दलित-बहुजन-आदिवासी-विमुक्ता के कार्यकर्ताओं ने उत्तर प्रदेश की विशेष अदालत के उस फैसले की निंदा की है, जिसमें 2020 के बहुचर्चित हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या के चार आरोपियों में से तीन को बरी कर दिया गया था। फैसले में किसी भी आरोपी को सामूहिक दुष्कर्म का दोषी नहीं पाया गया है।
कार्यकर्ताओं द्वारा जारी एक बयान में उत्तर प्रदेश सरकार से निष्पक्ष सुनवाई के लिए बिना देरी किए उच्च न्यायालय में फैसले की अपील करने की मांग की गई है। साथ ही पुलिस अधीक्षक के खिलाफ भी जांच की मांग की।
बता दें कि विशेष अदालत द्वारा 3 मार्च को दिए गए फैसले में चार आरोपियों में से केवल एक संदीप को गैर इरादतन हत्या और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। सामूहिक दुष्कर्म का कोई भी आरोपी दोषी नहीं पाया गया है।
फैसले पर सवाल उठाते हुए, कार्यकर्ताओं ने कहा कि पीड़िता के मरने से पहले दिए गए बयान के बावजूद ऐसा फैसला निंदनीय है। पीड़िता ने दुष्कर्म के लिए कुछ आरोपियों का नाम लिया है, यानी उसका जबरन यौन शोषण किया गया। मामले की पुनः सुनवाई के लिए सरकार आदेश दे।
कार्यकर्ताओं ने कहा कि अदालत ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम लागू करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि हत्या बदले पर आधारित थी जाति पर नहीं।
दलितों और अन्य वंचित समुदायों के खिलाफ लगातार हिंसा के विषय में बोलते हुए बयान में कहा गया है कि हर जाति-आधारित यौन अत्याचार की तरह, यह निर्णय दलितों और उनके मानव के प्रति उत्पीड़क-जाति घृणा और उपेक्षा की गहराई को प्रकट करता है।