Tuesday 3rd of December 2024

UP By-Election 2024: उपचुनाव की जंग:खैर विधानसभा सीट का लेखा जोखा

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  November 16th 2024 02:21 PM  |  Updated: November 16th 2024 02:21 PM

UP By-Election 2024: उपचुनाव की जंग:खैर विधानसभा सीट का लेखा जोखा

ब्यूरो: UP By-Election 2024: हरियाणा में पलवल और यूपी में गौतमबुद्धनगर और मथुरा जिले की सीमा से सटा हुआ है खैर विधानसभा क्षेत्र। 2012 में इसे अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट घोषित किया गया था। यहां की चुनावी जंग में जातीय समीकरण ही हमेशा हावी रहे हैं। मिनी छपरौली कही जाने वाली जाट बाहुल्य ये सीट रालोद का गढ़ मानी जाती है। फिलहाल यहां बीजेपी काबिज है। समाजवादी पार्टी इस सीट पर आज तक खाता नहीं खोल सकी है।

     

पश्चिमी यूपी का ये क्षेत्र भौगोलिक नजरिए से महत्वपूर्ण है

अलीगढ़ जिले की पांच तहसीलों में से एक है खैर तहसील, इसी नाम से विधानसभा सीट भी है। आजादी के बाद साल 1951 में ये विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी। इस विधानसभा क्षेत्र के तहत 178 गांव शामिल हैं। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थित अति महत्वपूर्ण है। दिल्ली को अलीगढ़ से जोड़ने वाला हाईवे भी यहीं से गुजरता है। यहां से सीधे दिल्ली, नोएडा, आगरा, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, पलवल और फरीदाबाद आदि जगहों तक  पहुंचा जा सकता है। इसकी दक्षिणी सीमा पर यमुना एक्सप्रेस वे है। इसी इलाके में नया अलीगढ़ विकसित किया जा रहा है। इसकी सीमा पर राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्टेट यूनिवर्सिटी और ट्रांसपोर्ट नगर बन रहा है। तो डिफेंस कॉरिडोर की वजह से इस विधानसभा क्षेत्र के वाशिंदो में विकास की उम्मीदें जगी हैं।

     

खैर विधानसभा क्षेत्र में उपजाऊ धरा होने के बावजूद किसानों की दिक्कतें बहुतेरी हैं

यह जिले की प्रसिद्ध व्यापारिक मंडी है। गंगा-यमुना दोआब वाला ये क्षेत्र अति उपजाऊ है। यहां गेहूं, तिलहन, जौ, ज्वार, कपास और गन्ना का व्यापार प्रचुरता में होता है। पर किसानों को कई चुनौतियो का भी सामना करना पड़ता है। जिसमें फसल का उचित मूल्य न मिलना, बीज पर पैसा बढ़ना, सिंचाई के लिए पानी की कमी और बिजली आपूर्ति की अव्यवस्था सरीखे अहम मुद्दे शामिल हैं। बीती 28 अगस्त को यहां पहुंचे सीएम योगी ने पांच हजार से अधिक युवाओं को नियुक्ति पत्र बांटे, उद्यमियों को 35 करोड़ के ऋण दिए तो 1500 युवाओं को टैबलेट वितरित किए। यहां 705 करोड़ रुपए की लागत वाली 305 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास करके अपनी सरकार की ओर से विकास को गति दिए जाने के बाबत संदेश भी दिया गया।

     

धार्मिक महत्व के स्थलों के साथ ही पर्यटन के महत्वपूर्ण केंद्र हैं इस क्षेत्र में

खैर विधानसभा क्षेत्र में कई स्थल पौराणिक महत्ता के मौजूद हैं। इनमें से खेरेश्वर धाम मंदिर अति प्रसिद्ध है। इसका संबंध द्वापर युग से माना जाता है। आस्था है कि यहां भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों के साथ आकर शिवलिंग की पूजा और हवन किया था। गढ़ी उर्फ नगला श्यौराम का सूर्य मंदिर भी आस्था का बड़ा केंद्र है। मान्यता है कि यहां गुरु गोरखनाथ ने तपस्या की थी जिस वजह से यहां सिद्धपीठ बनाई गई है। उसरम गांव का फूलडोल मेला प्रसिद्ध है। तो इसी क्षेत्र में पथवारी मंदिर, चामुंडा मंदिर में बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां का तालेश्वर मंदिर धार्मिक महत्व के साथ ही पर्यटन स्थल भी है।

    

जातीय समीकरणों और आबादी के आंकड़ों के आईने में खैर विधानसभा सीट

इस सीट पर वोटरों की तादाद 4,02819 है। जाट बाहुल्य इस सीट पर डेढ़ लाख जाट वोटर हैं। इसके बाद सर्वाधिक 70 हजार ब्राह्मण बिरादरी है। 55 हजार अनुसूचित जाति और 40 हजार ओबीसी वोटर हैं। यहां 35 हजार मुस्लिम, 30 हजार क्षत्रिय वोटर हैं। तो बीस हजार वैश्य बिरादरी के वोटर भी हैं। अनुसूचित जातियों में जाटव, वाल्मीकि व सूर्यवंशी (खटीक) बिरादरियां शामिल हैं। यहां ब्राह्मणों की बाइसी भी मशहूर है। दरअसल, ब्राह्मण बिरादरी के 22 गांव एक साथ हैं। जिनमें चालीस हजार के करीब वोटर हैं। इनके बीच अपनी पैठ बनाने के लिए सभी दल लालायित रहते हैं। क्षेत्र में कहावत है कि जिसके साथ बाइसी...उसके सिर पर ताज।

हालांकि चुनावी इतिहास तस्दीक करता है कि इस सीट पर जाट और दलित वोटरों का रुख निर्णायक साबित होता है.

  

खैर सीट पर कांग्रेस के साथ ही चौधरी चरण सिंह का खासा प्रभाव रहा

साल 1952 और 1957 में हुए चुनाव में खैर कम कोईल नॉर्थ वेस्ट सीट से कांग्रेस के रामप्रसाद देशमुख और मोहनलाल गौतम चुनाव जीते। साल 1962 में स्वतंत्र पार्टी के चैतन्य राज सिंह खैर सीट से विधायक चुने गए। 1967 में कांग्रेस के पियारे लाल को यहां से जीत मिली। जबकि साल 1969 मे चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल से महेंद्र सिंह को जीत हासिल हुई। इसके बाद लगातार दो चुनावों में पियारे लाल विधायक बने। साल 1974 में वह कांग्रेस प्रत्याशी थे तो इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी के टिकट से चुनाव जीते। साल 1980 में इस सीट पर शिवराज सिंह की कामयाबी के बाद कांग्रेस की फिर वापसी हुई। पर 1985 में यहां लोकदल के जगवीर सिंह जीत गए। उन्होंने 1989 में जनता दल के टिकट से जीत हासिल की।

            

नब्बे के दशक से यहां बीजेपी ने दस्तक दी फिर बीएसपी और रालोद का प्रभाव कायम हुआ

राममंदिर आंदोलन की शुरुआती लहर में खैर सीट पर 1991 में चौधरी महेंद्र सिंह चुनाव जीते और पहली बार बीजेपी का खाता खोल दिया। 1993 में जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर जगबीर सिंह ने फिर चुनाव जीता। पर 1996 में ये सीट फिर बीजेपी के पास चली गई। तब यहां से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती यहां से विधायक चुनी गईं। साल 2002 में यहां से बीएसपी के प्रमोद गौड़ जीते। तो साल 2007 में रालोद के सत्यपाल सिंह यहां से विधायक चुने गए। साल 2012 में ये सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित कर दी गई। तब भी यहां रालोद को ही जीत मिली उसके प्रत्याशी के तौर पर भगवती प्रसाद को जीत मिली।

         

मिनी छपरौली कहलाने वाली खैर सीट पर दो चुनाव से बीजेपी का दबदबा रहा

साल 2017 में यहां से बीजेपी के अनूप प्रधान ने अपना परचम फहराया। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में फिर से बीजेपी इस सीट पर काबिज होने मे कामयाब हो गई थी। तब बीजेपी के अनूप वाल्मीकि को 138643 वोट मिले थे जो कुल वोटों का 55.55 फीसदी था। जबकि बीएसपी प्रत्याशी चारू कैन 65302 वोट ही पा सकी थीं। तब अनूप प्रधान ने 74,341 वोटों के मार्जिन से ये सीट जीत ली थी। रालोद के भगवती प्रसाद सूर्यवंशी को 41644  और कांग्रेस की मोनिका सूर्यवंशी को महज 1494 वोट ही मिल सके थे।2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राजवीर दिलेर की जगह खैर विधायक अनूप वाल्मीकि को हाथरस से प्रत्याशी बनाया और उनके सांसद चुने जाने के बाद रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव हो रहा है।

         

सपा का कभी यहां से खाता नहीं खुला पर लोकसभा चुनाव में मिली बढ़त

इस सीट पर समाजवादी पार्टी कभी भी अपना खाता नहीं खोल सकी। साल 2012 में जब सूबे में सपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी तब भी खैर सीट पर उसकी जमानत तक जब्त हो गई थी। साल 2017 में सपा को यहां से महज 4% वोट ही मिल सके थे। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी रालोद के भगवती प्रसाद तीसरे पायदान पर रहे थे। हालांकि इस साल हुए लोकसभा चुनाव में सपा के लिए जरूर कुछ उम्मीदें जगी हैं। दरअसल, साल 2019 में खैर सीट से 71 हजार वोटों की बढ़त पाने वाली  बीजेपी को गुटबाजी के चलते साल 2024 में करारा झटका लगा। क्योंकि अलीगढ़ सीट जीतने वाली बीजेपी के प्रत्याशी सतीश गौतम खैर सीट पर सपा-कांग्रेस गठबंधन के चौधरी बिजेन्द्र सिंह से 1401 वोटों से पिछड़ गए थे।

     

चुनावी  बिसात पर डटे सियासी योद्धाओं का ब्यौरा

बीजेपी ने इस सीट पर सुरेंद्र दिलेर पर दांव लगाया है। सपा से चारू कैन चुनावी मुकाबले में हैं तो बीएसपी से डॉ पहल सिंह हैं। आजाद समाज पार्टी से नितिन चौटेल चुनाव मैदान में हैं। बीजेपी प्रत्याशी सुरेंद्र दिलेर प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनके दादा किशनलाल दिलेर एक बार विधायक और चार बार हाथरस लोकसभा सीट से सांसद रहे थे। इनके  पिता राजवीर सिंह दिलेर भी इगलास सुरक्षित सीट से विधायक और हाथरस से एक बार सांसद चुने गए थे। वहीं, सपा प्रत्याशी चारू केन अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखती हैं। ये पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष तेजवीर सिंह गुड्डू की पुत्रवधू हैं। जो कि क्षेत्र के बड़े जाट नेता माने जाते हैं। जाट परिवार की बहू होने का नाते चारू इमोशनल कार्ड चलकर वोटरों से अपील कर रही हैं। इन दो सियासी घरानों के प्रत्याशियों से मुकाबला कर रहे बीएसपी के डा पहल सिंह राजनीति में सक्रिय होने वाले अपने परिवार के पहले शख्स हैं। बामसेफ के कार्यकर्ता रहे थे। 2018 में नगर निगम में स्वास्थ्य अधिकारी के पद से रिटायर होने के बाद बीएसपी में शामिल हुए थे।

         

जातीय समीकरणों के साथ ही ध्रुवीकरण की भी कोशिशें तेज

भले ही सपा खैर से खाता न खोल सकी हो पर लोकसभा चुनाव में मिली बढ़त से उसके हौसले बुलंद हैं। मुस्लिम वोटरों का एकमुश्त समर्थन पाने की आस संजोए सपाई खेमा जाट-दलित समीकरण साधने में जुटा है। तो बीजेपी अपनी इस जीती हुई सीट पर हैट्रिक लगाने को प्रयासरत है। यहां की चुनावी सभा में सीएम योगी ने 'बंटोगे तो कटोगे' का नारा बुलंद किया तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा भी उठाया। यहां दलितों व पिछड़ों को आरक्षण दिए जाने की बात कही। यहां बीजेपी खेमे के लिए गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती है। इसे ही भांपकर सीएम योगी जब भी यहां पहुंचे उन्होंने कार्यकर्ताओं को एकजुट होने की नसीहत दी। सहयोगी दल भी अपने अपने गठबंधन के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। अपनी सियासी विरासत बरकरार रखने की जंग लड़ रहे सुरेंद्र दिलेर के समर्थन में रालोद मुखिया जयंत चौधरी मशक्कत कर रहे है तो कांग्रेस के नसीमुद्दीन सिद्दीकी गठबंधन प्रत्याशी चारू कैन के पक्ष में वोटरों को लामबंद करने की कोशिश कर रहे हैं। कभी यहां का मुकाबला त्रिकोणीय बनाने वाली रालोद अब बीजेपी के साथ है। पहली बार इस सीट पर मुकाबला सीधे तौर से बीजेपी और सपा के दरमियान सिमटा हुआ है।

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