Thursday 21st of November 2024

UP By-Election 2024: उपचुनाव की जंग: मीरापुर सीट का लेखा जोखा

Reported by: Gyanendra Kumar Shukla  |  Edited by: Md Saif  |  November 19th 2024 08:08 PM  |  Updated: November 19th 2024 08:08 PM

UP By-Election 2024: उपचुनाव की जंग: मीरापुर सीट का लेखा जोखा

ब्यूरो: UP By-Election 2024: बीजेपी रालोद की सियासी दोस्ती की अग्नि परीक्षा हो रही है मीरापुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में। मुजफ्फरनगर जिले की इस सीट पर विधायक रहे बाबू नारायण सिंह यूपी के पहले डिप्टी सीएम बने तो कई जनप्रतिनिधियों को सूबे के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया।  हालांकि बीते दो दशकों से इस सीट से किसी भी  विधायक को मंत्री बनने का मौका नहीं मिल सका। यहां के  निर्वतमान विधायक के सांसद बन जाने की वजह से रिक्त हुई इस सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं। यहां बीजेपी की सहयोगी रालोद और सपा की प्रत्याशी महिला हैं। मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर जातीय समीकरणों को साधकर सभी दलों ने जीत पाने का ताना बाना बुना है।

      

इस सीट का नाम तीन बार बदला जा चुका है, मीरापुर नाम से नगर  पंचायत मौजूद है

आजादी के बाद हुए  पहले चुनाव में इस सीट को जानसठ उत्तरी के नाम से जाना जाता था। बाद में साल 1962 में इसका नाम भोकरहेड़ी हो गया। 1967 के बाद ये सीट मोरना नाम से जानी गई। साल  2008 में हुए परिसीमन के बाद 2012 में मीरापुर विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। जानसठ सुरक्षित सीट का कुछ हिस्सा मीरापुर में शामिल किया गया। मीरापुर नाम से यहां नगर पंचायत है। यहां पिछले साल हुए चुनाव में नगर पंचायत के चेयरमैन पद पर बीजेपी के नवीन सैनी को हराकर बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जमील अहमद ने जीत दर्ज की थी।

 

पश्चिमी यूपी की शुगर बेल्ट का ये क्षेत्र विकास के पैमाने पर पिछड़ा हुआ है

मीरापुर गन्ना बेल्ट का हिस्सा है। यहां गुड़ उत्पादन का काम भी बड़े पैमाने पर होता है। पर यहां के किसानों को भी तमाम आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यहां किसी बड़ी मिल या उद्योग धंधों के अभाव की वजह से ये क्षेत्र पिछड़े इलाकों में शुमार है। मीरापुर के पड़ाव चौक तथा वाल्मीकि बस्ती में जलभराव की अक्सर दिक्कत रहती है। बाकी जगहों पर मूलभूत संसाधनों की कमी से लोगों की चुनौती बढ़ी रहती है। अगस्त महीने में यहां के दौरे पर पहुंचे सीएम योगी ने वृहद रोजगार एवं ऋण मेला में हिस्सा लिया। इस दौरान यहां के पांच हजार से अधिक युवाओं को नियुक्ति पत्र सौंपे गए। साथ ही विभिन्न योजनाओं में चयनित पात्रों एवं एमएसएमई उद्यमियों में 30 करोड़ रूपये का ऋण भी वितरित किया। सीएम ने इस क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का भरोसा भी दिया।

 

मीरापुर क्षेत्र के मुख्य धार्मिक स्थल व चर्चित हस्तियां

यहां का पंचायती जैन मंदिर, शीतला माता मंदिर अति प्रसिद्ध है तो संभलहेड़ा का सिद्ध पीठ पंचमुखी महादेव मंदिर और रामपुर घौरिया गुरुद्वारा साहिब भी श्रद्धा का बड़ा केंद्र है। यहां का शुक्रताल (शुक्र तीर्थ नगरी) पश्चिम उत्तर प्रदेश का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल माना जाता है। मान्यता है कि यहां पांच हजार वर्ष पूर्व शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत की कथा सुनाई थी। आज भी इस स्थल के पौराणिक काल के वटवृक्ष के दर्शन के लिए भीड़ उमड़ती है। इस क्षेत्र में हर वर्ष कार्तिक स्नान गंगा मेला में भाग लेने के लिए दूर दराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं। पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध कथाकार, लेखक विष्णु प्रभाकर की जन्मस्थली मीरापुर है। बॉलीवुड के मशहूर गीतकार-लेखक एएम तुराज भी यहीं से ताल्लुक रखते हैं।

आबादी के आंकड़े और जातीय समीकरणों के लिहाज से मीरापुर सीट 

मीरापुर विधानसभा सीट पर 3,28,830 वोटर हैं। जिनमें से सर्वाधिक चालीस फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। पचास हजार से अधिक अनुसूचित जाति के वोटर हैं। यहां जाट बिरादरी के 24 हजार वोटर और 18 हजार गुर्जर वोटर हैं। इनके साथ ही सैनी और त्यागी बिरादरी के वोटर भी प्रभावशाली तादाद में मौजूद हैं। शहरी क्षेत्र और ककरौली, भोकरहेड़ी बेल्ट की चुनावों में निर्णायक भूमिका रहती है। पिछली बार सपा के साथ गठबंधन के साथ रालोद ने इन्हीं इलाकों में बढ़त बनाकर जीत हासिल की थी।

 

अस्तित्व में आने के बाद से ही पश्चिमी यूपी की ये सीट महत्वपूर्ण मानी जाती रही

साल 1952 में ये सीट मुजफ्फरनगर पूर्वी/ जानसठ उत्तरी विधानसभा सीट के तौर पर अस्तित्व में आई। कांग्रेस के बलवंत सिंह यहां से पहले विधायक चुने गए थे। साल  साल 1962 के चुनाव में इसका नाम भोकरहेड़ी सीट हो गया और इसे अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट घोषित कर दिया गया। तब शगुनचंद यहां से मजदूर कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते थे। इसके बाद हुए  परिसीमन के चलते साल 1967 के विधानसभा चुनाव में ये मोरना सीट कहलाई। तब कांग्रेस के राजेंद्र दत्त त्यागी यहां से विधायक बने। साल 1969 में भारतीय किसान दल के धर्मवीर त्यागी को यहां से जीत हासिल हुई। 1974 में कांग्रेस के टिकट से गुर्जर समुदाय के प्रभावशाली नेता बाबू नारायण सिंह चुने गए। तो इमरजेंसी के बाद 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की। तब उन्हें यूपी का पहला डिप्टी सीएम बनाया गया।  साल 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर) से मेंहदी असगर को कामयाबी मिली तो 1985 में कांग्रेस प्रत्याशी सईदुज्जमा यहां से विधायक बने। इन्हें प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री का ओहदा मिला। 1989 में जनता दल के अमीर आलम को जीतने का मौका मिला।

नब्बे के दशक की शुरुआत हुई इस सीट पर  बीजेपी की दस्तक से, फिर सपा-बीएसपी-रालोद का कब्जा हुआ 

राममंदिर आंदोलन की शुरुआत लहर के जोर पकड़ने के साथ ही साल 1991 के विधानसभा चुनाव में मोरना सीट से जीतकर रामपाल सैनी ने बीजेपी का खाता खोला। साल 1993 में भी उन्हें जीत मिली। साल 1996 मे सपा के संजय सिंह जीते। साल 2002 में यहां बीएसपी के राजपाल सैनी को फतह हासिल हुई। जिन्हें मायावती सरकार में राज्यमंत्री बनाया गया। बाद में वह राज्यसभा सांसद बने। अभी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। तब से अब तक यहां  से किसी भी विधायक को मंत्री पद हासिल न हो सका। साल 2007 में इस सीट से राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी के तौर पर कादिर राणा ने यहां जीत दर्ज की। 

 

डेढ़ दशक से मीरापुर सीट पर रालोद की पकड़ मजबूत होती चली गई

साल 2009 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने यहां के सिटिंग विधायक कादिर राणा को मुजफ्फरनगर से टिकट दे दिया। वो सांसद चुन लिए गए। इसके बाद रिक्त हुई इस सीट पर उपचुनाव हुए तो कादिर राणा ने अपने भाई नूर सलीम राणा को चुनाव लड़वा दिया पर उन्हें रालोद की मिथलेश पाल ने शिकस्त दे दी। यही मिथलेश पाल बाद में बीजेपी में शामिल हो गईं। 2012 में यहां से बीएसपी के मौलाना जमील विधायक चुने गए। तो साल 2017 में  बीजेपी के अवतार भड़ाना यहां से विधायक बने। साल 2022 में रालोद के चंदन चौहान यहां से विधायक बने।

 

पिछले विधानसभा चुनाव और उपचुनाव के बीच के अंतराल में बदल गए हैं कई समीकरण

साल 2022 में रालोद का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन था। रालोद प्रत्याशी चंदन चौहान को इस सीट पर 1,07,421 वोट हासिल हुए जबकि बीजेपी के प्रशांत चौधरी को 80,041 वोट ही मिल सके। इस तरह से रालोद ने ये सीट 27, 380 वोटों के मार्जिन से जीत ली थी। तीसरे पायदान पर रहे बीएसपी के सलीम कुरैशी को 23,797 वोट मिले। वहीं कांग्रेस के जमील अहमद कुरैशी को 1258 वोट मिले जो आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के उमेश पाल को मिले 1628 वोटों से भी कम थे। पर बाद में सपा से नाता तोड़कर रालोद एनडीए में शामिल हो गई। और इसी साल हुए आम चुनाव में चंदन चौहान रालोद-बीजेपी गठबंधन की तरफ से बिजनौर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे और जीत गए। उनके सांसद निर्वाचित होने के बाद मीरापुर सीट रिक्त हो गई, इसलिए यहां उपचुनाव हो रहे हैं।

चुनावी चौसर पर अपने-अपने दांव के साथ मुस्तैद हैं सियासी दलों के प्रत्याशी 

उपचुनाव के लिए बीजेपी ने मीरापुर सीट गठबंधन के तहत बीजेपी ने रालोद के नाम कर दी। यहां से बीजेपी की नेत्री मिथलेश पाल रालोद के सिंबल से चुनावी मैदान में हैं। पूर्व राज्यसभा सदस्य और बीएसपी नेता मुनकाद अली की बेटी और पूर्व सपा सांसद कादिर राणा की बहू सुंबुल राणा सपा की प्रत्याशी हैं। बीएसपी ने यहां से शाह नजर को मैदान में उतारा है तो आजाद समाज  पार्टी से जाहिद हुसैन चुनाव लड़ रहे हैं। यहां कुल 11 प्रत्याशियों में से छह मुस्लिम बिरादरी से हैं।

 

डेढ़ दशक बाद मिथलेश पाल और कादिर राणा परिवार के बीच फिर चुनावी टक्कर

इस सीट पर चुनाव लड़ रही मिथलेश पाल ने साल 2009 के उपचुनाव में राणा परिवार के नूर सलीम राणा को करारी मात दी थी। अबकी बार फिर मिथलेश  कादिर राणा परिवार से मुकाबला कर रही है। कादिर राणा की पुत्रवधू सुम्बुल राणा उनके सामने चुनावी मैदान में हैं। सपा अपने पीडीए के फॉर्मूले से पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के बीच पैठ बनाकर सीट जीतने की रणनीति पर अमल कर रही है तो रालोद और बीजेपी ओबीसी व जाट वोटरों को साधकर सीट बरकरार रखने की ख्वाहिशमंद है। बीएसपी और आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी अगर  मुस्लिम वोटरों में सेंधमारी कर लेते हैं तो सपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। फिलहाल यहां सीधी टक्कर रालोद और सपा के दरमियान है।

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