UP Lok Sabha Election 2024: सपा और बीजेपी के खाते में दर्ज हुई सीट, वोटरों की संख्या और जातीय ताना बाना बनी श्रावस्ती संसदीय सीट
ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा करेंगे श्रावस्ती संसदीय सीट की। राप्ती नदी के किनारे स्थित श्रावस्ती देवीपाटन मंडल का हिस्सा है। इसके पूर्व-उत्तर में बलरामपुर, दक्षिण-पूर्व में गोंडा और पश्चिम-दक्षिण मे बहराइच जिला है। श्रावस्ती जिले का गठन 2 बार किया गया. 22 मई 1997 को इसे जिला घोषित किया गया, लेकिन 13 जनवरी 2004 में राज्य सरकार ने जिले का अस्तित्व ही खत्म कर दिया. बाद में जून 2004 में श्रावस्ती को फिर से नया जिला बना दिया गया. वर्ष 2009 में श्रावस्ती जिले की दो विधानसभा भिनगा व श्रावस्ती तथा बलरामपुर जिले की तीन विधानसभा तुलसीपुर, बलरामपुर सदर व गैसड़ी क्षेत्र को जोड़कर श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र का गठन हुआ।
सनातन धर्म के साथ ही बौद्ध व जैन धर्म का तीर्थ स्थल
पौराणिक मान्यता है कि भगवान राम के पुत्र लव ने इस शहर की स्थापना की। प्राचीन काल में ये कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। इसके नाम की व्युत्पत्ति को लेकर कई धारणाएं प्रचलित हैं। महाभारत काल में यहां राजा पृथु की छठी पीढ़ी के श्रावस्त नामक राजा से इसके नामकरण का जिक्र है। तो बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अति प्रतिष्ठित श्रावस्त नामक एक ऋषि के निवास करने के कारण ये क्षेत्र श्रावस्ती कहा गया। बुद्धकालीन छह महानगरों में से एक श्रावस्ती भी हुआ करता था। श्रावस्ती बौद्ध और जैन दोनों का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। महात्मा बुद्ध ने यहां 25 वर्षावास व्यतीत किए थे। ये जिला जैन तीर्थंकर संभवनाथ व चंद्रप्रभा की जन्मस्थली भी है। अनाथपिंडक नामक नगर सेठ ने यहां के जेतवन में कई धर्मशालाएं व मठ स्थापित किए। यहां का विभूति नाथ मंदिर, सुहेलदेव वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, कच्ची कुटी, पक्की कुटी प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।
उद्योग धंधे और विकास का आयाम
यहां के उद्योग धंधों के पहलू पर गौर करें तो हस्तनिर्मित शिल्प उत्पाद यहां के प्रसिद्ध हैं। जिसके निर्माण में जिले के थारू जनजाति के लोग खासतौर से शामिल हैं। शिल्पकार परिधान, कवर, टेबलक्लॉथ आदि उत्पादों का भी निर्माण करते हैं। फर्नीचर के निर्माण के क्षेत्र में भी इस जनपद का अहम स्थान है। श्रावस्ती जिले में करीब साढ़े तीन हजार हेक्टेयर में केले की खेती होती है। प्रत्यक्ष रूप से इससे दो से ढाई हजार किसान परिवार जुड़े हैं। जो इनकी आय का प्रमुख साधन है। यहां खुनियांव विकास क्षेत्र में परंपरागत खेती से हटकर दो दर्जन से अधिक गांवों के किसान केले की खेती से समृद्धि की राह तय कर रहे हैं। यहां के केले की आपूर्ति आसपास के बस्ती, संतकबीरनगर, गोंडा, बलरामपुर मे भी होती है। केले के तने से कपड़ा बनाने के लिए उद्योग की भी पहल की जा रही है। अब मशीन के सहारे केले के तने से रेशे अलग करते हुए उससे रस्सी, कपड़े, बैग, टोपी, आदि व वस्तुओं को निर्माण किया जा सकेगा। इसके लिए ओडीओपी के तहत सरकार लोन व प्रशिक्षण की व्यवस्था कर रही है।
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई और नानाजी देशमुख की कर्मभूमि
श्रावस्ती लोकसभा सीट पूर्व में बलरामपुर सीट के तौर पर जानी जाती थी। 1952 में इस सीट से कांग्रेस के बैरिस्टर हैदर हुसैन रिजवी चुनाव जीतकर पहले सांसद बने थे। 1957 में यहीं से चुनाव जीतकर जनसंघ के अटल बिहारी वाजपेई पहली बार सांसद चुने गए थे। उन्होने कांग्रेस की सुभद्रा जोशी को हराया था। पर 1962 में सुभद्रा जोशी से अटल जी हार गए। 1967 में अटल जी ने फिर ये सीट जीत ली। इसके बाद सुभद्रा जोशी फिर इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ीं। साल 1971 में कांग्रेस के चन्द्रभाल मणि त्रिपाठी चुनाव जीते। तो 1977 में जनता पार्टी से यहां चुनाव लड़े प्रख्यात समाजसेवी नाना जी देशमुख सांसद चुने गए। थारू जनजाति के लिए काम कर रहे नानाजी देशमुख ने बलरामपुर राजघराने की महारानी राजलक्ष्मी को चुनाव हराया था। उस समय की सियासत मूल्यों पर आधारित होती थी लिहाजा हार के बावजूद राजलक्ष्मी ने नानाजी को महाराजगंज का अपना फार्म हाउस दे दिया। जहां नानाजी देशमुख ने दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान की स्थापना की। यहां से चुनाव जीते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को वर्ष 2015 में और नानाजी देशमुख को साल 2009 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘’भारत रत्न’’ से सम्मानित किया गया।
कांग्रेस से होते हुए बीजेपी, सपा और बीजेपी के खाते में दर्ज हुई सीट
साल 1980 में कांग्रेस के चन्द्रभाल मणि त्रिपाठी और 1984 में कांग्रेस के महंत दीपनारायण वाह चुनाव जीते। 1989 में फसीउर्रहमान मुन्नन खां बतौर निर्दलीय यहां से सांसद चुने गए। 1991 और 1996 में बीजेपी के सत्यदेव सिंह यहां से चुनाव जीते। 1998 और 1999 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी से बाहुबली नेता रिजवान जहीर को चुनाव जीतने में कामयाबी मिली। 2004 में बीजेपी के बृजभूषण शरण सिंह सांसद बने।
बलरामपुर से श्रावस्ती बनी संसदीय सीट पर कांग्रेस ने खाता खोला
साल 2008 के परिसीमन के बाद बलरामपुर सीट का अस्तित्व खत्म हो गया और इसकी जगह श्रावस्ती सीट बनी। जिस पर हुए 2009 के चुनाव में कांग्रेस के विनय कुमार पांडेय बिन्नू ने बीएसपी के रिजवान जहीर को 42 हजार 29 वोटों से हरा दिया। सपा तीसरे पर और बीजेपी चौथे पायदान पर रही।
बीजेपी फिर बीएसपी जीती चुनाव
साल 2014 के चुनाव में बीजेपी के दद्दन मिश्रा ने चुनाव जीता। बीजेपी ने सपा से चुनाव लड़े माफिया अतीक अहमद को 85 हजार 913 वोटों से परास्त कर दिया। बीएसपी से लालजी वर्मा तीसरे कांग्रेस ने विनय कुमार पांडेय उर्फ बिन्नू पांचवें स्थान पर जा पहुंचे। रिजवान जहीर पीस पार्टी से चुनाव लड़े पर चौथे स्थान पर रहे। साल 2019 में इस सीट पर सपा-बीएसपी गठबंधन से बीएसपी के राम शिरोमणि वर्मा ने बीजेपी के दद्दन मिश्रा को पांच हजार 320 वोटों से हरा दिया। राम शिरोमणि ने 441,771 वोट हासिल किए जबकि दद्दन मिश्रा के खाते में 436,451 वोट आए। कांग्रेस के धीरेंद्र प्रताप सिंह तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें 58,042 वोट ही मिल सके।
वोटरों की संख्या और जातीय ताना बाना
इस सीट पर 19,80,381 वोटर हैं। जिनमें सर्वाधिक 29 फीसदी मुस्लिम हैं। 17 फीसदी दलित और 26 फीसदी ओबीसी वोटर हैं। 10 फीसदी कुर्मी, 8-8 फीसदी यादव और ब्राह्मण है। 7 फीसदी क्षत्रिय, 6 फीसदी वैश्य, 3 फीसदी कायस्थ हैं तो 2 फीसदी अनुसूचित जनजातियां भी हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सपा और चार पर बीजेपी जीती
श्रावस्ती संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें हैं-- श्रावस्ती की भिनगा, और श्रावस्ती, बलरामपुर की तुलसीपुर, गैंसड़ी और बलरामपुर सदर सुरक्षित सीट। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में एक सीट सपा और चार सीटें बीजेपी को हासिल हुईं। भिनगा से सपा की इंद्राणी देवी, श्रावस्ती के बीजेपी के रामफेरन पाण्डेय, तुलसीपुर से बीजेपी के कैलाश नाथ शुक्ला, और बलरामपुर सुरक्षित सीट से बीजेपी के पलटूराम विधायक हैं।
संसदीय सीट के चुनाव के साथ रिक्त विधानसभा सीट पर उपचुनाव
इस क्षेत्र की गैसड़ी सीट रिक्त है। यहां से चुनाव जीते सपा के डा एसपी यादव के असमायिक निधन से गैसड़ी विधानसभा सीट रिक्त हुई है इस पर उपचुनाव हो रहे हैं। बीजेपी की ओर से शैलेश सिंह शैलू हैं जबकि सपा की ओर से दिवंगत एसपी यादव के बेटे राकेश यादव को प्रत्याशी बनाया गया है। बीएसपी से मोहम्मद हारिस खान चुनाव मैदान मे हैं।
संसदीय चुनाव की बिसात पर संघर्षरत हैं योद्धा
मौजूदा चुनावी जंग मे बीजेपी ने साकेत मिश्रा पर दांव लगाया है। तो खासे ऊहापोह के बाद सपा से राम शिरोमणि वर्मा चुनावी मैदान में हैं। बीएसपी ने मुइनुद्दीन अहमद खान उर्फ हाजी दद्दन खान को उतारा है। पीएम मोदी के प्रधान सचिव रहे आईएएस अफसर नृपेन्द्र मिश्रा के बेटे हैं साकेत मिश्रा। साकेत इस वक्त यूपी विधान परिषद के मनोनीत सदस्य हैं। 1994 बैच में आईपीएस में सिलेक्ट हुए पर इन्वेस्टमेंट और बैंकिंग सेक्टर में चले गए। विदेश में कई नामी गिरामी वित्तीय संस्थानों में सेवाएं दीं हैं। अब राजनीति में उतर चुके हैं। सपा के राम शिरोमणि वर्मा पहले बीएसपी में थे उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने के बाद हो रहे विरोध को देखकर उनकी जगह धीरेन्द्र प्रताप सिंह के नाम का ऐलान किया गया पर उनका नामांकन खारिज हुआ तो फिर राम शिरोमणि वर्मा ही सपा के अधिकृत प्रत्याशी बना दिए गए। वहीं बीएसपी प्रत्याशी हाजी दद्न खान साल 2022 में भिनगा से बीएसपी के टिकट से चुनाव लड़े थे पर हार गए थे। तब चुनाव के बाद कई आपराधिक मामलों के चलते इन्हें जिला बदर भी घोषित किया गया था। बहरहाल, इस ऐतिहासिक सीट पर चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।