UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में सुल्तानपुर, नब्बे के दशक में इस सीट पर बीजेपी-बीएसपी ने दी दस्तक
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे सुल्तानपुर संसदीय सीट की। फैजाबाद मंडल का प्रशासनिक हिस्सा है सुल्तानपुर जिला। अयोध्या-प्रयागराज और काशी सरीखे धार्मिक केंद्रों के बीच में स्थित है। इसकी उत्तरी सीमा अयोध्या व अंबेडकरनगर, उत्तर पश्चिम में बाराबंकी, पूरब में जौनपुर व आजमगढ़ पश्चिम मे अमेठी दक्षिण में प्रतापगढ़ जिले से घिरी हुई है। आदि गंगा के नाम से जानी जाने वाली गोमती नदी इस जिले को दो हिस्सों में बांटती है। मशहूर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी यहीं के रहने वाले थे। साल 1949 मे तत्कालीन कांग्रेसी सरकार की आलोचना करने के आरोप में दो साल जेल में बंद रहे थे।
पौराणिक-धार्मिक मान्यताओं से भरपूर है सुल्तानपुर जिला
प्राचीन काल में इस जिले का नाम कुशभवनपुर हुआ करता था। दुर्वासा ऋषि, महर्षि वाल्मीकि और महर्षि वशिष्ठ जैसे महान ऋषि-मुनियों की यहां तपोस्थली रही है। यहां गोमती नदी के तट पर सीता कुंड के बारे में मान्यता है कि यहां भगवान श्री राम ने वनवास के दौरान प्रवास और स्नान किया था। यहां के अति प्रसिद्ध विजेथुवा महावीरन मंदिर के बारे में मान्यता है कि इसी स्थान पर हनुमान जी ने दशानन रावण के मामा कालनेमि का वध किया था, क्योंकि संजीवनी बूटी ले जाते समय कालनेमि दानव ने छल से उनका रास्ता रोकने की कोशिश की थी।
मध्यकाल के दौर में क्षेत्र का नाम हुआ सुल्तानपुर
अयोध्या और प्रयाग के मध्य गोमती नदी के दोनों ओर सई और तमसा नदियों के बीच का ये क्षेत्र किसी दौर में अत्यंत दुर्गम स्थल माना जाता था। यह क्षेत्र कुश-काश के लिए पुराने समय से ही प्रसिद्ध रहा है। मध्यकाल में मोहम्मद गोरी के आक्रमण के पहले यह क्षेत्र राजभरों के आधिपत्य में था। खिलजी वंश के शासकों ने यहां के राजा नंद कुंवर भर को पराजित किया। यहां के वैश्य राजपूतों को सुल्तान की उपाधि मिली, इसी सुल्तान की उपाधि के चलते ही इस नगर को सुल्तानपुर कहा जाने लगा। यहीं के एक राजपूत राजवंश के योद्धाओं को भाले से लड़ने में महारत हासिल थी जिसके कारण उन्हें 'भाले सुल्तान' की उपाधि से संबोधित किया गया। भौगोलिक नजरिए से इस क्षेत्र की उपयोगिता को भांपकर अवध के नवाब सफदरजंग ने इसे अवध की राजधानी बनाने की योजना तय की थी लेकिन अमल में नहीं ला सका।
जंगे आजादी के दौरान विप्लव का अहम केन्द्र बना ये जिला
9 जून, 1857 को क्रांतिकारियों ने यहां के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर की हत्या कर दी थी। इनके दमन के लिए निकली अंग्रेजी सेना की चांदा के कोईरीपुर, अमहट और कादू नाले क्षेत्र में जबरदस्त लड़ाई हुई। कर्नल फिशर, कैप्टन गिबिंस और कई अंग्रेज सैन्य अधिकारी मारे गए। यहां नाजिम मेहदी हसन ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया। आजादी के संग्राम के दूसरे दौर में सन 1930 से 1942 तक यहां की जनता ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में यहां के किसान नेता बाबा राम चंद्र और बाबा राम लाल के बलिदान का जिक्र किया है।
प्रमुख धार्मिक व पर्यटन स्थल
यहां गोमती नदी के तट पर पारिजात वृक्ष पर्यटकों का आकर्षण का विशेष केन्द्र रहता है। धोपाप मंदिर, श्रीगौरीशंकर धाम, लोहरामऊ देवी मंदिर, अघोर बाबा पीठ, सत्यनाथ मठ अति प्रसिद्ध हैं। विक्टोरिया मंज़िल, क्राइस्ट चर्च व चमनलाल पार्क इस जिले के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
उद्योग धंधे और विकास का पहलू
इस क्षेत्र में बाध और मूंज से खाट-कुर्सी-मेज-पेनस्टैंड-सूप-बेना या पंखा सरीखे दर्जनों उत्पाद बनाने का काम बहुतायत मे होता है। ये काम ओडीओपी यानि वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना के तहत भी शामिल है। डेढ़ लाख से अधिक लोग इस काम से जुड़े हुए हैं। प्रतिमाह औसतन 3 से 3.5 लाख कुंतल बाध का निर्माण किया जाता है। यहां आयरन एंड स्टील फैब्रिकेशन का काम भी होता है। जिले मे किसान सहकारी चीनी मिल लिमिटेड है। यहां इन्वेस्टर्स समिट के दौरान 907 करोड़ रुपयों की लागत से 135 उद्योग लगाए जाने का खाका तय हुआ है।
चुनावी इतिहास के आईने में सुल्तानपुर
साल 1952 में देश के पहले लोकसभा चुनाव के वक्त इस सीट का अस्तित्व नहीं था तब सुल्तानपुर जिला (दक्षिण) और सुल्तानपुर जिला (उत्तर) - फैजाबाद जिला (दक्षिण-पश्चिम) नाम से दो सीटें थीं। 1957 में अस्तित्व में आई सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर हुए चुनाव में कांग्रेस के गोविंद मालवीय सांसद चुने गए ये जाने माने शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन मालवीय के बेटे थे। 1962 में यहां से कांग्रेस के कुंवर कृष्ण वर्मा जीते। 1967 में कांग्रेस के गणपत सहाय सांसद बने। 1971 में कांग्रेस के केदारनाथ सिंह चुनाव जीते। 1977 में यहां से भारतीय लोकदल के जुल्फिकार उल्लाह को जनता ने चुना। 1980 में फिर कांग्रेस ने वापसी की और उसके प्रत्याशी गिरिराज सिंह सांसद चुने गए। 1984 में कांग्रेस के राजकरण सिंह विजयी हुए। 1989 में यहां से जनता दल के राम सिंह चुनाव जीते।
नब्बे के दशक में इस सीट पर बीजेपी-बीएसपी ने दस्तक दी
साल 1991 मे बीजेपी का खाता खोला विश्वनाथ दास शास्त्री ने चुनाव जीतकर। 1996 में बीजेपी के देवेंद्र बहादुर राय जीते। इन्होने ही 1998 में सपा की तरफ से चुनाव लड़ी डा रीता बहुगुणा जोशी को परास्त किया। हालांकि साल 1999 मे यहां से जय भद्र सिंह ने चुनाव जीतकर बीएसपी का खाता खोला। 2004 में भी बीएसपी को जीत हासिल हुई तब उसके प्रत्याशी मोहम्मद ताहिर यहां से जीते। 2009 में डॉ. संजय सिंह ने बीएसपी के मोहम्मद ताहिर को हराकर इस सीट पर 25 साल बाद कांग्रेस की वापसी कराई।
बीते दो आम चुनावों में बीजेपी को मिली कामयाबी
साल 2014 की मोदी लहर मे यहां बीजेपी से चुनाव लड़े और जीते वरुण गांधी। तब उन्होने बीएसपी के पवन पांडे को 1,78,902 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। सपा के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े अतीक अहमद तीसरे पायदान पर रहे। 2019 में यहां मेनका गांधी ने बीएसपी के चन्द्रभद्र सिंह को कांटेदार मुकाबले में महज 14,526 वोट से हराकर ये सीट बीजेपी के खाते में बरकरार रख सकीं। तब कांग्रेस ने संजय सिंह को मैदान में उतारा था। मेनका को कुल 459,196 वोट मिले जबकि चंद्रभद्र सिंह को 4,44,670 वोट हासिल हुए थ।
वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण
इस सीट पर 18,34,355 वोटर हैं। जिनमें अनुसूचित जाति के आबादी सर्वाधिक बीस फीसदी है। साढ़े तीन लाख के करीब दलित वोटर हैं। दो लाख निषाद, एक लाख कुर्मी वोटर हैं। 17 फीसदी के करीब मुस्लिम वोटर हैं। जबकि ब्राह्णण, क्षत्रिय और अन्य ओबीसी जातियां भी इस सीट पर प्रभावी तादाद में हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर बीजेपी और एक पर सपा जीती
सुल्तानपुर संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि एक सीट समाजवादी पार्टी को मिली थी। इसौली से सपा के मोहम्मद तारिक खान, सुल्तानपुर से बीजेपी के विनोद सिंह, सुल्तानपुर सदर से बीजेपी के राजप्रासाद उपाध्याय, लंभुआ से बीजेपी के सीताराम वर्मा, कादीपुर सुरक्षित सीट से बीजेपी के राजेश गौतम विधायक हैं।
साल 2024 की चुनावी बिसात पर डटे योद्धा
मौजूदा चुनावी जंग के लिए इस सीट पर फिर से मेनका गांधी ही चुनाव मैदान में हैं। सपा की ओर से पहले यहां अंबेडकरनगर के भीम निषाद को प्रत्याशी बनाया गया था। पर बाद में बदलकर रामभुआल निषाद को मैदान में उतार दिया गया। बीएसपी से उदराज वर्मा ताल ठोक रहे हैं। इंदिरा गांधी के छोटे पुत्र संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी देश की जानी मानी पर्यावरणविद हैं। जानवरों-पक्षियों के अधिकारों के लिए चर्चित पैरोकार हैं। वरुण गांधी का बीजेपी से टिकट कटने के बाद असमंजस के हालातों के बाद मेनका गांधी की उम्मीदवारी का ऐलान हुआ था। वहीं, दो बार विधायक रह चुके राम भुआल निषाद पहले बीजेपी मे थे उससे पहले बीएसपी में थे। साल 2007 में मायावती की सरकार में मत्स्य विभाग के राज्यमंत्री रहे थे। 2012 का विधानसभा चुनाव हारे थे। 2014 में सीएम योगी के खिलाफ चुनाव लड़े और तीसरे पायदान पर रहे थे। यहां से चुनाव लड़ रहे 9 प्रत्याशियों में सबसे कम उम्र के हैं उदराज वर्मा। अभी वह जिला पंचायत सदस्य हैं। बहरहाल, इस ऐतिहासिक क्षेत्र में चुनावी जंग अहम मोड़ पर आ पहुंची है। चूंकि पिछली बार मेनका गांधी की जीत का मार्जिन बेहद कम था इसलिए इस सीट पर बेहद कड़ा मुकाबला जारी है।