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UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में हमीरपुर संसदीय सीट, नब्बे के दशक से यहां छूट गई है कांग्रेस की पकड़

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 17th 2024 12:15 PM  |  Updated: May 17th 2024 01:28 PM

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में हमीरपुर संसदीय सीट, नब्बे के दशक से यहां छूट गई है कांग्रेस की पकड़

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे हमीरपुर संसदीय सीट की। इसी जिले से मिलता जुलता नाम वाला एक जिला हिमाचल प्रदेश में  भी है। यूपी का हमीरपुर जिला बुंदेलखंड के चित्रकूट धाम मंडल का हिस्सा है। कानपुर के दक्षिण में यमुना और बेतवा नदियों के संगम पर बसा हुआ है। ये जिला उत्तर में जालौन (उरई), कानपुर नगर और फतेहपुर जिले से तो पूर्व में बांदा से, दक्षिण में महोबा से और पश्चिम में झांसी से घिरा हुआ है। दो साल पूर्व ये जिला तब सुर्खियों में छाया जब यहां के पूर्व सांसद अशोक चंदेल को साल 1997 में हुए पांच लोगों के सामूहिक  हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

पौराणिक व ऐतिहासिक महात्म्य से भरपूर है हमीरपुर जिला

यहां का राठ कस्बा महाभारत काल में विराट नगरी के तौर पर जाना जाता था। पांडवों ने राजा विराट (बैराठ) की नगरी में ही अज्ञातवास की अवधि व्यतीत की थी। मान्यता है कि यहां का चौपरेश्वर महादेव मंदिर महाभारत काल में निर्मित हुआ था। विराट की पुत्री उत्तरा यहां महादेव की पूजा अर्चना करती थीं.....यहां का कल्पवृक्ष हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है। जिले के मुस्करा विकासखंड में हुए उत्खनन में प्राचीन मानव सभ्यता के कई प्रमाण मिले, 12 हजार वर्ष पूर्व के दांत भी मिले हैं। पुरातत्वविद मानते हैं कि यहां मानव हजारों वर्षों से निवास कर रहे थे। यहां के अलरा-गौरा से बारहवीं सदी की जैन तीर्थंकर प्रतिमा मिली है जबकि धौली में पूर्व मध्यकाल में निर्मित विष्णु व हनुमान प्रतिमा मिली है। राठ के चंदेल नरेश शिलादित्य की पुत्री दुर्गावती यहां की प्रसिद्ध हस्ती थीं।वीरांगना दुर्गावती मुगल बादशाह अकबर से  युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थीं।

जंगे आजादी में जिले का योगदान

साल 1857 में मेरठ छावनी में भड़के विद्रोह की आंच हमीरपुर तक भी आ पहुंची थी। यहां ब्रिटिश सैनिकों ने बीस से अधिक विद्रोहियों को शहर में बस स्टॉप के पास बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था। इसके बाद हालात तनावपूर्ण हो गए और ट्रेजरी में भी सशस्त्र गार्डों ने बगावत कर दी। क्रांतिकारियों ने कलेक्टर के आवास पर हमला बोल दिया। इसमें कलेक्टर टीके लॉयड और जॉइंट मैजिस्ट्रेट डोनाल्ड ग्रांट मारे गए। यहां गौर राजपूतों ने यमुना नदी में अंग्रेजी सैनिकों के हथियार से भरी एक नाव लूट लिया था जिसके बाद अंग्रेजी फौजों ने सुरौली बुजुर्ग गांव को बुरी तरह से तहस नहस कर दिया था।

हमीरपुर संसदीय सीट के प्रमुख स्थल

इस संसदीय सीट के तहत आने वाले महोबा से जुड़ी हैं वीर योद्धा आल्हा-ऊदल की वीरता की गाथाएं। बारहवीं शताब्दी के इन योद्धाओं ने 52 युद्ध लड़े और सभी में विजयी हुए। इन्होने पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना को खासा नुकसान पहुंचाया। हमीरपुर के  प्रमुख धार्मिक स्थल हैं...सिंह महेश्वरी मंदिर, संगमेश्वर मंदिर, चौरा देवी मंदिर,  बांके बिहारी मंदिर, मेहर बाबा मंदिर, साईं दाता आश्रम।

जिले से जुड़े प्रमुख उद्योग धंधे

हमीरपुर जिले में बेतवा नदी के किनारे पर पाई जानी वाली खुरदुरी रेत अपनी गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है इसकी प्रदेश के अन्य भागों में बड़ी मांग रहती है। यहां का सुमेरपुर कस्बा हस्तनिर्मित चमड़े के जूते अथवा जूती के लिये प्रसिद्ध है। बुंदेलखंड औद्योगिक विकास प्राधिकरण के गठन के बाद से इस जिले में उद्योग धँधों को नए पंख मिलने की आस जगी है। हमीरपुर के सुमेरपुर इलाके में हिन्दुस्तान लीवर कंपनी का निवेश प्रस्तावित है। तो साल्विस स्पेशलिटी लिमिटेड की पेस्टिसाइड और केमिकल इंफ्रा की फैक्टरी लगाई जानी है। इसके साथ ही मिल्क प्रोसेसिंग और डेयरी प्रोडक्ट तैयार करने के लिए भी हुए निवेश से उम्मीदें हैं।

चुनावी इतिहास के आईने में  हमीरपुर संसदीय सीट

साल  1952 में यहां कांग्रेस के मनूलाल द्विवेदी चुनाव जीतकर पहले सांसद बने। 1957 और 1962 में भी चुनाव जीतकर उन्होंने जीत की हैट्रिक लगा दी। 1967 में भारतीय जनसंघ के स्वामी ब्रह्मानंद ने उन्हें हरा दिया। स्वामी ब्रह्मानंद साल 1971 में भी चुनाव जीते लेकिन तब वह भारतीय जनसंघ को छोड़कर कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे। उनके चुनाव प्रचार के लिए खुद इंदिरा गांधी यहां पहुंची थीं। 1977 में इस सीट पर लोकदल के तेजप्रताप सिंह को कामयाबी हासिल हुई। 1980 में कांग्रेस के डूंगर सिंह और 1984 में कांग्रेस के ही स्वामी प्रसाद सिंह सांसद चुने गए।

नब्बे के दशक से यहां कांग्रेस की पकड़ छूट गई

साल 1989 में यहां जनता दल के गंगाचरण राजपूत को जनता ने अपना नुमाइंदा चुना। 1991 में पंडित विश्वनाथ शर्मा की जीत से बीजेपी का खाता खुला। इसके बाद 1996 और 1999 में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर गंगाचरण राजपूत चुनाव जीते। पर 1999 में इस सीट पर जीत बीएसपी के अशोक सिंह चंदेल को हासिल हुई। 2004 में राजनारायण बुधौलिया ने यहां चुनाव जीतकर समाजवादी पार्टी का खाता खोल दिया। 2009 में बीएसपी ने फिर वापसी की, तब उसके प्रत्याशी विजय बहादुर सिंह विजयी हुए।

बीते दो आम चुनाव में बीजेपी का परचम फहराया

साल 2014 की मोदी लहर में यहां से बीजेपी के उम्मीदवार कुंवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने सपा के विशम्भर प्रसाद निषाद को 2,66,788 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। बीएसपी तीसरे तो कांग्रेस चौथे स्थान पर खिसक गए।  2019 में बीजेपी ने पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने सपा-बीएसपी के साझा उम्मीदवार सपा के दिलीप सिंह को 2,48,652 वोटों से मात दे दे दी।

वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना

यहां वोटरों की तादाद है 18,34, 474।  जिनमें से 22 फीसदी दलित हैं। जबकि 11 फीसदी ब्राह्मण, सात फीसदी निषाद, नौ फीसदी क्षत्रिय वोटर हैं। 8 फीसदी मुस्लिम वोटर और डेढ़ लाख लोधी वोटर हैं। इसके साथ ही मल्लाह, कश्यप व अन्य ओबीसी बिरादरियां भी बहुतायत में हैं। यहां पिछड़ी बिरादरी के साथ-साथ क्षत्रिय और ब्राह्मण वोटर्स चुनाव के समीकरण को बिगाड़ने में सक्षम हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने किया क्लीन स्वीप

हमीरपुर संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें शामिल हैं, हमीरपुर जिले की राठ और हमीरपुर सदर जबकि महोबा की चरखारी और महोबा और पांचवी सीट बांदा जिले की तिंदवारी है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी पांचों सीटों पर बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था। इस वक्त यहां हमीरपुर सदर से मनोज प्रजापति, राठ सुरक्षित से मनीषा अनुरागी, महोबा से राकेश गोस्वामी, चरखारी से ब्रजभूषण राजपूत, तिंदवारी से रामकेश निषाद विधायक हैं।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर डटे योद्धा

मौजूदा चुनावी संघर्ष के मैदान में बीजेपी ने फिर से सिटिंग सांसद पुष्पेंद्र सिंह चंदेल पर ही दांव लगाया है जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर से सपा ने अजेन्द्र सिंह राजपूत को मैदान में उतारा है। बीएसपी ने निर्दोष दीक्षित को टिकट दिया है।

प्रत्याशियों का ब्यौरा

इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने को आतुर पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल दो बार सांसद रहे हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की है। उनके मुकाबले के लिए उतरे सपा प्रत्याशी अजेन्द्र सिंह चरखारी के  पूर्व विधायक के बेटे हैं। महोबा के कनकुआ के रहने वाले हैं, लोध बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं लिहाजा सजातीय वोटरों के जरिए चुनौती खड़ी कर चुके हैं। इनके पिता चंद्रनारायण सिंह राजपूत 1967 में जनसंघ से चरखारी के विधायक रहे थे। 1974 में महोबा सदर विधानसभा से कांग्रेस पार्टी से विधायक बने। सपा ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अजेन्द्र को चरखारी से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन दूसरे दिन ही उनका टिकट काटकर  रामजीवन यादव को उतार दिया इससे लोधी समाज में खासा आक्रोश फैल गया था। माना जा रहा है अब सपा ने उसी का डैमेज कंट्रोल किया है। वहीं, बीएसपी की ओर से पहले जैमिनी सर्कस के मालिक मोहम्मद फतेह खान पर दांव लगाने की तैयारी थी पर वोटों के समीकरण को भांप कर  ब्राह्मण कार्ड चलकर मायावती ने यहां निर्दोष दीक्षित को प्रत्याशी बना दिया। महोबा के पनवाड़ी निवासी निर्दोष एमएससी उत्तीर्ण हैं। साल 2004 में कांग्रेस से जुड़े। 2015 में प्रदेश सचिव बने। कई जिलों के प्रभारी का दायित्व संभाला। साल 2022 में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चरखारी से चुनाव लड़े पर हार गए। इस बार भी टिकट की आस में थे लेकिन सपा-कांग्रेस गठबंधन के तहत ये सीट सपा को दे दी गई इससे निराश होकर निर्दोष बीएसपी में शामिल हुए और मायावती की पार्टी से टिकट हासिल कर लिया। बहरहाल, वीरों की इस धरा पर त्रिकोणीय संघर्ष नजर आ रहा है। 

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