UP Lok Sabha Election 2024: कैसरगंज सीट पर छाए बृजभूषण शरण सिंह, इस लोकसभा क्षेत्र की पहली सांसद बनीं शकुंतला नायर
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे कैसरगंज संसदीय सीट की। ये विधानसभा सीटें बहराइच और गोंडा में फैली हुई हैं यानी कैसरगंज लोकसभा सीट बहराइच और गोंडा दोनों जिलों के कुछ-कुछ हिस्सों को मिलाकर बनी है। साल 1952 से लेकर 2019 तक हुए 17 चुनाव में बीएसपी को छोड़कर हर दल को जीत का मौका मिला। सर्वाधिक पांच बार समाजवादी पार्टी जीती। चार बार बेनी प्रसाद वर्मा तो एक बार सपा से बृजभूषण शरण सिंह सांसद बने।
पूर्व में गोंडा वेस्ट सीट परिसीमन के बाद बनी कैसरगंज
नेपाल के निकटवर्ती क्षेत्र में आने वाला कैसरगंज क्षेत्र 1952 में गोंडा वेस्ट सीट के तहत शामिल था। 2009 में हुए परिसीमन के पहले यह लोकसभा बहराइच और बाराबंकी जिलों की पांच विधानसभाओं को मिलाकर बनी थी, जिसमें पयागपुर, कैसरगंज, कटरा, करनैलगंज और तरबगंज शामिल थे। परिसीमन के बाद कैसरगंज लोकसभा से बाराबंकी को हटाकर गोंडा जिले की तीन विधानसभा- तरबगंज, करनैलगंज और कटरा को जोड़ा गया साथ ही बहराइच जिले की दो विधानसभा कैसरगंज और पयागपुर मिलाकर इसे नया रूप दिया गया।
इस लोकसभा क्षेत्र की पहली सांसद बनीं शकुंतला नायर
साल 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में जब सारे देश में कांग्रेस की लहर हुआ करती थी तब इस सीट से भारतीय जनसंघ के टिकट पर शकुंतला नायर चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। शकुंतला नैयर के बारे में जानना दिलचस्प होगा। ये उत्तराखंड की मौजूदा राजधानी देहरादून की निवासी थीं, इनके पिता का नाम दिलीप सिंह बिष्ट था। मसूरी में पढ़ाई के दौरान ये आईसीएस अफसर के के नायर के संपर्क में आईं। नायर केरल के अलप्पी के मूल निवासी थे और यूपी कैडर के अफसर थे। 20 अप्रैल 1946 को वे दोनों का विवाह हो गया। 1949 में अयोध्या में विवादित ढांचे मे राममूर्ति प्राकट्य की घटना जब हुई थी तब के के नायर फैजाबाद के डीएम हुआ करते थे। इन मूर्तियों को हटाने का आदेश तत्कालीन सीएम गोविंद बल्लभ पंत और पीएम जवाहर लाल नेहरू ने दिया था पर नायर ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया। सस्पेंड हुए बहाली हुई फिर नौकरी से इस्तीफा देकर चुनाव लड़े और बहराइच से सांसद बने। साल 1957 में पूर्ववर्ती गोंडा वेस्ट सीट से भगवानदीन मिश्रा को जीत मिली तो 1962 में स्वतंत्र पार्टी की बसंत कुमारी सांसद चुनी गई थीं। 1967 के चुनाव में भारतीय जनसंघ की प्रत्याशी के तौर पर शकुंतला नायर ने दोबारा जीत दर्ज की।
गोंडा वेस्ट सीट से कैसरगंज संसदीय सीट बनी
इमर्जेंसी के बाद हुए साल 1977 के चुनाव में गोंडा वेस्ट का नाम बदलकर कैसरगंज कर दिया गया तब यहां से जनता पार्टी के रुद्रसेन चौधरी सांसद चुने गए। इसके बाद 1980, 1984 और 1989 में तीन बार लगातार कांग्रेस के राना वीर सिंह यहां से चुनाव जीते। नब्बे के दशक की रामलहर में हुए 1991 के चुनाव में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने यहां से चुनाव जीतकर बीजेपी का खाता खोला।
बेनी प्रसाद वर्मा ने इस सीट पर चार बार जीत दर्ज की
कैसरगंज संसदीय सीट प लगातार चार बार जीत का रिकॉर्ड कायम किया बेनी प्रसाद वर्मा ने। वे 1996, 1998,1999 और 2004 में बतौर सपा उम्मीदवार चुनाव जीते। इस बीच बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम सिंह यादव के दरमियान रिश्ते तल्ख होते चले गए। इसकी वजह अमर सिंह को बताया जाता था। साल 2008 में बेनी ने सपा छोड़ कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। उसी साल परिसीमन के बाद यह सीट भी बदल गई और 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले कैसरगंज सीट से बाराबंकी का हिस्सा अलग करके गोंडा के कुछ हिस्से शामिल कर दिए गए। तो 2009 के आम चुनाव बेनी प्रसाद वर्मा गोंडा सीट से लड़े और जीत गए। मनमोहन सिंह की सरकार में वह इस्पात मंत्री बनाए गए।
कैसरगंज सीट पर बृजभूषण शरण सिंह छाए
साल 2009 के आम चुनाव से पहले बृजभूषण शरण सिंह बीजेपी से किनारा कसकर सपा में शामिल हो चुके थे। इस सीट से उन्होने बीएसपी के सुरेन्द्र नाथ अवस्थी को हराया था। तब बीजेपी के डा एलपी मिश्रा तीसरे और कांग्रेस के मोहम्मद अलीम चौथे पायदान पर जा पहुंचे थे। हालांकि साल 2014 के चुनाव से पहले उन्होंने फिर सपा छोड़कर बीजेपी में घर वापसी कर ली। मोदी लहर में हुए चुनाव में साल 2014 में बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर बृजभूषण शरण सिंह चुनाव जीते। 3,81,500 वोट पाकर उन्होंने सपा के विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह को 78,218 वोटों के मार्जिन से पराजित कर दिया। बीएसपी के कृष्ण कुमार ओझा को 1,46,726 वोट पाकर तीसरे पायदान पर जा पहुंचे। 2019 के चुनाव में बृजभूषण शरण सिंह फिर से बीजेपी के प्रत्याशी बनाए गए। तब उन्होने जीत के मार्जिन को तीन गुना बढ़ाकर 2,61,601 वोटों के मार्जिन से कामयाबी हासिल कर ली। बृजभूषण को 5,81,358 वोट मिले जबकि उनके मुकाबले में उतरे सपा-बीएसपी गठबंधन से दांव आजमा रहे बीएसपी के चंद्रदेव राम यादव को 3,19,757 वोट ही मिल सके थे।
वोटरों की तादाद और सामाजिक समीकरण
इस संसदीय सीट प 19, 04,726 वोटर हैं। जिनमें 4.53 लाख ब्राह्मण, 3.48 लाख मुस्लिम और 3.45 लाख दलित हैं। वहीं, 2.38 लाख यादव तो 2.26 लाख कुर्मी हैं इसके साथ ही 1.03 लाख क्षत्रिय व 1.91 लाख अन्य बिरादरियां शामिल हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में चार सीटें बीजेपी जबकि एक सीट सपा को मिली
कैसरगंज संसदीय सीट के तहत जो पांच विधानसभाएं शामिल हैं उनमें बहराइच की पयागपुर, कैसरगंज जबकि गोंडा की कटरा बाजार, कर्नलगंज और तरबगंज सीटें हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में इनमें से चार बीजेपी को मिलीं जबकि एक सीट सपा के खाते में दर्ज हुई। पयागपुर से बीजेपी के सुभाष त्रिपाठी और कैसरगंज से सपा के आनंद कुमार विधायक हैं जबकि कटरा बाजार से बीजेपी के बावन सिंह, कर्नलगंज से बीजेपी के अजय कुमार सिंह और तरबगंज से बीजेपी के प्रेम नारायण पांडेय विधायक हैं।
मौजूदा चुनावी बिसात पर सियासी घमासान
कैसरगंज संसदीय सीट पर बृजभूषण शरण सिंह की जबरदस्त पकड़ रही है। हालांकि महिला पहलवानों की ओर से उन पर यौन शोषण के आरोप लगाए जाने के बाद उनके लिए मुश्किलें बढ़ती गईं। नतीजा ये रहा कि मौजूदा चुनावी जंग में उनकी जगह उनके बेटे करण भूषण सिंह को बीजेपी ने प्रत्याशी बना दिया। उनके मुकाबले में सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा के भगत राम मिश्रा और बीएसपी से नरेंद्र पांडेय ताल ठोक रहे हैं।
प्रत्याशियों से जुड़ा ब्यौरा
विरासत की सियासत आगे बढ़ाने में जुटे करण भूषण बृजभूषण शरण सिंह के छोटे बेटे हैं। वे डबल ट्रैप शूटिंग के नेशनल चैंपियन रह चुके हैं, उत्तर प्रदेश कुश्ती संघ के अध्यक्ष हैं। बीबीए और कानून की पढ़ाई की है जबकि ऑस्ट्रेलिया से बिजनेस मैनेजमेंट किया है। पहली बार कोई चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, सपा के भगतराम मिश्रा बीजेपी के पूर्व सांसद दद्दन मिश्रा के बड़े भाई हैं। साल 2004 का लोकसभा चुनाव बीएसपी के टिकट से लड़ा था पर सपा की रुबाब सईदा से छब्बीस हजार वोटों से हार गए थे। सपा मे शामिल होने से पहले कांग्रेस और बीजेपी में भी रह चुके हैं। जमीन के बड़े काश्तकार हैं-अधिवक्ता हैं। इनकी पत्नी श्रावस्ती से जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। वहीं, बीएसपी से चुनाव लड़ रहे नरेंद्र पांडे रामनगर के खजुरी गांव के निवासी हैं। लखनऊ के इंदिरा नगर में रहते हैं। उनका ट्रांसपोर्ट का बड़ा व्यवसाय है साथ ही पशु आहार कंपनी भी है। बहरहाल, इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय और दिलचस्प हो गया है।