UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में फूलपुर संसदीय सीट, नेहरू की विरासत वाली सीट पर कांग्रेस हुई पस्त

By  Rahul Rana May 24th 2024 03:36 PM

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे फूलपुर संसदीय सीट की। फूलपुर यूं तो प्रयागराज शहर की एक तहसील है। लेकिन इसी नाम की संसदीय सीट भी है। जिसमें इस ऐतिहासिक शहर का दो तिहाई हिस्सा और गंगापार का क्षेत्र शामिल है। कुंभ के आयोजनों के चलते यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर का व्यापक विस्तार हुआ है। रेलवे ओवर ब्रिज, अंडर ब्रिज और बड़े पैमाने पर सड़कों के चौड़ीकरण, हाइवे निर्माण का काम हुआ है। हालांकि इस क्षेत्र के ग्रामीण अंचल में विकास की रफ्तार अभी तक धीमी है।

संसदीय सीट के तहत शामिल प्रसिद्ध आस्था स्थल

वाराणसी का नाम वरुणा और असी नदी के मेल से रखा गया है। इसमे से जिस वरुणा नदी का जिक्र होता है उसका उदगम स्थल फूलपुर की मैलहन झील है। मान्यता है कि यहां का वरुणा मंदिर स्वयं वरुण देव द्वारा स्थापित किया गया है। इस क्षेत्र में रानी का तालाब और रानी की कोठी महत्वपूर्ण स्थल हैं। फूलपुर में दुर्वासा ऋषि आश्रम, फाफामऊ में श्रृंगवेरपुर धाम, पाण्डेश्वर नाथ धाम, बांकेश्वर नाथ धाम, गौरैया देवी मंदिर, कोरांव में शोभनाथ मंदिर, शहर पश्चिमी में बरखंडी महादेव मंदिर सैदपुर, शहर उत्तरी में प्राचीन हनुमान मंदिर अति प्रसिद्ध हैं।

फूलपुर क्षेत्र के दर्शनीय स्थल

कनिहार में एक पक्षी विहार हैं यहीं पर दानवीर कर्ण का मन्दिर हैं जहाँ पर हर वर्ष मेला लगता है जिसे कर्णतीर्थ कहते है। न्यू यमुना ब्रिज, इलाहाबाद म्यूजियम यहां के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, एमएनएनआइटी जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान और आनंद भवन सरीखे ऐतिहासिक स्थल इसी संसदीय क्षेत्र की परिधि में स्थित हैं।

उद्योग धँधे और विकास का आयाम

नैनी के बाद फूलपुर प्रयागराज का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र हैं। इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड कंपनी यानि इफको फूलपुर में ही है। इसकी ओर से यहां नैनो उर्वरक संयंत्र (एनएफपी) स्थापित किया गया है। कुंभ नगरी प्रयागराज में एक और औद्योगिक गलियारा बनाने की तैयारी है। शंकरगढ़ के बाद यह औद्योगिक गलियारा सोरांव क्षेत्र में बनेगा। जो कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के किनारे बनाए जा रहे औद्योगिक गलियारे के लिए उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) ने फूलपुर की खुरचंदा में 150 एकड़ जमीन चिन्हित की है। मध्य प्रदेश के शहडोल से फूलपुर तक एक प्राकृतिक गैस पाइपलाइन तैयार करने की योजना तय की गई है।

चुनावी इतिहास के आईने में फूलपुर संसदीय सीट

आजाद भारत में 86 संसदीय सीटें ऐसी तय की गई थीं जिन पर दो या तीन सांसद चुने जाने थे, एससी और एसटी के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए ये व्यवस्था की गई थी। इनमें फूलपुर संसदीय सीट भी शामिल थी। साल 1952 और 1957 में फूलपुर संसदीय सीट से देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सांसद चुने गए तो इसी सीट से दूसरे सांसद के तौर पर दोनों ही चुनावों में मसुरियादीन को भी सांसद चुना गया। मसुरियादीन को नेहरू बेहद सम्‍मान देते थे, उन्‍हें नेहरू का 'रनिंग मेट' भी कहा जाता था। 1960 में दो सांसदों वाली प्रथा खत्म कर दी गई उसके बाद हुए 1962 के चुनाव में भी फूलपुर से जवाहरलाल नेहरू सांसद बने। तब समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने भी यहां से चुनाव लड़ा था। दो दिग्गज नेताओं की टक्कर ने सुर्खियां तो खूब बटोरी, लेकिन नेहरू की हैट्रिक नहीं रुकी। ये सीट नेहरू सीट के नाम से चर्चित हो गई थी।

पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद इस सीट का परिदृश्य

जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद 1964 में हुए उपचुनाव में नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित  को जीत हासिल हुई। पर उनके संयुक्त राष्ट्र संघ में जाने के कारण ये सीट रिक्त हो गई और इस पर 1969 में हुए उपचुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट प्रत्याशी के तौर पर जनेश्वर मिश्र विजयी हुए। जो बाद में छोटे लोहिया के तौर पर प्रसिद्ध हुए। 1971 में कांग्रेस के वीपी सिंह ने जनेश्वर मिश्र को हरा दिया। 1977 में इस सीट से भारतीय लोकदल की कमला बहुगुणा सांसद चुनी गई। ये हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी थीं। 1980 में जनता पार्टी सेक्युलर से बीडी सिंह सांसद बने। साल 1984 में फूलपुर संसदीय सीट से कांग्रेस के राम पूजन पटेल चुनाव जीते। पर बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर जनता दल से चुनाव लड़ा और साल 1989 और 1991 में इस सीट से चुनाव जीते।

साल 1996 के आम चुनाव से जुड़े रोचक पहलू

फूलपुर संसदीय सीट पर साल 1996  में हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी के जंग बहादुर पटेल जीते। ये बीएसपी संस्थापक कांशीराम के शिष्य हुआ करते थे पर बाद में मुलायम सिंह यादव के साथ आ गए। इससे नाराज होकर कांशीराम खुद यहां से चुनाव लड़े पर अपने ही चेले से हार गए। इस चुनाव में अपना दल के संस्थापक सोनेलाल पटेल भी चुनाव लड़े पर हार गए वहीं, 1996 के चुनाव जिस प्रत्याशी की सर्वाधिक चर्चा हुई उसका नाम था रोमेश वर्मा। माफिया डॉन दाऊद अहमद का करीबी रोमेश निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा। इलाहाबाद से निकलकर मुंबई और दिल्ली में सिनेमा, सियासत और अपराध में पहचान बनाने वाले रोमेश ने चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाया। हेलीकॉप्टर से प्रचार किया पर नतीजा सिफर ही रहा।

नेहरू की विरासत वाली सीट पर कांग्रेस हुई पस्त

साल 1998 में भी फूलपुर सीट से समाजवादी पार्टी के जंग बहादुर पटेल को ही जीत हासिल हुई। 1999 में इस सीट से सपा चुनाव जीती पर उसके प्रत्याशी के तौर पर जीते धर्मराज पटेल। साल 2004 में भी ये सीट सपा के खाते मे दर्ज हुई पर इस बार इसके प्रत्याशी के तौर पर माफिया अतीक अहमद को जीत हासिल हुई। 2009 में यहां बाहुबली नेता कपिल मुनी करवरिया ने जीत हासिल कर बीएसपी का खाता खोला।

बीते दो आम चुनावों में रहा बीजेपी का वर्चस्व बीच के एक उपचुनाव में टूटा

साल  2014 की मोदी लहर मे इस सीट पर बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य विजयी हुए। तब उन्होंने सपा के धर्मराज सिंह को 3,08,308 वोटों के मार्जिन से परास्त किया। कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर क्रिकेटर मोहम्मद कैफ चुनाव लड़े पर चौथे स्थान पर रहे। साल 2017 में केशव प्रसाद मौर्य यूपी के डिप्टी सीएम बनाए गए लिहाजा ये सीट रिक्त हो गई इस पर हुए उपचुनाव में बीजेपी हार गई यहां सपा के नागेंद्र प्रताप पटेल चुनाव जीत गए। पर 2019 में इस सीट को वापस बीजेपी ने जीत लिया। तब बीजेपी की केशरी देवी पटेल ने 544,701 वोट पाकर सपा-बीएसपी के साझा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े पंधारी यादव को 171,968 वोटों के मार्जिन से हरा दिया।

वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण

इस संसदीय सीट में 20, 67,043 वोटर हैं। जिनमें से सर्वाधिक 3.50 लाख कुर्मी हैं।  3 लाख दलित, 2.50 लाख ब्राह्मण हैं। 2.15 लाख मुस्लिम, 2 लाख यादव हैं। 1.70 लाख कायस्थ, 1.50 लाख मौर्य, इतने ही वैश्य, 1-1 लाख पाल और क्षत्रिय वोटर हैं। यहां कुर्मी और कायस्थ वोटरों का भी चुनाव पर बड़ा असर पड़ता रहा है। कुर्मी बाहुल्य क्षेत्र में मुस्लिम वोटरों के साथ ही दलित व ब्राह्मïण वोटर भी निर्णायक होते हैं।  

बीते आम चुनाव में चार सीटें बीजेपी को एक सपा के हिस्से में

फूलपुर संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं--प्रयागराज पश्चिम, प्रयागराज उत्तर, फाफामऊ, सोरांव सुरक्षित और फूलपुर। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से चार पर बीजेपी और एक सीट समाजवादी पार्टी को मिली थी। सोरांव से सपा की गीता शास्त्री, फाफामऊ से बीजेपी के गुरुप्रसाद मौर्य, फूलपुर से बीजेपी के प्रवीण पटेल, इलाहाबाद पश्चिम से बीजेपी के सिद्धार्थनाथ सिंह और इलाहाबाद उत्तरी से बीजेपी के हर्षवर्धन बाजपेई विधायक हैं।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर संघर्षरत योद्धा

मौजूदा चुनावी जंग  के लिए फूलपुर सीट से 15 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी  इस बार यहां से केशरी देवी पटेल की जगह प्रवीण पटेल पर दांव लगाया है। सपा से अमरनाथ मौर्य और बीएसपी से जगन्नाथ पाल चुनावी मैदान में हैं, अपना दल (कमेरावादी) ने महिमा पटेल को प्रत्याशी बनाया है। प्रवीण पटेल 2017 और 2022 में फूलपुर विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर जीते तो साल 2007 में बीएसपी के टिकट से झूंसी से विधायक निर्वाचित हुए थे। उनके पिता महेंद्र प्रताप भी झूंसी (अब फूलपुर विस सीट) से तीन बार विधायक रह चुके हैं।  अन्य पिछड़ी जातियों के ध्रुवीकरण को ध्यान में रखते हुए सपा गठबंधन ने अमरनाथ मौर्य को प्रत्याशी बनाया है। ये  2002 में शहर पश्चिम सीट से बीएसपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे बाद में सपा में शामिल हो गए तो वहीं  जगन्नाथ पाल पुराने बसपाई हैं। वे कांशीराम के चुनाव एजेंट के तौर पर भी काम कर चुके हैं। प्रयागराज जिले की इस संसदीय सीट पर चुनाव त्रिकोणीय नजर आ रहा है। बाढ़-पिछड़ापन-बेरोजगारी सरीखे मुद्दे नेपथ्य में जा चुके हैं, जातीय गोलबंदी के जरिए जीत का ताना बाना बुना जा रहा है।

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