Thursday 21st of November 2024

UP By-Election 2024: उपचुनाव की जंग: मझवां सीट का लेखा जोखा

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  November 19th 2024 08:21 PM  |  Updated: November 19th 2024 08:21 PM

UP By-Election 2024: उपचुनाव की जंग: मझवां सीट का लेखा जोखा

ब्यूरो: UP By-Election 2024: देवी मां विंध्यवासिनी के धाम मीरजापुर लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली मझवां विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। रुद्रप्रसाद सिंह और लोकपति त्रिपाठी सरीखे एक दौर के दिग्गज कांग्रेस नेता यहां से विधायक चुने गए थे।

यहां से कांग्रेस, जनसंघ, जनता दल, बीएसपी और बीजेपी को जीत हासिल हुई लेकिन आज तक सपा का खाता तक नहीं खुला। कभी बीएसपी की परंपरागत सीट माने जाने वाली इस विधानसभा सीट पर रसूखदार सियासी परिवारों की दो महिलाएं चुनावी मैदान में हैं।  

 

आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में सुरक्षित सीट रहा मझवां विधानसभा क्षेत्र पिछड़ा इलाका है

मिर्जापुर सदर तहसील का विकासखंड है मझवां। इसी नाम से विधानसभा सीट भी है। मझवां का अधिकांश क्षेत्र ग्रामीण परिवेश का है। इस क्षेत्र में एक नगर पंचायत और तीन विकासखंड हैं। मझवां विधानसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में आई थी। लंबे समय तक आरक्षित रही यह सीट 1974 में सामान्य सीट घोषित हुई थी। ये क्षेत्र विकास के पैमाने पर पिछड़ा हुआ है। यहां के किसानों के लिए खेतों तक सिंचाई के लिए पानी गंगा से लिफ्ट करके पहुंचाने की बड़ी चुनौती है। इस क्षेत्र में ओवरब्रिज न होने से कई रेलवे क्रासिंगों पर आए दिन हादसे होते रहते हैं। हर चुनाव में नेताओं से ओवरब्रिज का आश्वासन तो मिलता है, लेकिन उस पर अमल नहीं हो पाता है। यहां की खराब सड़कें, टांडा नहर फॉल का विकास न हो पाना लोगों की दुश्वारियों में इजाफा करता है।

                     

मझवां क्षेत्र के प्रमुख पौराणिक व धार्मिक महत्व के स्थल

इस क्षेत्र के प्रमुख स्थलों में जमुआ बाजार के नजदीक का पूर्णेश्वर महादेव का शिव मंदिर शामिल है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार और यहां के तालाब का निर्माण तीन सौ वर्ष पूर्व काशी नरेश के पूर्वजों ने किया था। श्री रामकिंकरेश्वर महावीर मंदिर, बरैनी में संकट मोचन हनुमान    मंदिर में बड़ी तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं। सारनाथ शिव मंदिर भी अति महत्ता का है। लरवक गांव स्थित इस मंदिर पर एक दौर में औरंगजेब ने भी आक्रमण करके तोड़फोड़ की थी। यहां के पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर भी प्रसिद्ध है।

   

मझवां के वोटरों को विकास का भरोसा दिलाने की भरपूर मशक्कत की है योगी सरकार ने

यहां के चुनावी अभियान पर निकले सीएम योगी ने बीते दिनों 765 करोड़ की 127 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास किया। पहाड़ी विकास खंड के गोपालपुर में आयोजित कार्यक्रम में ऋण वितरण, टैबलेट और स्मार्टफोन का वितरण भी किया गया। इसके साथ ही ग्राम्य विकास के तहत 1282 समूहों को 19.23 करोड़ का डेमो चेक भी प्रदान किया। तो यहां की राजकीय पौधशाला विसुन्दरपुर में आयोजित कार्यक्रम में राज्यमंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने एक करोड़ 29 लाख रुपए के बने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का लोकार्पण किया साथ ही राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद अंतर्गत 6.5 करोड़ सड़कों का शिलान्यास किया है। सरकार की तरफ से क्षेत्रवासियों को बेहतरी का भरोसा दिलाया गया है।

चुनावी इतिहास के आईने में मझवां विधानसभा सीट

इस सीट पर साल 1952 से 1960 तक कांग्रेस के बेचन राम चुनाव जीतते रहे। इसके बाद यहां 1962 में भारतीय जनसंघ के राम किशुन को जीत हासिल हुई। पर साल 1967 और 1969 में फिर से यहां कांग्रेस के बेचन राम का ही परचम फहराया। साल 1974 में सामान्य सीट घोषित होने के बाद कांग्रेस के रुद्र प्रसाद सिंह यहां से विधायक चुने गए। इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में यहां की जनता ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिवदास को जिताया। साल 1980 व 1985 में कांग्रेस के दिग्गज नेता लोकपति त्रिपाठी यहां से चुनाव जीतकर विधायक बने। साल 1989 में रुद्र प्रसाद सिंह फिर से चुनाव जीते तब वह जनता दल के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे।

 

कांग्रेस का गढ़ रही मझवां सीट पर सर्वाधिक जीत बीएसपी को मिली

नब्बे के दशक के शुरुआती दौर से ही इस सीट पर बीएसपी का पलड़ा भारी रहा। साल 1991 व 1993 में बीएसपी के भागवत पाल यहां से चुनाव जीते। 1996 में रामचंद्र मौर्य की जीत के साथ यहां से पहली बार बीजेपी का खाता खुला। 2002, 2007 और 2012 के चुनावों में यहा से बीएसपी के डा. रमेश चंद बिंद ने जीत की हैट्रिक लगाई। साल 2017 में बीजेपी प्रत्याशी सुचिष्मिता मौर्या यहां से चुनाव जीतीं। 2022 में इस सीट पर एनडीए की सहयोगी निषाद पार्टी के विनोद बिंद को विधायक बनने का मौका मिला।

  

सपा से टिकट पाने को मशक्कत करते रहे पर बन गए एनडीए के विधायक

दिलचस्प बात ये है कि मझवां सीट से विधायक बने डॉ विनोद बिंद पहले इसी सीट से समाजवादी पार्टी से  टिकट पाने की कोशिश करते रहे, कुछ वक्त तक वह सपा के लिए प्रचार भी करते दिखे पर जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वह नाराज होकर निषाद पार्टी में शामिल हो गए और उन्हें एनडीए का संयुक्त प्रत्याशी बनने का मौका मिल गया। वह 33587 वोटों से चुनाव जीत गए थे। तब उन्हें 103235 वोट मिले थे। सपा के रोहित शुक्ला 69648 वोट पाए थे। तीसरे पायदान पर रही बीएसपी की पुष्पलता बिंद को 52990 वोट मिले थे। तब चौथे पायदान पर रहे कांग्रेस से शिव शंकर चौबे 3399 वोटों पर ही सिमट गए थे।

  

सिटिंग विधायक के सांसद बनने के बाद रिक्त हो गई मझवां विधानसभा सीट

इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने भदोही लोकसभा सीट से अपने सिटिंग सांसद डॉ रमेश चंद्र बिंद का टिकट काटकर विधायक डॉ विनोद कुमार बिंद पर दांव लगाया। उनके मुकाबले थे इंडी गठबंधन की ओर से तृणमूल कांग्रेस के ललितेशपति त्रिपाठी। कड़े मुकाबले के बाद  डॉ बिंद 44, 072 वोटों से चुनाव जीत गए। उनके सांसद  बनने के बाद मझवां विधानसभा सीट रिक्त हो गई। जिस पर अब उपचुनाव हो रहे हैं।

    

आबादी के आंकड़े और जातीय समीकरणों का ताना बाना

इस विधानसभा सीट पर वोटरों की कुल तादाद 3,99,259 है। जिनमें दलित-ब्राह्मण और बिंद वोटर 70-70 हजार के करीब हैं। यहां 40 हजार यादव बिरादरी के वोटर हैं। तो कुशवाहा-मौर्य वोटर 35 हजार हैं। 25 हजार मुस्लिम वोटर हैं। तो राजपूत और पाल बिरादरी के वोटर 20-20 हजार के करीब हैं। वहीं 22 हजार पटेल बिरादरी के वोटर हैं। पिछड़े वर्ग के वोटरों का इस सीट पर खासा प्रभुत्व रहा है। हालांकि इस सीट पर बिंद और ब्राह्मण वोटर चुनावों में निर्णायक किरदार निभाते आए हैं।

चुनावी चौसर पर डटे हैं सियासी योद्धा, रसूखदार सियासी परिवारों में चुनावी जंग 

इस बार के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की ओर से डॉ ज्योति बिंद चुनाव मैदान में हैं। तो बीजेपी की ओर से उनसे मुकाबला कर रही हैं सुचिष्मिता मौर्य और बीएसपी ने ब्राह्मण कार्ड चलते हुए यहां से दीपक तिवारी पर दांव आजमाया है। ज्योति बिंद पूर्व  बीजेपी सांसद डॉ रमेश बिंद की पुत्री हैं। वह बीएसपी के टिकट से मझवां से तीन बार विधायक रह चुके हैं तो भदोही से सांसद भी रहे हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर संसदीय सीट  से सपा प्रत्याशी रहे रमेश बिंद भले ही चुनाव  हार गए हों लेकिन उन्होंने अपना दल-एस प्रमुख अनुप्रिया पटेल के खिलाफ मजबूती से मुकाबला किया था। एमबीए की डिग्री धारक सुचिष्मिता मौर्य साल 2017 में बीजेपी की विधायक बन चुकी हैं।  इनके ससुर भी बीजेपी से विधायक रह चुके हैं। वहीं, दीपक तिवारी छात्र राजनीति में सक्रिय रहने के बाद मुख्यधारा की राजनीति में आए हैं। जीडी बिनानी डिग्री कालेज के छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। पत्थर कारोबारी हैं, पहले सपा में सक्रिय थे पर बाद में बीएसपी मे शामिल हो गए थे।

पारंपरिक तौर से बीएसपी की सीट मानी जाती थी।

    

सभी दलों और उनके प्रत्याशियों में जातीय समीकरणों को साधने की होड़

सपाई खेमा इस चुनाव में पीडीए यानी पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक दांव पर भरोसा लगाए हुए है। तो बीजेपी की ओर से इस सीट पर  बिंद, ब्राह्मण, मौर्या, पटेल, पाल और ठाकुर वोटरों को लामबंद करने का तानाबाना बुना गया है। तो बीएसपी परंपरागत दलित वोटरों के साथ मुस्लिम वोट बैंक में भी पैठ बनाने की मुहिम में जुटी नजर आई है। मीरजापुर सीट से सांसद होने के नाते इस सीट पर एनडीए की सहयोगी अपना दल (एस) की मुखिया और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। यहां सीएम योगी और उनकी टीम ने वोटरों को अपने प्रत्याशी के पक्ष में रिझाने के लिए भरपूर प्रयास किए हैं। सपाई खेमे के सामने एक चुनौती उसके पूर्व जिलाध्यक्ष शिवशंकर सिंह यादव की ओर से भी है। वह मझवां से तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं। उनकी पत्नी प्रभावती यादव मिर्जापुर जिला पंचायत अध्यक्ष रही हैं। उपचुनाव में टिकट के आकांक्षी थे पर समीकरणों के चलते अखिलेश यादव ने डॉ ज्योति बिंद को प्रत्याशी बना दिया। चुनाव से पहले इन्हें करहल में सह प्रभारी बनाकर भेजने को सियासी विश्लेषकों ने डैमेज कंट्रोल अभियान माना।

       जानकार मानते हैं कि इस सीट पर अगर बीएसपी मजबूती से लड़ी तो फिर बीजेपी को नुकसान पहुंचना और सपा का फायदा होना तय है। बहरहाल, सभी दल अपने अपने समीकरणों के लिहाज से चुनावी मैदान में डटे हैं। त्रिकोणीय संघर्ष नजर आ रहा है।

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