Sunday 19th of January 2025

बिजली तंत्र का निजीकरण: आशंकाएं व सवाल-1

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  December 03rd 2024 03:29 PM  |  Updated: December 03rd 2024 03:29 PM

बिजली तंत्र का निजीकरण: आशंकाएं व सवाल-1

ब्यूरो: UP News:  मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की..........ये कहावत इन दिनों सटीक बैठ रही है यूपी के ऊर्जा महकमे पर। सूबे की बिजली कंपनियां भारीभरकम घाटे से कराह रही हैं, इन्हें इस बोझ से उबारने के लिए निजीकरण की कोशिशें शुरू की गईं। पर घाटे का ये सरकारी इलाज इंजीनियरों और कर्मचारियों को नहीं भा रहा है। अब निजीकरण के फैसले का जमकर विरोध होने लगा है। समय रहते सभी  पक्षों का भरोसा जीतने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में इस मुद्दे को लेकर बड़ा आंदोलन छिड़ सकता है। बिजली निगमों में औद्योगिक अशांति पनप सकती है। 

   

बेतहाशा घाटा बताया जा रहा है निजीकरण के पीछे की बड़ी वजह

यूपी में बिजली कंपनियां 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये के भारीभरकम घाटे के बोझ तले दबी हुई हैं। आज से चौबीस साल पहले साल 2000 में यही घाटा महज 77 करोड़ रुपये हुआ करता था। सूबे में बिजली व्यवस्था सुधार करने और घाटा घटाने की कोशिशें कागजों पर तो बहुतेरी हुईं। पर घाटा सुरसा की मुंह की तरह फैलता ही चला गया। यूपी पावर कारपोरेशन (यूपीपीसीएल) की दलील है कि घाटे के चलते उसे सरकार से बार-बार मदद लेनी पड़ती है। मदद का ये मद लगातार बढ़ता जा रहा है पर घाटा पाट पाना संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में यही विकल्प बचता है कि निजी कंपनियों के साथ साझेदारी करके बिजली कंपनियों को घाटे से उबारा जाए और उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली दी जा सके।

 

पहले चरण के प्रयोग के दायरे में लाया जाएगा पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत तंत्र को

 यूपीपीसीएल अब पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को बांटकर पांच नई कंपनियां बनाने की राह पर है। इनमें से पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को गोरखपुर, प्रयागराज व वाराणसी को केंद्र में रखते हुए तीन कंपनियां बनाई जाएंगी। जबकि दक्षिणांचल में आगरा व झांसी को केंद्र में रखकर दो कंपनियां बनाई जाएंगी। नई कंपनियों में हर के हिस्से में तकरीबन 30-35 लाख उपभोक्ता जुड़ जाएंगे। नई कंपनियों की सीमाएं इनके मंडलों व जिलों में इस तरह से किए जाएंगे कि इनके प्रशासनिक नियंत्रण में असुविधा न हो। प्रत्येक कंपनी में बड़े नगर के साथ ही नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र भी होंगे। बीते हफ्ते यूपीपीसीएल के मुख्यालय शक्ति भवन में एक अहम बैठक के दौरान कारपोरेशन के पांचों डिस्कॉम पूर्वांचल , मध्यांचल , दक्षिणांचल , पश्चिमांचल एवं केस्को के प्रबंध निदेशकों, निदेशकों और मुख्य अभियंताओं ने प्रबंधन को इस विभाजन के बाबत सुझाव दिए थे।

 

निजी व्यवस्था के बावजूद कर्मचारियों-उपभोक्ताओं के हितों को महफूज रखने का वायदा हो रहा है

निजी कंपनियों को जिम्मा सौंपने को आतुर यूपीपीसीएल की तरफ से बताया जा रहा है कि पांच कंपनियों के बनने से कई निवेशक आएंगे और प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। रिफार्म प्रक्रिया में भाग लेने वाली निजी कंपनियों के लिए बिडिंग प्रक्रिया पूरी तरह खुली, पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक रखी जाएगी। निजी कंपनियों को जमीन का स्वामित्व नहीं दिया जाएगा। उनको केवल विद्युत वितरण संबंधी कार्यों की अनुमति मिलेगी। ये निजी कंपनियां डिस्कॉम की संपत्तियों का उपयोग शापिंग माल, दुकान या कांप्लेक्स या दूसरे किसी कार्मशियल कामों में नहीं कर सकेंगी। इन सभी कंपनियों के अध्यक्ष मुख्य सचिव होंगे। शासन की सीधी निगाहें कंपनियों के कामकाज पर रहेगा जिससे अधिकारियों, कर्मचारियों, किसानों एवं उपभोक्ताओं का हित सुरक्षित रह सकेगा।

   

कार्मिकों की सेवा शर्तें, सेवानिवृत्ति के लाभ यथावत रखने का भरोसा दिया जा रहा है

नई व्यवस्था के तहत अधिकारियों-कर्मचारियों की सेवा शर्तों, वेतन और पदोन्नति को लेकर पारदर्शी व स्पष्ट इंतजाम करने की बात की गई है।  पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष गोयल के मुताबिक विद्युत अधिनियम-2003 की धारा-133 में स्पष्ट उल्लेख है कि ट्रांसफर स्कीम में किसी भी अधिकारी एवं कर्मचारी की छंटनी नहीं की जा सकती है। नई कंपनी में मर्जर के बाद भी इन कैडर को सेवा में रखना अनिवार्य होगा। उनकी सेवा-शर्तें पूर्व से किसी भी प्रकार से कम नहीं की जा सकती हैं। पेंशन का सारा दायित्व पूर्व की तरह राज्य सरकार का होगा।

 

अफसरों-कर्मचारियों के सामने यथावत काम जारी रखने से लेकर वीआरएस तक का विकल्प रहेगा

नई व्यवस्था में सेवारत कर्मियों के सामने तीन विकल्प होंगे। पहला वह जिस स्थान पर हैं बने रहें, दूसरा किसी अन्य कंपनी में चले जाएं और तीसरा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस का लाभ ले लें। वीआरएस लेने वाले कर्मचारियों पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद दो वर्ष तक कहीं और नौकरी न करने का प्रतिबंध नहीं होगानई कंपनियों के अस्तित्व में आने के बाद इसमें कार्यरत अफसरों व कर्मचारियों के पावर कारपोरेशन में  वापस आने पर प्रमोशन बाधित न होने पाए इसके लिए भी बंदोबस्त किए जाने की बात कही गई है। अगर अधिकारी व कर्मचारी सुधार की प्रक्रिया में सहयोग करेंगे तो नई कंपनी में हिस्सेदारी देने पर विचार किया जाएगा।

   

निजीकरण की नई व्यवस्था से कर्मचारियों में आशंकाएं हुई बलवती

बिजली कर्मचारियों में तमाम तरह की आशंकाएं पनपने लगी हैं। उन्हें आशंका है कि इस नए प्रस्ताव के लागू होने के बाद 68 हजार कर्मचारियों पर छंटनी की तलवार लटक सकती है। इसके अलावा सेवा शर्तें भी प्रभावित होने का भी भय जताया जा रहा है, डिमोशन होने का भी खतरा महसूस किया जा रहा है। वहीं, निजीकरण के बाद आरक्षण की व्यवस्था के  भी बिखर जाने की आशंकाएं जताई जा रही हैं।

 

निजीकरण के फैसले के विरोध के मद्देनजर व्यापक आंदोलन की आशंका तेज

बिजली के निजीकरण के फैसले के खिलाफ देशभर के बिजली कर्मचारी और इंजीनियर लामबंद होने लगे हैं। इस मुद्दे पर संभावित विरोध से वाकिफ यूपीपीसीएल चेयरमैन डॉ़ आशीष कुमार गोयल ने सभी कमिश्नर, डीएम, पुलिस कमिश्नरों और कप्तानों को पत्र लिखा है। जिसमें बताया है कि बिजली इंजिनियर और कर्मचारी नई व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन कर सकते हैं जिनसे निपटने के लिए तैयार रहना होगा। इस मुद्दे को लेकर सियासत भी तेज होने के भरपूर आसार हैं। 

यूपी में ऊर्जा महकमे में यूं हुई तब्दीलियां
1959राज्य विद्युत परिषद का गठन हुआसाल 2000 तक बिजली तंत्र का प्रबंधन पूरी तरह से इंजिनियरों के ही जिम्मे था।
2000यूपीपीसीएल का गठन हुआ।उत्पादन और जल विद्युत इकाइयां भी गठित हुईं।
2003ट्रांसमिशन इकाई और वितरण के लिए चार इकाइयों का गठन हुआ।

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