ब्यूरो: UP NEWS: पहलगाम आतंकी हमले को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच जंग के हालात बने हुए हैं। इसी दौरान मोदी सरकार ने देश में जातीय जनगणना कराने की घोषणा की है। चूंकि सभी विपक्षी दल, खास तौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस मुद्दे पर मुखर रहे हैं, इसलिए इस घोषणा के कई मायने हैं। इसके अलावा, भाजपा के कई समर्थक जाति जनगणना की मांग कर रहे थे।
इस फैसले के बाद भाजपा ने विपक्ष से एक अहम राजनीतिक मुद्दा छीन लिया है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को घोषणा की कि देश में जाति जनगणना कराई जाएगी। इस फैसले को मोदी सरकार का बड़ा मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। विपक्ष भले ही इसे अपनी सफलता बता रहा हो, लेकिन सच्चाई यह है कि इस घोषणा के बाद विरोधियों से यह अहम मुद्दा भी छिन गया। केंद्र सरकार के इस फैसले की परीक्षा बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी होगी।
विपक्ष से अहम मुद्दे छीन लिए गए
समाजवादी पार्टी हो या उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी। इन पार्टियों की नींव ही "जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" के आधार पर हुई थी। हालांकि, लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इस मुद्दे को मुखरता से उठा रहे हैं। कांग्रेस और सपा दोनों ने ही इसे चुनाव में फायदेमंद माना। इसके बाद भाजपा के भीतर जाति जनगणना कराने की मांग उठने लगी। अखिलेश यादव ने पीडीए की आड़ में भाजपा को घेरने के लिए हर मौके का फायदा उठाया। उन्होंने कई बार सरकार पर एक खास जाति के लोगों को दूसरी जातियों के मुकाबले तरजीह देने का आरोप भी लगाया।
बसपा की नेता मायावती ने भी जाति जनगणना के पक्ष में आवाज उठाई। एनडीए की सहयोगी अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद को भी इसके पक्ष में देखकर भाजपा को लगा कि अगर एक बार सही फैसला नहीं हुआ तो कई वर्गों के वोट छिटक सकते हैं। भाजपा नहीं चाहती कि जनता को लगे कि सरकार उनके हितों की अनदेखी कर रही है या उनके खिलाफ कोई धारणा बनाई जा रही है। हालांकि, इस फैसले के बाद प्रशासन ने विपक्ष के तर्क को नरम कर दिया है। इससे भाजपा को फायदा होगा और आरक्षण के विरोध का दावा भी खारिज हो जाएगा।