ब्यूरो: UP Bypoll 2024: आम चुनाव में पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक वाले पीडीए फार्मूले की जबरदस्त कामयाबी के बाद अब यूपी के उपचुनाव में भी सपाई खेमा इसी रणनीति पर अमल कर रहा है। चुनावी अभियान में सपा 90 बनाम 10 की बात कहकर जातीय दांव चलकर पीडीए रणनीति को मजबूत करने की मुहिम में जुटी है। तो बीजेपी खेमा पीडीए की इस मजबूत चुनौती को क्रैक करने की भरसक कवायद कर रहा है।
आम चुनाव में कारगर साबित पीडीए फार्मूले को सपा ने उपचुनाव की बिसात पर भी किया लागू
यूपी में कुल वोटरों में सर्वाधिक 42 फीसदी ओबीसी हैं, 21 फीसदी दलित और 19 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। इसी जातीय-धार्मिक आंकड़े को ख्याल में रखकर समाजवादी पार्टी ने पिछड़े-दलित व अल्पसंख्यक वोटरों को जोड़कर पीडीए नाम से जातीय गुलदस्ता तैयार किया। जिसकी काट बीजेपी नहीं खोज सकी लिहाजा उसे आम चुनाव में यूपी में करारी शिकस्त मिली जबकि समाजवादी पार्टी ने अपने गठन के बाद पहली बार सबसे शानदार नतीजे दिए। सपा को 33.59 फीसदी वोट शेयर के साथ 37 सीटें हासिल हुईं। उसकी रणनीति की वजह से छह सीटें सहयोगी कांग्रेस को भी मिल गईं। इससे पहले साल 2004 में सपा को 26.74 फीसदी वोट शेयर के साथ सर्वाधिक 35 सीटें हासिल हुई थीं। तब चुनाव सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में लड़ा गया था। जाहिर है अखिलेश का जातीय दांव बेहद कारगर साबित हुआ, इंडिया गठबंधन को यूपी में अभूतपूर्व कामयाबी हासिल हो सकी।
पीडीए फार्मूले पर अमल करते हुए 90 बनाम 10 के एजेंडे को धार दे रहे हैं अखिलेश
आम चुनाव वाली कारगर रणनीति को ही सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने उपचुनाव में भी लागू किया है। नौ सीटों में चार मुस्लिम, दो दलित, तीन ओबीसी चेहरों को टिकट दिया। सवर्ण बिरादरी के किसी भी प्रत्याशी को उतारने से सपा ने पूरी तरह परहेज किया। बल्कि अयोध्या सीट पर अवधेश प्रसाद की कामयाबी वाले सिलसिले को दोहराने के लिए सामान्य सीट गाजियाबाद से दलित बिरादरी के प्रत्याशी पर दांव लगाया है। गाजियाबाद की अपनी चुनावी रैली में अखिलेश ने कहा कि चुनाव बीजेपी राज में खतरे में पड़े संविधान, लोकतंत्र, आरक्षण, प्रेस-मीडिया की आजादी और जातीय जनगणना की मांग को पूरा करने और प्रभुत्ववादी सोच के 10 प्रतिशत लोगों से 90 प्रतिशत पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) को बचाने के लिए है। पीडीए की एकजुटता और एकता दिखाने का भी यह चुनाव है। लोकसभा चुनाव में अयोध्या की जीत ने दिखा दिया है कि लोकतंत्र में कुछ भी असंभव नहीं है। जाहिर है 10 फीसदी सामान्य वर्ग के समृद्ध लोगों पर निशाना साधकर सपा अपने जातीय कार्ड पर फोकस कर रही है।
बीजेपी खेमा पीडीए दांव की काट के लिहाज से दांव चल रही है
लोकसभा चुनाव में करारा झटका सह चुका बीजेपी खेमा अब उपचुनाव के दौरान खासा एहतियात बरत रहा है। टिकट देते वक्त पार्टी ने जहां एक ओर अपने समर्पित कैडरों का ख्याल रखा वहीं अखिलेश यादव के पीडीए दांव का भी जवाब देने की कोशिश की है। पीडीए के ‘पी’ और ‘डी’ यानी पिछड़े और दलित पर तो बीजेपी ने फोकस किया पर सपा के ‘ए’ से अल्पसंख्यक के बजाए अगड़े वाला दांव चला है। बीजेपी के आठ उम्मीदवारों में से चार ओबीसी, एक लित बिरादरी से एक जबकि दो ब्राह्मण और एक क्षत्रिय बिरादरी से है। करहल से सपा सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव को टिकट देकर बीजेपी ने यादव बिरादरी को भी साथ लेने का संदेश देने के साथ ही ये बताने की भी कोशिश की है कि सैफई परिवार में तमाम लोग अखिलेश की रीति-नीति से सहमत नहीं है। वहां भी बंटवारा है। सहयोगी रालोद के खाते में गई मीरापुर सीट पर बीजेपी की मिथलेश पाल चुनाव लड़ रही हैं। ओबीसी बिरादरी से ताल्लुक रखने वाली मिथलेश सपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई थीं अब रालोद के टिकट से चुनाव मैदान में हैं।
सपा के पीडीए दांव की धार कुंद करने के लिए बीजेपी भरपूर कवायद में जुटी है
अब चुनाव प्रचार में भी बीजेपी जातीय समीकरण साधने की जुगत कर रही है। इसके लिए पार्टी के तीस मंत्री और 90 विधायक उपचुनाव वाले क्षेत्रों में खासतौर से मुस्तैद किए गए हैं। संगठन से जुड़े एससी-एसटी व ओबीसी पदाधिकारी भी वोटरों को समझाने की मुहिम में जुटे हैं। बीजेपी संगठन पदाधिकारियों द्वारा डोर-टू-डोर जनसंपर्क के जरिए भी जातीय समीकरण दुरुस्त करने के जतन किए जा रहे हैं। सीएम योगी भी अपनी ही शैली में पीडीए पर निशाना साधकर सपाई दांवपेंचों की काट कर रहे हैँ। अम्बेडकर नगर जिले की कटेहरी विधानसभा सीट पर चुनाव प्रचार करने पहुंचे सीएम योगी ने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ''सपा पीडीए की बात करती है... लेकिन आपको बता दें कि उनका पीडीए क्या है। यह दंगाइयों और अपराधियों का ‘प्रोडक्शन हाउस’ है। मैं आपको यह नई परिभाषा दे रहा हूं।” तंज कसते हुए कहा कि दुर्दांत अपराधी, माफिया और दुष्कर्मी पैदा करने वाले इस ‘प्रोडक्शन हाउस’ के 'सीईओ' अखिलेश यादव और 'ट्रेनर' शिवपाल यादव हैं। दरअसल, सीएम योगी माफियाओं को सरपरस्ती दिए जाने का जिक्र करके सपा शासनकाल में कानून व्यवस्था की दशा पर निशाना साधकर वोटरों को संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं।
जानकार मानते हैं कि सपा के पीडीए की ज्यादा चिंता करने की बीजेपी को जरूरत नहीं
लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर डॉ अमित कुशवाहा पीटीसी न्यूज से बात करते हुए कहते हैं कि सपा का पीडीए का ताना बाना साठ से पैंसठ फीसदी आबादी से जुड़ा जरूर है पर बीजेपी को इसे लेकर अधिक फिक्र नहीं है क्योंकि पार्टी रणनीतिकार जानते हैं कि आम चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में हुई चूक और कार्यकर्ताओं की निराशा से बीजेपी पिछड़ी। बीजेपी को पीडीए के एंटीडोट की जरूरत इसलिए भी नहीं है क्योंकि उसकी और सपा की वैचारिकी की धरा में जमीन आसमान का अंतर है। बीजेपी परिवारवाद और तुष्टीकरण के खिलाफ है और सर्व समाज को लेकर चलती है। समावेशी नजरिए की वजह से सबका साथ-सबका विकास उसका नारा है। अपनी पारंपरिक विचारधारा को तवज्जो देते हुए बीजेपी ने उपचुनाव में जीताऊ चेहरों को टिकट दिया है। पार्टी की मूल विचारधारा को समर्पित कैडर को मौका मिला है। उदाहरण के तौर पर मुस्लिम बाहुल्य कुंदरकी से बीजेपी के ठाकुर रामवीर सिंह का प्रभाव तुर्क मुस्लिम वोटरो के बीच भी है। इस बार बीजेपी के जनाधार वाले-सबके साथ समन्वय वाले वैचारिकी को समर्पित प्रत्याशी विपक्षियों को कड़ा मुकाबला दे रहे हैं। डॉ कुशवाहा मानते हैं कि इस बार बीजेपी बड़े मार्जिन से सीटें जीतेगी।
चुनावी नतीजों से तय होगा कि सपा का पीडीए है कारगर या फिर बीजेपी ने खोज निकाली कोई काट
बहरहाल, ये तय है कि लोकसभा चुनाव में मिली कामयाबी से उत्साहित सपाई खेमा अब पीडीए दांव के जरिए अल्पसंख्यकों के साथ ही पिछड़े व दलित बिरादरी को भी अपने पाले में लामबंद करने की भरपूर मशक्कत कर रहा है। फिलहाल सामान्य वर्ग के वोटरों को पार्टी के समीकरणों के दायरे से बाहर रखा गया है। सपा अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बीजेपी की घेराबंदी की कोशिश में है। सपाई दांव से आम चुनाव में मात खा चुकी बीजेपी अब फूंक फूंक कर कदम रख रही है। किसकी रणनीति कारगर होगी ये ईवीएम के नतीजे से तय होगा।