ब्यूरो: UP By-Election 2024: इलाहाबाद जिला मुख्यालय से तकरीबन तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित फूलपुर तहसील ऐतिहासिक क्षेत्र है। फूलपुर नाम से लोकसभा सीट भी है और विधानसभा क्षेत्र भी। इसी लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू। लगातार तीन बार यहां से सांसद बनकर नेहरू ने जीत की हेट्रिक लगाई थी। फूलपुर विधानसभा सीट पर अभी तक विधायक रहे प्रवीण पटेल के सांसद चुने जाने के बाद ये सीट रिक्त हो गई है। इसीलिए यहां उपचुनाव हो रहे हैं। अब यहां की चुनावी बिसात पर जुटे सभी दल अपने प्रत्याशियों की जीत की राह आसान बनाने के लिए कड़ी मशक्कत कर रहे हैं।
फूलपुर लोकसभा सीट देश की सर्वाधिक चर्चित संसदीय क्षेत्रों में शामिल रही
देश के पहले आम चुनाव के वक्त फूलपुर संसदीय सीट को इलाहाबाद ईस्ट कम जौनपुर वेस्ट के नाम से जाना जाता था। साल 1952 के पहले चुनाव में यहां से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चुनाव जीते थे। इसके बाद 1957 और 1962 में भी उन्हीं को जीत मिली। उनके निधन के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित सांसद बनीं। इस ऐतिहासिक संसदीय क्षेत्र से जनेश्वर मिश्र, विश्वनाथ प्रताप सिंह, कमला बहुगुणा और केशव प्रसाद मौर्य सरीखे सियासी दिग्गज यहां से सांसद चुने गए तो बाहुबली अतीक अहमद और कपिलमुनि करवरिया जैसे चेहरों को भी यहां से चुनावी जीत हासिल हुई।
परिसीमन के बाद झूंसी सीट ही फूलपुर विधानसभा सीट के तौर पर अस्तित्व में आई
प्रयागराज की तहसील फूलपुर के विकासखंड हैं बहरिया, फूलपुर, बहादुरपुर और सहसों। इसके तहत 567 गांव शामिल हैं। फूलपुर लोकसभा सीट की पांच विधानसभा सीटों में से एक है फूलपुर विधानसभा सीट। इस विधानसभा सीट का पहले नाम झूंसी सीट हुआ करता था। पर 2003-04 मे परिसीमन के बाद झूंसी के कुछ हिस्से प्रतापपुर विधानसभा से जुड़ गए तो सोरांव सहित कई इलाके फूलपुर से जोड़ दिए गए। नए परिसीमन के बाद यहां पहला विधानसभा चुनाव साल 2007 में हुआ था। फूलपुर तहसील की बाबूगंज, झूंसी, बहादुरपुर कानूनगो सर्किल, सिकंदरा, फाजिला उर्फ कालूपुर, रामगढ़ कोठारी, सरायगनी, चैमलपुर, अतनपुर पटवार सर्किल मिलकर फूलपुर विधानसभा बनाती हैं। इसी में यहां की नगर पंचायत भी शामिल है।
चुनावी इतिहास के झरोंखे में पहले की झूंसी और अबकी फूलपुर विधानसभा सीट
झूंसी विधानसभा सीट नाम होने के दौरान साल 1951 में कांग्रेस के शिवनाथ काटजू पहली बार यहां से चुनाव जीतकर विधायक बने। 1957 में कांग्रेस के सुखीराम भारतीय जीते। तो 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बंशीलाल के नाम पर जनता ने मुहर लगाई। 1974 में कांग्रेस के विद्याधर चुने गए। तो साल 1977 में इस सीट से जनता पार्टी से केशरीनाथ त्रिपाठीको कामयाबी मिली। इसी पार्टी के वैद्यनाथ प्रसाद साल 1980 में विधायक चुने गए। 1985 में यहां से कांग्रेस के महेंद्र प्रताप सिंह जीते। 1989 और 1991 में भी वही चुने गए पर इन दोनों चुनावो में वह जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े। 1993 में जवाहर यादव उर्फ पंडित ने यहां से चुनाव जीतकर सपा का खाता खोला। 1996 और 2002 में सपा की विजमा यादव को चुना गया। 2007 में प्रवीण पटेल ने यहां से चुनाव जीतकर बीएसपी का खाता खोला। पर 2012 में सपा के सईद अहमद चुनाव जीत गए। 2017 में प्रवीण पटेल ने फिर वापसी की लेकिन इस बार वह बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़े और जीते। साल 2022 में प्रवीण पटेल दोबारा चुनाव जीतकर विधायक बने।
इस क्षेत्र के कई ऐतिहासक व पर्यटन स्थल अत्यंत प्रसिद्ध हैं
यहां का झूंसी क्षेत्र अतिप्राचीन स्थल है। जिसे प्राचीनकाल में प्रतिष्ठानपुर या पुरी नाम से भी जाना जाता था। मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु ने हंस अवतार लिया था। चंद्रवंशीय राजाओं की राजधानी भी यहीं हुआ करती थी। जनश्रुतियों के अनुसार यहां के एक मूर्ख शासक हरिबोंग के चलते इस क्षेत्र को अंधेर नगरी की भी उपाधि दी गई थी। अंधेर नगरी और चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा सरीखी कहावत भी इसी शासक से जुड़ी हुई है। फूलपुर क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल हैं। शिव मंदिर करवल बस्ती, फूलपुर कल्याणी देवी मंदिर, वरुणा मंदिर प्रसिद्ध है। मैलहन झील और अरवांसी गांव की रानी की कोठी भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे हैँ। साल 1913 में राजा रायबहादुर प्रताप की पत्नी गोमती केसरवानी द्वारा बनवाया गया रानी का तालाब भी प्रसिद्ध है। अंदाव का जैनमंदिर अति प्रसिद्ध है।
ऐतिहासिक क्षेत्र के वाशिंदों की विकास की आस अभी भी है अधूरी
गंगा किनारे के इस इलाके में आज भी हर साल बाढ़ की विभीषिका चुनौती बन जाती है। वरुणा नदी की बाढ़ भी मुसीबत बनती है। कनिहार के कछारी क्षेत्र में बांध निर्माण की मांग लंबे वक्त से लंबित है। तो नींवी, छवैया, दुबावल आदि इलाकों में भी बाढ़ से बचाव के उपाय किए जाने की मांग उठती रही है। प्रयागराज गोरखपुर हाईवे फूलपुरसे ही होकर गुजरता है। पर सड़कों की खस्ता हालत और छुट्टा जानवर लोगों के लिए विकराल समस्या हैं। कारखाने के नाम पर यहां यूरिया बनाने का कारखाना इफको है। इसके अलावा इस क्षेत्र में कई बड़ी फैक्ट्री या उद्योग मौजूद नहीं है। यहां के लोगों को विकास का भरोसा दिलाने के लिए सीएम योगी ने सितंबर महीने में यहां का दौरा किया। झूंसी को 43 करोड़ की योजनाओं का लोकापर्ण व शिलान्यसा किया। जिसमें सड़क नाले नालियां, पेयजल नलकूप को लेकर विशेष पैकेज की व्यवस्था की गई है।
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में कम मार्जिन से बीजेपी ने जीत दर्ज की
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर प्रवीण पटेल ने सपा के मंसूर आलम को 16,613 वोटों के अंतर से हराया था लेकिन इसके बाद हुए 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के वोटों का मार्जिन घटकर महज 2,732 रह गया। तब प्रवीण पटेल को कुल वोटों का 42 फीसदी यानी 1,03,557 वोट मिले जबकि सपा प्रत्याशी मुजत्बा सिद्दीकी को 1,00,825 वोट हासिल हुए थे। सपा को कुल वोटों का 40.89 फीसदी मिला था। जाहिर है वोटों का मार्जिन बहुत कम रहा। तीसरे पायदान पर रहे बीएसपी प्रत्याशी रामतौलन यादव को 33,036 वोट ही मिल सके।
लोकसभा चुनाव जीतने वाली बीजेपी फूलपुर विधानसभा सीट से पिछड गई
इसी साल हुए आम चुनाव में बीजेपी ने प्रवीण पटेल को अपना प्रत्याशी बनाया था वो चुनाव तो जीत गए। लेकिन विधानसभावार पटेल फूलपुर क्षेत्र में काफी पीछे रह गए थे। प्रवीण पटेल ने कुल 4,52,600 वोट पाकर समाजवादी पार्टी के अमरनाथ मौर्य को 4332 वोटों के मार्जिन से हराया था। जीत भले प्रवीण पटेल को मिली हो पर फूलपुर विधानसभा क्षेत्र में उन्हें 89650 वोट मिले थे जबकि सपा के खाते मे 107510 वोट दर्ज हुए थे। बीएसपी के जगन्नाथ पाल को 27,806 वोट मिले थे। जाहिर है इस क्षेत्र में सपा ने 17860 वोटों की बढ़त बना ली थी। सांसद चुने जाने के बाद प्रवीण पटेल ने फूलपुर विधानसभा सीट छोड़ दी थी। लिहाजा अब इस पर होने वाले उपचुनाव बीजेपी के लिए किसी अग्निपरीक्षा सरीखे ही हैं।
आबादी का आंकड़ा और जातीय गुणागणित के नजरिए से फूलपुर सीट
इस सीट पर कुल 4,07, 366 वोटर अपना विधायक चुनने जा रहे हैं। इस सीट पर सर्वाधिक 70 हजार कुर्मी वोटर हैं। इसके बाद 65 हजार की आबादी यादव बिरादरी के वोटरों की है। मुस्लिम वोटर 54 हजार हैं। दलित बिरादरी के 80 हजार वोटरो मे सबसे अधिक 45 हजार पासी वोटर हैं। बिंद-कुशवाहा-मौर्य बिरादरी के वोटर 45 हजार, ब्राह्मण 40 हजार के करीब हैं। 20 हजार क्षत्रिय वोटर हैं। बीजेपी अपने प्रत्याशी के सजातीय कुर्मी वोटरों के साथ ही दूसरी ओबीसी जातियों और सवर्ण जातियों से उम्मीद लगाए हुए है तो सपा यादव व मुस्लिम वोटबैंक के सहारे है। कुर्मी और ब्राह्मण वोटर यहां निर्णायक साबित होते रहे हैं।
चुनावी बिसात पर डटे सियासी योद्धाओं का ब्यौरा
बीजेपी ने दो बार से जीती हुई इस सीट पर फिर से कुर्मी कार्ड चलते हुए दीपक पटेल को प्रत्याशी बनाया है। सपा से मुज्तबा सिद्दीकी चुनावी मैदान में हैं तो बीएसपी ने जितेन्द्र कुमार सिंह पर दांव लगाया है। दीपक पटेल साल 2012 में करछना से बीएसपी के विधायक रह चुके हैं। इनकी मां केशरी देवी पटेल साल 2019 में फूलपुर से सांसद चुनी गई थीं। उसके पहले पन्द्रह वर्षों तक वह जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। वहीं, सपा के मुजत्बा साल 2002 और 2007 में सोरांव सीट से बीएसपी विधायक बने तो साल 2017 में बीएसपी के टिकट से ही प्रतापपुर सीट से जीत हासिल की। 2022 का विधानसभा चुनाव सपा में शामिल होकर लड़े पर प्रवीण पटेल से हार गए थे।
तमाम समीकरणों से लैस प्रत्याशियों की दुश्वारियां और चुनौतियां बहुतेरी हैं
इस सीट पर बीएसपी ने पूर्व में घोषित प्रत्याशी शिवबरन पासी का टिकट काट दिया था लिहाजा पासी वोटरों की नाराजगी दूर करना जितेंद्र सिंह के लिए बड़ी दुश्वारी है। कांग्रेस गठबंधन के तहत फूलपुर सीट से चुनाव लड़ना चाह रही थी पर बात न बन सकी। अब कांग्रेस सपा प्रत्याशी का समर्थन कर रही है पर इसकी वजह से कांग्रेस से चुनाव लड़ने की आस लगाए पूर्व जिलाध्यक्ष गंगापार सुरेश यादव ने बगावत करके नामांकन कर दिया और बागी नेता के तौर पर ताल ठोक रहे हैं। इसकी वजह से सपा प्रत्याशी दिक्कत महसूस कर रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी के शाहिद अख्तर खान भी सपा के समीकरणों को गड़बड़ा रहे हैं।
अपने अपने फार्मूले और गुणागणित के जरिए जीत की व्यूह रचना में जुटे प्रत्याशी
पिछले विधानसभा चुनाव में हार-जीत का मार्जिन कम होने और आम चुनाव में पीछे रह जाने की वजह से फूलपुर विधानसभा सीट को लेकर बीजेपी खेमा खासा सतर्क है। पार्टी का पूरा फोकस कुर्मी-मौर्य-कुशवाहा-सवर्ण व दलित बिरादरी के वोटरों को साधने को लेकर है। केंद्र व राज्य की डबल इंजन की सरकार की उपलब्धियों को गिनाकर और बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर बीजेपी खेमा जातीय गोटियां भी सेट कर रहा है। तो सपाई खेमा परंपरागत माई यानी मुस्लिम-यादव गोलबंदी के जरिए इस सीट पर खुद को ताकतवर मान रहा है। हालांकि दूसरे दलों व प्रत्याशियों की वोटकटवा की भूमिका से सपा नेता संशकित भी हैं। बहरहाल, इस सीट पर मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा के दरमियान ही सिमटा नजर आ रहा है।