ब्यूरो: Dihuli Massacre: नफरत-शक-अदावत-बदला-खौफ ने रच दी एक ऐसी खूनी दास्तां जिसने सभी को दहला दिया था। दो दर्जन बेकुसूरों को मौत के घाट उतारने वाले तीन गुनहगारों को चार दशक से ज्यादा वक्त बाद सुनाई गई सजा-ए-मौत। तत्कालीन केन्द्र व प्रदेश सरकार को थर्रा देने वाले इस मामले में 17 आरोपी बनाए गए थे जिनमें से 13 ने ट्रायल के दौरान दम तोड़ दिया। इस केस में गवाही देने वाले पांच लोगों की भी मौत हो चुकी है पर उन्होंने जिस बहादुरी से अदालत में बयान दर्ज कराया उसी के आधार पर न सिर्फ ये केस विधिक तौर से टिका रहा बल्कि दोषियों को सजा सुनाये जाने के अंजाम तक भी पहुंचा।
मुखबिरी के शक के चलते नरसंहार करने की योजना तैयार की डकैत गैंग ने
पुलिस चार्जशीट के मुताबिक यूपी के मैनपुरी इलाके में संतोष और राधे डकैत का गैंग सक्रिय हुआ करता था। इनका एक साथी कुंवरपाल था। जो दलित बिरादरी से ताल्लुक रखता था। एक महिला से संबंध को लेकर संतोष और राधे की कुंवरपाल से दुश्मनी हो गई। इसके कुछ समय बाद ही कुंवरपाल की संदिग्ध परिस्थितियों में हत्या हो गई। जिसके बाद पुलिस एक्शन में आई और संतोष-राधे गैंग के दो सदस्यों को भारी मात्रा में हथियारों क साथ दबोच लिया। इस गिरफ्तारी में दिहुली गांव के तीन लोगों को गवाह भी बनाया गया। इसके बाद गैंग के सदस्यों के मन में बैठ गया कि उनके साथियों की गिरफ्तारी के पीछे दिहुली गांव के जाटव बिरादरी के लोगों की मुखबिरी जिम्मेदार है। इन्होंने पुलिस को सूचना देकर गिरफ्तारी की साजिश रची है, बस इसी बात का बदला लेने के लिए दिहुली नरसंहार की पटकथा तैयार कर ली गई।
आज से 44 वर्षों पूर्व अंजाम दिया गया था भयावह नरसंहार
मौजूदा दौर में दिहुली गांव फिरोजाबाद जिला मुख्यालय से तकरीबन तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एक दौर में ये गांव मैनपुरी जिले का हिस्सा हुआ करता था। इसी गांव में आज से 44 वर्ष पूर्व दिहुली नरसंहार को अंजाम दिया गया था। 18 नवंबर, 1981 की शाम छह बजे डकैत संतोष और राधे गैंग के सदस्य हथियारों से लैस होकर गांव में घुसे। यहां महिलाओं-पुरुषों और बच्चों को घेरकर गोलियों से छलनी कर दिया गया। चार घंटों तक गोलीबारी होती रही। 23 लोगों ने मौका-ए-वारदात पर ही दम तोड़ दिया जबकि एक शख्स की मौत अस्पताल ले जाने के दौरान हो गई। इस घटना के अगले दिन 19 नवंबर को दिहुली के लायक सिंह ने जसराना थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। जिसमे राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष सिंह उर्फ संतोषा के अलावा 20 लोगों को आरोपी बनाया गया था। पीड़ित परिवारों के सदस्यों को इस केस में गवाह बनाने के लिए पुलिस अफसरों को खासी मशक्कत करनी पड़ी। दरअसल, सभी बेहद डरे हुए थे उन्हें अपने परिजनों की सुरक्षा को लेकर तमाम आशंकाओं ने घेर रखा था।
तत्कालीन केंद्र व राज्य सरकार दहल उठीं, खुद पीएम को दिहुली गांव तक आना पड़ा
इस हत्याकांड से इतनी दहशत फैली कि दलित परिवार गांव छोड़कर दूसरी जगह पलायन कर गए। अखबारों व रेडियो के जरिए इस नरसंहार की सूचना जैसे ही लोगों तक पहुंची तो पूरे देश में आक्रोश पनप गया। तब उत्तर प्रदेश में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी। विपक्ष ने इस नरसंहार को लेकर वीपी सिंह सरकार की जबरदस्त घेराबंदी की। विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी, बाबू जगजीवन राम घटनास्थल पर पहुंचे। विपक्ष द्वारा इस घटना को लेकर आक्रामक तेवर अपनाए गए तो इस मामले तूल पकड़ लिया। घटना की विभीषिका और जनाक्रोश भांपकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 22 नवंबर, 1981 को दिहुली गांव के दौरे पर पहंची। उनके साथ वीपी सिंह और केंद्रीय गृहमंत्री सहित केंद्र व प्रदेश के आला पुलिस व प्रशासनिक अफसर भी मौजूद थे। इंदिरा गांधी ने पीड़ितों को सुरक्षा व इंसाफ दिलाने का वायदा किया।
अफसरों ने गांव मे कैंप करके ग्रामीणों में भरोसे की बहाली की
पीएम द्वारा सख्त कार्रवाई के निर्देश जारी किए गए थे। पर खौफनाक वारदात से ग्रामीण दहशतजदा थे, जिनका पलायन रोकना बड़ी चुनौती बन गया था। जिसके समाधान के लिए सीनियर पुलिस अफसरों ने गांव में कैंप करने का फैसला लिया। इसके बाद लोगों को समझा बुझाकर पलायन से रोका। पुलिस व पीएसी तैनात करके पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया गया। गांव में स्थायी पुलिस चौकी भी बनाई गई। इस खूनी वारदात को अंजाम देने वाले गैंग की तलाश में पुलिस ने सघन अभियान छेड़ दिया। इसके बाद 26 फरवरी 1982 को गैंग सरगना राधे और संतोषा सहित 15 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इन गिरफ्तारियों के बाद 26 फरवरी 1982 को पुलिस ने अपनी चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी। जिसके बाद उसी साल 13 मई को कोर्ट में आरोपियों पर चार्ज फ्रेम किए गए।
अरसे तक ट्रायल इलाहाबाद में चला फिर मुकदमा मैनपुरी कोर्ट में दाखिल हुआ
इस दिल दहलाने वाले केस को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 5 मई, 1983 को इलाहाबाद के सेशन कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया। इसके बाद 1984 से लेकर अक्तूबर 2024 तक चालीस वर्षों तक इस केस का ट्रायल वहीं होता रहा। बाद में इस मुकदमे को फिर से पिछले साल 19 अक्टूबर को मैनपुरी डकैती कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया। इस केस के ट्रायल के दौरान लायक सिंह, वेदराम, हरिनरायण, कुमर प्रसाद, बनवारी लाल की गवाही हुई। हालांकि इन सभी की अब मौत हो चुकी है। मगर, इनकी गवाही पर ही पूरा केस टिका रहा और सजा सुनाये जाने के अंजाम तक पहुंचा। सबसे अहम गवाही रही कुमर प्रसाद की, जिन्होंने बतौर चश्मदीद कोर्ट में अपना बयान दिया। कुमर प्रसाद की गवाही में नरसंहार और वेदराम की गवाही में हत्याओं के साथ ही लूट का भी जिक्र किया गया। इस हत्याकांड में कुल 17 आरोपी बनाए गए थे। जिनमें से 13 की ट्रायल के दौरान मौत हो गई।
तीन दोषियों को अदालत फांसी की सजा सुनाई जबकि एक भगोड़ा घोषित कर दिया गया है
मैनपुरी में एडीजे विशेष (डकैती) इंद्रा सिंह की कोर्ट ने बीते 12 मार्च को सबूतों और गवाही के आधार पर तीन डकैतों को दोषी करार दिया था। जिसके बाद कप्तान सिंह और रामसेवक को जेल भेज दिया गया। रामपाल की हाजिरी माफी को कोर्ट ने रद्द करते हुए गैर जमानती वारंट जारी किया था। मंगलवार को तीनों दोषी भारी पुलिस फोर्स के घेरे में कोर्ट में पेश किए गए। इस दौरान अभियोजन पक्ष ने तमाम दलीलें पेश करते हुए भयावह नरसंहार के साक्ष्यों और गवाही का हवाला देते हुए फांसी की मांग की। बचाव पक्ष ने कम सजा दिए जाने की अपील की। इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई। जबकि फरार आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना की फाइल अलग की गई है। उसे भगोड़ा घोषित किया गया है। कप्तान सिंह, रामसेवक को दो-दो लाख और रामपाल को एक लाख रुपये के जुर्माने से भी दंडित किया। सजा सुनाए जाते ही तीनों ही डकैतों के चेहरे फक्क पड़ गए। वे बेसाख्ता रोते हुए अदालत के सामने अपनी सफाई देते नजर आए। कोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस तीनों दोषियों को जिला जेल मैनपुरी ले गई। वहां उन्हें दाखिल कर दिया गया।
फांसी की सजा मिलने के बाद भी दोषियों के पास विधिक उपचार मौजूद हैं
कोर्ट द्वारा फांसी की सजा पाए तीनों दोषियों अगले 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन बैरक में रखे जाएंगे। जहां उनकी नियमित निगरानी होती रहेगी। जांचा जाएगा कि वह समय से खाना-पीना ले रहे हैं या नहीं, सो पा रहे हैं या नहीं। 14 दिन के बाद इनको नियमित बैरक में स्थानांतरित कर दिया जाएगा जहां ये अपनी सजा भुगतेंगे साथ ही विधिक उपचार का भी इस्तेमाल कर सकेंगे। दरअसल, इस केस में सजायाफ्ता हो चुके रामपाल, रामसेवक और कप्तान सिंह के पास अपनी सजा के खिलाफ विधिक अधिकार मौजूद हैं। ये तीनों फांसी की सजा के खिलाफ तीस दिन के भीतर हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं। हाईकोर्ट सेशन कोर्ट के फैसले की समीक्षा करेगी। जिसके बाद निर्णय सुनाएगी। हाईकोर्ट के फैसले से फांसी की सजा को बरकरार रह सकता है या फिर सजा में संशोधन भी हो सकता है।
इन 24 बेकसूर दलितों की निर्मम हत्या की गई थी
दिहुली गांव के ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, रामदुलारी, श्रृंगारवती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, कुं. शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर व प्रीतम सिंह की हत्या हुई थी।
ये डकैत नरसंहार केस में आरोपी बनाए गए थे, जिनमें अधिकतर की मौत हो चुकी है
दिहुली नरसंहार में गिरोह सरगना संतोष उर्फ संतोषा और राधे सहित गैंग के सदस्य कमरुद्दीन, श्यामवीर, कुंवरपाल, राजे उर्फ राजेंद्र, भूरा, प्रमोद राना, मलखान सिंह, रविंद्र सिंह, युधिष्ठिर पुत्र दुर्गपाल सिंह, युधिष्ठिर पुत्र मंशी सिंह, पंचम पुत्र मंशी सिंह, लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल पर मुकदमा दर्ज हुआ था। लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को छोड़कर सभी की मौत हो चुकी है इनकी मौत के संबंध में कोर्ट में फौती रिपोर्ट भी दाखिल हो चुकी है। इस केस में लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अभी फरार हैं। इनकी फाइल को अलग कर दिया है। अब पुलिस या तो इनको गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करेगी या फिर पता लगाएगी कि ये जीवित हैं या नहीं। अगर, इनकी मौत की पुष्टि हो जाती है तब इनकी फौती रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर इनसे संबंधित मुकदमे की फाइल को बंद करा दिया जाएगा।
--अभियोजन पक्ष के मुताबिक, ''अदालत ने धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या के प्रयास), 216 (अभियुक्तों को शरण देना), 120 बी (आपराधिक साजिश), 449-450 (घर में घुसकर अपराध करना ) के तहत अभियुक्तों को दोषी ठहराया है।''
रामसेवक और कप्तान सिंह को इन धाराओं में सजा दी गई
रामपाल को इन धाराओं में सुनाई गई सजा