यूपी का डॉन: कभी था दाऊद इब्राहिम का गुरु!
ब्यूरो: UP News: बीते सोमवार को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के बीएचयू ट्रामा सेंटर से भारी सुरक्षा बंदोबस्त के बीच डिस्चार्ज करके ले जाए जा रहे व्हीलचेयर पर बैठे एक सफेद दाढ़ी वाले बुजुर्ग कैदी ने सबका ध्यान खींचा था। दरअसल, ये शख्स था एक दौर का मुंबई का माफिया डान सुभाष ठाकुर। जो फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा भुगत रहा है। कभी काशी के गांव से निकल कर मायानगरी मुंबई पहुंचे सुभाष ठाकुर को वक्त और हालात ने जरायम के दलदल में ऐसा ढकेला कि फिर कभी उससे निकल ही नहीं सका। मुंबई के अंडरवर्ल्ड से होते हुए ताउम्र के लिए यूपी की जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया। सुभाष ठाकुर कभी डी कंपनी के सरगना दाऊद इब्राहिम का गुरु माना जाता था।
इलाज के नाम पर डॉन सलाखों से निकलकर अस्पताल में वक्त बिता रहा था बीते पांच वर्षों से
दिसंबर, 2019 में आँख दर्द, ऑर्थो व नेफ्रो संबंधित बीमारियों के आधार पर सुभाष ठाकुर फतेहगढ़ सेंट्रल जेल से निकल वाराणसी पहुंचा और बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में भर्ती हो गया। बीते पांच वर्षों से यह अलग-अलग बीमारियों का हवाला देकर बीएचयू अस्पताल में ही भर्ती रहा। पर जब इसके बाबत जानकारी योगी सरकार तक पहुंची तब शासन ने इसका कड़ा संज्ञान लिया। जिसके बाद वाराणसी के पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल ने इस माफिया की सेहत की जांच के लिए कवायद शुरू की। बारह डॉक्टरों की टीम ने इसकी लंबी जांच की और पाया कि ये पूरी तरह से फिट है। इसके बाद इसकी अस्पताल से रवानगी पर मुहर लग गई। सोमवार को यह बीएचयू से से डिस्चार्ज कर दिया गया।। अस्पताल से जेल ले जाते वक्त बढ़ी दाढ़ी वाले सुभाष ठाकुर को देखकर लोगों के जेहन में माफिया मुख्तार की याद ताजा हो गई जब वह भी आखिरी दिनों में व्हीलचेयर में नजर आया था।
काशी के गांव से निकलकर मुंबई का माफिया डॉन बन गया एक किशोर
अस्सी के दशक के मध्य में वाराणसी के फूलपुर थाना के नेवादा गांव का सुभाष ठाकुर किशोरावस्था में ही कुछ बड़ा करने का सपना लेकर मुंबई पहुंचा। दरअसल, बचपन में दुर्दिन और गरीबी झेल चुका सुभाष ठाकुर मायानगरी मुंबई में कामकाज की तलाश में जुटा हुआ था। विरार इलाके में उसका एक दोस्त पाव भाजी का ठेला लगाता था। जिसका हफ्ता वसूली को लेकर स्थानीय मराठी भाषी गुंडों से विवाद हो गया। जब झगड़ा बढ़ा तो मौके पर मौजूद सुभाष ने अपने दोस्त को बचाने के लिए स्थानीय गुंडों की जमकर पिटाई कर दी। पर ये बात न सिर्फ इन गुंडों को खटकी बल्कि उन्हें पनाह देने वाले सफेदपोशों को भी खासी अखर गई। रसूखदारों के इशारे पर पुलिस सुभाष ठाकुर को उठा ले गई। उसे जमकर टार्चर करके जेल मे ठूंस दिया गया। कुछ वक्त बाद सुभाष ठाकुर जेल से रिहा तो हो गया पर उसके लिए जिंदगी कतई आसान नहीं रह गई। उसे इलाकाई दबंग और पुलिस लगातार तंग करने लगे। इन हालातों से आजिज आकर उसने जुर्म की दुनिया में शामिल होने का फैसला कर लिया।
जेल में जरायम का ककहरा सीखकर जुर्म की काली दुनिया में हो गया दाखिल
सुभाष ठाकुर ने जरायम के उस दलदल में कदम बढ़ा दिए जहां से वापसी के रास्ते नहीं होते हैं। फिर तो एक के बाद एक तमाम आपराधिक वारदातों में इसका नाम आता गया। एक वक्त ऐसा भी आया कि मुंबई में बिल्डर और बड़े कारोबारी उसके नाम से ही दहशत से भर उठते थे। यही वह वक्त था जब दाऊद इब्राहिम भी जरायम जगत में सक्रिय हो रहा था। सुभाष ठाकुर के दबदबे से प्रभावित होकर दाऊद ने उसे अपना गुरू बना लिया। बताया जाता है कि दाऊद ने अपने इसी गुरू सुभाष ठाकुर से जुर्म के नए नए पैंतरे सीखे और धीरे धीरे माफिया डान बन गया। फिर सुभाष ठाकुर, छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम की तिकड़ी ने मुंबई में कहर ढा दिया। तस्करी-भाड़े पर हत्या-वसूली-फिरौती में इन तीनों का नाम उछलने लगा। तमाम कारोबारियों से ये प्रोटेक्शन मनी वसूलने लगे।
बहनोई की हत्या का बदला लेने के लिए दाऊद ने करवाया जेजे हॉस्पिटल शूटआउट
नब्बे के दशक के शुरूआती दौर से ही दाऊद और अरुण गवली गिरोह में तनातनी बढ़ने लगी। 26 जुलाई 1992 को मुंबई के नागपाड़ा के अरब गली में गवली गिरोह ने दाऊद के बहनोई इस्माइल पारकर की हत्या कर दी। जिससे बिफर कर बदला लेने के लिए दाऊद ने छोटा राजन को जिम्मा सौंपा। इन्हें पता चला कि इब्राहिम पारकर को मारने वाले दो शूटर शैलेश हलदनकर और विपिन शेरे जख्मी हालत में जेजे हॉस्पिटल में भर्ती हैं। 12 सितंबर 1992 को सुभाष ठाकुर, बृजेश सिंह, बच्ची पांडेय, श्याम गरिकापट्टी समेत 24 शूटरों का गैंग हत्या के लिए निकला। कड़ी सुरक्षा घेरे के बावजूद इन लोगों ने शैलेश को गोलियों से भून दिया। विपिन दूसरे वार्ड में शिफ्ट किए जाने की वजह से बच गया। ये पहली बार था जब देश में किसी आपराधिक वारदात में एके-47 का इस्तेमाल किया गया था। AK-47 व 9 एमएम की पिस्टल से इन शूटरों ने 500 राउंड से ज्यादा फायरिंग की थी। इस वारदात में दो पुलिसकर्मियों सहित कुल दस लोगों की मौत हो गई थी।
मुंबई बम धमाकों के बाद सुभाष ठाकुर की दाऊद से रंजिश पनपी तो बन गए जानी दुश्मन
कहावत है कि अंडरवर्ल्ड में दोस्ती और दुश्मनी के रिश्ते अस्थायी होते हैं। ये बात सटीक बैठी दाऊद और सुभाष ठाकुर के रिश्तों में भी। पाकिस्तान की आईएसआई के इशारे पर दाऊद ने मुंबई सीरियल ब्लास्ट को अंजाम दिया। इसके बाद छोटा राजन व सुभाष ठाकुर से दाऊद के रिश्ते टूट गए। दाऊद देश छोड़कर भाग गया लेकिन सुभाष ठाकुर मुंबई में ही रहा। इसने दाऊद के विरोधी हो चुके छोटा राजन का साथ पकड़ लिया। बाद में सुभाष ठाकुर गिरफ्तार हुआ इस पर जेजे अस्पताल मर्डर केस में मुकदमा चला। साल 2000 में टाडा कोर्ट ने इसे मौत की सजा सुनाई थी। जबकि सबूतों के अभाव में बृजेश सिंह को बरी कर दिया था। बाद में सुभाष ठाकुर की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया। इसे यूपी के फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गया। सजा मिलने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर अपनी जान की हिफाजत की गुहार लगाई थी। उसने दलील दी थी कि दाऊद गैंग उसकी जान के पीछे पड़ा है। जेल में उसे मारने की साजिश रची जा रही है। साल 2017 में भी सुभाष ने वाराणसी कोर्ट में एक याचिका दायर कर बुलेट प्रूफ जैकेट और सुरक्षा की मांग की थी. हालांकि उसकी मांगों को शासन ने खारिज कर दिया था।
जेल की सलाखों के पीछे डॉन ने भेष तो बाबा का धर लिया, पर जरायम जगत से तार जुड़े रहे
लंबे वक्त तक सुभाष ठाकुर यूपी की फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में बंद रहा यहां लंबी दाढ़ी व बाल बढ़ाकर इसने बाबा सरीखा लुक बना लिया। जिसके बाद जेल में इसे बाबाजी, दादा ठाकुर भी कहा जाने लगा। कई खबरें सामने आईं कि जेल में भी सुभाष के रसूख में कमी नहीं आई है। उसका जेल में दरबार लगता है, जिसमें जेल के अफसर से लेकर कर्मचारी तक शामिल होते थे। खुफिया इकाइयों की माने तो जेल से ही ये डान अपने कारोबार का संचालन करता रहा है। जेल की सलाखों के पीछे से ही इसके इशारे पर इसके गुर्गों ने फरवरी, 2022 में मुंबई के विरार में बिल्डर समरजीत उर्फ समय चौहान की हत्या कर दी थी। महाराष्ट्र पुलिस के मुताबिक रंगदारी के लिए अंजाम दी गई इस वारदात की पटकथा बीएचयू अस्पताल में रहते हुए सुभाष ठाकुर ने तैयार की। इसके लिए यूपी के पूर्वांचल से शूटर भेजे गए।
जरायम के साथ ही सियासी जगत से रिश्तो को लेकर भी चर्चा में आया ये डॉन
कहा जाता था कि भले ही सुभाष ठाकुर सजायाफ्ता हो चुका हो पर इसकी हनक के चलते एक दौर के बाहुबली मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद भी इससे अदावत लेने से बचते थे। इसके करीबी बृजेश सिंह ने सियासत की दुनिया में कदम रख दिया। पुलिस सूत्रों के मुताबिक जेल में सजा काटते हुए भी सुभाष ठाकुर के सियासतदानों से रिश्ते बने रहे। सपा नेता शिवपाल सिंह यादव जब अखिलेश से नाराज होकर अपनी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के सहारे सियासत को बढ़ा रहे थे। तब साल 2020 में उनका एक वैवाहिक समारोह में भाग लेने वाराणसी जाने का कार्यक्रम था। इस दौरान शिवपाल एकाएक बीएचयू अस्पताल जा पहुंचे। यहां उन्होंने इलाजरत सुभाष ठाकुर से मुलाकात की। इस घटनाक्रम की जानकारी मिलते ही पुलिस-प्रशासनिक मशीनरी में हड़कंप मच गया था। लंका थाने की पुलिस और एलआईयू की टीमों ने इस मुलाकात से संबंधित जानकारी शासन को भेजी थी।
यूपी में डॉन पर दो केस दर्ज हुए, एक केस की फाइलें हो गई गुम, दूसरे केस में अदालती कार्यवाही जारी
सुभाष ठाकुर के खिलाफ मुंबई और दिल्ली में हत्या, हत्या का प्रयास सहित कई गंभीर आरोप में दस मुकदमे दर्ज हुए। चार मुकदमों में वह दोषमुक्त हो चुका है। वाराणसी में उसके खिलाफ दो मुकदमे दर्ज हैं। इसमें फूलपुर थाने में साल 1982 का मुकदमा और साल 1991 का आर्म्स एक्ट के तहत मामला शामिल है। इसमें से फूलपुर थाने से संबंधित मुकदमे की फाइलें ही गायब हो चुकी हैं। जबकि आर्म्स एक्ट वाला मामला अदालत में विचाराधीन है। दरअसल, 31 जनवरी 1991 को शिवपुर थाने के भोजूबीर तिराहे पर पुलिस ने जांच के दौरान सुभाष ठाकुर को पकड़ा था। उसके पास से 9 एमएम के दो जिंदा कारतूस और उनके साथी आरोपी जय प्रकाश सिंह के पास से एमएम का पिस्टल बरामद हुआ था। इस मामले में 4 फरवरी 1991 को आरोपपत्र दाखिल हुआ। 24 नवंबर 2011 को सत्र अदालत को विचारण हेतु सौंपा गया। मामले के 8 अभियोजन साक्षियों में 6 की मृत्यु हो गई और प्रेम शंकर श्रीवास्तव राजकुमार सिंह और आयुध अधिनियम के तहत अभियोजन चलाने की स्वीकृति देने वाले तत्कालीन एडीएम सिटी शैलेश सिंह का बयान दर्ज किया जा चुका है। ये मुकदमा अभी विचाराधीन है।
बहरहाल, दाऊद का उस्ताद रहा माफिया सरगना सुभाष ठाकुर पांच सालों बाद फिर से सलाखों के पीछे भेज दिया गया है। पर इसकी सक्रियता और रसूख पर इस बार कितनी लगाम लग सकेगी ये बड़ा सवाल है।