Wednesday 4th of June 2025

बंद कमरे में कैद मायावती, बाहर उन्मादी भीड़ — यूपी की राजनीति का सबसे काला दिन!

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla, Editor, PTC News UP  |  Edited by: Mangala Tiwari  |  June 02nd 2025 11:19 AM  |  Updated: June 02nd 2025 11:19 AM

बंद कमरे में कैद मायावती, बाहर उन्मादी भीड़ — यूपी की राजनीति का सबसे काला दिन!

Lucknow: तीन दशक पहले यूपी की सियासत में जो घटा उसने सारे देश को दहला दिया था। राजनीति में अराजकता की ये अभूतपूर्व घटना था। जब उपद्रवियों की एक भीड़ ने इस कदर कहर बरपाया कि एक राजनीतिक दल की ऐसी नेता की जिंदगी खतरे में पड़ गई। जो इस घटना के बाद यूपी की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुई। राजनीतिक जगत का काला अध्याय माने जाने वाली ये घटना है ‘गेस्ट हाऊस कांड’। तीस साल पहले हुई इस घटना के बाद से ही सपा-बीएसपी के दरमियान रिश्ते दशकों तक तल्ख बने रहे।

 

बात शुरू करते हैं नब्बे के दशक के उस शुरूआती दौर की जब रामजन्मभूमि आंदोलन के दौरान अयोध्या के विवादित ढांचे के ढह जाने के बाद कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन बीजेपी सरकार बर्खास्त कर दी गई थी। साल 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की नींव रखी थी। इसके अगले साल रणनीतिक साझेदारी के तहत मुलायम सिंह यादव ने बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम को साथ लाकर सपा-बीएसपी गठजोड़ बनाया था। साल 1993 के विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन के तहत सपा ने 109 सीटें और बीएसपी ने 67 सीटें जीती थीं। हालांकि 177 सीटें हासिल कर बीजेपी सबसे बड़ा दल बनी थी लेकिन कांग्रेस और दूसरे छोटे दलों के समर्थन ने मुलायम ने सरकार बना ली थी। इस सरकार को बीएसपी ने बाहर से समर्थन दिया था।सरकार तो चल रही थी लेकिन बीच बीच में दोनों गठबंधन के दलों मे तल्खी की खबरें भी सामने आती रहती थीं।

पंचायत चुनाव में सपा की कामयाबी और बीएसपी के हाशिए पर पहुंचने से रिश्ते टूटने लगे:

मुलायम के नेतृत्व वाली सरकार चल रही थी कि साल 1995 में यूपी में पंचायत चुनाव हुए। जिसमें समाजवादी पार्टी को तीस सीटों पर जीत हासिल हुई। बीजेपी को नौ, कांग्रेस को पांच और बीएसपी को महज एक ही सीट मिल सकी थी। जानकार मानते हैं कि यहीं से सपा-बीएसपी गठजोड़ में टूटन की पटकथा लिखनी शुरू हो गईं। एक तरफ मुलायम सिंह यादव बीएसपी के कई विधायकों को अपने खेमे में शामिल करने का जतन करने लगे तो दूसरी ओर बीएसपी ने बीजेपी के संग पींगें बढ़ाना शुरू कर दिया था। सपा-बीएसपी गठबंधन के दरमियान हर रोज तल्खी व अविश्वास के नए नए पन्ने जुड़ते जा रहे थे।

 

मायावती की बीजेपी नेताओं संग मुलाकात से मुलायम का रुख कड़ा होता गया:

तब बीएसपी की नेता के तौर पर मायावती ही सपा-बीएसपी के गठजोड़ के प्रबंधन का जिम्मा संभाले हुए थीं। उनकी बीजेपी के नेताओं से मुलाकात की जानकारी जब मुलायम सिंह यादव को हुई तो वह 23 मई, 1995 को अस्पताल में भर्ती बीएसपी संस्थापक कांशीराम से शिकायत करने पहुंचे। पर कांशीराम ने उनसे बात करने से मना कर दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उसी रात कांशीराम ने बीजेपी नेता लालजी टंडन से फोन पर गठबंधन को लेकर बात की। इसके बाद उन्होंने मायावती से पूछा कि क्या वह सीएम बनना चाहेंगी। इन घटनाक्रमों के दौर में 1 जून 1995 को मायावती लखनऊ पहुंचीं और गठबंधन तोड़ने का फैसला ले लिया गया। बस इसके अगले ही दिन यूपी की सियासत का काला अध्याय यानी गेस्ट हाऊस कांड रच दिया गया।

गठबंधन वापसी की जानकारी से सपाई खेमा इस कदर बिफरा की उपद्रव शुरू हो गया:

2 जून 1995 को लखनऊ के हजरतगंज के मीराबाई स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती बीएसपी विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं। उधर समर्थन वापसी के ऐलान से मुलायम सिंह यादव के खेमे का आक्रोश चरम पर जा पहुंचा था। ‘द पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती’ के लेखक अजय बोस लिखते हैं कि बीएसपी की उस बैठक के दौरान ही जातिसूचक गालियां देते हुए सैकड़ों की संख्या में सपा के कार्यकर्ता और विधायक गेस्ट हाउस में जबरन घुस आए। उन्मादी भीड़ को देख मुख्य द्वार बंद कर दिया गया। जिसे तोड़कर भीड़ अंदर घुस आई और बीएसपी विधायकों को मारने-पीटने के साथ घसीटकर ले जाने लगी। भीड़ ने गेस्ट हाउस का बिजली-पानी तक काट दिया था। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक शोरगुल हंगामे के बीच मायावती एक कमरे में जाकर छिप गई थीं।

 

चश्मदीदों के मुताबिक घोर अराजक माहौल के बीच पुलिस की भूमिका निराशाजनक रही:

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ने बीबीसी में दिए गए अपने बयान में घटना का ब्यौरा कुछ यूं साझा किया, “गेस्ट हाउस के भीतर के कमरे में जहां बैठक चल रही थी, वहां मौजूद बीएसपी नेताओं को सपा के लोगों ने मारना-पीटना शुरू कर दिया।”। प्रधान बताते हैं कि “तभी मायावती जल्दी से जाकर एक कमरे में छिप गईं और अंदर से बंद कर लिया। उनके साथ दो लोग और भी थे। इनमें एक सिकंदर रिज़वी थे। उन्होंने दरवाजे के सामने सोफे और मेज लगा दिए गए थे जिससे चिटकनी टूटने की स्थित में भी दरवाजा न खुल सके। दरवाज़ा पीटा जा रहा था और बीएसपी के कई लोगों की काफी पिटाई की गई। इनमें से कुछ लहूलुहान हुए और कुछ भागने में कामयाब रहे”। प्रधान के मुताबिक तब बीएसपी के नेता सूबे के सीनियर पुलिस अफसरों को फोन कर बुलाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन तब किसी ने फोन नहीं उठाया। अजय बोस की किताब के अनुसार इस उपद्रव को रोकने के लिए पुलिस अफसर विजय भूषण और सुभाष सिंह बघेल ने बड़ी भूमिका अदा की थी। इनकी सख्ती से उपद्रवी भीड़ पीछे हटने को मजबूर हुई थी। पर वह आलोचना करते लिखते हैं कि घटना के वक्त एसएसपी ओपी सिंह वहीं मौजूद थे और कार्रवाई के बजाए सिगरेट फूंक रहे थे।

घटना के ‘खलनायक’ करार दिए गए आईपीएस अफसर की दलील:

दरअसल, इस चर्चित घटना के दौरान लखनऊ के एसएसपी के पद पर तैनात थे ओपी सिंह। जो योगी 1.0 सरकार में सूबे के डीजीपी बने। उन्होंने अपनी किताब ‘क्राइम, ग्रिम एंड गम्प्शन: केस फाइल्स ऑफ एन आईपीएस ऑफिसर’ में इस घटना का विस्तार से वर्णन किया है। ओपी सिंह ने किताब के ‘सुनामी वर्ष’ नामक अध्याय के तहत ‘गेस्ट हाउस’ कांड को आधुनिक भारत के इतिहास में एक ‘अशोभनीय’ राजनीतिक नाटक करार दिया। वह लिखते हैं कि इस घटना ने न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदल दिया, बल्कि देश की राजनीति को भी पूरी तरह से प्रभावित किया। वह संस्मरण में लिखते हैं कि दोपहर करीब 2 बजे उन्हें मीराबाई रोड पर स्थित गेस्ट हाउस में कुछ ‘गैरकानूनी तत्वों द्वारा गड़बड़ी’ को लेकर तत्कालीन डीजीपी का फोन आया। वह शाम 5.20 बजे डीएम व अन्य अधिकारियों के साथ मौके पर पहुंचे। सिंह लिखते हैं कि सुइट संख्या 1 और 2 में उस समय रह रही थीं मायावती। बिजली आपूर्ति बंद होने और टेलीफोन लाइन काट दिए जाने के कारण स्थिति काफी अस्पष्ट थी। पूरी तरह अराजकता की स्थिति थी। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि सुइट्स एक और दो में कड़ी सुरक्षा हो। अचानक हंगामा शुरू हो गया। जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया।

गैस सिलेंडर विस्फोट से मायावती की जान लेने की साजिश की बात या अफवाह:

यूं तो बीएसपी नेताओं का आरोप था कि गेस्ट हाऊस में सिलेंडर लाकर धमाके योजना भी बनाई गई थी। लेकिन पूर्व आईपीएस ओपी सिंह के मुताबिक हालात सामान्य होने तक वह गेस्ट हाउस में ही बने रहे थे। हालांकि इसी बीच तमाम ‘कहानियां और अफवाहें’ तेजी से फैलने लगीं, जिनमें परिसर में एक एलपीजी सिलेंडर लाने की अफवाह भी शामिल थी। उनके मुताबिक घबराई हुई मायावती ने चाय पीने की इच्छा जाहिर की जिस पर गेस्ट हाउस के मैनेजर द्वारा सूचित किया गया कि रसोई गैस खत्म हो गई है। इसके बाद एक सिलेंडर की व्यवस्था की गई। सिंह लिखते हैं कि इसी सिलेंडर को रसोई क्षेत्र की ओर लुढ़का कर ले जाते देख और उससे हुई खड़खड़ की आवाज से यह अफवाह फैल गई कि मायावती को आग लगाने की कोशिश की गईं। वह ये भी लिखते हैं कि मायावती ने उसी दिन राज्यपाल को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि गेस्ट हाउस में एकत्र हुए सपा सदस्यों ने हमला किया और कुछ बीएसपी कार्यकर्ताओं को ‘पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारियों की नाक के नीचे’ उठाकर ले गए।  

 

मायावती ने अपनी आत्मकथा में इस घटना को लेकर मुलायम सिंह पर कड़े आरोप लगाए:

बहरहाल, देर रात राज्यपाल कार्यालय और केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया, बीजेपी के नेताओं का भी जमावड़ा होने लगा। जिसके बाद गेस्ट हाउस में भारी तादाद में पुलिस फोर्स पहुंच गई। माहौल पर काबू पाने के बाद ही मायावती को सुरक्षित बाहर निकाला जा सका। मायावती ने अपनी आत्मकथा 'मेरा संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज मूवमेंट का सफरनामा' में लिखा है कि 'मुलायम सिंह का आपराधिक चरित्र उस समय सामने आया, जब उन्होंने स्टेट गेस्ट हाउस में मुझे मरवाने की कोशिश करवाई। उन्होंने अपने बाहुबल का इस्तेमाल करते हुए न सिर्फ हमारे विधायकों का अपहरण करने की कोशिश की, बल्कि मुझे मारने का भी प्रयास किया। इस घटना के अगले ही दिन बीजेपी, कांग्रेस, जनता दल और कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से मायावती उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बन गईं।

 

गेस्ट हाउस कांड से उपजी नाराजगी आज भी बीएसपी सुप्रीमो के मन में बरकरार है:

इस घटना के बाद से मायावती के दिल में सपा को लेकर नफरत पनप गई थी। हालांकि बाद में साल 2019 में अखिलेश यादव के हाथों में सपा की कमान आने के बाद मायावती ने फिर से सपा के संग गठबंधन तो किया लेकिन ये साथ ज्यादा वक्त तक नहीं चल सका। कहावत भी है कि एक बार मन में अगर गांठ पड़ जाए तब रिश्तों का सफर सहज होना नामुमकिन ही हो जाता है। बीते दिनों जब सपा सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा को लेकर दिए गए विवादित बयान के बाद बवाल हुआ था तब सपा को झिड़कते हुए बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा था कि आगरा की घटना की आड़ में सपा को अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना बंद करना चाहिए, समाजवादी पार्टी को को गेस्ट हाउस कांड याद करके उसका पछतावा भी करना चाहिए।

Latest News

PTC NETWORK
© 2025 PTC News Uttar Pradesh. All Rights Reserved.
Powered by PTC Network