Friday 22nd of November 2024

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में सलेमपुर सीट, बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

Reported by: PTC News उत्तर प्रदेश Desk  |  Edited by: Rahul Rana  |  May 29th 2024 08:07 PM  |  Updated: May 29th 2024 08:07 PM

UP Lok Sabha Election 2024: चुनावी इतिहास के आईने में सलेमपुर सीट, बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP:  यूपी का ज्ञान में चर्चा करेंगे सलेमपुर संसदीय सीट की। बिहार से सटे देवरिया जिले के तहत आने वाले सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र का गठन देवरिया और बलिया जिले के कुछ हिस्सों को मिलाकर किया गया है।  आजादी से पहले तक सलेमपुर सबसे बड़ी तहसील थी। सलेमपुर के पास से छोटी गंडक नदी गुजरती है। 

प्राचीनकाल और धार्मिक आस्था से जुड़े पहलू

प्राचीनकाल में ये क्षेत्र गुप्त वंश और पाल शासकों के अधीन रहा। सलेमपुर का नाम हवेली नगर भी हुआ करता था मध्यकाल में मझौलीराज के शासक बौद्ध मल्ल ने औरंगजेब के दबाव में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया त यहां शाही मस्जिद का निर्माण करवाया। यहां के बेल्थरा रोड के सोनाडीह मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां के भक्त हरशु ने जब असम की देवी कामाख्या का आवाहन किया था तो देवी यहां पधारी थीं। चैत्र शुक्ल नवमी के बाद यहां पर बहुत बड़ा मेला लगता है।

आजादी के संघर्ष में इस क्षेत्र का बड़ा योगदान

सलेमपुर क्षेत्र मे कानून की पढ़ाई करने वाले विश्वनाथ राय ने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान घंटाघर पर तिरंगा फहराया था। इस दौरान अंग्रेजों द्वारा की गई फायरिंग में इनके दो साथी शहीद हो गए थे। विश्वनाथ राय शहीद  भगत सिंह से प्रभावित थे। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन  आर्मी के संस्थापक सदस्य शचीन्द्रनाथ सान्याल ने राय के कार्यों से प्रभावित होकर उन्हें इस संगठन की जिम्मेदारी सौंपी थी। सलेमपुर में विश्वनाथ उपाध्याय ने भी क्रांति की अलख जलाई। इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर रेल की पटरी उखाड़ दीं। तमाम प्रयासों के बावजूद नहीं पकड़े जा सके बाद में किसी के विश्वासघात के चलते गिरफ्तार हुए, मजिस्ट्रेट ने माफी मांगने को कहा पर इन्होंने मना कर दिया और लंबे समय तक जेल में रहे।  

धार्मिक आस्था के प्रमुख केंद्र

बेल्थरा रोड का मातेश्वरी सोनकली देवी, भगेस्वरी मन्दिर, बाबा सैदनाथ शिव मंदिर अति प्रसिद्ध है। तो बांसडीह नरही क्षेत्र का मंगला भवानी मंदिर, राम बाबा मंदिर, बाबा बालखंडी नाथ मंदिर, रेवती का पचरुखा देवी, बहुआरा का पचेव देव मंदिर, भाटपार रानी का जटहावीर बाबा मंदिर और सलेमपुर का परशुराम धाम मंदिर आस्था के बड़े केंद्र हैं।

उद्योग धंधे और विकास का आयाम

औद्योगिक तौर से सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र अति पिछड़ा इलाका है। हालांकि भाटपार रानी प्रतापपुर चीनी मिल रोजगार के साथ ही गन्ना किसानों को कुछ राहत जरूर देती है। बलिया के बांसडीह के मनियार का (टिकुली) उद्योग प्रसिद्ध है। बिंदी का व्यापार स्थानीय बाजारों के अतिरिक्त देश के विभिन्न भागों से भी होता है। बेल्थरा रोड में मिट्टी के उत्पाद तैयार होते हैं। यहां गिलास, कटोरी, थाली, प्लेट, कुल्हड़ आदि का उत्पादन किया जा रहा है।

चुनावी इतिहास के आईने में सलेमपुर सीट

साल 1952 में अस्तित्व में आने के बाद से ही सलेमपुर सीट सामान्य श्रेणी की सीट रही है। 1952 में कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर स्वतंत्रता सेनानी विश्वनाथ राय ने जीत हासिल की। 1957 में भी उन्हीं को चुना गया। 1962 और 1967 में कांग्रेस के विश्वनाथ पांडेय चुनाव जीते जबकि 1971 में इस सीट पर कांग्रेस के तारकेश्वर पांडेय ने जीत दर्ज की। पर 1977 में इस सीट से भारतीय लोकदल के राम नरेश कुशवाहा चुने गए। 1980 और 1984 में कांग्रेस के राम नगीना मिश्र सांसद बने।

हरिकेवल प्रसाद कुशवाहा चार  बार सांसद चुने गए

1989 और 1991 में जनता दल के हरिकेवल ने यहां से जीत हासिल की। 1996 में हरिवंश सहाय ने जीतकर यहां से सपा का खाता खोल दिया। 1998 में हरिकेवल प्रसाद ने समता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर इस सीट से जीत दर्ज की। 1999 में बब्बन राजभर ने यहां बीएसपी को पहली जीत दिलवाई। 2004 में सपा के हरिकेवल प्रसाद ने फिर ये सीट जीत ली पर 2009 में बीएसपी के रमाशंकर राजभर ने सीट पर कब्जा जमा लिया।

बीते दो आम चुनावों में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

साल 2014 की मोदी लहर मे पहली बार यहां से बीजेपी का खाता खुला। उसके रविंद्र कुशवाहा यहां से चुनाव जीते। 3,92,213 वोट हासिल कर कुशवाहा ने सपा के रवि शंकर सिंह को 2,32,342 वोटों के मार्जिन से हरा दिया। 2019 में फिर बीजेपी के रविंद्र कुशवाहा ने ही जीत हासिल की। उन्होंने 467,940 वोट हासिल कर  सपा-बीएसपी गठबंधन से चुनाव लड़े बीएसपी के आर एस कुशवाहा को 1,12,615 वोटों से मात  दे दी। 33,568 वोट पाकर सुभासपा के राजाराम तीसरे पायदान पर रहे।

वोटरों की तादाद और जातीय समीकरण

इस सीट पर 19, 70, 664 वोटर हैं। इस क्षेत्र में  कुर्मी और राजभर जाति की बहुलता है। यहां 18 फीसदी कुर्मी, मौर्य और कुशवाहा है। 15 फीसदी अनुसूचित जाति के वोटर हैं। जबकि 14 फीसदी राजभर बिरादरी के वोटर हैं। इसके अलावा ब्राह्मण, राजपूत, यादव बिरादरी के वोटर भी प्रभावी तादाद में हैं।

बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी का पलड़ा रहा भारी

सलेमपुर संसदीय सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें शामिल हैं। देवरिया जिले की भाटपार रानी और सलेमपुर सुरक्षित सीट और बलिया की बेल्थरा रोड सुरक्षित, सिकंदरपुर और बांसडीह सीट। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां एनडीए का वर्चस्व कायम हुआ।  भाटपार रानी से बीजेपी के सभा कुशवाहा, सलेमपुर से बीजेपी की विजय लक्ष्मी गौतम, बेल्थरा रोड से सुभासपा के हंसूराम, सिकंदरपुर से सपा के जियाउद्दीन रिजवी और बांसडीह से बीजेपी की केतकी सिह विधायक हैं।

साल 2024 की चुनावी बिसात पर डटे योद्धा

मौजूदा चुनावी जंग में बीजेपी ने सिटिंग सांसद रविंद्र कुशवाहा पर ही भरोसा जताया है। सपा से रमाशंकर राजभर और बीएसपी से भीम राजभर हैं।  रविन्द्र कुशवाहा के पिता हरिकेवल प्रसाद इस सीट से चार बार सांसद रह चुके हैं जबकि रविंद्र भी 2014 और 2019 में दो बार सांसद बन चुके हैं और अब तीसरी बार सांसद बनने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। सपा के रमाशंकर राजभर छात्र राजनीति से निकले 1991 से 2004 तक चुनाव लड़े पर कामयाबी नहीं मिली। 2009 में बीएसपी सांसद बने थे। 2014 में टिकट कटने से नाराज होकर सपा मे शामिल हो गए। सपा के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे। 2019 में ये सीट बीएसपी के खाते में  आ गई  इसलिए फिर टिकट से वंचित रह गए अब सपा ने इन्हें टिकट दिया है। बीएसपी के भीम राजभर यूपी बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। महाराष्ट्र बीएसपी के प्रदेश प्रभारी हैं। 2012 में मऊ सीट से बीएसपी की ओर से लड़े पर मुख्तार अंसारी से हार गए। 2022 में मऊ सीट पर फिर  बीएसपी से चुनाव लड़े पर इस बार मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी से मात खा गए। पहले इन्हें आजमगढ़ से टिकट दिया गया था पर बाद में बदलकर सलेमपुर कर दिया गया। बहरहाल, सपा और बीएसपी से दो राजभर प्रत्याशी होने की वजह से यहां का मुकाबला दिलचस्प हो गया है। फिलहाल यहां चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है।

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