जंगे आजादी की पहली चिंगारी मेरठ में ही भड़की थीगौरतलब है कि 10 मई 1857 को ही मेरठ से क्रांति के शुरूआती चरण की नींव पड़ी और देखते देखते क्रांति की अलख पूरे देश मे रोशन हो उठी। इतिहासकारों के अनुसार यहां काली पलटन क्षेत्र में एक मंदिर था जिसमें एक कुआं था। जिसकी देखभाल औघड़नाथ बाबा नामक साधु करते थे। उन्होने ही सर्वप्रथम सैनिकों की जानकारी दी कि जिन कारतूसों को वे मुंह से काटकर इस्तेमाल करते हैं उसमें गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। यह बात सैनिकों को नागवार गुजरी क्योंकि इससे उनकी धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुंच रही थी। लिहाजा कई सैनिकों ने इन कारतूसों का इस्तेमाल किए जाने से इंकार कर दिया। इस पर ब्रिटिश अफसर आग बबूला हो उठे और 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल कर दिया। बंगाल की नेटिव इन्फेंट्री रेजिमेंट में विद्रोह हो गया। इसके बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार कर लिया।
मेरठ शहर के दर्शनीय स्थल
यहां के सूरजकुंड पार्क का निर्माण एक व्यापारी ने करवाया था। इस पार्क की खूबसूरती में इजाफा होता है यहां की झील से। यहां की ऐतिहासिक मुस्तफा मुस्तफा कैसल इमारत भी मशहूर है। जिसे नवाब इश्क खान ने अपने पिता की याद में बनवाया था। करवाया था। तीस एकड़ में फैली हुई यह इमारत 30 एकड़ की जमीन में फैली हुई है। यहां का सेंट जॉन बैपटिस्ट देश के सबसे पुराने चर्चों मे से है। इसका निर्माण साल 1819-1821 के दौरान अंग्रेजों ने करवाया था।
मेरठ खेल सामग्री निर्माण का बड़ा हब हैखेल उत्पादों, खासतौर से क्रिकेट बैट यानि बल्ले के लिए मेरठ की देश-दुनिया में विशिष्ट पहचान है। क्रिकेट जगत की नामचीन हस्तियां जैसे सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, वीरेंद्र सहवाग, युवराज, रिकी पोंटिंग, विराट कोहली, रोहित शर्मा के मेरठ में ने बैट के फैन हैं। इन्हीं का इस्तेमाल करते हैं। तो सुरेश रैना और ऋषभ पंत भी परतापुर मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री से ही बैट लेने के लिए आते रहे हैं। देश दुनिया में मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री को खास पहचान देने में अहम किरदार निभाया है रिफ्यूजी और सूरजकुंड स्पोर्ट्स मार्केट ने। मेरठ में कई हजार फैक्ट्रियां हैं, जो कि खेल उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग करते हैं। यहां के बने बल्ले 60 से ज्यादा देशों में निर्यात किए जाते हैं। खेल सामग्रियों के साथ ही मेरठ संगीत वाद्ययंत्र के मामले में भी बड़ा उत्पादक शहर है.
चुनावी इतिहास का सुनहरा सफर
देश की पहली लोकसभा के लिए साल 1952 में हुए चुनाव में मेरठ को तीन लोकसभा क्षेत्रों में बांटा गया था, मेरठ जिला (पश्चिम), मेरठ जिला (दक्षिण), मेरठ जिला (उत्तर पूर्व)। इन तीनों ही सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। मेरठ पश्चिम सीट से खुशी राम शर्मा, मेरठ दक्षिण से कृष्ण चंद्र शर्मा और मेरठ उत्तर-पूर्व से शाहनवाज खान चुनाव जीते थे। पर 1957 के चुनाव में तीनों लोकसभा सीटों को आपस में विलय करके मेरठ लोकसभा सीट गठित की गई। कांग्रेस ने इस चुनाव में शाहनवाज खान को फिर से टिकट दिया और वह चुनाव जीत गए। 1962 में क्रांतिकारी सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार महाराज सिंह भारती को हराकर शाहनवाज तीसरी बार सांसद बन गए। पर 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के एमएस भारती ने शाहनवाज खान को मात दे दी। 1971 के चुनाव में फिर से शाहनवाज खान ने अपनी इस सीट को वापस जीत लिया। तब उनका मुकाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) उम्मीदवार हरी किशन से हुआ था। पर 1977 में बीएलडी के कैलाश प्रकाश ने शाहनवाज खान का हरा दिया। 1980 और 1984 में लगातार दो बार मोहसिना किदवई यहां से चुनाव जीतीं।
नब्बे के दशक से बीजेपी का उभार
1989 में कांग्रेस की मोहसिना किदवई को हार का सामना करना पड़ा। उन्हें जनता दल के हरीश पाल ने हराया। मेरठ सीट से 1991 में बीजेपी के अमर पाल सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद 1996, 1998 में भी जीतकर जीत की हैट्रिक लगा दी। पर 1999 के चुनाव में कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना यहां से चुनाव जीत गए। साल 2004 में बीएसपी के मोहम्मद शाहिद अखलाख ने यहां जीत का परचम फहराया।
बीजेपी उम्मीदवार ने जीत की लगाई हैट्रिक2009 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने राजेन्द्र अग्रवाल को चुनाव मैदान में उतारा। उन्होंने बीएसपी के मलूक नागर को हराया। वर्ष 2014 की मोदी लहर में हुए आम चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल ने दोबारा जीत हासिल की। इस बार उन्होने कुल 532981 वोट हासिल कर बीएसपी के मो. शाहिद अखलाक को 232326 वोटों के अंतर से शिकस्त दी। 2019 के चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल ने जीत की हैट्रिक लगा दी। उन्होने बीएसपी के हाजी मोहम्मद याकूब 4,729 मतों के अंतर से हराया।
जातीय समीकरण का ताना बाना
मेरठ मुस्लिम बाहुल्य सीट मानी जाती है। 2011 के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार, मेरठ की आबादी करीब 35 लाख थी जिनमें 64 फीसदी हिंदू, 36 फीसदी मुस्लिम आबादी थी। संसदीय सीट में वोटरों की संख्या बीस लाख के करीब है, करीब 5 लाख 64 हजार मुस्लिम समुदाय है। करीब 3 लाख 15 हजार जाट हैं। तकरीबन इतनी ही जाटव बिरादरी की आबादी है। साठ हजार वाल्मीकि समुदाय है। एक लाख बीस हजार ब्राह्मण, एक लाख अस्सी हजार के करीब वैश्य हैं। गुर्जरों की आबादी करीब 57 हजार है। इसके साथ ही त्यागी, सैनी और अन्य बिरादरियां प्रभावशाली तादाद में हैं।
विधानसभा सीटें और साल 2022 के चुनावी नतीजे
मेरठ संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र हैं, किठौर, मेरठ कैंट, मेरठ शहर, मेरठ दक्षिण और हापुड़। 2022 के चुनाव में बीजेपी ने 3 सीटों पर जीत मिली थी. 2 सीट सपा के खाते में गई थी। किठौर से सपा के शाहिद मंजूर, मेरठ से सपा के रफीक अंसारी तो मेरठ कैंट से बीजेपी के अमित अग्रवाल, मेरठ दक्षिण से डा. सोमेन्द्र सिंह तोमर और हापुड़ सुरक्षित विधानसभा सीट से बीजेपी के विजयपाल विधायक हैं।
साल 2024 के मिशन की चुनावी बिसात
बीजेपी ने इस बार सिटिंग एमपी राजेन्द्र अग्रवाल की जगह नया प्रयोग किया है। रामायण टीवी सीरियल में भगवान का राम चरित्र निभाकर सुर्खियों में छाए रहे अरुण गोविल को यहां से टिकट दिया गया है। तो मायावती की पार्टी बीएसपी ने देवव्रत त्यागी पर भरोसा जताया है। पर समाजवादी पार्टी खेमे में प्रत्याशियों को को तय करने को लेकर खासी ऊहापोह और असमंजस के हालात नजर आए। पहले सपा ने भानुप्रताप सिंह को टिकट दिया। पर उसे काटकर सरधना से सपा विधायक अतुल प्रधान के नाम का ऐलान कर दिया गया। जल्द ही प्रधान का नाम भी दरकिनार करके सुनीता वर्मा को मैदान में उतार दिया गया। सुनीता पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी हैं। बहरहाल, चुनावी जंग में सभी दलों और प्रत्याशियों के अपने अपने समीकरण हैं और जीत को अपने अपने दावे। फिलहाल यहां भी मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।
" required>ब्यूरो: Gyanendra Shukla, Editor, UP: यूपी का ज्ञान में आज चर्चा का केंद्र बिंदु है मेरठ संसदीय सीट। दो पावन नदियों गंगा और यमुना के बीच बसा मेरठ अपनी अलग सियासी पहचान रखता आया है। पौराणिक कथाओं में इसे 'मयराष्ट्र' से भी संबोधित किया गया है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है माया का देश।
पौराणिक और मध्ययुग में मेरठ का महत्वपूर्ण स्थान रहा
पुराणों के अनुसार असुरों का वास्तुकार मय असुर था जिसका यहां शासन था उसकी बेटी मंदोदरी रावण की पत्नी बनी। इसी वजह से मेरठ को रावण की ससुराल भी कहा जाता है। महाभारत के दौर में कौरवों की राजधानी जिस हस्तिनापुर में थी, वो आज मेरठ का ही हिस्सा है। यहां कुतुबुद्दीन ऐबक और तैमूर लंग सरीखे विदेशी आक्रांताओं ने हमला किया पर यहां उन्हें कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। मध्यकाल में इंद्रप्रस्थ (वर्तमान दिल्ली) के समीप स्थित होने की वजह से इसकी सामरिक महत्व भी खासा था। अब जिक्र करते हैं इतिहास के पन्नों में मेरठ को विशेष पहचान दिलाने वाली आजादी की पहली जंग से।
जंगे आजादी की पहली चिंगारी मेरठ में ही भड़की थीगौरतलब है कि 10 मई 1857 को ही मेरठ से क्रांति के शुरूआती चरण की नींव पड़ी और देखते देखते क्रांति की अलख पूरे देश मे रोशन हो उठी। इतिहासकारों के अनुसार यहां काली पलटन क्षेत्र में एक मंदिर था जिसमें एक कुआं था। जिसकी देखभाल औघड़नाथ बाबा नामक साधु करते थे। उन्होने ही सर्वप्रथम सैनिकों की जानकारी दी कि जिन कारतूसों को वे मुंह से काटकर इस्तेमाल करते हैं उसमें गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। यह बात सैनिकों को नागवार गुजरी क्योंकि इससे उनकी धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुंच रही थी। लिहाजा कई सैनिकों ने इन कारतूसों का इस्तेमाल किए जाने से इंकार कर दिया। इस पर ब्रिटिश अफसर आग बबूला हो उठे और 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल कर दिया। बंगाल की नेटिव इन्फेंट्री रेजिमेंट में विद्रोह हो गया। इसके बाद क्रांतिकारियों ने उग्र रूप अख्तियार कर लिया।
मेरठ शहर के दर्शनीय स्थल
यहां के सूरजकुंड पार्क का निर्माण एक व्यापारी ने करवाया था। इस पार्क की खूबसूरती में इजाफा होता है यहां की झील से। यहां की ऐतिहासिक मुस्तफा मुस्तफा कैसल इमारत भी मशहूर है। जिसे नवाब इश्क खान ने अपने पिता की याद में बनवाया था। करवाया था। तीस एकड़ में फैली हुई यह इमारत 30 एकड़ की जमीन में फैली हुई है। यहां का सेंट जॉन बैपटिस्ट देश के सबसे पुराने चर्चों मे से है। इसका निर्माण साल 1819-1821 के दौरान अंग्रेजों ने करवाया था।
मेरठ खेल सामग्री निर्माण का बड़ा हब हैखेल उत्पादों, खासतौर से क्रिकेट बैट यानि बल्ले के लिए मेरठ की देश-दुनिया में विशिष्ट पहचान है। क्रिकेट जगत की नामचीन हस्तियां जैसे सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, वीरेंद्र सहवाग, युवराज, रिकी पोंटिंग, विराट कोहली, रोहित शर्मा के मेरठ में ने बैट के फैन हैं। इन्हीं का इस्तेमाल करते हैं। तो सुरेश रैना और ऋषभ पंत भी परतापुर मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री से ही बैट लेने के लिए आते रहे हैं। देश दुनिया में मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री को खास पहचान देने में अहम किरदार निभाया है रिफ्यूजी और सूरजकुंड स्पोर्ट्स मार्केट ने। मेरठ में कई हजार फैक्ट्रियां हैं, जो कि खेल उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग करते हैं। यहां के बने बल्ले 60 से ज्यादा देशों में निर्यात किए जाते हैं। खेल सामग्रियों के साथ ही मेरठ संगीत वाद्ययंत्र के मामले में भी बड़ा उत्पादक शहर है.
चुनावी इतिहास का सुनहरा सफर
देश की पहली लोकसभा के लिए साल 1952 में हुए चुनाव में मेरठ को तीन लोकसभा क्षेत्रों में बांटा गया था, मेरठ जिला (पश्चिम), मेरठ जिला (दक्षिण), मेरठ जिला (उत्तर पूर्व)। इन तीनों ही सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। मेरठ पश्चिम सीट से खुशी राम शर्मा, मेरठ दक्षिण से कृष्ण चंद्र शर्मा और मेरठ उत्तर-पूर्व से शाहनवाज खान चुनाव जीते थे। पर 1957 के चुनाव में तीनों लोकसभा सीटों को आपस में विलय करके मेरठ लोकसभा सीट गठित की गई। कांग्रेस ने इस चुनाव में शाहनवाज खान को फिर से टिकट दिया और वह चुनाव जीत गए। 1962 में क्रांतिकारी सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार महाराज सिंह भारती को हराकर शाहनवाज तीसरी बार सांसद बन गए। पर 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के एमएस भारती ने शाहनवाज खान को मात दे दी। 1971 के चुनाव में फिर से शाहनवाज खान ने अपनी इस सीट को वापस जीत लिया। तब उनका मुकाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) उम्मीदवार हरी किशन से हुआ था। पर 1977 में बीएलडी के कैलाश प्रकाश ने शाहनवाज खान का हरा दिया। 1980 और 1984 में लगातार दो बार मोहसिना किदवई यहां से चुनाव जीतीं।
नब्बे के दशक से बीजेपी का उभार
1989 में कांग्रेस की मोहसिना किदवई को हार का सामना करना पड़ा। उन्हें जनता दल के हरीश पाल ने हराया। मेरठ सीट से 1991 में बीजेपी के अमर पाल सिंह ने जीत हासिल की। इसके बाद 1996, 1998 में भी जीतकर जीत की हैट्रिक लगा दी। पर 1999 के चुनाव में कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना यहां से चुनाव जीत गए। साल 2004 में बीएसपी के मोहम्मद शाहिद अखलाख ने यहां जीत का परचम फहराया।
बीजेपी उम्मीदवार ने जीत की लगाई हैट्रिक2009 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने राजेन्द्र अग्रवाल को चुनाव मैदान में उतारा। उन्होंने बीएसपी के मलूक नागर को हराया। वर्ष 2014 की मोदी लहर में हुए आम चुनाव में बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल ने दोबारा जीत हासिल की। इस बार उन्होने कुल 532981 वोट हासिल कर बीएसपी के मो. शाहिद अखलाक को 232326 वोटों के अंतर से शिकस्त दी। 2019 के चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल ने जीत की हैट्रिक लगा दी। उन्होने बीएसपी के हाजी मोहम्मद याकूब 4,729 मतों के अंतर से हराया।
जातीय समीकरण का ताना बाना
मेरठ मुस्लिम बाहुल्य सीट मानी जाती है। 2011 के जनसंख्या आंकड़ों के अनुसार, मेरठ की आबादी करीब 35 लाख थी जिनमें 64 फीसदी हिंदू, 36 फीसदी मुस्लिम आबादी थी। संसदीय सीट में वोटरों की संख्या बीस लाख के करीब है, करीब 5 लाख 64 हजार मुस्लिम समुदाय है। करीब 3 लाख 15 हजार जाट हैं। तकरीबन इतनी ही जाटव बिरादरी की आबादी है। साठ हजार वाल्मीकि समुदाय है। एक लाख बीस हजार ब्राह्मण, एक लाख अस्सी हजार के करीब वैश्य हैं। गुर्जरों की आबादी करीब 57 हजार है। इसके साथ ही त्यागी, सैनी और अन्य बिरादरियां प्रभावशाली तादाद में हैं।
विधानसभा सीटें और साल 2022 के चुनावी नतीजे
मेरठ संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र हैं, किठौर, मेरठ कैंट, मेरठ शहर, मेरठ दक्षिण और हापुड़। 2022 के चुनाव में बीजेपी ने 3 सीटों पर जीत मिली थी. 2 सीट सपा के खाते में गई थी। किठौर से सपा के शाहिद मंजूर, मेरठ से सपा के रफीक अंसारी तो मेरठ कैंट से बीजेपी के अमित अग्रवाल, मेरठ दक्षिण से डा. सोमेन्द्र सिंह तोमर और हापुड़ सुरक्षित विधानसभा सीट से बीजेपी के विजयपाल विधायक हैं।
साल 2024 के मिशन की चुनावी बिसात
बीजेपी ने इस बार सिटिंग एमपी राजेन्द्र अग्रवाल की जगह नया प्रयोग किया है। रामायण टीवी सीरियल में भगवान का राम चरित्र निभाकर सुर्खियों में छाए रहे अरुण गोविल को यहां से टिकट दिया गया है। तो मायावती की पार्टी बीएसपी ने देवव्रत त्यागी पर भरोसा जताया है। पर समाजवादी पार्टी खेमे में प्रत्याशियों को को तय करने को लेकर खासी ऊहापोह और असमंजस के हालात नजर आए। पहले सपा ने भानुप्रताप सिंह को टिकट दिया। पर उसे काटकर सरधना से सपा विधायक अतुल प्रधान के नाम का ऐलान कर दिया गया। जल्द ही प्रधान का नाम भी दरकिनार करके सुनीता वर्मा को मैदान में उतार दिया गया। सुनीता पूर्व विधायक योगेश वर्मा की पत्नी हैं। बहरहाल, चुनावी जंग में सभी दलों और प्रत्याशियों के अपने अपने समीकरण हैं और जीत को अपने अपने दावे। फिलहाल यहां भी मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है।