ब्यूरो: UP By-Election 2024: ऐतिहासिक- सांस्कृतिक-पौराणिक व पुरातात्विक महत्व वाला गाजियाबाद जिला यूपी के समृद्ध शहरों में गिना जाता है। ये विधानसभा क्षेत्र बीजेपी के गढ़ों मे शुमार है। यहां के सिटिंग विधायक लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन गए इसलिए रिक्त हुई इस सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। यहां सियासी दलों ने जातीय समीकरणों के लिहाज से चुनावी दांव चले हैं। बीजेपी इस सीट को बरकरार रखने की जंग लड़ रही है तो बाकी दल यहां अपना वर्चस्व कायम करने की जद्दोजहद कर रहे हैं।
पौराणिक-ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व की अमूल्य धरोहरों से युक्त है ये शहर
दिल्ली से सटे गाजियाबाद जिले को गेटवे ऑफ यूपी भी कहा जाता है। गंगा-यमुना और हिंडन यहां की प्रमुख नदियां हैं। मोहननगर के उत्तर में हिंडन नदी के किनारे केसरी टीले पर हुई पुरातात्विक खोज से पता चला है कि इस क्षेत्र में ढाई हजार वर्ष पूर्व सभ्यता विकसित हो चुकी थी। रामायण व महाभारत काल से जुड़े तमाम प्रसंगों में इस क्षेत्र का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि यहां के शासक गाजीउद्दीन के नाम पर इसका नामकरण गाजियाबाद हुआ।शीतला माता का मंदिर, श्रीमनन धाम अति प्रसिद्ध है तो दूधेश्वर नाथ शिव मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां पर रावण ने भी आकर तपस्या की थी। ये महादेव का काफी प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में यह मान्यता रही है कि यहां पर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए रावण ने भी आकर तपस्या की थी।
एनसीआर का ये अहम शहर तेजी से विकसित तो हुआ पर समस्याएं भी बहुतेरी हैं
गाजियाबाद यूपी में कानपुर के बाद दूसरा सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यहां अंग्रेजी हुकूमत के दौर की कई निशानियां आज भी मौजूद हैं। यहां जवाहर गेट, सिहानी गेट, डासना गेट और दिल्ली गेट है। जिसके अंदर पुराना शहर बसा हुआ है। शहर में मॉल-मल्टीप्लेक्स और फ्लाईओवरों की भरमार है। दिल्ली-मेरठ रैपिड मेट्रो ने इस शहर की रफ्तार को नया आयाम दिया है। दिल्ली मेट्रो से जुड़े एनसीआर के इस शहर को दुनिया के दस सबसे प्रगतिशील शहरों में शामिल किया गया है। पर ये शहर जलभराव, ट्रैफिक जाम और अतिक्रमण की दिक्कतों से भी जूझता रहा है। पार्किंग की कमी और फ्री होल्ड सोसायटी में पानी व सीवर की समस्या भी विकराल है।
तहसील से विकसित होते हुए सूबे के संपन्न शहर का दर्जा हासिल किया गाजियाबाद ने
गाजियाबाद सदर सीट इस जिले की पांच विधानसभा सीटों में से एक है। पहले ये क्षेत्र मेरठ जिले की तहसील हुआ करता था। 14 नवंबर, 1976 को तत्कालीन यूपी सीएम नारायण दत्त तिवारी ने इसे जिला घोषित किया। 31 अगस्त, 1994 को गाजियाबाद को नगर निगम का दर्जा हासिल हुआ। साल 2007 तक गाजियाबाद में तीन विधानसभा सीट होती थीं तो वर्ष 2012 में परिसीमन के बाद लोनी व साहिबाबाद के रूप में दो नई विधानसभा सीट बनाई गईं। दिल्ली से सटे होने की वजह से इस शहर ने विकास के कई कीर्तिमान बनाए।
चुनावी इतिहास के आईने में गाजियाबाद सदर विधानसभा सीट का ब्यौरा
साल 1957 और 1962 में हुए चुनावों मे गाजियाबाद नॉर्थ-वेस्ट नाम से जाने जानी वाली इस सीट से कांग्रेस के तेजा सिंह ने जीत दर्ज की। इन्हें स्थानीय लोग बापू जी कहते थे। विभाजन के वक्त ये पाकिस्तान के सरगोधा से भारत आए थे। इलाके के लोगों की समस्याओं को जानने और निदान के लिए यह साइकिल से कैला भट्टा से लेकर धौलाना, मोदीनगर और लोनी के गांवों में चक्कर लगाते थे। 1967 में इस सीट पर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के पियारे लाल का प्रभुत्व हो गया। 1969 में वह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव जीते। 1974 में कांग्रेस पार्टी के टिकट से जीत की हैट्रिक लगा दी। 1977 में यहां जनता पार्टी के राजेंद्र चौधरी विधायक चुने गए। जो अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। 1980 में इंदिरा कांग्रेस से सुरेंद्र कुमार जीते। 1985 मे कांग्रेस के कृष्ण कुमार शर्मा को जनता ने चुना। 1989 में कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर सुरेंद्र कुमार ने फिर वापसी की।
नब्बे के दशक की शुरुआत से यहां बीजेपी की पैठ हुई, कांग्रेस और बीएसपी को भी जीत मिली
नब्बे के दशक की शुरुआत में राम मंदिर आंदोलन की लहर के तेजी पकड़ने के साथ ही गाजियाबाद सदर सीट से बीजेपी का खाता खुल गया। साल 1991, 1993 और 1996 में बीजेपी के बालेश्वर त्यागी ने इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाई। साल 2002 में ये सीट कांग्रेस के सुरेंद्र प्रकाश गोयल ने हासिल कर ली। साल 2004 में हुए उपचुनाव में सपा के प्रत्याशी के तौर पर पूर्व विधायक सुरेन्द्र कुमार मुन्नी ने ये सीट जीत ली। पर अगले चुनाव में 2007 में सुनील कुमार शर्मा ने ये सीट फिर से बीजेपी के खाते में दर्ज करा दी। 2012 में यहा से बीएसपी के सुरेश बंसल को कामयाबी मिली।
बीते दो चुनाव से गाजियाबाद सदर सीट पर बीजेपी का परचम फहराया
साल 2017 और 2022 में इस सीट पर बीजेपी के अतुल गर्ग ने इस सीट पर जीत की इबारत लिखी। साल 2022 में अतुल गर्ग ने सपा के विशाल वर्मा को 1,05,537 वोटों के मार्जिन से हरा दिया था। बीएसपी के कृष्ण कुमार 33 हजार वोट पाए तो कांग्रेस के सुशांत गोयल 11 हजार वोट पाकर चौथे पायदान पर रहे। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अतुल गर्ग को गाजियाबाद लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया। वह चुनाव जीतकर सांसद बन गए और ये सीट रिक्त हो गई। जिस पर अब उपचुनाव हो रहे हैं।
आबादी का आंकड़ा और जातीय गुणा गणित के नजरिए से गाजियाबाद सदर सीट
गाजियाबाद सदर सीट पर 4,61,644 वोटर हैं। इनमें से सर्वाधिक 80 हजार वोटर अनुसूचित जाति के हैं। दूसरी बड़ी आबादी के तौर पर 70 हजार ब्राह्मण वोटर हैं। तो ओबीसी वोटर 50 हजार के करीब हैं। 35 हजार वैश्य और इतने ही मुस्लिम वोटर हैं। क्षत्रिय 25 हजार, पंजाबी 14 हजार हैं। यादव बिरादरी 12 हजार, जाट 10 हजार हैं। गुर्जर व कायस्थ वोटर 7-7 हजार, 5 हजार त्यागी हैं। दो हजार के करीब ईसाई समुदाय की भी आबादी है। गाजियाबाद शहर के बीच से रेलवे लाइन गुजरती है। एक तरफ का हिस्सा लाईन पार कहलाता है। लाइनपार क्षेत्र की आबादी आठ लाख है। बड़ी आबादी की वजह से वोटरो की तादाद भी अधिक है। लिहाजा ये क्षेत्र चुनावी जीत हार में निर्णायक किरदार निभाता है।
चुनावी चौसर पर डटे सियासी दलों के प्रत्याशी और उनके समीकरण
बीजेपी ने अपने इस गढ़ को बरकरार रखने के लिए यहां से संजीव शर्मा पर दांव लगाया है तो मुस्लिम व दलित वोटरों के जरिए चुनाव जीतने की आस मे सपा ने इस सामान्य सीट पर अनुसूचित जाति के सिंहराज जाटव को चुनाव मैदान में उतारा है। अखिलेश यादव को उम्मीद है कि इस सीट पर लोकसभा चुनाव वाला अयोध्या सरीखा फार्मूला कारगर हो सकता है जब सामान्य सीट से अवधेश प्रसाद सांसद बनने में कामयाब हो गए थे। बीएसपी ने अपने परंपरागत दलित वोटरों के साथ ही वैश्य समुदाय को भी साधकर अपने चुनावी समीकरण को धार देने के लिए परमानंद गर्ग को टिकट दिया है। बीएसपी से टिकट पाने की आस लगाए रवि गौतम नाराज होकर बागी हुए तो उन्हें ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने अपना प्रत्याशी बना दिया। आजाद समाज पार्टी ने सत्यपाल चौधरी को अपना प्रत्याशी बनाया है।
यहां मुकाबला बीजेपी और सपा की सीधी टक्कर है पर बीएसपी के जातीय दांव के चलते यहां त्रिकोणीय संघर्ष के भी आसार बने हुए हैं। अब 20 नवंबर को जब जनादेश ईवीएम में दर्ज हो जाएगा तभी तय हो सकेगा कि किस सियासी दल का दांव फ्लॉप हो गया और किसका गुणा गणित सटीक बैठा।