Sunday 8th of December 2024

UP By-Election 2024: उपचुनाव की जंग: कुंदरकी सीट का लेखा जोखा!

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  November 13th 2024 02:00 PM  |  Updated: November 13th 2024 06:39 PM

UP By-Election 2024: उपचुनाव की जंग: कुंदरकी सीट का लेखा जोखा!

ब्यूरो: UP By-Election 2024: यूपी के पश्चिमी इलाके की ये विधानसभा सीट मुरादाबाद जिले का हिस्सा है। मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर बीजेपी ने आखिरी बार साल 1993 में जीत दर्ज की थी। बीएसपी भी इस सीट पर साल 2007 के बाद जीत पाने को तरस रही है। बीते तीन चुनावों से ये सीट समाजवादी पार्टी के खाते में दर्ज हो रही है। यहां के सपा विधायक जियाउर्रहमान बर्क संभल से सांसद बन गए तो ये सीट रिक्त हो गई। अब यहां हो रहे उपचुनाव में मुकाबले के लिए जहां बीजेपी-सपा और बीएसपी तो मौजूद हैं ही साथ ही चंद्रशेखर आजाद और असदुदीन औवेसी की पार्टी के प्रत्याशी भी ताल ठोक रहे हैं।

        

मध्यकाल से ही बरकरार है ऐतिहासिक कुंदरकी की अहमियत

ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि मुरादाबाद-आगरा हाईवे पर स्थित कुंदरकी की बसावट मुगल शासनकाल से पहले की है। चौदहवीं सदी में भारत आया अरब यात्री इब्नबतूता 1363 में कुछ वक्त के लिए कुंदरकी में भी ठहरा था। 1575 में यहां राजा मुंशी हरदत राय की रियासत थी। कायस्थ बिरादरी से ताल्लुक रखने वाली इस रियासत के परिवार को "महल वाले" नाम से जाना जाता था। 1628 में मुगल बादशाह शाहजहां से अब्दुल रज्जाक साहब को कुंदरकी का शहर काजी नियुक्त किया था। जिनके वंशज सैयद रजा अली को ब्रिटिश हुकूमत ने दक्षिण अफ्रीका में एजेंट-जनरल नियुक्त किया था। इसी परिवार के मीर हादी अली ने कुंदरकी रेलवे स्टेशन बनवाया था। बाबू जीवा राम, मुंशी रतनलाल और सईद रज़ी उल हसन सरीखे स्वतंत्रता सेनानियों का जन्म यहीं हुआ। विख्यात कव्वाली गायक शंकर शंभू भी यहीं के निवासी थे।

    

ब्रिटिश हुकूमत के दौर से आजाद भारत में कुंदरकी का प्रशासनिक कद बढ़ता गया

साल 1858 में कुंदरकी को पंचायत के तौर पर मान्यता मिली तो 1907 में इसे टाउन एरिया का दर्जा हासिल हुआ। 1960 में इसे सामुदायिक विकास खंड बनाया गया। 1994 में इसे नगर पंचायत का घोषित कर दिया गया। साल 2009 में हुए विधानसभा क्षेत्र के परिसीमन के बाद बिलारी नगर और आसपास का क्षेत्र हटाकर चंदौसी का कुछ हिस्सा कुंदरकी विधानसभा से जोड़ दिया गया। इसकी वजह से यहां के प्रभावशाली सहसपुर राजपरिवार का परंपरागत इलाका बिलारी विधानसभा में चला गया। नए क्षेत्रों को जोड़े जाने के बाद ये सीट मुस्लिम बिरादरी के बाहुल्य वाली हो गई। 

     

हिंदू-मुस्लिम साझा संस्कृति वाले कुंदरकी में आस्था के कई अहम केंद्र हैं

कुंदरकी में ईधनपुर नगला का शिव मंदिर, जैतिया फिरोजपुर का प्राचीन शिव मंदिर, चमुंडा देवी मंदिर, कायस्थान मोहल्ले का जैन मंदिर अति महत्ता के धार्मिक स्थल हैं। तो यहां की चिश्ती खिबड़िया की मजार पर बड़ी तादाद में सभी धर्मों के श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं। यहां की कर्बला का इतिहास का देश की आजादी की लड़ाई से भी जुड़ा हुआ है। मुगल बादशाह शाहजहां के दौर से ही यह अकीदतमंदों की आस्था का केंद्र रहा है। सआदत मस्जिद और काजी मस्जिद प्रसिद्ध हैं। यहां छिद्दा खंडसाली द्वारा तैयार की गई  ताजमहल की अनुकृति कुंदरकी आने वाले लोगों को अपनी ओर जरूर आकर्षित करती है।

     

कुंदरकी विधानसभा का लेखा जोखा इतिहास के आईने में

कुंदरकी विधानसभा की सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी। इसके बाद 15 बार विधानसभा चुनाव हुए। यहां हुए पहले चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी माही लाल ने जीत दर्ज की थी। 1969 में माही लाल भारतीय क्रांति दल से चुनाव जीतकर विधायक बने। 1974 में कांग्रेस की इंदिरा मोहनी को जीत मिली। तो  1977 और 1980 में जनता पार्टी के अकबर हुसैन ने यहां परचम फहराया। साल 1985 में फिर यहां कांग्रेस का कब्जा हुआ तब रीनाकुमारी विधायक चुनी गईं। 1989 में चंद्र विजय सिंह जनता के टिकट से चुनाव जीते तो 1991 में जनता दल से ही जलालपुर खास गांव के अकबर हुसैन को जीत मिली। साल 1993 में चंद्र विजय सिंह बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे और तब से अब तक पहली बार व आखिरी बार इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला। चंद्र विजय सिंह महज 18 महीनों तक ही विधायक रहे। इसके बाद से इस सीट पर बीएसपी और सपा के प्रत्याशी ही चुनाव जीतते रहे।

    

कुंदरकी विधानसभा सीट पर चुने गए 13 विधायकों में से सर्वाधिक 9 तुर्क बिरादरी के रहे

साल 1996 में पूर्व विधायक अकबर हुसैन बीएसपी में शामिल होकर चुनाव लड़े और जीत गए। साल 2002 में सपा ने डोमघर निवासी तुर्क बिरादरी के मोहम्मद रिजवान को टिकट दिया। जिन्होंने चुनाव जीतकर पहली बार यहां सपा का खाता खोला। हालांकि अगले ही चुनाव में 2007 में बीएसपी के अकबर हुसैन ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमा लिया। पर इसके बाद साल  2012, 2017 मे लगातार दो बार मोहम्मद रिजवान सपा के टिकट से चुनाव जीते।

   

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बगावत के बावजूद सपा को फतह हासिल हुई

कुंदरकी से चार बार विधायक रहे मोहम्मद रिजवान का टिकट साल 2022 के विधानसभा चुनाव में काटकर जियाउर्रहमान को दे दिया गया। इससे नाराज होकर रिजवान ने बगावत कर दी और बीएसपी से शामिल होकर चुनाव लड़े। तब सपा के जियाउर्रहमान बर्क को 125792 वोट मिले, जबकि बीजेपी के कमल प्रजापति 82630 वोट पा सके। सपा ने 83 हजार वोटों के बड़े मार्जिन से जीत पा ली। बीएसपी के मोहम्मद रिजवान को 42720 वोट ही मिल सके। अपने दादा शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद जियाउर्रहमान बर्क ने संभल लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत गए। सांसद बनने के बाद उन्होंने कुंदरकी सीट से इस्तीफा दे दिया इसी वजह से यहां उपचुनाव हो रहे हैं।

      

मुस्लिम आबादी की बहुलता वाले इस क्षेत्र में तुर्क बिरादरी का है प्रभाव

आबादी के आंकड़ों के मुताबिक कुंदरकी में 383488 वोटर हैं। यहां की पैंसठ फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की है। सवा दो लाख मुस्लिम हैं। जिनमें से पचास हजार से अधिक तुर्क बिरादरी के हैं। इसलिए इस सीट को तुर्कों का गढ़ कहा जाता है।  मुस्लिम राजपूत 45 हजार के करीब हैं। 46 हजार अनुसूचित जाति की आबादी है। 30-30 हजार के करीब क्षत्रिय व सैनी  बिरादरी निवास करते हैं। पन्द्रह हजार यादव हैं बाकी अन्य बिरादरियां हैं। तुर्क बिरादरी के वोटर ही चुनाव में निर्णायक किरदार निभाते आए हैं।  

       

चुनावी बिसात पर सभी दलों के प्रत्याशी अपने अपने समीकरणों के साथ मुस्तैद हैं

कुंदरकी सीट के उपचुनाव के लिए 12 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं जिनमें से से 11 प्रत्याशी मुस्लिम हैं और सिर्फ बीजेपी के रामवीर सिंह हिंदू प्रत्याशी हैं। सपा ने मोहम्मद रिजवान को टिकट दिया है जबकि बीएसपी से राफातुल्लाह उर्फ नेता छिद्दा ताल ठोक रहे हैं। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से मोहम्मद वारिस चुनाव लड़ रहे हैं,  पिछली बार चौदह हजार वोट पाकर चुनाव हार गए थे।  चंद्रशेखर आजाद रावण ने आजाद समाज पार्टी से हाजी चांद बाबू मुकाबला कर रहे हैं।

   

कमल खिलाने के लिए भरपूर जुगत भिड़ा रही है बीजेपी                    

31 साल के लंबे अंतराल के बाद कुंदरकी में जीत पाने के लिए बीजेपी मुस्लिम वोटों में पैठ बनाने की खास कवायद करती दिखी है। यहां बीजेपी प्रत्याशी रामवीर सिंह मुस्लिम वोटरों की जनसभाओं में कवायद जालीदार टोपी और गले में अरबी रुमाल पहनकर जा रहे हैं। रामवीर कुरान की आयतें पढ़कर मुस्लिम समुदाय से समर्थन की अपील कर रहे हैं।  तुर्क मुसलमानों के वर्चस्व वाली इस सीट पर बीजेपी मुस्लिम राजपूत वोटरो को रिझाने की व्यापक कोशिशें हो रही हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी यहां के चुनावी प्रभारी हैं। यूपी बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली मुस्लिम वोटरों को लामबंद करने की मुहिम में लगे हुए हैं। बीती 1 सितंबर को यहां पहुंचे सीएम योगी ने 450 करोड़ की परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास करके यहां की जनता को विकास का तोहफा दिया था।

           बहरहाल, सपा जहां अपनी इस परंपरागत सीट को फिर से हासिल करने की कोशिश कर रही है वहीं, बीजेपी तीन दशकों बाद यहां जीत पाने को बेताब है। दलित-मुस्लिम समीकरणों को साधकर बीएसपी भी खाता खोलने की ख्वाहिशमंद है। यूं तो चुनावी मैदान में मौजूद सभी उम्मीदवार अपने अपने समीकरणों के सहारे जीत की आस संजोए हैं पर यहां का मुकाबला सपा-बीएसपी और बीजेपी के दरमियान त्रिकोणीय बना हुआ है।

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