Saturday 23rd of November 2024

UP Politics: सज गया अलीगढ़ लोकसभा सीट का चुनावी मैदान, यहां जानें इतिहास

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  April 05th 2024 11:56 AM  |  Updated: April 05th 2024 11:56 AM

UP Politics: सज गया अलीगढ़ लोकसभा सीट का चुनावी मैदान, यहां जानें इतिहास

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP : यूपी के ज्ञान में आज हम चर्चा करेंगे अलीगढ़ संसदीय सीट की। प्राचीन काल में इसका नाम कोल हुआ करता था। महाभारत काल में यहां कौशिरिव-कौशल नामक चन्द्रवंशी राजा का शासन था, वाल्मीकि रामायण में भी इसका उल्लेख मिलता है। बाद कौशरिव को पराजित कर कोल नामक एक दैत्यराज यहां का शासक बना। जिसने इसका नाम कोल कर दिया। इसी कालखँड में पांडव हस्तिनापुर से अपनी राजधानी आज के बुलन्दशहर लेकर आए थे। बाद में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने कोल को जीतकर पांडवों को दे दिया।  मंगलायतन मंदिर, नोदेवी मंदिर, शेखा झील, बोना चोर किला, जामा मस्जिद ऊपरकोट यहां के प्रसिद्ध दार्शनिक स्थल हैं। 

 महाभारत काल से ही चर्चित था कोल यानि आज का अलीगढ़

 मथुरा म्यूजियम में रखे हुए 200 ईसा पूर्व के सिक्के अलीगढ़ के हरदुआगंज, सासनी और लाखनू के समीप की गई खुदाई में मिले थे। यहां का अचलेश्वर धाम का मौजूदा मंदिर 500 साल पुराना है, इस स्थल का वर्णन पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है। द्वापरयुग में महाभारत काल में पांडव को अज्ञातवास दिया गया था। पांडव के दोनों छोटे भाई नकुल और सहदेव यहां आए थे, उन्होंने सरोवर में स्नान करके पूजन किया था। 

मध्यकाल  से ब्रिटिश हुकूमत तक का अलीगढ़ का सफर

अलीगढ़ गजेटियर के लेखक एसआर नेविल के मुताबिक दिल्ली के तोमर वंश के राजा अनंगपाल सिंह के शासन काल में बुलंदशहर में विक्रमसैन का शासन था जबकि इस वंश के कालीसैन के पुत्र मुकुन्दसैन उसके बाद गोविन्दसैन और फिर विजयीराम के पुत्र बुद्धसैन भी अलीगढ़ के शासक रहे। मथुरा और भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने सन् 1753 में कोल पर अपन आधिपत्य जमा लिया। उन्होने ऊंचाई पर स्थित अपने किले की बजाए एक नए भूमिगत किले का निर्माण कराया।  सन 1760 में इसका नाम रामगढ़ किला रखा।  6 नवम्बर 1768 में यहां सरदार मिर्जा साहब का कब्जा हो गया। उसके सिपहसालार अफरासियाब खान ने साल 1775 में पैगंबर मुहम्मद के दामाद अली के नाम पर इस जिले का नामकरण अलीगढ़ कर दिया। ऊपर कोट इलाके में बनी जामा मस्जिद को मुगल काल में कोल के गवर्नर साबित खान ने 1728 में तैयार करवाया।  बाद में ये इलाका मराठों के कब्जे में आ गया। 1803 में मराठों संग भीषण युद्ध के बाद इस पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। 1804 मे कोल गढ़ी के नाम से चर्चित पूरे शहर का नाम अलीगढ़ कर दिया और कोल नाम भी इसी नाम में समाहित हो गया।

 यहां की सराय खासी मशहूर हुआ करती थींअलीगढ़ का जिक्र यहां कभी मौजूद रहीं सरायों के बिना अधूरा कहा जाएगा। साल 1909 के सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक तब इस शहर में 126 मोहल्ले हुआ करते थे, जिनमें बहुतेरी सराय थीं। ये सराय आज के होटलों के मानिंद होती थी। चूंकि अलीगढ़ व्यापारिक पथ का अहम मुकाम था लिहाजा दूर दराज के व्यापारी यहीं पर रात्रि विश्राम के लिए पड़ाव डालते थे। व्यापारियों के ठहरने व खाने पीने के साथ उनके मवेशियों के लिए चारे- पानी की व्यवस्था भी इन सरायों में होती थी। पेशे से चिकित्सक हकीम असद अली की सराय मशहूर थी। आज इसी नाम पर यहां का सराय हकीम मोहल्ला बसा हुआ है। यहां सराय रहमान, सराय लवरिया, सराय बेर, सराय सुल्तानी भी जानी मानी थीं।

ताला निर्माण की नींव अंग्रेजी हुकूमत के दौर मे पड़ीताला निर्माण यहां का प्रमुख कुटीर उद्योग है। जानकारों के मुताबिक ब्रिटिश काल में 1870 ईस्वी में एक अंग्रेज व्यापारी ने यहां ताला कारोबार की शुरुआत की। उसने  जॉनसन एंड कंपनी की स्थापना की और ताला बनाया जाने लगा। 1890 में अलीगढ़ में ताला उत्पादन की पहली फैक्ट्री स्थापित की गई। अंग्रेजों ने 1926 में एक वर्कशॉप स्थापित किया, जिसमें शिल्पकारों  को ताला बनाने की ट्रेनिंग भी दी। जिसके बाद में यहां पर ताला निर्माण की नींव पड़ गई। आज यहां हजारों किस्मों के ताले बनाए जाते हैं जो बेहतरीन गुणवत्ता के होते हैं। यहां ताला लोहे के  अलावा पीतल, तांबा और एल्यूमीनियम के उपयोग से भी  बनाया जाता है। का उपयोग करके भी बनाया जाता है.। आज अलीगढ़ में 9000 से अधिक ताला निर्माण की यूनिट हैं। जिनमें दो लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

अलीगढ़ के अनोखे तालों का है विश्व रेकार्डस्थानीय कारीगर सत्य प्रकाश शर्मा ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर 300 किलो वजन का एक बड़ा ताला बनाया जो 6 फीट 2 इंच लंबा और 2 फीट साडे 9 इंच चौड़ा है।  इस ताले की चाबी का वजन 25 किलो है। ये ताला दुनिया में खासा चर्चित रहा है।

 एएमयू है इस शहर की पुख्ता शिनाख्तअलीगढ़ की पहचान जिस एएमयू यानि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के तौर पर होती है उसका अस्तित्व 1920 में सामने आया। इससे पहले ये मुहम्मद  एंग्लो ओरिएंटल कालेज हुआ करती थी जिसकी स्थापना सर सैयद अहमद खान ने 1875 में एक स्कूल के तौर पर की थी। यहां की मौलाना आजाद लाइब्रेरी एशिया की दूसरी सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी है। इसकी सात मंजिला इमारत करीब 4.75 एकड़ में फैली हुई है। इसमें करीब 14 लाख से अधिक किताबें हैं।

चुनावी इतिहास के झरोखे से

पहले अलीगढ़ और हाथरस लोकसभा क्षेत्र के लिए एक मतदाता दो वोट डालता था। तब अलीगढ़ सामान्य और हाथरस आरक्षित सीट थी। 1962 के बाद दोनों लोकसभा क्षेत्र अलग-अलग हो गए। अलीगढ़ में सबसे पहले लगातार 4 बार कांग्रेस प्रत्याशियों को जीत मिली थी. इसके बाद रिपब्लिकन पार्टी, भारतीय क्रांति दल, जनता पार्टी, जनता दल, बसपा और बीजेपी प्रत्याशियों को भी अलीगढ़ से जीत मिली। 1952 और 1957 के चुनाव में कांग्रेस को बड़े अंतर से विजय हासिल हुई। 1962 से लेकर के 1980 तक हुए चुनाव कांग्रेस को हार मिलती रही।  1962 में आरपीआई ने चुनाव जीता तो 1967 और 1971 में भारतीय क्रांति दल को जीत मिली।

इमर्जेंसी के बाद बदला चुनावी गणित

1977 और 1980 में यहां से जनता दल का परचम फहराया। लेकिन 1984 में कांग्रेस ने फिर वापसी की। 1989 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर सत्यपाल मलिक ने जीत हासिल की। जो बाद में जम्मू कश्मीर के गवर्नर भी बने।

नब्बे के दशक से  बीजेपी की पकड़ हुई मजबूत

राममंदिर आंदोलन के दौर के शुरू होने के बाद यहां बीजेपी ने अपनी जड़ें जमा लीं। 1991 के बाद 1996, 1998 और 1999 में लगातार 4 चुनाव में बीजेपी की शीला गौतम ने जीत दर्ज की। 2004 में बीजेपी को मात देकर  कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह जीत गए।  2009 में इस सीट पर बीएसपी के राजकुमार चौहान को फतह मिली।

दो आम चुनावों में लगातार जीतकर सांसद बने सतीश गौतम

2014 और 2019 में बीजेपी के सतीश गौतम जीतकर संसद पहुंचे। 2014 की मोदी लहर में सतीश गौतम ने बीएसपी के अरविंद कुमार सिंह को 2,86,736 वोटो के अंतर से हराया था। 2019 में बीजेपी के सतीश कुमार गौतम की जीत का मार्जिन थोड़ा कम हुआ। तब उन्होने 656,215 वोट हासिल कर बीएसपी के डॉक्टर अजित बालियान 229,261 मतों के अंतर से हरा दिया था।

समाजवादी पार्टी को किया मायूस अलीगढ़ ने

अब तक हुए 17 बार हुए लोकसभा चुनाव में से कांग्रेस को चार, बसपा को एक बार, भाजपा को छह बार, रिपब्लिकन पार्टी को एक, भारतीय क्रांति दल को दो, जनता दल को एक और जनता पार्टी को दो बार जीत हासिल हुई है। पर समाजवादी पार्टी का खाता नहीं खुल सका।

दिग्गज नेता कल्याण सिंह की है कर्मभूमि

2009 में इगलास विधानसभा क्षेत्र अलीगढ़ में था, जबकि अतरौली विधानसभा सीट हाथरस लोकसभा क्षेत्र में। इसके बाद नया परिसीमन लागू हुआ। अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र की छर्रा और इगलास विधानसभा सीट हाथरस लोकसभा क्षेत्र में शामिल हो गई। यूपी के सीएम  व राजस्थान के गर्वनर रहे बीजेपी के कद्दावर नेता कल्याण सिंह का अलीगढ़ गृह जनपद है। यहीं अध्यापन का कार्य करने के बाद वे राजनीति में उतरे और शीर्ष पर पहुंचे। स्व कल्याण सिंह के बेटे राजबीर सिंह एटा से सांसद हैं तो प्रपोत्र संदीप सिंह योगी सरकार में मंत्री हैं। 

2022 के विधानसभा में बीजेपी का परचम फहराया

2022 में यहां की सभी सीटें बीजेपी के खाते में गईं। खैर सुरक्षित से अनूप प्रधान, बरौली से ठाकुर जयवीर सिंह, अतरौली से  संदीप सिंह, कोल से अनिल पराशर और अलीगढ़ से मुक्ता राजा को कामयाबी मिली।

जातीय समीकरण का ताना बाना

यहां करीब 19 लाख वोटर्स हैं। तीन  लाख मुस्लिम, ढाई लाख जाट, दो लाख जाटव, डेढ़-डेढ़ लाख ब्राह्मण व क्षत्रिय वोटर हैं। तो एक एक लाख वैश्य-बघेल, यादव और लोध बिरादरियां हैं। भले ही इस क्षेत्र को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है, लेकिन 1957 के बाद से आज तक  इस सीट सेएक भी मुस्लिम उम्मीदवार विजयी नहीं हुआ है

आगामी चुनाव की चौसर सजी

2024 के चुनाव में बीजेपी ने सतीश गौतम को प्रत्याशी बनाया है। बीएसपी ने पहले गुफरान नूर को टिकट दिया फिर बदलकर हितेन्द्र कुमार उर्फ बंटी उपाध्याय को यहां उतारा है। तो सपा की ओर से चौधरी बिजेन्द्र सिंह ताल ठोक रहे हैं। सबके अपने समीकरण और जीत के दावे हैं। हालांकि मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है। 

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