ब्यूरो: Lucknow: कभी यूपी में सबसे बड़ी टाउनशिप बनाने का दावा करने वाले अंसल समूह का सबसे बड़ा घोटाला उजागर हुआ है। नियमों की अनदेखी व जालसाजी के जरिए इस समूह ने हजारों निवेशकों की गाढ़े पसीने की कमाई को हड़पने का कुचक्र रचा। अभी तक दौलत की बदौलत कानूनी जाल से बचकर निकलते रहे इस समूह पर शिकंजा मजबूत हो गया जब इस मामले का संज्ञान खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने लिया। यूपी विधानसभा बजट सत्र के दौरान इस समूह की धोखाधड़ी की गूंज सुनाई दी। खुद को दिवालिया घोषित करके बचने की अंसल समूह के प्रमोटर्स की कोशिश पर पानी फिर गया है, लखनऊ से लेकर गाजियाबाद तक इसके निदेशकों के खिलाफ मुकदमों की झड़ी लग गई है। हजारों निवेशकों के हित से जुड़े इस प्रकरण को समझते हैं इस खास रिपोर्ट के जरिए
लखनऊ में सबसे पहले दर्ज हुई अंसल के खिलाफ एफआईआर
जब अंसल समूह की शिकायतें सरकार तक पहुंची तब 3 मार्च को सीएम योगी ने हाउसिंग सेक्टर से जुड़े अफसरों संग उच्च स्तरीय बैठक की। इस प्रकरण का ब्यौरा लिया फिर सख्ती के निर्देश दिए। सीएम के सख्त तेवरों को भांप कर लखनऊ विकास प्राधिकरण यानी एलडीए हरकत में आया और मंगलवार की देर शाम लखनऊ में अंसल और उसके मालिकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया गया। उधर गाजियाबाद विकास प्राधिकरण की ओर से भी मुकदमा दर्ज कराया गया है। दो निदेशकों व जीएम पर विकास कार्य न कराने के आरोप लगाए गए हैं। एलडीए के पास बंधक 411 एकड़ जमीन को फर्जीवाड़े से बेचने के मामले में गोमतीनगर थाने में लडीए के अमीन अर्पित शर्मा की ओर से मुकदमा दर्ज कराया गया। इसमें रियल एस्टेट कंपनी अंसल, उसके प्रमोटर्स प्रणव असंल, सुनील अंसल, फ्रेंसेटी पैट्रिका अटकिशन और निदेशक विनय कुमार सिंह को आरोपी बनाया गया। प्रिवेंश ऑफ डेमेज टु पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट 1984 की धारा 3, बीएनएस की धारा 316(5), 318(4), 61(2), 352, 351(2), 338, 336(3), 340(2) और 111 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
सार्वजनिक जमीन कब्जा वाली अंसल के कर्मियों ने विरोध करने वालों को धमकियां भी दीं
एलडीए द्वारा पुलिस में दर्ज मुकदमे के मुताबिक अंसल कंपनी ने ग्राम समाज, सीलिंग, तालाब, सरकार के नाम दर्ज, चेक मार्ग, नवीन परती, बंजर, नहर, नाली और अन्य जमीनों को बिना नियम व शर्तों का पालन किए ही फर्जी ढंग से बेच दिया। 2268 आवंटियों ने रेरा में शिकायत का था, इस पर रेरा ने कंपनी के खिलाफ 235 करोड़ रुपये की आरसी जारी की थी। कंपनी ने सिर्फ 118 करोड़ रुपये की जमा कराए थे। आरोप ये भी है कि कंपनी के लोगों द्वारा एलडीए दफ्तर आकर कर्मचारियों के साथ अभद्रता की गई और डराया-धमकाया गया। मुकदमे में इस बात का भी जिक्र है कि अंसल कंपनी ने सार्वजनिक संपत्तियों पर अवैध रूप से कब्जा कर उसको प्लाटिंग कर लोगों को बेचकर अरबों रुपये कमाए गए। कंपनी की इस हरकत की वजह से जहां एक तरफ आम लोगों को आर्थिक नुकसान हुआ, वहीं दूसरी तरह सरकारी विभागों को भी बड़ी आर्थिक चोट पहुंचाई गई।
पहले जानते हैं कि अंसल समूह ने कब और कैसे शुरू की धोखाधड़ी
साल 1967 में अंसल प्रापर्टी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर (एपीआई) नाम से रियल स्टेट कंपनी रजिस्टर्ड हुई। यूपी में हाईटेक टाउनशिप पॉलिसी के तहत साल 2003 में अंसल को करीब 1,335 एकड़ में टाउनशिप का लाइसेंस दिया गया था। सुशांत गोल्फ सिटी टाउनशिप प्रोजेक्ट की शुरुआत साल 2005 में हुई। तीन फेज की योजना थी जिसे साल 2017 तक पूरा किया जाना था। साल 2006 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार से हरी झंडी मिलती है। पर अंसल इसका विकास निर्धारित अवधि में नहीं कर सका। इस बीच सूबे में सत्ता परिवर्तन हो जाता है। साल 2007 में मायावती की अगुवाई में बीएसपी सरकार सत्ता में काबिज हो जाती है। इस सरकार में शुरुआती दौर में अंसल का प्रोजेक्ट ठहरता है पर फिर गति पकड़ लेता है। साल 2008 में तत्कालीन मायावती सरकार ने इसकी टाउनशिप का दायरा बढ़ाकर 3,530 एकड़ कर दिया। टाउनशिप पॉलिसी के तहत केवल एक बार एक्सटेंशन मिल सकता था, लेकिन अंसल के लिए यह नियम भी बदल दिया गया। दूसरा एक्सटेंशन देते हुए तत्कालीन सरकार ने टाउनशिप का दायरा साल 2012 में बढ़ाकर 6,500 एकड़ कर दिया। राजधानी लखनऊ, दिल्ली एनसीआर समेत पांच राज्यों में अंसल एपीआई ने अपनी 21 से ज्यादा टाउनशिप बनाई हैं।
एलडीए के साथ समझौते का झांसा देकर अंसल समूह ने लोगों को निवेश के जाल में फंसाया
साल 2012 में कंपनी द्वारा इस हाईटेक टाउनशिप के सेकेंड फेज की शुरुआत की बात कही। इसके द्वारा विज्ञापन जारी करके बताया जाता है कि अंसल का एलडीए के साथ एमओयू हुआ है। चूंकि सरकारी विभाग एलडीए का नाम विज्ञापन में दिखता है तो आम लोगों को इस योजना पर भरोसा हो जाता है। इसी आधार पर लोग इसके प्रोजेक्ट में निवेश करने लगते हैं। अंसल ने प्लॉट, फ्लैट, विला और कमर्शियल इमारतों के आवंटन के नाम पर निवेश के आफर दिए। घर-दुकान पाने की आस में लोगों ने पन्द्रह लाख के शुरुआती अमाउंट से लेकर तीस से चालीस लाख तक के निवेश कर दिए। नोएडा तक में निवेश के ऑफर जारी किए। लोगों को आस थी कि जब उनका रिटायरमेंट करीब होगा तब तक उनका लखनऊ के नए बसे पॉश इलाके में अपना आशियाना हो जाएगा। पर डेढ़ दशक बीत गए फिर भी लोगों को न तो प्लाट मिल सके न घर और न ही दुकान।
अंसल समूह की घपलेबाजी की जानकारी उजागर होने पर टाऊनशिप का दायरा घटाया गया
लोगों ने तो निवेश शुरू कर दिया पर हकीकत में अंसल ने जो जमीन खरीद ही नही उसे भी कागजों पर अपनी बताकर बेच दिया। अंसल की इस मनमानी से तंग आकर निवेशक रेरा से लेकर हाई कोर्ट में शिकायत दर्ज करवाते रहे। साल 2021 के नवंबर में अंसल ने संशोधित डीपीआर जमा की, जिसमें जमीन को कम किया गया। एलडीए ने 6 अप्रैल 2023 को संशोधित डीपीआर मंजूर करते हुए योजना के विकास के लिए 5 अप्रैल 2028 तक का समय दिया। टाउनशिप का क्षेत्रफल घटाकर 4690 किया गया, तीन की बजाय पांच फेज में मंजूरी मिली।
इस बीच कंपनी ने डेवेलपमेंट के लिए जिस बैंक से लोन लिया, वह न चुका पाने के कारण एनसीएलटी कोर्ट से उसे दिवालिया घोषित कर दिया। निवेशकों का आरोप है कि अंसल समूह ने साजिश के तहत दिवालिया होने की स्क्रिप्ट रची।
अंसल एपीआई के दिवालिया होने की पूरे घटनाक्रम को जानते हैं
वित्तीय ऋणदाता आईएलएंडएफएस ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में जुलाई, 2019 में दिवालियापन याचिका दायर की। जिसमें आरोप लगाया कि उसने साल 2016 में एपीआईएल को कुल 150 करोड़ रुपये के दो सावधि कर्जा दिए थे। जो ब्याज सहित 257.43 करोड़ रुपए हो गए। पर अंसल बकाया राशि चुकाने में विफल रहा। कर्ज चुकाने का भरोसा देने पर अप्रैल 2021 में याचिका को वापस ले लिया गया लेकिन अंसल ने वायदे के बावजूद जब कर्जा चुकाने में कोताही बरती तब याचिका को पुनर्जीवित कर दिया गया। इस याचिका के साथ ही एपीआईएल को दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी), 2016 के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) में शामिल कर लिया गया।
दिवालिया घोषित किए जाने के बादअंसल एपीआई के खाते सीज हुए निवेशकों की रकम फंसी अधर में
एनसीएलटी की बेंच ने पाया कि एपीआईएल निपटान शर्तों का पालन करने में लगातार असफल रहा। भुगतान न कर सकने के बाबत संतोषजनक स्पष्टीकरण भी नहीं दे सका। लंबी सुनवाई के बाद 25 फरवरी को एनसीएलटी ने अंसल एपीआई को दिवालिया घोषित कर दिया। नियमों के तहत इसकी देनदारी और निवेशकों की दिक्कतों का समाधान तलाशने की कवायद शुरू कर दी है। लखनऊ, नोएडा समेत अन्य स्थानों पर समूह की जमीनों और निवेश को संभालने के लिए अंतिरम समाधान पेशेवर इंटरिम रिजॉल्यूशन प्रोफेशन (आइआरपी) को नियुक्त करने की प्रक्रिया को शुरू कर दिया गया है। आईआरपी की तरफ से क्लेम दाखिल करने का आवेदन फॉर्म जारी कर दिया है। निवेशकों को 11 मार्च तक क्लेम फाइल करने को कहा गया है। इसके बाद 24 अगस्त तक आईआरपी इन सभी क्लेम के मुताबिक देनदारियां तय करते हुए फाइनल प्रस्ताव एनसीएलटी को देगा। इस प्रस्ताव के बाद ही आवंटी और निवेशकों की देनदारी की तस्वीर साफ हो सकेगी। फिलहाल अंसल के सभी बैंक खातों को सीज करके लेनदेन पर रोक लगा दी गई है।
आरोप है कि अंसल की धोखाधड़ी को लेकर एलडीए और रेरा ने भी गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाया
अभी तक के आकलन के अनुसार लखनऊ में 250 करोड़ की जमीन बेची जिसमें 7000 निवेशकों का पैसा फंसा दिया। निवेशक अब एलडीए और यूपी रेरा की भूमिका पर भी सवाल उठा रहे हैं। आरोप है कि एलडीए के अधिकारी गुपचुप तरीके से अंसल के साथ सांठगांठ करके ले आउट बदलते रहे। इसकी शिकायत पर यूपी रेरा के अधिकारियों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की। सवाल ये भी है कि जब प्रॉजेक्ट की करीब 200 एकड़ जमीन एलडीए के पास बंधक है तो महज कुछ करोड़ रुपये की देनदारी के लिए इसे दिवालिया क्यों घोषत कर दिया गया?
एलडीए फिलहाल अपना दामन साफ होने के बाबत सफाई दे रहा है
एलडीए के मुताबिक अंसल पर उनका चार सौ करोड़ से अधिक बकाया था बावजूद इसके एनसीएलटी ने उसे और आवास विभाग को इस मामले में न तो कोई नोटिस दिया न ही पक्षकार बनाया। इस मामले में एकपक्षीय आदेश जारी कर दिया गया। एलडीए की दलील है कि उनकी ओर से अंसल संग एमओयू तो किया गया लेकिन कई मुद्दों पर आश्वासन चाहते थे जो नहीं किया गया। मसलन, एसटीपी के लिए अंसल को जमीन खरीदनी थी और बाकी लैंड बैंक अंसल को खरीदना था। पर ऐसा नहीं होते देख इन्हें अनुमति नहीं दी गई। वैसे भी अंसल को लाइसेंस एलडीए ने नहीं दिया है। वर्ष 2005 में हाईटेक टाउनशिप की नीति के तहत तत्कालीन सरकार ने लाइसेंस जारी किया था। ग्राम सभा की जमीन सहित भूमि अर्जन करने में अंसल पर अनियमितता की शिकायतों की जांच होगी और यदि इसमें एलडीए या किसी अन्य विभाग के अधिकारी या कर्मचारी दोषी मिलते हैं तो कार्रवाई होगी।
सीएम ने अंसल की धोखाधड़ी पर सपा को घेरा तो अखिलेश यादव ने पलटवार किया
यूपी विधानमंडल में सीएम योगी ने अंसल द्वारा होम बायर्स के संग धोखे की बात कहते हुए समाजवादी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि अंसल आपकी ही उपज थी। आज उसपर शिकंजा हमने कसा। साथ ही भरोसा दिलाया कि किसी होम बायर्स के साथ खिलवाड़ नहीं होगा। धोखाधड़ी करने वालों को उनकी सरकार पाताल से भी निकाल कर सजा देगी। इन आरोपों का जवाब देते हुए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि अंसल के प्रोजेक्ट पर बुलडोजर चलवाने की जगह बीजेपी उनके प्रोजेक्ट का उद्घाटन करती रही। उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर सीएम योगी पर निशाना साधा। लिखा- अपनी नाकामी को छुपाने के लिए जब लोग किसी और का नाम लेते हैं तो भूल जाते हैं कि उसी के नाम से बनी सिटी में स्थित मॉल और हॉस्पिटल का उन्होंने ही उद्घाटन किया था और उसी विशाल परिसर में बने एक नये होटल में जी-20 के मेहमान आपने ही ठहराए थे और वही वो जगह है जहाँ अरबों रुपए का सच्चा इंवेस्टमेंट आया। निवेशकों पर आरोप लगाकर हतोत्साहित करने से न तो निवेश का विकास होगा, न ही प्रदेश का। उप्र के सभी समझदार लोग कह रहे हैं अगर सब गलत था तो आप वहाँ अपना बुलडोजर लेकर जाते, कैंची लेकर उद्घाटन करने क्यों पहुँच गये?
बहरहाल, तमाम आरोप प्रत्यारोपों के बीच सीएम योगी दो टूक कह चुके हैं कि लखनऊ सहित जिन भी जिलों में अंसल ग्रुप के खिलाफ शिकायतें आ रही हैं उन सभी जगहों पर मुकदमा दर्ज कराया जाए। साथ ही एलडीए को खरीदारों की एक समिति बनाने के भी निर्देश दिए गए हैं जिससे अदालत में अंसल के खिलाफ सुबूतों को पुख्ता तरीके से रखा जा सके। सीएम ने ये भी कहा कि हमारी सरकार सबको यह गारंटी देगी कि प्रत्येक निवेशक को उनका पैसा वापस मिल जाए। अब सरकार के सख्त रुख के बाद अंसल पर कानून का शिकंजा सख्त होने और निवेशकों को राहत मिलने की उम्मीद जगी है। पर अंसल समूह की जालसाजी में जिन सरकारी अफसरों-कर्मचारियों ने भागीदारी की उन पर कानून का चाबुक कभी चल सकेगा या नहीं ये यक्ष प्रश्न बन चुका है।
A- अंसल समूह की धोखाधड़ी को लेकर जांच-निगरानी की कवायदें बहुतेरी हुईं पर सब बेनतीजा रहीं
आम निवेशकों की गाढ़ी कमाई की लूट करे धोखाधड़ी करने वाले अंसल समूह के खिलाफ जांच की कवायदों की फेहरिश्त बहुत लंबी है पर न तो इस समूह पर कानून का शिकंजा कस सका था न ही आम निवेशकों को कोई राहत नहीं मिल सकी थी। गौर करते हैं तमाम जांचों पर,
1-जुलाई 2017- पूर्व आवास राज्यमंत्री सुरेश पासी ने टाउनशिप का निरीक्षण किया। गरीबों के लिए मकान बनाने में लापरवाही और लेटलतीफी की शिकायतों पर एलडीए अफसरों से जांच रिपोर्ट तलब की, लेकिन सब बेनतीजा रहा।
2-जनवरी 2018- शासन ने अंसल के खिलाफ जांच का आदेश दिया। जांच अधिकारी व केडीए के तत्कालीन वीसी विजयेंद्र पांडियन ने जांच की पर एलडीए और अंसल ग्रुप से मिले दस्तावेज अधूरे थे। लिहाजा ये कवायद भी बेनतीजा ही साबित हुई।
3-नवंबर 2018- विधानसभा की याचिका समिति ने अंसल एपीआई के चेयरमैन सुशील अंसल को तलब किया, लेकिन चेयरमैन ने प्रतिनिधि को भेज दिया। बावजूद इसके अंसल समूह के खिलाफ कोई कार्रवाई न हो सकी।
4--अप्रैल 2019-- लखनऊ और नोएडा सहित पूरे प्रदेश में अंसल के 91 प्रॉजेक्टों का फरेंसिक ऑडिट हुआ। इसमें 600 करोड़ का हेरफेर पकड़ा गया, रिपोर्ट शासन को भेजी गई पर अंसल समूह का बाल भी बांका न हुआ।
5-दिसंबर 2020-- बिना रेरा रजिस्ट्रेशन खरीद फरोख्त की शिकायत हुई। यूपी रेरा ने जांच करवाई, लेकिन कंपनी की मनमानी जारी रही।
6-- अंसल एपीआई के खिलाफ रेरा में 400 से ज़्यादा शिकायत दर्ज हुईं। रेरा को पता चला कि सैकड़ों आवंटियों का पैसा जमा होने के बावजूद डेवलपर्स ने न तो उन्हें पैसा वापस किया, ना ही कब्जा दे रहा था। पर ये शिकायतें भी बेअसर साबित हुईं।
B-अंसल के कर्ताधर्ताओं पर लंबे वक्त से नियमों की धज्जियां उड़ाने के आरोप लगते रहे हैं
अंसल के प्रमोटर्स पर आरोप है कि उन्होंने सुशांत गोल्फ सिटी में नहर की जमीन पर कब्जा करके उसे एक निजी स्कूल को बेच दिया। जिस पर स्कूल ने इमारत बना ली। सिंचाई विभाग के अफसरों के संज्ञान में आने के बाद बिल्डर और स्कूल प्रशासन को नोटिस जारी किया गया था। मामला हाईकोर्ट पहुंच गया था। जहां से आदेश के बाद कब्जे वाले हिस्से को तोड़ा गया था। एलडीए ने अवैध रूप से जमीन की बिक्री, गोल्फ कोर्स की जमीन को अवैध रूप से बेचे जाने संबंधी शिकायतों के बाद अंसल कंपनी की रजिस्ट्री पर रोक लगा थी। वीसी की ओर से निबंधन विभाग को इसकी जानकारी देते हुए पत्र लिखा गया लेकिन रजिस्ट्री होती रहीं। अंसल समूह की हेराफेरी उजागर होने पर सीबीआई और ईडी की जांच शुरू हुई। इस ग्रुप के मालिक सुशील अंसल के पुत्र प्रणव अंसल के खिलाफ लुकआउट नोटिस भी जारी हुआ था। सितंबर 2019 में उसे दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया था जब वह लंदन जा रहा था।
अंसल सुशांत गोल्फ सिटी द्वारा 6.78 करोड़ रुपए का बकाया बिजली बिल नहीं चुकाने पर कई नोटिस दी गईं। आखिरकार बिजली विभाग ने कनेक्शन काट दिया था। पर बाद में कनेक्शन की बहाली हो गई।