभी “तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” सरीखे विवादित नारे गूंजते थे। पर इस दौर से आगे बढ़कर बीएसपी ने सर्वसमाज को जोड़ने की मुहिम छेड़ी तो नया नारा सुनाई दिया, “हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है”। दलित-ब्राह्मण गठजोड़ वाली सोशल इंजीनियरिंग को लागू करके बीएसपी की यूपी में जब पूर्ण बहुमत की सरकार बनी तब नारा सुनाई दिया “पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जायेगा”।

             ये तय है कि सियासी अखाड़े में नारों के जरिए बड़े बड़े सियासी उलटफेर हुए हैं। नारों से सियासत की दशा और दिशा तक बदल गई। कुछ नारे तो गेमचेंजर साबित हुए। चुनावी दौर में तो नारों की वजह से कई दलों की उम्मीदें अर्श पर जा पहुंची तो कईयों की ख्वाहिशें फर्श पर जा गिरीं। बहरहाल, एकबारगी फिर से उपचुनाव के माहौल में नए नए नारों का नाद सुनाई दे रहा है। इस दौर के नारों से किसके समीकरण परवान चढ़ेंगे और किसके दांव खाक में मिल जाएंगे इस ओर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।

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