Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: डुमरियागंज संसदीय सीट का चुनावी इतिहास, काला नमक चावल इस क्षेत्र को देता है अनूठी पहचान

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 23rd 2024 01:24 PM  |  Updated: May 23rd 2024 01:24 PM

UP Lok Sabha Election 2024: डुमरियागंज संसदीय सीट का चुनावी इतिहास, काला नमक चावल इस क्षेत्र को देता है अनूठी पहचान

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे डुमरियागंज संसदीय सीट की। डुमरियागंज नेपाल की सीमा से तकरीबन तीस किलोमीटर की दूरी पर राप्ती नदी के किनारे बसा हुआ सिद्धार्थनगर का तहसील मुख्यालय है। डुमरियागंज लोकसभा क्षेत्र सिद्धार्थनगर जिले को समेटे हुए है। सिद्धार्थनगर जिला 29 दिसंबर 1988 को बस्‍ती जिले के उत्तरी हिस्से को अलग करके बनाया गया था, जिले का नाम बुद्ध के बचपन के नाम सिद्धार्थ के नाम पर रखा गया था। इस क्षेत्र की सीमाएं महराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, बलरामपुर और गोंडा जिलों से  मिलती है।

गौतम बुद्ध के जन्मस्थान का गौरव प्राप्त है इस क्षेत्र को

इस संसदीय क्षेत्र का कपिलवस्तु प्राचीनकाल में शाक्य गणराज्य की राजधानी थी। जिसका नाम शाक्यों के कुलगुरु कपिल मुनि के नाम पर रखा गया था। बुद्ध के पिता शुद्धोधन की राजधानी कपिलवस्तु इसी क्षेत्र में स्थित थी। गौतम बुद्ध का जन्म इसी स्थान के नजदीक लुंबिनी में हुआ था। विसेंट स्मिथ का मत है कि बुद्ध की जन्मस्थली यहां के पिपरहवा नामक स्थान पर थी जहां एक स्तूप पाया गया है। भगवान बुद्ध ने अपने जीवन का प्रारंभिक काल यहीं व्यतीत किया था। इस क्षेत्र में बौद्ध जगत से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्थल मठ, स्तूप मौजूद हैं।

प्रसिद्ध स्थल व विकास से जुड़े आयाम

यहां का  शोहरतगढ़ शिवबाबा मंदिर, समय माता मंदिर, जोगिया गांव में योगमाया मंदिर।  चिल्हिया क्षेत्र का पल्टादेवी मंदिर अति प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र के सर्वाधिक सुंदर दर्शनीय स्थलों में से एक शोहरतगढ़ पैलेस है। जो पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केन्द्र रहता है। बस्ती मंडल का पहला आईटी पार्क सिद्धार्थनगर के डुमरियागंज में बनने जा रहा है। उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने एसजीसी सिटी सेंटर को 25 करोड़ रुपये से आईटी पार्क बनाने की मंजूरी दे दी है। इसके बनने के बाद इस पिछड़े इलाके में विकास के रफ्तार पकड़ने की उम्मीदें हैं।

  'काला नमक' चावल इस क्षेत्र को अनूठी पहचान देता है

इस क्षेत्र से जुड़े उद्योग और विकास के आयाम की चर्चा करें तो तथागत बुद्ध का ये क्षेत्र 'काला नमक' चावल के लिए दुनिया भर में काफी मशहूर है। आयरन और जिंक से भरपूर इन चावलों का ज़िक्र संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि सम्बन्धी संस्था ने अपनी किताब 'स्पेसिअलिटी राइस ऑफ वर्ल्ड' में भी किया है। यहां 45 से अधिक चावल उद्योग की इकाइयां संचालित की जा रही हैं। यहां से प्रसंस्कृत चावल प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात किया जाता है।

डुमरियागंज संसदीय सीट का चुनावी इतिहास

साल 1952 के पहले चुनाव में कांग्रेस के केशव देव मालवीय इस सीट से सांसद बने थे। 1957 में कांग्रेस के राम शंकर लाल चुनाव जीते थे। 1962 में कांग्रेस की जीत की हैट्रिक लगाते हुए कृपा शंकर सांसद बने थे। 1967 में यहां की जनता ने जनसंघ के नारायण स्वरूप शर्मा को सांसद चुना था, वह लंदन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सदस्य थे। लंदन में बैरिस्टर थे। पर 1971 में कांग्रेस के केशव देव मालवीय दोबारा सांसद चुने गए। वह केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री भी बने।  साल 1977 में जनता पार्टी के माधव प्रसाद त्रिपाठी ने इस सीट पर जीत हासिल की। 1980 और 1984 में कांग्रेस के काजी जलील अब्बासी चुनाव जीते। 1989 के चुनाव में जनता दल के बृजभूषण तिवारी इस सीट पर विजयी हुए।

नब्बे के दशक से कांग्रेस इस सीट पर पिछड़ गई

साल 1991 के चुनाव में राम मंदिर लहर में इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला। रामपाल सिंह यहां से बीजेपी के पहले सांसद बने। 1996 में बृजभूषण तिवारी सपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और जीते। 1998  और 1999 में लगातार दो बार रामपाल सिंह ने बीजेपी को जीत दिलाई। 2004 में यहां से बीएसपी के मोहम्मद मुकीम चुनाव जीते।  2009 में जगदंबिका पाल की जीत ने लंबे समय बाद यहां कांग्रेस को जीत दिलाई।  उन्होंने बीजेपी के जय प्रताप सिंह को 76,566 वोटों से हराया था।

बीते दो आम चुनावों में बीजेपी को मिली कामयाबी

साल  2014 के चुनाव से पहले जगदंबिका पाल कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए।  बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर दोबारा सांसद चुने गए। उन्होने बीएसपी के मोहम्मद मुकीम को 1,03,588 वोटों के मार्जिन से पराजित किया। 2019 में भी जगदंबिका पाल बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए। तब उन्होने 492,253 वोट पाकर सपा-बीएसपी गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे बीएसपी के आफताब आलम को 1,05,321 वोटों से मात दी थी। जगदंबिका पाल से जुड़ा एक रिकार्ड बेहद दिलचस्प है। दरअसल, वह यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं, लेकिन उनका मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल महज एक दिन का ही रहा था। 31 घंटे ही सीएम रह पाए थे और अदालती आदेश के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा।

दो चर्चित हस्तियां इस सीट से नहीं बचा सकीं जमानत

इस सीट से चुनाव लड़ने वाली दो चर्चित हस्तियों का जिक्र भी जरूरी है।  पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व राजीव गांधी के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहीं मोहसिना किदवई मेरठ से तीन बार सांसद रही। पर 1991 में वह डुमरियागंज सीट से लोकसभा से चुनाव लड़ी और हार गई थीं।  1996 में भी इसी सीट से चुनाव लड़ीं पर उनकी जमानत तक जब्त हो गई। वहीं, एशियन एज की राजनीतिक संपादक रह चुकी वरिष्ठ पत्रकार सीमा मुस्तफा भी डुमरियागंज लोकसभा से चुनाव लड़ चुकी हैं। वर्ष 1991 में उन्हें सिर्फ 49 हजार 553 वोट मिले। 1996 में भी चुनाव लड़ीं पर हार गईं। दोनों ही चुनावों में वो अपनी जमानत नहीं बचा सकीं।

सीट पर वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण

इस संसदीय सीट पर 19, 61,794 वोटर हैं। जिनमें 29.50 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। 27 फीसदी ओबीसी और 18 फीसदी दलित हैं। 13 फीसदी ब्राह्मण हैं। 6  फीसदी कायस्थ और इतने ही वैश्य बिरादरी के वोटर है जबकि तीन फीसदी क्षत्रिय हैं। यहां के चुनावों में ओबीसी और दलित वोटरों की निर्णायक भूमिका रहती है।

बीते विधानसभा चुनाव के नतीजे

इस संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं-- डुमरियागंज, शोहरतगढ़, कपिलवस्‍तु, बांसी, इटवा विधानसभा। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां दो सीटें सपा को मिलीं जबकि तीन पर बीजेपी और उसके सहयोगी अपना दल को कामयाबी मिली। शोहरतगढ़ से अपना दल के विजय वर्मा, कपिलवस्तु सुरक्षित सीट से बीजेपी के श्याम धनी राही, बांसी से बीजेपी के जय प्रताप सिंह, इटवा से सपा के माता प्रसाद पाण्डेय, डुमरियागंज से सपा की सैय्यदा खातून विधायक हैं।

मौजूदा चुनावी बिसात पर सियासी योद्धा डटे

इस बार फिर बीजेपी ने जगदंबिका पाल पर ही दांव लगाया है। सपा गठबंधन से कुशल तिवारी और बीएसपी से मोहम्मद नदीम मिर्जा हैं। जबकि आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अमर सिंह चौधरी, पीस पार्टी के नौशाद आजम व निर्दलीय किरण देवी चुनावी मैदान में हैं। यहां के पांच दशकों के चुनावी इतिहास मे इस बार सबसे कम प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।

प्रत्याशियों का ब्यौरा

कभी दिग्गज कांग्रेसी चेहरा रहे जगदंबिका पाल तीन बार सांसद रह चुके हैं। यहां तमाम वर्गों में उनकी मजबूत पकड़ है। तो सपा के भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी पूर्वांचल के बाहुबली राजनेता हरिशंकर तिवारी के बड़े पुत्र हैं। खलीलाबाद से सांसद रह चुके हैं। ब्राह्मण व यादव-मुस्लिम वोटों के जरिए इस सीट पर बदलाव करने की रणनीति बनाए हुए हैं। वहीं, बीएसपी ने पहले यहां से ख्वाजा  शमशुद्दीन को टिकट दिया था फिर बदल कर मोहम्मद नदीम मिर्जा को चुनावी मैदान मे उतार दिया। गोरखपुर के मूल निवासी एमबीए पास नदीम लखनऊ में रियल एस्टेट का कारोबार करते हैं। लंबे वक्त तक सपा मे रहे हैं। सपा के प्रदेश सचिव भी रह चुके हैं। सन 2000 में संत कबीर नगर की मेंहदावल सीट से नेलोपा से चुनाव लड़ चुके हैं। फिलहाल इस संसदीय सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बन गया है। यहां जातीय लामबंदी के गणित के सहारे सभी जीतने की कोशिश कर रहे हैं।

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