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UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में लखनऊ सीट, बीते विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर बीजेपी और दो पर सपा की जीत

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 19th 2024 03:03 PM  |  Updated: May 19th 2024 03:03 PM

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में लखनऊ सीट, बीते विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर बीजेपी और दो पर सपा की जीत

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में आज बात करेंगे यूपी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण शहर लखनऊ संसदीय सीट के बारे में। कानपुर के बाद यह शहर सूबे का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है, ये जिला और मंडल मुख्यालय भी है। शहर के बीचों बीच से गोमती नदी बहती है। जो इस शहर की जीवनदायिनी भी है और इसकी जीवन शैली और संस्कृति मे भी अहम योगदान देती आई है।

पौराणिक गाथाओं से लेकर ऐतिहासिक दास्तां

इस ऐतिहासिक शहर का संबंध पौराणिक काल के त्रेता युग से रहा है। तब यह कौशल राज्य का हिस्सा हुआ करता था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को गोमती नदी के किनारे का ये क्षेत्र भेंट में दिया था। जिसे लक्ष्मणनगरी या लक्ष्मणपुरी कहा जाने लगा। इस क्षेत्र ने मौर्य, गुप्त, दिल्ली सल्तनत सहित तमाम राजवंशों का उत्थान और पतन देखा है। बारहवीं वीं सदी के आखिर में कन्नौज पर अफगानों की फतेह के बाद ये क्षेत्र गजनी के सुल्तान के कब्जे में आ गया बाद में यह दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बन गया। 16वीं सदी में यहां मुगल साम्राज्य का आधिपत्य हो गया। मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान यहां कई प्रशासनिक सुधार हुए। जहांगीर के दौर में ये क्षेत्र कला, संस्कृति और व्यापार के केंद्र के रूप में विकसित हुआ।

नवाबों के दौर में लखनऊ में पनपी साझा संस्कृति

सन् 1775 में अवध के चौथे नवाब आसफुद्दौला ने राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर दी।  आसफ-उद-दौला से लेकर वाजिद अली शाह सरीखे शिया नवाबों के दौर में ये शहर अदब यानि शिष्टाचार, खूबसूरत बगीचे, लजीज खानों और शायरी व संगीत का गढ़ बन गया। "नवाबों के शहर" के इस शहर को पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में भी जाना जाता है। इमारतों-वास्तुकला-चित्रकला-संगीत ने इसको अनूठी पहचान दी। नवाबी दौर का रूमी दरवाजा और इमामबाड़ा यहां की पहचान मुकम्मल करते हैं।

जंगे आजादी और ब्रिटिश हुकूमत का दौर

सन 1857 की जंगे आजादी का ये क्षेत्र मुख्य केन्द्र बना। बेगम हजरत महल, मौलवी अहमदुल्लाह शाह, ऊदा देवी, बिरजिस कद्र सरीखी हस्तियों ने यहां आजादी की लड़ाई की अलख जगाई। यहां का रेजीडेंस ब्रिटिश फौजों के दमन की गवाही आज भी देता है। बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी से होता ये क्षेत्र ब्रिटिश हुकूमत का हिस्सा बन गया। साल 1902 में नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस का नाम बदलकर यूनाइटेड  प्रोविंस आफ आगरा एंड अवध कर दिया। साधारण बोलचाल की भाषा मे इसे यूपी कहा गया। साल 1920 में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से लखनऊ कर दिया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक खंडपीठ लखनऊ में स्थापित की गई।

लखनऊ अतीत की सुनहरी यादों से लेकर आधुनिक पहलुओं को समेटे हुए है

12 जनवरी, 1950 को प्रदेश का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया और लखनऊ को इसकी राजधानी बना दिया गया। यह शहर संस्कृति,कला, साहित्य, शिक्षा और राजनीति के मुख्य केंद्र के रूप में विकसित होता गया। ये ऐसा जीवंत शहर है जो अपनी ऐतिहासिक पहचान के तंतु को आधुनिक विकास के साथ जोड़े हुए है। ये शहर अपने दशहरी आमों और चिकन की दस्तकारी के लिए दुनिया भर में मशहूर है। स्मार्ट सिटी बनने की राह पर अग्रसर है।

चुनावी इतिहास के आईने में लखनऊ सीट

इस संसदीय सीट से 1952 में पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित सांसद चुनी गई थीं। 1955 के उप चुनाव में नेहरू परिवार की ही शिवराजवती नेहरू जीतीं। 1957 में पुलिन बेहरा बनर्जी, 1962 में बीके धवन, 1967 में आनंद नारायण मुल्ला चुनाव जीते। 1971 में इंदिरा गांधी की मामी शीला कौल सांसद बनीं। ये सभी कांग्रेस पार्टी के थे। 1977 में यहां जनता पार्टी के हेमवती नंदन बहुगुणा को सांसद बनने का मौका मिला। पर 1980 और 1984 में फिर से शीला कौल ही यहां सांसद चुनी गईं। 1989 में जनता दल के मांधाता सिंह को जीत हासिल हुई।

अटल बिहारी वाजपेई की वजह से बीजेपी का गढ़ बना लखनऊ

नब्बे के दशक के बाद लखनऊ संसदीय सीट बीजेपी का अजेय दुर्ग बन गई।1991 के बाद 2004 तक हुए पांच संसदीय चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी यहां से सांसद चुने गए। उनके मुकाबले में कई सितारे और सियासी  हस्तियां यहां से चुनाव लड़ीं पर सबको करारी हार का सामना करना पड़ा। 1996 में सपा के राज बब्बर हारे। 1998 में उमराव जान सरीखी मशहूर फिल्म बनाने वाले कोटवारा राजघराने के मुजफ्फर अली सपा से चुनाव लड़े पर हार गए। 1999 में कश्मीर राजघराने के दिग्गज कांग्रेसी नेता डॉ. कर्ण सिंह को भी अटल ने चुनावी पटकनी दी। 2009 में अटल बिहारी वाजपेयी के अस्वस्थ होने पर उनके प्रतिनिधि के तौर पर यहां की जनता ने लालजी टंडन को जीताकर संसद भेजा।

राजनाथ सिंह की इंट्री, बीजेपी की जीत का सिलसिला बरकरार

साल 2014 में यहां से बीजेपी की कमान संभाली पूर्व सीएम रहे राजनाथ सिंह ने उन्होंने कांग्रेस की प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी को 2,72,749 वोटों के मार्जिन से चुनाव हराया, तब मशहूर कॉमेडियन जगदीप के बेटे एवं बॉलीवुड अभिनेता जावेद जाफरी आम आदमी पार्टी से चुनाव लड़े थे पर जमानत तक जब्त हो गई। इस चुनावी जीत के बाद राजनाथ सिंह केंद्रीय गृह मंत्री बने। साल 2019 के चुनाव में राजनाथ सिंह ने समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी और फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को 3,47,302 वोटों से शिकस्त दी। कांग्रेस के आचार्य प्रमोद कृष्णम 1,80,011 वोट पाकर तीसरे पायदान पर रहे।

वोटरों की तादाद और जातीय ताना बाना

इस सीट पर 21, 72,171 वोटर हैं। यहां 23. 7 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, बावजूद इसके आज तक यहां से कोई मुस्लिम चेहरा संसद तक नहीं पहुंच सका। सपा-बीएसपी का खाता तक नहीं खुल सका और ये सीट  बीजेपा का अजेय दुर्ग बनी हुई है। इस सीट पर 38 फीसदी सवर्ण वोटर हैं। 28 फीसदी ओबीसी, 18 फीसदी के करीब अनुसूचित जाति और 0.2 फीसदी एसटी वर्ग के वोटर हैं। हालांकि बीते तीन दशकों के आम चुनावों में जातीय समीकरण यहां बेमानी ही साबित हुए हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर बीजेपी और दो पर सपा की जीत

इस संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां की तीन सीटों पर बीजेपी और दो सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा हुआ था। लखनऊ पश्चिम से सपा के  अरमान खान, लखनऊ उत्तरी से नीरज बोरा, लखनऊ मध्य से सपा के रविदास मेहरोत्रा और लखनऊ कैंट से बीजेपी के बृजेश पाठक विधायक बने। ब्रजेश पाठक योगी सरकार में डिप्टी सीएम के पद पर हैं। यहां की लखनऊ पूर्वी सीट पर बीजेपी के आशुतोष  टंडन विधायक बने लेकिन लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया।

विधानसभा उपचुनाव भी हो रहे हैं

लखनऊ पूर्वी की रिक्त सीट पर उपचुनाव भी संसदीय चुनाव के साथ हो रहे हैं। इस उपचुनाव में चार प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी से ओमप्रकाश श्रीवास्तव, कांग्रेस से मुकेश सिंह चौहान और बीएसपी से  आलोक कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं। विनोद कुमार वाल्मीकि बतौर निर्दलीय हाथ आजमा रहे हैं।

संसदीय चुनाव की चौसर पर योद्धा डटे

इस सीट पर एकबारगी फिर से रक्षा मंत्री और मौजूदा सांसद राजनाथ सिंह ही बीजेपी के  प्रत्याशी के तौर डटे हुए हैं। उनके सामने चुनौती पेश करने के लिए सपा-कांग्रेस गठबंधन से सपा के रविदास मेहरोत्रा है जो लखनऊ मध्य से विधायक हैं तो बीएसपी से सरवर अली दांव आजमा रहे हैं। ये लखनऊ उत्तरी से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। नफासत और नजाकत के इस शहर में हो रहे चुनावी मुकाबले में बीजेपी की जीत का रथ रुक जाता है या फिर जीत का सिलसिला जारी रहता है। विपक्षी चुनौती कितनी कारगर रहती ये सवाल सबके जेहन में हैं। यहां का मुकाबला खासा दिलचस्प बन गया है।

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